सर्वप्रिया सांगवान की कलम से : लेह, तुम खुदा का मॉडर्न आर्ट हो

नई दिल्‍ली:

ये कतई ज़रूरी नहीं कि कोई आपसे प्यार करे ही करे, ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी है आपका प्यार में होना। कुछ ऐसे ही दीवाने होते होंगे जो 'लेह' में तमाम दिक्कतों के बावजूद बस अपने प्यार से मिलने पहुंच जाते हैं। अब ये दिक्कतें क्या हैं, ये आपको वहां जाने से पहले ही कोई ना कोई ज़रूर बता देगा।

ऑक्सीजन की कमी, मूलभूत सुविधाओं का अभाव, लम्बे दिन और वक़्त बिताने के बहाने कम। इसलिए दोस्तों को ज़रूर लेकर जाइयेगा।

खैर, मैं घूमने-फिरने की शौक़ीन बिलकुल नहीं हूं लेकिन इस साल सोचा है कि कुछ जगहें ज़रूर देखनी हैं। तो सबसे पहले लेह जाना तय हुआ। हवाई जहाज़ से सिर्फ 1 घंटे का सफर है। ज़्यादातर यायावर दीवाने बाइक पर जाना पसंद करते हैं और पूरा लेह इस तरह घूमने में उन्हें तकरीबन 15 दिन का वक़्त लगता है।

जैसे ही सुबह लेह एयरपोर्ट पर उतरे, आंखों ने जैसे कोई जाम पी लिया था और जो दिख रहा था वो बस नशा था। कहा गया था कि लेह पहुंचते ही आराम करना क्योंकि बहुत ऊंचाई पर बसा है। आपको मौसम के साथ तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है। मुझे तो जाते ही नींद आ गयी थी क्योंकि उससे पहली रात मैं सोयी ही नहीं थी। उठने के बाद सब दोस्त बाहर निकले और पास ही शांति स्तूप की और बढ़े। चारों ओर इतना सुन्दर नजारा था कि बस सड़क पर ही लेट जाते थे। क्या करें, नशा ऐसा ही तो होता है। तभी तो वहां पर शराब, सिगरेट पीने वाले लोग नहीं मिले।

एक ही जगह पर आपको रेगिस्तान, पहाड़, नदियां, चट्टानें, और एक ही दिन में आपको बर्फ़बारी, धूप, छांव, बारिश देखने को मिल जाये तो आप यही कहेंगे कि लेह, तुम खुदा का मॉडर्न आर्ट हो। आखिर में खुदा ने लेह को बनाया होगा और अपनी सारी कलाकारी दिखा दी होगी। यहां रंग ज़्यादा नहीं हैं, शेड्स हैं। पहाड़ों के शेड्स, चट्टानों के शेड्स। लड़कियों के कपड़ों की अलमारी में भी इतने शेड्स नहीं होते। कोई यहां आए तो ज़रूर अगली ड्रेस यहां की वादियों की शेड्स से मिला कर लेगी।

दूध से ज़्यादा उजली बर्फ। कुफरी की तरह पीली नहीं। अच्छा है यहां वो खच्चर की सवारी नहीं होती। वरना आप उस बदबू में अपने मेट्रो शहर को ही याद करने लगते। रात को चांद यहां कुछ ज़्यादा ही मेहरबान होता है। रात को आसमान में अंगड़ाई लिए बादलों को आराम से देखा जा सकता है। चिनार के पेड़ भी एंटीना की तरह खड़े होकर इशारा दे रहे होते हैं कि हां, यही है वो जगह जहां धूप और चांदनी को ज़्यादा बरसना है।

ये जगह सिर्फ दीवानों के लिए है जो या तो यायावरी से प्यार करते हैं या शान्ति से। ये जगह उन लोगों के लिए बिलकुल नहीं है जो शिमला, मनाली जैसी किसी जगह की उम्मीद कर रहे होते हैं और खाली पैकेट सड़कों पर फेंक कर अपनी बुरी यादें इन वादियों के लिए छोड़ जाते हैं।

देखने को लेह में काफी जगहें हैं लेकिन ऐसी कोई जगह नहीं जहां आप जाकर महसूस करें कि वाह क्या जगह है। यहां के रास्ते ही हैं जो खूबसूरत हैं। इतने खूबसूरत की आप कहीं नहीं पहुंचना चाहते। बस चलते रहना चाहते हैं। ज़िन्दगी का मज़ा भी तो सिर्फ मंज़िल तक पहुंचने तक ही रहता है। फिर भी अगर जाना चाहें तो मैग्नेटिक हिल जाएं और जादू देखें कि कैसे कोई पहाड़ आपकी बंद गाड़ी को खींच रहा होता है। लेह पैलेस। कुछ पुराने बौद्ध मठ हैं।

एक वॉर म्यूजियम है जहां भारत-पाकिस्तान की लड़ाइयों के कुछ अवशेष संजोये हैं। पैंग गोंग नदी की ख़ूबसूरती तो आप सभी ने कई फिल्मों में देख ही ली होगी।

एक सुबह ऑक्सीजन की कमी से जल्दी आंख खुल गयी तो अजान सुन कर यकीन सा नहीं हुआ। बौद्ध धर्म का प्रसार तो वहां खूब हुआ ही है लेकिन एक बात जो देखने लायक है वो ये कि वहां संतोषी माता मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद सब मौजूद हैं। एक जगह जहां कि जनसँख्या डेढ़ लाख भी नहीं है, वहां तकरीबन सभी मुख्य धर्मों ने अपने अनुयायी ढूंढ ही लिए हैं। जैसे टीवी पर आने वाले हर बन्दे को ट्विटर फॉलोअर मिल ही जाते हैं।

ज़्यादातर सब लोग हिंदी भी बोलते हैं। कुछ कुछ अंग्रेजी भी। अब यहां मुख्य तौर पर रोज़ी-रोटी टूरिज्म पर ही चलती है तो लोगों को हिंदी सीखनी ही थी। ये बताता है कि भाषा हमारी ज़रूरत है, गर्व का कारण नहीं। लेकिन इसकी गरिमा, गर्व पर आए दिन बहस होती ही रहती है। यहां के लोगों में काफी ईमानदारी है। अगर आप खड़डूंग ला जाएंगे जो कि दुनिया की सबसे ऊंची सड़क है जहां आप ड्राइव कर सकते हैं, इतनी ऊंचाई पर भी आपको 10 रुपये की चॉकलेट 10 रुपये में ही मिलेगी।

बताने को तो काफी कुछ है, लेकिन यहां से सिर्फ रेटिंग ले जाइये और खुद जाकर हैरान होइए कि क्या इससे खूबसूरत भी कुछ और होगा। अगर आप अपनी कोई बकेट लिस्ट बना रहे हैं तो लेह को ज़रूर शामिल करें। ये मॉडर्न आर्ट आपकी यादों में हमेशा के लिए छप जाएगा।


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