गैरकानूनी उबर-ओला टैक्सी पर रोक क्यों नहीं लगा रहे केजरीवाल?

गैरकानूनी उबर-ओला टैक्सी पर रोक क्यों नहीं लगा रहे केजरीवाल?

प्रतीकात्मक फोटो

दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर हलफनामे के बावजूद एप आधारित कैब कंपनियों का दिल्ली में अवैध परिचालन कैसे हो रहा है?

उबर-ओला का दिल्ली में कारोबार और परिचालन गैर-कानूनी है
दिसंबर 2014 में हुई रेप की घटना के बाद अमेरिकन कैब प्रदाता कंपनी के एशिया पैसिफिक हेड एरिक एलेक्जेंडर को मानना पड़ा था कि भारत में कानून को ताक पर रखकर उबर का परिचालन हो रहा था जो दुर्भाग्य से आज भी जारी है। एप को ब्लॉक करने की बजाए सरकार ने 9 दिसंबर 2014 उबर पर ही प्रतिबंध लगाकर जगहंसाई कराई थी जबकि इन टैक्सियों द्वारा परिवहन विभाग से कभी कोई लाइसेंस ही नहीं लिया गया था। इन कंपनियों द्वारा टैक्सी स्कीम 2015 के तहत लाइसेंस के लिए अधूरी एप्लीकेशन दी गई जो 28 जून 2015 को सरकार द्वारा खारिज होनी ही थी, जिसके बाद उबर-ओला का दिल्ली में पूरा परिचालन गैर-कानूनी ही है।

हलफनामा देने के बजाए केजरीवाल कार्रवाई क्यों नहीं करते
आम जनता तथा केंद्र सरकार के प्रतिरोध के बावजूद ऑड-इवन फार्मूले को फिर से लागू करने के पीछे कहीं एप आधारित टैक्सी की मदद करने की मंशा तो नहीं है? जनवरी 2016 के ऑड-इवन-1 में कुल 6768 और वर्तमान ऑड-इवन-2 में अभी तक 5814 चालान से आम जनता पर कठोर जुर्माना लगाया गया है, जिससे जनता में भारी रोष है। एप आधारित सेवाओं का टैक्सी संघों द्वारा भी भारी विरोध हो रहा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने बगैर लाइसेंस के उबर-ओला को टैक्सी चलाने की कोई अनुमति नहीं दी, फिर इन ताकतवर कंपनियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के बजाय सिर्फ हलफनामा देकर इनका संरक्षण क्यों हो रहा है?

ऑड-इवन के दौरान उबर-ओला की लूट पर लगाम क्यों नहीं
कानून के अनुसार ऑटो या टैक्सी में सरकार द्वारा निर्धारित रेट से अधिक किराया नहीं लिया जा सकता। ऑड-इवन से परेशान जनता उबर-ओला की लूटमार से त्रस्त है। मांग के अनुसार बढ़ते किराये का फार्मूला जिसे सर्ज-प्राइसिंग कहते हैं उसको पीक टाइम में लागू करने से, यात्रियों को 4 गुना ज्यादा तक की रकम देनी पड़ रही है। कानून का पालन करने के बजाय इन कंपनियों द्वारा टैक्सी ही नहीं भेजी जाती जिससे एक दिन 40,000 ग्राहकों को उबर की टैक्सी नहीं मिली, पर सरकार कंपनी के प्रबंधन के खिलाफ कुछ नहीं कर पाई।

आप सरकार के साथ केंद्र सरकार भी इस लूट में सहयोगी
टैक्सी चालकों के संघ ने आरोप लगाया है कि उबर-ओला द्वारा एफडीआई के नियमों का खुला उल्लंघन हो रहा है पर सरकार खामोश है। केंद्र सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार किसी भी मुद्दे पर विरोधी रुख अपनाने में माहिर है पर इस मामले में एप कंपनियों के साथ दिखते हैं। रेप कांड के बाद संसद में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उबर को ब्लैक लिस्टेड करने की घोषणा थी, जिसका पालन नहीं होने से, इन कंपनियों का कारोबार कई गुना बढ़ गया। केंद्रीय गृहमंत्री के निर्णय को विफल बनाने के लिए नितिन गडकरी के परिवहन मंत्रालय ने सभी राज्यों से राय मांग कर मामले को और अधिक जटिल बना दिया। कानून के अनुसार इन कंपनियों के एप पर राज्य द्वारा प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता क्योंकि आईटी एक्ट के तहत केंद्रीय संचार मंत्रालय ही एप को ब्लॉक करने की कार्रवाई कर सकता है। इन कानूनी पहलुओं को नज़रंदाज़ कर सरकारें उबर-ओला को सीएनजी के नाम पर क्लीन चिट देने का गोरखधंधा कर रही हैं।

दाल के जमाखोरों की तर्ज पर एप-बेस्ड टैक्सी कंपनियों पर कार्रवाई हो
गरीब ऑटो और टैक्सी वाले सरकार को लाइसेंस शुल्क भुगतान करते हैं और नियम का पालन न करने पर पुलिस के डंडे पड़ते हैं। परन्तु उबर-ओला जैसी एप आधारित कंपनियों द्वारा नियम का पालन तो होता ही नहीं बड़े पैमाने पर सर्विस टैक्स इत्यादि की भी चोरी हो रही है। दिल्ली तथा केंद्र की सरकार आम जनता के हित तथा रोजगार बढ़ाने का दावा करती हैं फिर भी उबर के ड्राइवरों को कंपनी के कर्मचारी का दर्ज़ा नहीं मिलता। उबर-ओला के अवैध परिचालन तथा खुली लूट पर सरकारों का सामंजस्य, देश की राजधानी में कानून के राज पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। दालों की कालाबाजारी के खिलाफ इनकम टैक्स विभाग तथा राज्य सरकारों ने कठोर कार्रवाई की है। इसी तर्ज़ पर केजरीवाल उबर-ओला कंपनी प्रबंधन के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई कर अपनी जिम्मेदारी पूरी क्यों नहीं करते? ऐसा न करने पर ऑड-इवन को उबर-ओला की मदद का फार्मूला ही माना जाएगा, पर उस साजिश की जांच कौन करेगा?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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