बाबा की कलम से : केजरीवाल और किरण में कई समानताएं

दिल्ली का दंगल अब दो लोगों के बीच के लड़ाई बनती जा रही है। जरा दोनों का बायोडाटा देखते हैं। इसमें कई समानताएं हैं। दोनों आईआईटी से पढ़े हैं। किरण बेदी आईआईटी दिल्ली से तो केजरीवाल आईआईटी खड़गपुर से। दोनों ने यूपीएससी की परीक्षा पास की किरण बेदी का आईपीएस का रैंक मिला तो केजरीवाल को रेवेन्यू सर्विस।

दोनों का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा। किरण बेदी जब दिल्ली पुलिस के ट्रैफिक पुलिस में थी, तो तब के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गाड़ी का चालान काट दिया था। यह घटना 1982 की है। उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने परिवार सहित अमेरिका के दौरे पर थीं और यहां दिल्ली में किरण बेदी ने अवैध पार्किंग के खिलाफ अभियान चला रखा था। कनॉट प्लेस के एक कार के सामानों के दुकान के बाहर पुलिस ने एक नो पार्किंग जोन में एक एंबेसेडर कार देखी। पुलिस सब इंसपेक्टर ने उस गाड़ी का चालान काट दिया। बाद में इस मामले पर जांच कमिटी बनी, मगर किरण बेदी ने उस सब इंसपेक्टर का तबादला करने से इनकार कर दिया।

बाद में इसी किरण बेदी ने क्रेन का इस्तेमाल पहली बार किया। पता चला कि पुलिस के पास क्रेन नहीं है, फिर पुलिस ने क्रेन किराए पर लेना शुरू किया। यह चलन अभी भी दिल्ली पुलिस में जारी है। उस वक्त किरण बेदी का नाम क्रेन बेदी पर पड़ गया था। साल 1993-1995 के बीच किरण बेदी ने तिहाड़ जेल में काफी बदलाव किए।
 

दूसरी ओर केजरीवाल ने 1995 में सिविल सर्विस ज्वाइन किया। 2000 में केजरीवाल ने यह कह कर दो साल की छुट्टी मांगी कि उन्हें पढ़ाई करनी है, लेकिन सरकार को यह भी वादा किया कि छुट्टी से आने के बाद वह तीन साल तक नौकरी नहीं छोड़ेंगे और ऐसा न करने पर जितने दिन पहले वे नौकरी छोड़ेंगे उस वक्त तक की सेलेरी का पैसा वह सरकार को वापिस करेगें।

केजरीवाल ने 2003 में फिर से नौकरी ज्वाइन किया, लेकिन 18 महीने काम करने के बाद बाकी के 18 महीने के लिए बिना सेलेरी लिए छुट्टी पर चले गए। साल 2006 में केजरीवाल ने नई दिल्ली के ज्वांइट कमीशनर के पद से इस्तीफा दे दिया। भारत सरकार ने केजरीवाल पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया। यह मामला तब सुलझा जब केजरीवाल ने दोस्तों की मदद से भारत सरकार को पैसा वापिस किया।

किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल दोनों एनजीओ चलाते हैं। किरण बेदी नवज्योति और इंडिया विजन नाम से एनजीओ चलाती हैं, तो केजरीवाल परिवर्तन नामक एनजीओ चलाते हैं। किरण बेदी को साल 1994 में मैगसेसे दिया गया, तो केजरीवाल को 2006 में यह अर्वाड मिला।

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दोनों अन्ना के आंदोलन से जुड़े और लोगों की नजर में आए। किरण और केजरीवाल की राहें उस वक्त जुदा हो गईं, जब केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई और अब किरण बेदी बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री की उम्मीदवार बन कर आमने सामने हैं। दोनों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति के उम्मीदवारों की तरफ टेलीविजन डिबेट करने का भी दबाब बनता जा रहा है, यानि आप इन दोनों की आदत डाल लिजिए। चुनाव में खूब मजा आने वाला है।