बिहार के मुख्यमंत्री के पास दो पूंजी हैं एक सुशासन और दूसरा उनकी व्यक्तिगत ईमानदार नेता की छवि जो भ्रष्टाचार और गलत कमाई से कोसों दूर रहता है. लेकिन सुशासन बाबू नीतीश कुमार को शुक्रवार को उनके ही पुलिस कर्मियों ने वह भी उनके नाक तले राजधानी पटना में चुनौती दी, जब एक महिला पुलिसकर्मी की डेंगू से हुई मौत के बहाने जमकर हंगामा किया गया. वरीय पुलिस अधिकारियों के ऊपर जानलेवा हमला भी किया गया. इन सबकी अगुवाई वह महिला सिपाही कर रही थी जिसकी नियुक्ति छह महीने पहले राज्य में सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत से अधिक आरक्षण का लाभ देकर की गई थी. वर्दी पहनकर हाल के दिनों में ऐसी गुंडई न बिहार के लोगों ने और न ही देश के लोगों ने देखी होगी.
इसे एक संयोग कहिए या दुर्भाग्य पुलिस विभाग के मुखिया यानी की बिहार के गृह मंत्री भी ख़ुद नीतीश कुमार हैं. हालांकि इस घटना के बाद हर बार की तरह एक जांच का आदेश दिया गया है. जांच करने वाले अधिकारी पटना रेंज के आईजी हसनैन ख़ान हैं. लेकिन इस बात में जांच के पूर्व भी कोई विवाद नहीं है कि वह महिला हो या पुरुष पुलिसकर्मी, किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है. जैसा दृश्य देखने को मिल रहा था उससे एक बात साफ़ थी कि इन लोगों के प्रशिक्षण में कोई कमी है, चयन में उससे भी ज़्यादा ख़ामी है. भविष्य में अगर इनके ख़िलाफ़ तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की गई तो अपराधी तो छोड़िए कोई मामूली बात पर अगर मुख्यमंत्री आवास में भी घुसकर यह हंगामा करने लगे तो आश्चर्य की बात नहीं होगी. कम से कम पुलिस के भेष में अराजक, असामाजिक लोगों को कानून को अपने हाथ में लेने और पुलिस बल में रहने का कोई अधिकार नहीं है. नीतीश कुमार इनके प्रति कोई भी नरमी दिखाते हैं तो वे वर्तमान में अपनी सरकार का इक़बाल ही दांव पर नहीं लगा रहे बल्कि भविष्य में अपने लिए मुसीबत को भी निमंत्रण दे रहे हैं.
अधिकांश पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस घटना की जड़ में दो बातें हैं. पहली बात इतनी बड़ी संख्या में महिला पुलिस कर्मियों का चयन, जिसके लिए शायद अभी बिहार जैसा राज्य तैयार नहीं है. चयन के समय संतुलन का ख़्याल नहीं रखने का खामियाजा राज्य सरकार को उठाना पड़ रहा है. दूसरी बात मात्र तीन महीने की ट्रेनिंग के आधार पर इन्हें सड़कों पर उतार दिया गया. शायद इतना अतिआत्मविश्वास जिस भी अधिकारी को इन महिला सिपाहियों पर था वह महंगा साबित हुआ. शायद इन लोगों को कुछ और महीने ट्रेनिंग दी जानी चाहिए थी. और अब तो और भी अनिवार्य है कि ये लोग इस काम के काबिल हैं या नहीं, उस पर एक नया विवाद शुरू हो गया है.
नीतीश कुमार को याद रखना होगा जब-जब उन्होंने अपने गृह मंत्रालय के काम में समझौता किया तब-तब उन्हें न केवल आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा बल्कि उनके वोट बैंक पर भी उसका प्रतिकूल असर पड़ा है. नीतीश कुमार अगर शहाबुद्दीन को सज़ा दिलाने में कामयाब होते हैं या अनंत सिंह को जेल भेजते हैं तो उनका वोट उससे बढ़ता है और उनके समर्थक और आक्रामक होकर उनकी तरफ़दारी करते हैं. लेकिन जब-जब उन्होंने इस मामले में लचीला रूख अपनाया तो उसका मूल्य उन्होंने ही चुकाया है.
रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वर मुखिया की अंत्येष्टि के दौरान पटना की सड़कों पर उनके समर्थकों द्वारा तोड़फोड़ की घटना के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही थी क्योंकि नीतीश कुमार ने बल प्रयोग न करने का आदेश दिया था. इसी तरह रियाज भटकल की जब बिहार पुलिस ने महीनों तक पीछा करने के बाद गिरफ़्तारी की तो नीतीश कुमार ने उसका क्रेडिट लेने के बजाए पूछताछ के लिए रिमांड पर भी न लेने का एक राजनीतिक फ़ैसला किया था. इस पर उनकी बहुत आलोचना हुई. इसी तरह 2013 में नरेंद्र मोदी की रैली के लिए जब नीतीश कुमार के आदेश के बावजूद उनके अधिकारियों ने पटना के गांधी मैदान में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो एक नहीं, कई सीरियल ब्लास्ट हो गए. इसमें कई लोगों की जान भी गई. तब भी नीतीश कुमार ने अधिकारियों को सजा देने के बजाय उनका बचाव किया. इसका खामियाजा उन्हें राजनीतिक रूप से अगले साल लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा और उन्हें ख़ुद भी इस्तीफ़ा देना पड़ा. रैली के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए उस समय जो समां बंधा वह उसके बाद चुनाव आते-आते एक मज़बूत हवा में परिवर्तित हो गया. नीतीश लोकसभा चुनाव ही नहीं हारे, उन्होंने इस्तीफ़ा भी दिया. सत्ता में वापसी में उन्हें काफ़ी जद्दोजहद करना पड़ी. इसी तरह पिछले विधानसभा चुनाव के पूर्व उस समय जनता दल विधायक अनंत सिंह की गिरफ़्तारी से उनकी पार्टी के नेता भी मानते हैं कि भले वो मोकामा और बाढ़ जैसी दो सीटें हार गए लेकिन पूरे बिहार में नीतीश कुमार की वापसी में वह भी एक फ़ैक्टर रहा.
नीतीश के रूख को लेकर लोग, पुलिस अधिकारी संशय में हैं. उन्होंने जिस अधिकारी को जांच करने का आदेश दिया है उस अधिकारी ने कई जांच रिपोर्ट दी हैं जिनमें अपने ही पुलिस विभाग के अधिकारियों को दोषी पाया है. लेकिन उन सभी मामलों में कार्रवाई नहीं हुई. मामलों को रफ़ा दफ़ा कर दिया गया. इधर घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है और लोग मान रहे हैं कि इस बार अगर नीतीश कुमार ने कोई कड़ा सख़्त क़दम नहीं उठाया तो वे अपने और अपनी सरकार के इक़बाल से ही समझौता करेंगे.
मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...
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