मनीष कुमार की कलम से : क्या होगा बिहार का?

पटना:

क्या होगा बिहार में, शायद इस सवाल का जवाब जानने के लिए आप भी बेचैन हों, लेकिन बिहार में जो कुछ भी होगा, उसका फैसला अब मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी या पार्टी अध्यक्ष शरद यादव या नीतीश कुमार नहीं करेंगे, बल्कि बीजेपी के नेता खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह करेंगे और इस फैसले को क्रियान्वित राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के माध्यम से कराया जाएगा।

जीतन राम मांझी को जो फैसला लेना था, वह उन्होंने ले लिया, बागी बनकर उन्होंने अपनी नीतीश कुमार के प्रति श्रद्धा और नियत दोनों का परिचय दे दिया। यह काम जब भी उन्हें हठाने की मुहिम होती तो वह करते, अब किया तो पार्टी इसका डैमेज कंट्रोल कर सकती है।

नीतीश कुमार को उन्हें हटाने का फैसला लेना था। इसके लिए उन पर काफी दबाव बन रहा था, उन्होंने ले लिया। शरद यादव को इस्तीफा मांगने की औपचारिकता करनी थी, वह उन्होंने कर दी। नए नेता चुनने के लिए विधायक दल की बैठक भी उन्होंने शनिवार को बुला ली है। उधर, नीतीश कुमार को नेता भी चुन लिया जाएगा।

नीतीश कुमार का नेता चुनना आसान है, लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना आसान नहीं, क्योंकि मांझी इस बैठक की वैधानिकता पर सवाल खड़े कर रहे हैं इसलिए अब निगाहें बीजेपी के ऊपर टिकी हैं।

बीजेपी ने फिलहाल मांझी से एक ही उम्मीद लगाई होगी कि वह जल्द से जल्द नीतीश कुमार और जनता दल यूनाइटेड को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाएं, लेकिन बीजेपी के लिए मुश्किल इसके बाद खड़ी होगी, क्योंकि मांझी और उनके समर्थक विधायक चाहेंगे कि बीजेपी न केवल मांझी को बाहर से समर्थन दे, बल्कि उनकी सरकार बनाए और राज्यपाल से भी उन्हें हर मोड़ पर मदद मिले, लेकिन बीजेपी के लिए यह निर्णय लेना उतना आसान नहीं है, क्योंकि नीतीश कुमार भी यही चाहते हैं कि बिहार में बीजेपी उनकी सरकार न बनने दे और मांझी की सरकार बनाए रखे, क्योंकि बीजेपी और नीतीश दोनों जानते हैं कि मांझी सब कुछ कर सकते हैं, लेकिन सुशासन देना उनके वश में नहीं और बीजेपी मांझी के कदमों या महादलित वोटों के लिए चुनाव में जाने से पहले इतना बड़ा जोखिम नहीं उठाएगी।

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बिहार बीजेपी के नेता मानते हैं कि फिलहाल वह मांझी के पक्ष में बयान तो जरूर देंगे, लेकिन मांझी को समर्थन देने का फैसला उनके बड़े नेताओं के हाथों में ही है। इस बार बीजेपी दिल्ली के चुनाव में जीती तो राज्य में राष्ट्रपति शासन से लेकर मांझी को समर्थन देने तक की संभावनाओं सकारात्मक निर्णय ले सकते हैं और दिल्ली में हार हुई तो मांझी को नैय्या को बीच मझधार में छोड़ने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा।