कमाल की बातें : यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां

कमाल की बातें : यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केशव मौर्य (फाइल फोटो)

यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष केशव मौर्य ने सोमवार को जब अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला तो उनके कंधे गले में पड़ी मालाओं के बोझ से दबे थे। लेकिन उनके कंधों पर उससे बड़ा बोझ यूपी में एक तीसरे नंबर की पार्टी को जिताने का है और सामने लक्ष्य है लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत को दोहराने का।

केशव मौर्य 2012 में बीजेपी के विधायक बने, 2014 में मोदी लहर में सांसद बने और 2016 में देश में बीजेपी के लिए सबसे अहम राज्य यूपी के सीधे अध्यक्ष बन गए। अब उनका मुकाबला मयावती, मुलायम और अखिलेश यादव से है, जिनसे उनका कद बहुत छोटा है और तजुर्बा भी बहुत कम।

मौर्य बीजेपी के काशी प्रांत से संयोजक भी थे, लेकिन मोदी की जबरदस्त लहर में जिस सिराथू विधानसभा सीट से इस्तीफा देकर वो सांसद बने थे, बीजेपी वो सीट हार गई। वाराणसी में अनुप्रिया पटेल के सांसद बनने से खाली हुई रोहनिया सीट बीजेपी हार गई। पंचायत चुनाव में उन्होंने जितनों को टिकट दिया, सब हार गए। बलिया में हाल ही में वो संगठन के काम से गए तो उनके खिलाफ प्रदर्शन हुआ ओर उनकी गाड़ी तोड़ दी गई।

मौर्य के सामने एक बड़ी चुनौती यह है कि उनके पास चुनाव में बखान करने के लिए केंद्र की कोई बड़ी उपलब्धियां नहीं हैं। महंगाई आसमान पर है, काला धन वापस नहीं आया है। अमित शाह खुद बता चुके हैं कि 15 लाख मिलने वाली बात सिर्फ जुमलेबाजी थी। दाऊद भी आया नहीं है, एक सिर के बदले 10 सिर भी नहीं काटे हैं, पाकिस्तान तो पाकिस्तान, नेपाल भी नाराज है। भ्रष्टाचार उसी तरह है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। पीने को पानी नहीं है। ऐसे में वो बीजेपी सरकार की किन उपलब्धियों पर वोट मांगेंगे? बचता है सिर्फ अखिलेश सरकार का विरोध।

लेकिन मौर्य की ताकत यह है कि वो पिछड़ी जाति से हैं जिसका यूपी में वोट करीब 40 फीसदी है। वो कईयों से अधिक युवा हैं और आक्रामक हिंदुत्ववादी भाषण देने के लिए जाने जाते हैं। सितंबर 2014 में हुए यूपी चुनावों में बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक बनाया था। सियासत के जानकार कहते हैं कि बीजेपी को उम्मीद है कि मौर्य आक्रामक हिंदुत्वावादी भाषण देंगे तो आजम और ओवैसी उसपर प्रतिक्रिया करेंगे। यह चुनाव से पहले ध्रुवीकरण करने में मददगार साबित होगा। इसका बीजेपी को सबसे बड़ा फायदा मिलेगा, हालांकि बिहार में गाय माता के नाम पर ध्रुवीकरण नहीं हो पाया था। बहरहाल आगे-आगे देखिए होता है क्या।
(कमाल खान एनडीटीवी में रेजिडेंट एडिटर हैं)

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