सुना है, मुख्यमंत्री जी ने ट्रैफिक जाम के बॉटलनेक पर रिपोर्ट मांगी है...

मुख्यमंत्री जी, मैं उम्मीद करता हूं कि व्यंग्य को गंभीरता से न लेते हुए ब्लॉग को चिट्ठी समझेंगे... और जब बात चिट्ठी तक आ ही गई है, तो इसे तार भी समझ ही लीजिएगा और कृपया केवल रिपोर्ट मंगवाकर बात खत्म मत कीजिएगा...

सुना है, मुख्यमंत्री जी ने ट्रैफिक जाम के बॉटलनेक पर रिपोर्ट मांगी है...

आख़िरकार एक फैसले की ख़बर आ रही है... वह फैसला, जो वास्तव में फैसले पर पहुंचने के लिए किया जाता है... फैसला यह है कि अफसर जाएं, और पता लगाएं कि दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक में बॉटलनेक कहां-कहां हैं (या दिल्ली की भाषा में कहें, तो कहां पर ट्रैफिक का टेंटुआ दबा हुआ है...) और अगर आप दिल्ली में आमतौर पर खुद ड्राइव या राइड करते हैं, तो आपको पता होगा, कहां पर होता है ऐसा नज़ारा... अगर खुद नहीं चलाते, तो आपको वैसा अंदाज़ा नहीं होगा... आपको अंदर से लगता होगा कि आपको पता है कि कहां जाम होता है... यह 'इनसाइट' दरअसल साहित्य के 'भोगा हुआ यथार्थ' वाली श्रेणी में आती है... आपको अपने ड्राइवर से संवेदना हो सकती है, आप काम पर जाने के लिए लेट हो सकते हैं, आसपास के ट्रैफिक को देख सकते हैं, दिल्ली वालों की गाली की क्षमता को भी आप माप सकते हैं, लेकिन फिर भी आप शायद उस गहराई से ट्रैफिक के बारे में महसूस नहीं कर सकते, जिस आध्यात्मिक स्तर पर ड्राइवर उसे महसूस करता है... लेकिन मैं इस विषय पर, अपनी क्षमता और लत के बावजूद, लंबा नहीं लिखूंगा... मैं बिना वक्त गंवाए, तुरंत के तुरंत, मुख्यमंत्री जी को साधुवाद देता हूं, और अपील करता हूं कि वह ट्रैफिक के बॉटलनेक का नेक तोड़ने के लिए प्रयासरत हो जाएं...

...तो जैसा आमतौर पर होता है, सामाजिक हित के लिए लिखने वालों के अंदर एक ललक होती है... वह ललक है अपनी राय देने की, सुझाव देने की और सलाह देने की, जिसके लिए ज़रूरी होता है कि 'प्रिमाइस' को दबे-कुचले लोगों की व्यथा से जोड़ दिया जाए, जो पहले पैराग्राफ में सफलतापूर्वक मैं कर गुज़रा हूं... अब अपनी मंशा का हलफनामा देकर आगे बढ़ता हूं, और पहला सुझाव देता हूं... वह है, पंचवर्षीय योजना न बनाएं, वे आउटडेटेड हो चुकी हैं... 'पंच-हफ्तीय' योजना बनाएं... बेबी-स्टेप... और बॉटलनेक बड़ा स्टेप है, पहले आसान लक्ष्य रखिए... जल्दी होगा... वह क्रांतिकारी लक्ष्य है, कीचड़ साफ करवाना... जिसे अख़बारी हिंदी में 'डीसिल्टिंग' भी कहते हैं... तो बॉटलनेक से निपटने के लिए ज़रूरी है कि नेक के साथ-साथ कमर और कंधों पर भी ध्यान देना चाहिए, तो 'फर्स्ट-थिंग-फर्स्ट'... सड़क किनारे ड्रेनेज सिस्टम को साफ करवाया जाए... अब रोल जिसका भी हो... म्यूनिसिपैलिटी का, या आधे राज्य की पूरी सरकार का... लेकिन साफ करवाना ज़रूरी है... एक रिपोर्ट के मुताबिक कुल एक तिहाई नाले ही साफ किए गए हैं... अगर यह सही है और मानसून भी सही है, तो फिर दिल्ली में जलप्रलय के लिए तैयार रहिए... और फिर बॉटलनेक की बात ही ख़त्म हो जाएगी, क्योंकि पूरी की पूरी 'बॉटल' ही 'नेक' हो जाएगी...

दूसरी जानकारी मैंने यह भी पढ़ी कि आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने पीडब्ल्यूडी और एमसीडी के अधिकारियों के खिलाफ जांच और कड़ी कार्रवाई की मांग की, जिन्होंने डीसिल्टिंग को लेकर गलत रिपोर्ट दी. वह तो जब होगा, तब होगा... अभी फिलहाल क्या होगा, जब बारिश का मौसम आ गया है... आंकड़ों के हिसाब से तो मॉनसून अगर एक तिहाई भी आए, तो कहानी ख़राब हो जाएगी देश की राजधानी की, क्योंकि अब पहले जैसी बात कहां रही है... पहले तो गाड़ियां कम थीं और नाले खुले थे...

जब हमने रिपोर्टिंग शुरू की थी तो दिल्ली में कुल चार-पांच स्पॉट थे, जहां बारिश के बाद चटकदार स्टोरी के लिए चटकदार विज़ुअल मिलते थे... जहां पर प्रिंट और टीवी के फोटोग्राफ़र पहुंचकर जलजमाव की स्टोरी करते थे... कारें धक्का खाती थीं, तमाशबीन भुट्टा खाते थे... ऐसे फोटो-ऑप के लिए चुनिंदा स्पॉट थे, एक-आध डीटीसी बस का तो जन्म ही मिंटो ब्रिज के जलजमाव में जलमग्न होने के लिए होता था... लेकिन आज देखिए... आज जलसमाधि के लिए मिंटो रोड जाने की ज़रूरत नहीं है, दिल्ली के कोने-कोने में यह सुविधा उपलब्ध है... ज़रा सी बारिश हुई नहीं कि सड़कों के फेफड़ों में पानी चला जाता है, और ट्रैफिक 'जल बिन मछली' की तरह छटपटाता रहता है...

मुख्यमंत्री जी, मैं उम्मीद करता हूं कि व्यंग्य को गंभीरता से न लेते हुए ब्लॉग को चिट्ठी समझेंगे... और जब बात चिट्ठी तक आ ही गई है, तो इसे तार भी समझ ही लीजिएगा और कृपया केवल रिपोर्ट मंगवाकर बात खत्म मत कीजिएगा... केंद्र के साथ मिल-बैठकर कुछ करवाइएगा... बाक़ी मैं ब्लॉग दागता रहूंगा... सादर...

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...

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