मनीष कुमार की कलम से : रामविलास पासवान को गुस्सा क्यों नहीं आता?

फाइल फोटो

पटना:

रामविलास पासवान को कभी गुस्सा क्यों नहीं आता? यह बात मैं नहीं पूछा रहा और ना ही यह सवाल उनके समर्थकों ने किया है, बल्कि यह तो पासवान को पिछले कई दशकों से जानने वाले उनके दोस्त और राजनितिक प्रतिद्वंद्वी एक स्वर में पूछ रहे हैं।

हालांकि पासवान ने हिम्मत जुटा कर पहली बार धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर बीजेपी के नेतोओं से अलग हटकर साफ़ शब्दों में बोला की धर्म परिवर्तन पर कोई नए कानून की जरूरत नहीं। पासवान ने साथ ही धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर बीजेपी को क्लीनचिट भी दी और दोहराया की नरेंद्र मोदी सरकार विकास के मुद्दे पर चल रही है और आरएसएस सरकार नहीं चलाती।

पासवान केंद्र में मंत्री हैं और उन्हें मालूम है की बीजेपी के प्रचंड बहुमत की सरकार में मंत्री पद चला गया, तो उन्हें कोई नहीं पूछेगा। इसलिए वह कोई भी ऐसी अप्रिय बात नहीं करते, जिससे बीजेपी के कोपभाजन का शिकार होना पड़े।

हालांकि, उन्हें यह सच भी मालूम है कि आरएसएस और उनके सहयोगियों के घर वापसी कार्यक्रम के मुख्य निशाने पर मुस्लिम नहीं बल्कि दलित और आदिवासी समाज के लोग हैं। इस समय उनका इस मुद्दे पर मौन रहना उनकी राजनीति पर प्रतिकूल असर डाल रहा था।

खासकार बिहार में जीतन राम मांझी की दलितों में लोकप्रियता बढ़ी हैं और वैसे में उनका चुप रहना उनके अपने कट्टर पासवान समर्थकों को भी नहीं पच रहा था, लेकिन धर्म वापसी के मुद्दे पर पिछले महीने बिहार के वैशाली के कार्यक्रम में वहां के स्थानीय संसद रामा सिंह भी मौजूद थे, जिससे इस मुद्दे पर पासवान का दोहरा चरित्र उजागर हुआ।

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पासवान ने इस मुद्दे पर कभी सफाई नहीं दी और तभी साफ़ हो गया की एक ज़माने में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर बीजेपी के साथ दो-दो हाथ करने वाले पासवान ने अब सत्ता की राजनीति और पुत्र मोह में घुटने क्यों टेक दिए हैं।