पटना में नीतीश कुमार से मुलाकात करते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य की सता में सहयोगी भारतीय जनता पार्टी से उम्मीद जताई है कि 15 अगस्त तक उन्हें ये बता दिया जाएगा कि आखिर उनके पास जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के लिए अगले साल लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारने के लिए कितनी सीटों का ऑफ़र है. नीतीश ने सोमवार को जब से ये बात बोली है तब से इसका अर्थ और विश्लेषण सब लोग अपनी तरह से कर रहे हैं. इसका सीधा मतलब यह है कि नीतीश कुमार सीटों के मुद्दे पर बहुत ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहते. उन्होंने भले ही भाजपा के कर्ता धर्ता अमित शाह को इंतजार के समय के बारे में नहीं बताया हो, लेकिन मीडिया के माध्यम से और सुशील मोदी की उपस्थिति में समय का खुलासा कर दिया है.
नीतीश नहीं चाहते थे कि इस समयावधि को रहस्य रखा जाए नहीं तो भाजपा का नेतृत्व 'कान में तेल डालकर सो जाता.' फिर प्रवक्ताओं के माध्यम से उन्हें भाजपा के सामने बीन बजाना पड़ता. इस चार हफ़्ते के दौरान भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को बिहार में नीतीश से पुराने सहयोगी रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाह से बात कर तय करना होगा कि नीतीश के लिए कौन कितनी सीटें छोड़ने के लिए तैयार है. निश्चित रूप से पासवान इसके लिए पहले से मन बनाकर चल रहे हैं कि उन्हें कुछ सीटों का त्याग करना पड़ सकता है. वैसी सीटें उनके मन और ज़ुबान पर होगी, क्योंकि कई सांसद उनकी पार्टी से दूरी बनाकर रखे हुए हैं, जिसमें वैशाली से सांसद रामा सिंह शामिल हैं. रामा सिंह पिछले कुछ वर्षों से पार्टी और पासवान से दूरी बनाके रख रखे हुए हैं. हालांकि दिक्कत कुशवाह जैसे अति महत्वकांझी नेता से डील करने में भाजपा को आ सकती है, जिसके लिए लालू यादव और उनकी पार्टी दरवाजा खोले बैठी है.
इससे पहले भाजपा को तय करना है कि आख़िर वो नीतीश को कितनी सीट देना चाहती है. भाजपा के नेता मानते हैं कि पटना जाकर अमित शाह ने सुबह का नाश्ता और रात का भोजन करना इसी पृष्ठभूमि के तहत था कि फ़िलहाल भाजपा को बिहार में लोकसभा में नीतीश की ज़रूरत है. भाजपा का वर्तमान नेतृत्व अगर आपकी शक्ति के प्रति आश्वस्त नहीं हो तब आपकी तरफ़ मुंह उठा के देखने में भी समय नहीं बर्बाद करता है.
नीतीश भी जानते हैं कि ये लडाई तू डाल डाल, मैं पात पात वाली है. अगर भाजपा उनसे सीटों पर बात कर रही है तो उसका एक कारण उतर प्रदेश में उनके ख़िलाफ़ गठबंधन है और बिहार में त्रिकोणीय संघर्ष होने पर जो फ़ायदा होने की भाजपा उम्मीद लगाये बैठी थी वो ग़लती नीतीश दोहराने वाले नहीं हैं. अगर वह याचक की भूमिका में आए तो सीट क्या अमित शाह उन्हें सता से पैदल करने में देरी नहीं करेंगे. लेकिन नीतीश के समर्थक भी मानते हैं कि जिस उम्मीद से भाजपा के साथ गठबंधन किया उसका 50 प्रतिशत भी नरेंद्र मोदी अपेक्षा पर खड़े नहीं उतरे हैं. ख़ासकर जब भी आर्थिक मदद या सहायता देने की बारी आई मोदी ने मुंह मोड़ लिया.
फ़िलहाल बिहार में नीतीश और भाजपा दोनों की गाड़ी आज की तारीख़ में एक दूसरे के बिना आगे नहीं बढ़ने वाली. दोनो को एक दूसरे की ज़रूरत हैं. इसलिए फ़िलहाल गठबंधन और शायद तालमेल भी तमाम अरचन के बाद हो जाए, लेकिन नीतीश अपनी तरफ़ से इस गठबंधन को तोड़ने का आरोप अपने सर नहीं लेंगे. इसलिए फ़िलहाल गेंद उन्होंने भाजपा के पाले में डाल दिया है.
मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...
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