नई दिल्ली : सोनिया गांधी किसानों के बीच घूम रही है। सबसे पहले वह राजस्थान के कोटा गईं और उसको बाद हरियाणा में भिवानी, झज्जर, करनाल जैसे जगहों पर जाकर उन किसानों से मुलाकात की, जिनकी फसल हाल की ओला और बारिश की वजह से बर्बाद हो गई है। इस वजह से कई किसानों के आत्महत्या की भी खबर आ रही है। बंगाल में पांच किसानों के मरने की खबर है, जो अत्यधिक आलू की पैदावार होने के बाद कीमत गिरने की वजह से परेशान हैं।
कांग्रेस ने भूमि अधिग्रहण और किसानों के फसल नुकसान के जरिये उनसे जुड़ने या जोड़ने की रणनीति बनाई हैं। प्रधानमंत्री और बीजेपी लगातार भूमि अधिग्रहण पर सफाई देते घूम रहे हैं क्योंकि इस बिल ने सरकार की इमेज उद्योग घराने के पक्षधर की बना दी है।
सोनिया न केवल किसानों को फिर से जोड़ना चाहती है, साथ ही अपनी खोई राजनीतिक जमीन भी वापिस पाना चाहती हैं। किसानों के बहाने सोनिया ने बड़े जाट वोट बैंक पर निशाना साधा है। यह वही जाट हैं, जिन्होंने कांग्रेस का साथ हरियाणा विधानसभा और लोकसभा चुनाव में छोड़ दिया था।
जाट वोट बैंक हरियाणा के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान में भी मायने रखता है। यही वजह है कि सोनिया ने राजस्थान के साथ-साथ हरियाणा को चुना। साथ में भूपिंदर सिंह हुड्डा को भी अपने साथ रखा। वैसे भी गैर जाट को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने हरियाणा के जाटों को नाराज किया है। यही वजह है सोनिया ने हुड्डा को साथ रख कर जाटों को एक संकेत दिया है।
हां यह जरूर है कि हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है कि बैचेनी बढ़ गई होगी, मगर यहां पर सोनिया के राजनीतिक नजर पर नजर रखने की जरूरत हैं। राहुल की गैरमौजूदगी में उन्हें कमान संभालनी पड़ी। संसद के राष्ट्रपति भवन तक 24 मिनट का पैदल मार्च साथ में विपक्ष के सवा सौ सांसदों का हुजूम और सभी सोनिया की अगुवाई में थे।
किसानों पर सोनिया गांधी की पहल से कांग्रेस को फायदा हो न हो मगर खबरों की सुर्खियां वह जरूर बटोर रही हैं। अभी तक सरकारी आकड़ों को माने तो उत्तर प्रदेश के 26 जिलों में ओला पड़ने से 60 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है। ऐसे में किसानों का मुद्दा छेड़ कर सोनिया ने अपनी पार्टी को एक संजीवनी जरूर दे दिया है।