ख़ुश तो बहुत होगे तुम !

ख़ुश तो बहुत होगे तुम !

फाइल फोटो

आठ नवंबर की रात जब प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान किया था तब मुझ जैसी मध्यमवर्गीय, टैक्स देने वाली शख्‍स प्रसन्न थी क्योंकि प्रधानमंत्री के इस निर्णय पर बहुत सारी बहस और स्टोरी देख कर मैं और मेरे जैसा हर व्‍यक्ति थक चुका था!

पर उस रात के इस चौंकाने वाले फ़ैसले ने मन में ख़ुशी की लहर जगा दी. ख़बर मिलते ही मेरी गाड़ी ने कब यू-टर्न लिया समझ ही नहीं आया. दिमाग़ में अलग सी हलचल थी, एक अलग सी नई सी राह दिख रही थी. उस समय तक इसके असर से क्या माहौल बनेगा उसकी भनक होते हुए भी मन ने नज़रअंदाज़ कर दिया. लाइव ओबी, ज़बरदस्त ग्राफ़िक्स के बीच जब दो घंटे की स्काइप चर्चा देखी तो दिल बैठने लगा. मनीषा का प्रॉपर्टी विश्‍लेषण देख लगने लगा कि क्या वाक़ई ख़ुशी की बात है?

पर न्यूज़ की उस तेज़ रफ़्तार में अपनी सोच को भूल काले धन वालों की शक्ल सामने आने पर मन फिर ख़ुश हो चला. रात भर अपने नोट बदलवाने की चिंता से दूर मुझे वे लोग याद आने लगे, जिन्हें मैंने उसी रात रास्ते में हॉलीडे प्लान बनाने और हीरे की अंगूठियां खरीदने की बातें करते सुना था. उन ख़्यालों की उधेड़बुन में जब सुबह नींद खुली तो व्हाट्सऐप के गलियारे में चुटकुलों की क़तार थी. और ऑफिस के ग्रुप पर एक लंबी सवालों की झड़ी.

काले धन वालों का तो पता नहीं पर आम आदमी की हालत देख लगा क्या फ़ैसला लेते समय इन को भूल तो नहीं गए थे? या ऐसा दृश्य सोचा नहीं था. धीरे धीरे ज्यों-त्यों गुज़रती ख़बरों के बीच यह ख़बर रुकने का नाम नहीं ले रही है. लंबी क़तारें, शादियों की चिंता, बंद पड़ी दुकानें मेरी ख़ुशी को दिनोंदिन फीका कर रही है. सारा ध्यान अचानक से काले धन से निकल एक आम आदमी की हालत पर आ गया. जहां शांति जी जैसे लोग (मेरे घर पर काम करने वाली महिला) ख़ुश हैं वहीं कई घरों में मातम की तस्वीरें देख मन अटपटा महसूस कर रहा है.

 शांति जी ने बताया कि बहुत सारे सेठ लोग पैसा बांट रहे हैं, उनके पास कोई पहचान पत्र न होने की वजह से वो इसका लुत्फ़ नहीं पा रहीं हैं पर दूसरे ही पल उनका यह मानना है की काले धन को पाकर कहीं उनका वक़्त न ख़राब हो जाए. उनकी कई सहेलियों ने काम से छुट्टी लेकर क़तार में रहने का फ़ैसला लिया है जिससे उन सबको रोज़ाना 500 रुपये मिल रहे हैं.

अब यह जान कर लगा क्या बड़े लोग वाक़ई इस बदलाव से परेशान हैं? क़तारें मजबूरी में लगीं हैं या पैसे के बदले, हैं तो दूर दूर तक. अब जानना यह है कि रोज के बदलाव क्या जनता को और परेशान करेंगे या संतुष्ट?अब बार बार अपनी ही ख़ुशी से मेरा सवाल है कि क्या वाक़ई में ख़ुश हैं हम? सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ नहीं हूं पर जहां तक नज़र जाए वहां तक लंबी भीड़ की एक आवाज़ सुनाई देती है, ख़ुशख़बरी क्या ऐसी होती है?

(मनप्रीत NDTV इंडिया में चैनल प्रोड्यूसर हैं) 

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