यूपी में भाजपा के लोग सुबह-शाम मोदी नाम केवलम क्यों कर रहे?

यूपी और बिहार की राजनीति की बारीकियों को बिना पूर्वग्रह के देखेंगे तो इसी नतीजे पर पहुंचेंगे कि नरेंद्र मोदी का एक बार फिर प्रधानमंत्री बनना मुश्किल नहीं रहा

यूपी में भाजपा के लोग सुबह-शाम मोदी नाम केवलम क्यों कर रहे?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में वापस आने की संभावना चुनाव घोषित होने के पहले हफ़्ते में प्रबल दिख रही है. जबकि ये भी सच है कि इस बार उत्तर प्रदेश में भाजपा के शीर्ष नेता से कार्यकर्ता तक मानकर चल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में सीटों को संख्य कम होगी. वह पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में आधी भी हो सकती है. लेकिन इसके बावजूद एक महीने या 45 दिन पहले तक जो भाजपा उत्तर प्रदेश में हाशिये पर डबल डिजिट के लिए संघर्ष कर रही थी वह अब खेल में वापसी कर चुकी है. अगर आप उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति को बारीकियों को राजनीतिक चश्मे से, अपने पूर्वग्रह को कुछ समय के लिए ताक पर रखकर देखेंगे तो इसी नतीजे पर पहुंचेंगे कि प्रधानमंत्री मोदी का एक बार फिर प्रधानमंत्री बनना मुश्किल नहीं रहा.

बिहार जहां अभी तक महगठबंधन सीटों की संख्या पर माथापच्ची कर रहा है उसकी तुलना में  उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी- बीएसपी महागठबंधन में कोई मतभेद नहीं है लेकिन कांग्रेस के अलग जाने के कारण कई सीटों पर मुस्लिम वोटर का बिखराव तय है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में कई कारण अचानक उसके लिए जीत का मार्ग प्रशस्त करते दिख रहे हैं.

इसमें सबसे बड़ा फ़ैक्टर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व जो राफेल मामले में राहुल गांधी द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों के बावजूद उनके समर्थकों के लिए बेदाग है. पीएम मोदी फिलहाल उत्तर प्रदेश का दौरा कर रहे हैं. भारतीय राजनीति में कई दशक के बाद मोदी एक ऐसे राजनेता के रूप में उभरे हैं जो अपने समर्थकों के लिए कुछ भी गलत नहीं कर सकते. जिसे आप कह सकते हैं वे कल्ट इमेज वाले नेता बनकर उभरे हैं. उनके समर्थक आपको हर सच्चाई स्वीकार करते मिल जाएंगे कि देश में शिक्षित बेरोजगार परेशान हैं, किसान बर्बाद हो रहा है, पशु खासकर गाय की खरीद-बिक्री पर लगी रोक के कारण उसका जीवन परेशानी के दौर से गुजर रहा है. लेकिन उनका तर्क होता है कि मोदी पाकिस्तान को तो मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं. ये एक ऐसा तर्क होता है जिसके सामने वे अपने नेता की हर नाकामी पर पर्दा डाल देते हैं.

दूसरी बात भाजपा के पक्ष में है उसका मजबूत संगठन. उत्तर प्रदेश में अगर आप कहीं चुनाव के सिलसिले में भ्रमण करेंगे तो आप अमित शाह और आरएसएस के संगठन के विस्तार की सच्चाई को नजरअंदाज इस चुनाव में नहीं कर सकते. इसका सीधा लाभ मोदी को चुनाव में मिलेगा. खासकर ग्रामीण इलाकों में बूथ स्तर के कार्यकर्ता जिस तरह हर चर्चा या बहस को अपने तर्क या कुतर्क से प्रवाहित करने की कोशिश करते हैं उससे आपको आभास हो जाता है कि लोकसभा के चुनाव में उनकी महीनों-साल की मेहनत अब रंग ला रही है.

इसके अलावा पिछले साल तीन विधानसभा चुनाव में हार के बाद सामान्य वर्ग, जिन्हें अगड़ी जाति कहा जाता है, के लिए दस प्रतिशत आरक्षण के बाद अब आपको चौक चौराहों पर इन जातियों के नाराज लोग नहीं मिलेंगे, जो कुछ समय पहले तक अपनी भड़ास निकाल रहे थे. हालांकि कितने लोगों को नौकरी मिलेगी, ये विवाद का प्रश्न हो सकता है. इसके अलावा किसान, जो नाराज चल रहे थे, वे अब दो हजार रुपये मिलने की आशा में मोदी के खिलाफ नहीं बोलते.

साधन, संसाधन में समाजवादी पार्टी और बीएसपी कम नहीं, जमीन पर उनके वोटर दिखते हैं, लेकिन कार्यकर्ता या तो मौन हैं या मिलते नहीं. सबसे बड़ी दिक्कत है कि जहां यह दोनों दल इसे मंडल बनाम कमंडल बनाने में लगे हैं वहीं फिलहाल भाजपा, खासकर मोदी सब पर भारी दिख रहे हैं.

हां उत्तर प्रदेश में फिलहाल प्रियंका गांधी का कोई असर नहीं दिखता. या तो उन्हें चुनाव के नतीजों का पूर्वानुमान है या उनके फीडबैक सिस्टम में संकेत होंगे कि इस चुनाव में बहुत ज्यादा सक्रियता ओखली में सर डालने के समान है.

फिलहाल चुनाव प्रचार शुरू नहीं हुआ है और उम्मीदवारों के नाम भी अधिकांश पार्टियों ने जारी नहीं किए हैं. पिछली बार की तुलना में भाजपा के कैम्पेन मैनेजरों को मालूम है कि उनके विरोधी इस बार एकजुट हैं लेकिन उनके समर्थक इस गठबंधन के लिए वोट देंगे इस पर किसी को शक नहीं. लेकिन राजनीति में आपको यह भी मानकर चलना होता है कि कभी भी हवा बदल सकती है. इसके बावजूद फिलहाल उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू चल रहा है.

 

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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