यह ख़बर 14 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

कादम्बिनी के कीबोर्ड से : आतंक का इंटरनेट कनेक्शन?

आईएस के समर्थन में ट्विटर एकाउंट चलाने का आरोपी मेहदी मसरूर

नई दिल्ली:

बेंगलुरु से आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के प्रचार प्रसार के लिए ट्विटर हैंडल शमी विटनेस चला रहा 24 साल का मेहदी मसरूर बिस्वास गिरफ्तार हो चुका है। लेकिन ये पूरा मामला अब कई सवाल उठा रहा है और इनमें सबसे बड़ा सवाल इंटरनेट के जरिए नौजवानों को भड़काने, प्रभावित करने और आईएस जैसे आतंकवादी संगठनों के लिए काम करने का है।

बिस्वास से पहले इंटरनेट के ही ज़रिए आईएस से प्रभावित होकर कल्याण का आरिफ मजीद और वहीं के चार और नौजवान जिहाद के लिए इराक पहुंच गए। अब एनआईए ये पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आखिर मजीद के वापस आने का मकसद क्या है।

लेकिन इंटरनेट के ज़रिए जो रास्ता खुला है वह सुरक्षा एजेंसियों को ही नहीं, अभिभावकों को भी परेशान कर रहा है। क्या ये किसी भी तरह संभव है कि इंटरनेट को रेग्यूलेट किया जा सके। इस तरह के कंटेट जो नौजवानों के दिमाग में ज़हर भरते हैं उन्हें फिल्टर कर बाहर किया जा सके।

अभी कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी को बैन करने के लिए एक जनहित याचिका दायर हुई थी, लेकिन इंटरनेट को रेग्यूलेट करने में सरकार ने मुश्किल जताई थी। कई देशों में चाइल्ड पोर्न प्रतिबंधित है, लेकिन तब भी पूरी तरह से ये देश उसे भी फिल्टर करने में नाकाम रहे हैं। ऐसे में इंटरनेट के ज़रिए आतंक का प्रचार प्रसार रोकने में कितनी सफलता मिल पाएगी या यह भी कि ये कितना व्यावाहरिक कदम होगा।

इस बीच ब्रिटेन के दस प्रमुख इमाम आतंकवादी संगठनों का ऑनलाइन प्रौपेगैंडा रोकने के लिए साथ आए हैं। उनकी मांग है कि इंटरनेट की सफाई होने चाहिए। लेकिन उन्होंने कुछ प्रमुख इंटरेनट कंपनियों पर आतंकवादी संगठनों के प्रचार प्रसार को रोकने के लिए काफी कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया है- हर प्रकार का अतिवादी कंटेट एक क्लिक पर नेट पर उपलब्ध है। और अब इन इमामों ने इमाम्स आनलाइन नाम से एक वेबसाइट बनाई है, जिस पर कोई भी आम मुस्लिम नागरिक आपत्तिजनक कंटेट रिपोर्ट कर सकता है।

अमेरिका में 2001 से एनएसए ने नागरिकों की जासूसी की जो लोगों के सामने 2005 में आया और बड़ा बवाल हुआ। इंटरनेट कंपनियां के ज़रिए राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने में अभी भी कई समस्याएं हैं और कंपनियां जानकारी को लेकर बहुत मददगार नहीं है, और ना अधिकतर लोग अपनी निजी ज़िंदगी की जासूसी चाह सकते हैं।

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क्या भारत में सुरक्षा एजेंसियां कंपनियों से मदद की उम्मीद कर सकती हैं? शायद बहुत कम। ऐसे में शायद पहला और सबसे अहम कदम एक बार फिर नागरिकों के ज़रिए ही आपत्तिजनक कंटेट की रिपोर्टिंग और फिर उस पर रोकथाम की कोशिश सबसे कारगर होगी। अनगिनत ट्विटर हैंडल, फेसबुक और बाकी साइट्स पर लागातार नज़र रखने और बाकी देशों के साथ मिलकर इंटरनेट के आयाम से निबटने के उपाय खोजने होंगे।