हिंसा रोकने में खट्टर सरकार फिर नाकाम, रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

बहुत से आश्रम हैं जहां आध्यात्मिक बातें होती हैं मगर उनका ज़िक्र आप कहीं नहीं सुनेंगे. वे अच्छा काम भी करते हैं लेकिन ऐसा क्यों हैं कि कुछ आश्रम ज़रूरत से ज़्यादा राजनीति और बिजनेस में ताकतवर हो गए हैं.

हिंसा रोकने में खट्टर सरकार फिर नाकाम, रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

हमारी राजनीति आस्था के नाम पर न जाने कितने डेरों और आश्रमों की गुलाम हो चुकी है अंदाज़ा भी नहीं होगा. चुनाव होता नहीं कि नेता उनके मंच पकड़ लेते हैं. जयंतियां मनाने लगते हैं और उनके पांव पड़ने लगते हैं. हम और आप लगातार नाना प्रकार के तर्क खोजकर आस्था के नाम पर इन दुकानों का बचाव करने लगते हैं. बहुत से आश्रम हैं जहां आध्यात्मिक बातें होती हैं मगर उनका ज़िक्र आप कहीं नहीं सुनेंगे. वे अच्छा काम भी करते हैं लेकिन ऐसा क्यों हैं कि कुछ आश्रम ज़रूरत से ज़्यादा राजनीति और बिजनेस में ताकतवर हो गए हैं.

अगर हम अब भी नहीं देख पा रहे हैं तो यकीन जानिए हिंसा की इस तस्वीर में आप कुछ भी नहीं देख रहे हैं. धर्म के नाम पर सनक को बढ़ावा देने का प्रोजेक्ट टीवी चैनलों पर जो तीन साल से चल रहा था आज भरभरा कर गिर गया. किसी को समझ नहीं आ रहा है कि गुरमीत सिंह राम रहीम के दोषी पाए जाने के बाद क्या करें. सज़ा के पहले तक डेरा सच्चा सौदा के आश्रम में कांग्रेस के नेता भी गए, बीजेपी के नेता भी गए और यहां तक कि जब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए तो चौटाला सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई कि सीबीआई जांच न हो. राजनीति में राजनीति होनी चाहिए. धर्म जब भी होगा वो खुद को राज्य संविधान और सामान्य कानून से ऊपर समझने का खेल हो जाएगा जिसके शिकार नेता नहीं होंगे, आप होंगे. हिंसा की चपेट में आप आएंगे. 

गुरमीत सिंह राम रहीम वाकई एक ताकतवर इंसान हैं. उनकी ताकत के आगे सभी राजनीतिक दल के बड़े नेता सर झुकाते हैं. चुनाव आएंगे तो डेरा के चक्कर फिर लगाने जाएंगे. गुरमीत सिंह राम रहीम के साथ कई नेताओं की तस्वीर ट्वीटर और सोशल मीडिया पर चल रही हैं. मुख्यमंत्री खट्टर तो उनके साथ स्वच्छता अभियान के तहत झाड़ू लगा रहे हैं. 

जब भीड़ मीडिया के ओबी वैन में आग लगा रही थी तब पुलिस वहां चुपचाप खड़ी रही. सरकारी दफ्तरों के सामने खड़ी कई ओबी वैन को समर्थकों ने पलट दिया और वैन जला दीं. एनडीटीवी की भी ओबी वैन पूरी तरह जल गई और इंजीनियर का पांव टूट गया. उधर, सिरसा में पीटीसी चैनल के रिपोर्टर और कैमरामैन पर समर्थकों ने हमला कर दिया. इनका हाथ टूट गया और सहयोगी कैमरामैन लापता हो गया. व्हाट्सअप, इंटरनेट सेवाएं बंद थीं इसके बाद भी मीडिया ने किसी तरह तस्वीरें आप तक पहुंचा दीं. मगर सोचिए कि क्या-क्या तस्वीरें आप तक नहीं पहुंची होंगी. पंचकुला में लोगों ने पत्रकारों को घर में घुसने नहीं दिया. 

सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस बल की तैनाती का कोई फायदा नहीं हुआ. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर शांति की अपील करते रहे जैसे होली-दीवाली के समय शांति और सदभावना बनाए रखने की अपील की जाती है. फरवरी, 2016 के जाट आंदोलन के समय भी ऐसी ही भीड़ बेकाबू हो गई थी. उसके बाद प्रकाश सिंह की अध्यक्षता में एक रिपोर्ट भी जमा हुई लेकिन कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति हुई. इस रिपोर्ट को पढ़ेंगे तो आज की हिंसा को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे. आप देख पाएंगे कि क्यों पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती के बाद भी भीड़ अपने मन का कर लेती है.  

जाट आंदोलन के वक्त हरियाणा में 1,196 दुकानें जला दी गईं थीं. 371 गाड़ियां फूंक दी गईं. 53 मैरेज पैलेस और होटलों को जला दिया गया. 23 पेट्रोल पंप को नुकसान पहुंचाया गया. 29 थानों और चौकियों पर भी हमला हुआ था. प्रकाश सिंह कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार उस वक्त हरियाणा में 7,232 पेड़ काट डाले गए थे ताकि रास्तों को ब्लाक किया जा सके. फरवरी 2016 की यह तस्वीर अगस्त, 2017 की तस्वीर से अलग नहीं है. प्रकाश सिंह ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रोहतक ज़िले में 6,332 सुरक्षा बलों की तैनाती के बाद भी हिंसा को रोकने के लिए कुछ नहीं किया. राज्य में सुरक्षा बलों की तैनाती तो पर्याप्त थी मगर एक्शन लेने की इच्छा शक्ति नज़र नहीं आती.

प्रकाश सिंह ने लिखा है कि कई स्तरों पर नेतृत्व ही नहीं था. कुछ अफसर ड्यूटी से ही भाग गए. कुछ ने ड्यूटी पर होते हुए भी कुछ नहीं किया. अफसरों का समूह ऐसा था जो अपनी जाति की वफादारी निभा रहे थे, कानून की वफादारी नहीं निभा रहे थे. इन लोगों ने दंगाइयों को हिंसा करने की छूट दी. प्रकाश सिंह ने लिखा है कि हरियाणा पुलिस ने 11 जगहों पर लाठी चार्ज की मगर कोई घायल नहीं हुआ. प्रकाश सिंह तंज करते हैं कि लाठी चार्ज भी काफी अहिंसक हो गई है. उन्होंने बताया है कि फायरिंग की 20 घटना हुईं जिसमें 9 लोग मारे गए. रोहतक में 9 बार फायरिंग हुई मगर कोई नहीं मरा. साफ है कि प्रशासन जातियों में बंट गया था और दंगाइयों को बचा रहा था. 

प्रकाश सिंह ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पिछले एक दशक में हरियाणा पुलिस ने फोर्स का ही इस्तमाल नहीं किया है. वो भूल गई है फोर्स का इस्तमाल करना. आखिर उस सरकार की पुलिस के अफसर किसके भरोसे एक्शन लें, जिसके मुखिया से लेकर मंत्री तक सब डेरा में हाज़िरी लगाते हों. लेकिन इसके पहले कि बात आनीजानी हो जाए उन दो साध्वियों के बारे में जान लें जिन्होंने 15-16 साल तक गवाही दी, तमाम दबावों के बीच लड़ा. आज की हिंसा के स्तर से आप समझ गए होंगे कि उन लड़कियों पर क्या गुज़री होगी.

'पूरा सच' नाम का अखबार निकाले वाले पत्रकार राम चंदेर छत्रपति ने डेरा का पूरा सच और उस गुमनाम पत्र को अपने अखबार में छाप दिया जिसमें दो साध्वियों के साथ बलात्कार और यौन हिंसा की बात लिखी थी. यह गुमनाम पत्र उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा गया था. छापने के कुछ ही समय के भीतर छत्रपति जी पर हमला हुआ और उनकी मौत हो गई. दो साध्वियों के भाई रंजीत की भी हत्या हो गई. एक पत्रकार ने सच के लिए जान दे दी. क्या आप किसी भी नेता को जानते हैं जो वोट लेने के लिए डेरा में जाने से पहले छत्रपति की लड़ाई में साथ देने के लिए गया हो. हमने छत्रपति के पुत्र अंशुल छत्रपति से बात की जो इस वक्त अपनी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित हैं. 

राम चंदेर छत्रपति, एक हंसता मुस्कुराता साहसिक पत्रकार बीच शहर में मार दिया गया. अंशुल ने बताया कि एक बार जब लड़ने का फैसला कर घर से निकले तो रास्ते में बहुत से अच्छे लोग मिले. लेखराज ढोंट, अश्विनी बख्शी, आरएस चीमा और राजें सच्चर जैसे वकीलों ने बिना पैसे के केस लड़ा. तमाम दबावों के बाद भी हमारा और साध्वियो का ही साथ दिया. यही नहीं सीबीआई के जाबांज़ डीएसपी सतीश डागर न होते तो यह केस अपने मुकाम पर नहीं पहुंच पाता. सतीश डागर ने ही साध्वियों को मानसिक रूप से तैयार किया. एक लड़की का ससुराल डेरा का समर्थक था, जब उसे पता चला कि उसने गवाही दी हो तो घर से निकाल दिया. इसके बाद भी लड़कियां तमाम तरह के दबावों और भीड़ के खौफ का सामना करती रहीं.

सतीश डागर नहीं होते ये लोग खौफ का सामना नहीं कर पाते. अंशुल ने बताया कि सतीश डागर पर भी बहुत दबाव पड़ा मगर वे नहीं झुके. बड़े-बड़े आईपीएस ऐसी हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं मगर डीएसपी सतीश डागर ने कमाल का साहस दिखाया है. अंशुल ने बताया कि पहले पंचकुला से सीबीआई की कोर्ट अंबाला में थी. जब ये लोग वहां सुनवाई के लिए जाते थे तब वहां भी बाबा के समर्थकों की भीड़ आतंक पैदा कर देती थी. हालत यह हो गई कि जिस दिन सुनवाई होती थी और बाबा की पेशी होती थी उस दिन अंबाला पुलिस लाइन के भीतर एसपी के आफिस में अस्थायी कोर्ट बनाया जाता था. छावनी के बाहर समर्थकों का हुजूम होता था. ऐसी हालत में उन दो साध्वियों ने गवाही दी और डटी रहीं, आसान बात नहीं उस बाबा के खिलाफ जिससे मिलने कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता, बीजेपी के अमित शाह, कैलाश विजयवर्गीय, हरियाणा की कैबिनेट वहां सलामी देने जाती थीं. जबकि ये नेता महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर चुनाव लड़ते हैं. क्या इन्होंने साध्वी का साथ दिया. 

15 साल की कहानी कैसे समेट दें दस मिनट में. बहुत लंबी है. अंशुल की हालत ये है कि एक गनमैन मिला हुआ था. पूरे राज्य में इतनी तैनाती हो गई मगर किसी को ख्याल नहीं आया कि अंशुल छत्रपति के घर की सुरक्षा बढ़ा दी जाए. पुलिस से मुलाकात भी की मगर नतीजा नहीं निकला. फैसला आने के बाद जब मीडिया ने बात उठाई तो अब उनके घर के बाहर कुछ सुरक्षाकर्मी तैनात हैं. बाद में जब सीबीआई की अदालत पंचकुला में शिफ्ट हुई तो सिरसा से पंचकुला 250 किमी की यात्रा तय कर अंशुल छत्रपति एक गनमैन के साथ जाते थे और गुरमीत सिंह राम रहीम उसी सिरसा के कोर्ट में वीडियो कांफ्रेंसिंग से गवाही देते थे. ये है आम आदमी की हालत. आज पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश न होते तो आपके पास यकीन करने के लायक कुछ नहीं होता कि हिंसा पर उतरी इस भीड़ से वाकई सरकार सख्ती से निपट रही है. हाईकोर्ट की टिप्पणी भी कम सख्त नहीं है. 

इस अराजकता के लिए कौन ज़िम्मेदार है. आपने खुद ही लोगों को ये सब करने दिया है. आपने पंचकुला में भीड़ क्यों जमा होने दी. ये आफिसर मूकदर्शक क्यों बने हुए हैं. आप खुद इनकी मदद कर रहे हैं. उनके समर्थक पैदल ही आ रहे हैं और पकड़ भी नहीं पा रहे हैं. जाट आंदोलन के समय भी ऐसा हुआ था. जब तक आदेश पास हुआ, नुकसान हो चुका था. क्या पंचकुला भारत का हिस्सा है. यह तक पूछ दिया अदालत ने. अदालत ने केंद्र सरकार की भी खिंचाई कर दी और कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि आप आगे आकर पंचकुला के लोगों की मदद करेंगे. या फिर कहिए कि पंचकुला भारत का हिस्सा है या नहीं. हाईकोर्ट की टिप्पणी कठोर से कठोरतम होती जा रही थी. पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि डेरा सच्चा सौदा की संपत्ति ज़ब्त की जाए. उससे नुकसान की भरपाई की जाए. लेकिन राज्य के मुख्य सचिव कहते रहे कि नुकसान की भरपाई सरकार करेगी. 
 


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