शिवसेना का दर्द : बीजेपी से गठबंधन तोड़ना शिवसेना की खिसियाहट

महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी के बीच एक बार फिर से तनातनी देखने को मिल रही है. शिवसेना ने कहा है कि वो अगला चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर नहीं लड़ेगी.

शिवसेना का दर्द : बीजेपी से गठबंधन तोड़ना शिवसेना की खिसियाहट

महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी के बीच एक बार फिर से तनातनी देखने को मिल रही है. शिवसेना ने कहा है कि वो अगला चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर नहीं लड़ेगी. शिवसेना की इस धमकी पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस का कहना है कि वो हर दो महीने पर शिवसेना के इस तरह की धमकी के आदी हो चुके हैं. यदि महाराष्ट्र विधानसभा का गणित देखें तो बीजेपी सबसे बडी पार्टी है और उसके पास 122 सीटें हैं और शिवसेना के पास 63. कांग्रेस के पास 42 और एनसीपी के पास 41 सीटें हैं. ऐसे हालात में जब शिवसेना को लगता है कि फडणवीस सरकार उनके ही बैसाखी पर टिकी है, तो वो बार-बार अपनी मौजूदगी का अहसास कराती रहती है. यदि बीजेपी के सहयोगियों पर नजर डालें तो आपको पता चलेगा कि उसके दो स्वाभाविक सहयोगी हैं, जो हमेशा से उनके साथ रहे हैं.

पंजाब में अकाली दल और महाराष्ट्र में शिव सेना. दोनों जगह बीजेपी सहयोगी में बी टीम की भूमिका में ही रही है. जब भी पंजाब में बीजेपी अकाली की सरकार बनी मुख्यमंत्री अकाली दल का ही रहा. वैसे ही महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार में अब तक मुख्यमंत्री शिवसेना का ही रहा. वह समय बाला साहब ठाकरे का था जब शिवसेना बड़ी पार्टी के तौर पर उभरती थी और मराठा अस्मिता का प्रतिनिद्धव करती रही. मगर बाला साहेब के जाने के बाद उद्धव और राज ठाकरे के बीच के बीच झगड़े में पार्टी का दो धड़ा हो जाना, ऐसी चीजें रही जिससे शिवसेना कमजोर होती गई और अब वह बीजेपी की बी टीम बन कर रह गई है. ऐसे में शिवसेना को लगता है कि उसकी गठबंधन में जितनी पूछ होनी चाहिए वो उसे नहीं मिल रहा है. दूसरे शिवसेना की नाराजगी की कई और वजहे हैं, जिसकी शुरुआत मोदी सरकार के बनने से ही है.

रकार बनने के पहले शिवसेना के नेता सुरेश प्रभु को बीजेपी में शामिल करवाया जाता है और रेल मंत्री बनाया जाता है. यह बात भी शिवसेना को नागवार गुजरी उन्हें लगता था कि सुरेश प्रभु को यदि मंत्री बनाना ही था तो उनके कोटे से भी बनाया जा सकता था. उन्हें बीजेपी में शामिल कराने की क्या जरूरत थी. दूसरा जब मोदी सरकार के मंत्रिमंडल का गठन हो रहा था, तो शिवसेना को अधिक तव्वजो नहीं दिया गया. उन्हें दबे स्वर में अच्छे या कहें मलाईदार विभाग की बात कहते रहे मगर उनके हाथ कुछ नहीं लगा. शिवसेना को केवल कैबिनेट मंत्री मिला है अनंत गीते के रूप में. उनके पास कोई राज्य मंत्री का भी पद नहीं है. ऐसे में शिवसेना की खिसियाहट का अनुमान आप लगा सकते हैं.

शायद अब शिव सेना को बीजेपी की बी टीम रहते हुए लग रहा है कि कहीं उनका जनाधार और न सिकुड़ जाए और बीजेपी या एनसीपी उनकी जगह न ले ले. राज्य में बीजेपी का मुख्यमंत्री है और केन्द्र में प्रधानमंत्री. ऐसे में शिवसेना सौदा करने की हालत में नहीं है. तो आखिर उसके पास चारा क्या है अपने शिवसैनिकों के मनोबल को बनाए रखने की? एक बात कही जा रही है कि उद्धव और राज ठाकरे को मिल जाना चाहिए. दूसरी कि शिवसेना को सरकार में रहते हुए विपक्ष की भूमिका भी निभाना चाहिए, जो शिवसेना कर रही है. आखिरकार यह कहना कि अगला चुनाव शिवसेना अकेले लड़ेगी का मतलब है सभी सीटों पर लड़ना, जिससे शिव सैनिकों को लगेगा कि गठबंधन की सीटों पर उनका भी नंबर आ सकता है. युवाओं को लुभाने के लिए ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी यानि आदित्य ठाकरे की भी सक्रियता बढाई जा रही है. उनके भी बयान अब अक्सर आने लगे हैं. मगर आने वाले दिनों में होने वाले चुनावों में मोदी लहर के सामने टिकना भी शिवसेना के लिए चुनौती होगी.

(मनोरंजन भारती एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल, न्यूज हैं)

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