यह ख़बर 07 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

कादम्बिनी के कीबोर्ड से : ध्यान से सुनो हाफिज़ सईद की बकवास

लाहौर में एक मजमे को संबोधित करता हाफिज सईद

नई दिल्ली:

सेना और सुरक्षा एजेंसियों ने साफ कर दिया है कि कश्मीर में शुक्रवार के ताज़ा आतंकवादी हमले में पाकिस्तान का हाथ है। खाने के पैकेट, हथियार, असलहा सब पर पाकिस्तान का ठप्पा है- मेड इन पाकिस्तान। इस मुठभेड़ में सभी आतंकवादी मार गिराए गए। भारत के ग्यारह जवान शहीद हुए।

ये तब हो रहा है जब जम्मू-कश्मीर में दो दौर के चुनाव खत्म हो चुके हैं और बड़ी संख्या में लोग बाहर निकल कर वोट दे रहे हैं। अलगाववादियों के चुनाव के बहिष्कार की अपील अवाम ने अनसुनी कर दी है। लोग अपनी सरकार चुनना चाहते हैं, बताना चाहते हैं कि वो किस पर भरोसा करना चाहते हैं और किस पर नहीं- बुलेट के ज़रिए नहीं, बैलेट के ज़रिए।

शुक्रवार को ही मुंबई के 26/11 हमलों के मास्टर माइंड और जमात उद दावा (जेयूडी) के प्रमुख हाफिज़ सईद की पाकिस्तान के लाहौर में दो दिन की रैली खत्म हुई। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को आतंकवाद का शिकार बताने वाले पाकिस्तान ने ट्रेनों का इंतज़ाम किया ताकी सईद के लोग इस रैली में पहुंच पाएं।

सईद जैसे मोस्टवॉन्टेड आतंकवादी के सामने पाकिस्तान ने पहले ही घुटने टेक दिए थे और अब तो वह साथ देती दिख रही है। रैली की जगह 'मीनार-ए-पाकिस्तान' में सारी सुविधाएं भी सरकार ने ही जुटाईं और चूंकि सईद बस भारत को गाली देकर ही खुद को किसी काम का साबित कर पाता है, इस बार भी उसने वही किया। कहा कि कश्मीर में चुनाव झूठे हैं और जनमत संग्रह की जगह नहीं ले सकते। यहां तक कि उसने एक बार फिर भारत के खिलाफ जिहाद की बात कही। उसके इस ज़हर बुझे भाषण का इंटरनेट पर लाइव स्ट्रीमिंग भी किया गया।

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पाकिस्तान के इस कदम को आतंक को मुख्य धारा में लाने वाला कहा। लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों की सरकारों को हाफिज़ सईद की बकवास को बहुत ध्यान से सुनना चाहिए- भले ही दोनों के लिए इसकी वजहें अलग-अलग हों।

भारत के लिए इस पर ध्यान देना ज़रूरी इसलिए है, क्योंकि दिनों दिन अब ये लगने लगा है कि पाकिस्तान पहले तो हाफिज़ सईद पर लगाम लगाना नहीं चाहता था और अब नवाज़ शरीफ सरकार इतनी कमज़ोर हो चुकी है, सईद ने अपने पीछे इतनी भीड़ जमा कर ली है, आतंक का इतना सामान और पैसा जुटा लिया है कि पाकिस्तानी सरकार उसके सामने कमज़ोर पड़ रही है। ऊपर से सईद को आईएसआई और पाकिस्तानी सेना का भी पूरा साथ मिल रहा है, नहीं तो सरहद के इलाकों में उसके इतने आतंकी कैंप नहीं चल रहे होते। मकसद ये कि आतंकवादी ना सिर्फ कश्मीर बल्कि भारत के अंदरूनी हिस्सों तक घुस कर हमले करते रहें और पाकिस्तान इन्हें नॉन स्टेट एक्टर कह कर पल्ला झाड़ता रहे, और उलटा खुद को ही आतंकवाद का पीड़ित बताता रहे।

जैसा कि मुंबई में हमलों के दौरान हमने देखा, आतंकवादियों के लिए कोई भी हरकत गिरी हुई नहीं होती। ऐसे में भारत को ना सिर्फ अपनी सरहदों को मज़बूत करने की ज़रूरत है, बल्कि सेना, अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस सबको पूरी तरह आधुनिक और तकनीकी रूप से दक्ष्य करने की ज़रूरत है। सबसे ऊंचे से लेकर सबसे नीचे तक रणनीति, एक्शन में समन्वय की ज़रूरत है। ऐसा नहीं चलेगा कि सेना ने किसी आतंकवादी को पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया और अदालत ले जाते वक्त दो पुलिस कॉन्स्टेबलों की ग़लती से वह फ़रार हो गया।

हालांकि इसमें एक बात पर बेहद ध्यान रखने की जरूरत है कि जांच सही तरीके से हो, मासूमों को आतंकवाद के झूठे केसों में ना फंसाया जाए। केंद्रीकृत डाटाबेस में आतंकवाद से जुड़े ही नहीं, बल्कि छोटे-मोटे अपराधों से जुड़ी हर जानकारी होनी चाहिए। कई बार अपराध, आतंकवाद की तरफ पहला कदम साबित होते हैं। राजनीतिक तौर पर बिना किसी भेदभाव के समाज के हर वर्ग को शिक्षा और रोज़गार मुहैया कराना, न्याय ना सिर्फ देना पर देते हुए दिखना भी, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का बड़ा हिस्सा है।
इसके साथ ही देश की सबको साथ लेकर चलने की संस्कृति को सहेज कर रखने भी उतना ही अहम। गरीबी और अन्याय कई बार अच्छे से अच्छे इंसान को गलत दिशा में धकेल देता है।

पाकिस्तान से फिलहाल भारत ने बातचीत बंद कर रखी है, लेकिन कई बार दबाव बनाने के लिए बात करना ज़रूरी होता है खासकर कूटनीति में। बाकी एशियाई देशों से नज़दीकी संबंध और पश्चिमी देशों पर प्रभाव भी पाकिस्तान को कार्रवाई पर मजबूर कर सकते हैं।

वहीं पाकिस्तान को हाफिज़ सईद की बात ध्यान से इसलिए सुननी चाहिए, क्योंकि वह उसके फिर से गर्त में जाने का सबसे सीधा संकेत है। ऐसे आतंकवादियों के लिए रास्ते खोलकर पाकिस्तान की फेल होती आर्थिक स्थिति सुधरने वाली नहीं है। अमेरिका और चीन का अनुदान भी तभी तक मिलेगा, जब तक उन देशों का काम निकलता है। अमेरिका, ब्रिटेन वगैरह पहले ही सईद को आतंकवादी घोषित कर चुके हैं। चीन उईघर आतंकवाद के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को दोषी ठहरा चुका है। सिर्फ सउदी अरब के भरोसे कब तक चलेगा। जब तक आर्थिक स्थिति सुधरेगी नहीं हाफिज़ सईद जैसे आतंकवादियों को आतंकवाद की भट्ठी में झोंकने के लिए अनपढ़, बेरोज़गार, गरीब नौजवान मिलते रहेंगे।

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पाकिस्तान को एक साथ हाफिज़ सईद पर लगाम कसने, आर्थिक स्थिति सुधारने, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने और भारत को दुश्मन नंबर वन समझना बंद करने की ज़रूरत है। लेकिन वहां के लिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि राजनीतिक नेतृत्व को ऐसा करने की कोशिश भी करने की हिम्मत है भी या नहीं और सेना क्या चाहती है।