नोटबंदी के खिलाफ किसी भी विरोध में जनता दल यूनाइटेड के भाग न लेने का अर्थ क्या है ?

नोटबंदी के खिलाफ किसी भी विरोध में जनता दल यूनाइटेड के भाग न लेने का अर्थ क्या है ?

फिल्म 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' में एक डायलॉग है जो माफिया खलनायक रामाधीन सिंह अपने बेटे को बोलते हैं  'तुमसे न हो पायेगा.' शनिवार को जनता दल यूनाइटेड ने राष्ट्रीय अध्यक्ष, नीतीश कुमार के साथ बैठक के बाद ये मान लिया गया है की भले ही पार्टी मानती हो की नोटबंदी से जनता को दिक्कत हो रही हैं लेकिन क्योंकि नीतीश ने नोटबंदी का समर्थन कर दिया हैं इसलिए अब किसी भी तरह के विरोध - प्रदर्शन में पार्टी भाग नहीं लेगी. इसके साथ ही विरोधियो के पहले उनके सहयोगी पार्टी के नेता ही रामाधीन सिंह के उस डायलॉग को दोहराने लगे की इस मुद्दे पर मोदी सरकार के साथ दो दो हाथ करने का काम नीतीश कुमार से नहीं हो पाएगा.

नीतीश कुमार ने लालू यादव और बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक चौधरी को फोन कर इस मुद्दे पर अपना रुख जताया जिससे साफ़ था की एक साल पहले 20 नवम्बर को उनकी ताजपोशी के दौरान कांग्रेस से लेकर नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं ने जो नीतीश कुमार को भविष्य के बीजेपी विरोध का एक सबसे मजबूत धुर माना था, वह भूमिका अदा करने में नीतीश फ़िलहाल न दिलचस्पी रखते हैं और न ही उनके पास इच्छाशक्ति हैं. इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा हैं की नीतीश को मालूम है की महागठबंधन में लोकसभा में वो ज्यादा से ज्यादा 16-17 सीट पर चुनाव लड़ेंगे लेकिन अगर वह सब सीट पर चुनाव जीत जायें तब भी आज तक भारत के राजनीतिक इतिहास में इतनी मामूली सीटें जीत पर प्रधानमंत्री का ताज न मिला है न मिलेगा.

वहीं नीतीश के नजदीकी मानते हैं की इस एक निर्णय को बेवजह तूल दिया जा रहा हैं. शिवसेना जो कैबिनेट में इस फैसले के लिए जाने के दौरान उनके साथ थी और बाद में इस पार्टी ने ममता बनर्जी के साथ राष्ट्रपति भवन मार्च में भाग लिया और आज भी इस मुद्दे पर विरोध और आलोचना के बावजूद महाराष्ट्र सरकार में शामिल हैं. जबकि शिवसेना और तृणमूल के सिद्धान्त, विचार, कार्यशैली में दूर दूर तक कोई समानता नहीं हैं. नीतीश सबसे पहले बीजेपी विरोधी ताकतों के नेता थे जिन्होंने नोटबंदी और कालेधन पर इस मुहीम का स्वागत किया और आज तक इस स्टैंड पर कायम हैं. नीतीश एक कदम आगे अब बेनामी सम्पति के खिलाफ अभियान जल्द से जल्द चाहते हैं. अपने सहयोगियों से अलग स्टैंड लेने वाले नीतीश जब बीजेपी के साथ थे तब भी 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी के समर्थन में खड़े हुए थे.

वहीं कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के नेता कहते हैं की नीतीश कुमार समर्थक और खुद नीतीश जिस प्रणब बाबू के 2012  चुनाव का उदारहण देते हैं, उसके बाद 2013 में क्या हुआ ये कोई बीजेपी के लोगो से क्यों नहीं पूछता. नीतीश से उनके नोटबंदी पर रुख से खफा लोगों का कहना हैं कि वह हर बारे निर्णय के पहले उसकी जमीं तैयार करते हैं और इस बार भी भविष्य में बीजेपी के साथ जाने के लिए उन्होंने एक ठोस नींव डाल दी है. हालांकि उनके आलोचक भी मानते हैं की नीतीश की जो साफ़ सुथरी छवि है, उनके नहीं रहने से बीजेपी विरोधी मोर्चा को निश्चित रूप से एक बार झटका लगा हैं. क्योंकि फ़िलहाल इस मोर्चे में अरविन्द केजरीवाल को अगर अलग रख दें तो कांग्रेस हो या तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी हो या समाजवादी पार्टी सबके दामन पर थोड़े बहुत भ्रष्टाचार के छींटे हैं.

इन सब पार्टियों की सरकार या उनके मुखिया के मुंह से भ्रष्टाचार पर भाषण आम लोंगो को भी नहीं पचता और ये शायद एक बड़ा कारण हैं कि नीतीश बहुत ज्यादा इस मुद्दे पर बीजेपी के विरोध में नहीं दिखना चाहते. दूसरा, उन्हें फीडबैक मिला होगा की इस मुद्दे पर आम जनता मोदी सरकार के समर्थन में है और उनकी रणनीति रही होगी की उसे अकेले क्रेडिट न लेने दिया जाये.  लेकिन सबसे बड़ी बात है की छवि के कारण ही बिहार की राजनीति में नीतीश पहले राजनेता हैं जिन्हें तीन बार जनता ने सत्ता की बागडोर संभालने का मौका दिया है और इस छवि पर नीतीश कहीं से आंच नहीं आने देना चाहते क्योंकि यह उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है.   

लेकिन राजनीतिक जानकार कहते हैं कि नीतीश जो बेनामी सम्पति को लेकर इतने चिंतित हैं, क्या वो दावा कर सकते है कि बिहार में उनके किसी मंत्रीमंडल के सहयोगी के पास कोई काला धन या कोई बेनामी सम्पति नहीं है. इसलिए जो उपदेश देता है, जरूरी है कि वह उसका सबसे पहले अनुसरण करके दिखाए. लेकिन एक बात तय है कि नीतीश के 'एकला चलो' से भले बिहार के महागठबंधन पर तत्काल कोई खतरा नहीं हो लेकिन एक दरार तो आ ही गयी है. राष्ट्रीय जनता दल से उनके सम्बन्ध पहले से असहज थे और आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी का भी उनके ऊपर से भरोसा कम ही होगा. हर मुद्दे पर सब अब अलग अलग चलने की कोशिश करेंगे और तर्क यह होगा की महागठबंधन तो सिर्फ बिहार भर के लिए हैं.        

लेकिन सब जानते हैं की नीतीश फैसला खुद लेते हैं इसलिए उन्होंने अपनी कोर समिति में भी अधिकांश राज्य सभा और विधान पार्षद के लोगों को जगह दी हुई हैं ताकि बैठकों में बहस का मौका ज्यादा न मिले. लेकिन बिहार बीजेपी के नेता कहते हैं कि नीतीश का उनके पक्ष में खड़ा होना निश्चित रूप से एक अच्छा कदम है. हालांकि 2012 की चर्चा करते हुए उन्हीं की पार्टी के एक बड़े नेता ने कहा कि अगर आप बार बार अपने सहयोगियों से अलग निर्णय लेते हैं तब विश्वसनीयता कम होती है और राजनीति में जीत हार लगी रहती है लेकिन वोटर और सहयोगी के आपकी विश्वसनीयता कम नहीं होनी चाहिए. लेकिन तय है की नोटबंदी के मुद्दे पर शेर की सवारी केवल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं बल्कि नीतीश कुमार भी अब कर रहे हैं.

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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