राजा दशरथ को तो श्रवण कुमार के अंधे मां-बाप ने श्राप दिया था कि “जिस तरह हम पुत्र शोक में मर रहे हैं, उसी तरह तुम भी पुत्र शोक में मरोगे.”…लेकिन राजेश और नुपुर तलवार को किसने श्राप दिया कि तुम बेटी की मौत के गम में…बेटी के बदचलन होने की बदनामी के गम में और बेटी के कातिल होने के दाग के साथ जिंदा रहोगे...लेकिन वो जिंदगी मौत से भी बदतर होगी.
अदालत ने कहा कि आरुषि के मां-बाप के खिलाफ उनकी बेटी को कत्ल करने के कोई सुबूत नहीं हैं. इस फैसले से वे जेल से छूट जाएंगे…लेकिन करीब साढ़े नौ साल तक जो उनके दिल पर गुजरी है…वो कैसे वापस होगा? उस ट्रॉमा को…उस अज़ीयत को उनके अलावा दुनिया में कोई और महसूस नहीं कर सकता. वह दर्द सिर्फ उन्हीं का हिस्सा है.
कितना बेहूदा मीडिया ट्रायल उन मां-बाप के साथ हुआ जिनकी 14 साल की इकलौती बेटी कत्ल हो गई? क्या नहीं कहा गया उनके बारे में…जैसे… ”बेटी जब घर में कत्ल हुई, उस वक्त मां-बाप वाइफ स्वॉपिंग पार्टी में थे…”, “बेटी बदचलन थी और वह अधेड़ उम्र के नौकर के साथ सोती थी.” और “बेटी के अपने स्कूल के लड़कों से रिलेशनशिप थे..” शुरू में जब केस यूपी पुलिस इन्वेस्टिगेट कर रही थी तब यूपी के एक बहुत सीनियर अफसर ने मुझे आरुषि की चैट हिस्ट्री की एक हार्ड कॉपी दी. उन्होंने कहा कि लड़की देर रात तक चैटिंग करती थी और निंफोमेनिक थी. जाहिर है कि वह यूपी पुलिस की थ्यौरी मीडिया में प्लांट कराना चाहते थे. आरुषि मर्डर केस को जर्नलिज्म के स्कूलों में क्राइम रिपोर्टिंग की सबसे बेहूदा मिसाल की केस स्टडी के तौर पर पहचाना जाना चाहिए, ताकि भविष्य के पत्रकार वह गुनाह न करें.
अदालत का फैसला आया है तो आरुषि की तस्वीरें एक बार फिर मीडिया में छाई हुई हैं. एक तस्वीर में आरुषि मम्मी-पापा के साथ सिंगापुर के जुरॉंग बर्ड पार्क में है. तीनों के हाथों पर रंग-बिरंगी चिड़िया बैठी हैं. उसे देखकर कहीं लगता है कि इन मां-बाप ने अपनी बच्ची को कत्ल कर दिया होगा? सीबीआई ने जब तलवार के घर के फोन की कॉल हिस्ट्री खंगाली तो उसमें आरुषि के कत्ल वाली रात करीब साढ़े नौ बजे बाप की एक फोन कॉल मिली जो उसने मुंबई में ”इम्रेसिओंज़ ट्रेडर्स” को आरुषि के लिए नया कैमरा मंगाने के लिए किया था. आरुषि की मौत के बाद जब उस कैमरे का कोरियर घर आया होगा तो सोचिए बाप के दिल पर क्या गुजरी होगी?
गाजियाबाद की डासना जेल की ऊंची दीवारों के पीछे सारे वक्त बिल्कुल खाली ज़हन में क्या चलता होगा? हमारी पूर्व सहयोगी वर्तिका नंदा से डसना जेल में एक इंटरव्यू में नुपुर तलवार ने कहा कि “बस ऐसे लगता है जैसे आंखों के सामने आरुषि की कोई फिल्म चल रही हो…हर लम्हा याद आता है, जब वो नन्ही सी पैदा हुई थी…जब वो डग-मग, डग-मग कर चलती और गिर जाती थी..जब वो पहली बार यूनिफॉर्म पहन स्कूल गई और जब वह बिस्तर पर मरी पड़ी थी…यादों के साथ दर्द का एक समंदर अंदर उमड़ता रहता है. जेल में किसी बच्ची को देखती हूं तो आरुषि लगती है…आरुषि का मतलब सुबह की किरण होता है…अब कभी उगता सूरज देखती हूं तो उसमें भी आरुषि नजर आती है.”
अगर सीबीआई की दलील थोड़ी देर के लिए मान लें कि आरुषि को नौकर के साथ देखकर बाप ने गुस्से में नौकर को मारा, लेकिन बेटी मर गई..तो एक बार सोचिए कि जिस बाप से उसकी इकलौती बच्ची मारी गई हो वो गुनाह के किस एहसास के साथ जीता होगा. यह जो अपनी बेटी का कातिल होने का एहसास है यह किसी भी उम्र कैद और किसी भी सज़ाए मौत से ज़्यादा बड़ी सज़ा है…और सोचिए कि अगर वो बेगुनाह हों और दुनिया की हर नजर उन्हें बेटी का क़ातिल समझती हो…तो उनके दिल पर क्या गुजरती होगी..मेरे कहने से थोड़ा सा वक्त निकालिए, अपने दिल पर हाथ रखकर खुद को नुपुर और राजेश तलवार की जगह रखकर उस तकलीफ को महसूस करने की कोशिश कीजिए.
कमाल खान एनडीटीवी इंडिया के रेजिडेंट एडिटर हैं.
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