गुजरात में यूपी, बिहार के प्रवासी मज़दूर दहशत में

हर भीड़ का अगर पोस्टमार्टम करेंगे तो दुश्मन एक ही मिलेगा लेकिन अलग-अलग दुश्मनों को गढ़ने के नाम पर भी भीड़ बन जाती है.

गुजरात में यूपी, बिहार के प्रवासी मज़दूर दहशत में

किसी भी घटना में शामिल आरोपी के समाज के लोगों को क्या सामूहिक सज़ा दी सकती है? नहीं दी जा सकती है लेकिन हमने एक फार्मूला बना लिया है. बलात्कार का आरोपी किसी खास मज़हब का है तो उस मज़हब के खिलाफ तरह तरह के व्हाट्सऐप मटीरियल बन जाते हैं. बच्चा चोरी की अफवाह फैल जाती है तो भीड़ बन जाती है. गौ मांस को लेकर तो बस अफवाह फैला दीजिए, भीड़ बन जाएगी. हर भीड़ का अगर पोस्टमार्टम करेंगे तो दुश्मन एक ही मिलेगा लेकिन अलग-अलग दुश्मनों को गढ़ने के नाम पर भी भीड़ बन जाती है. कभी भाषा तो कभी राज्य के नाम पर. पुलिस अगर शुरू से ऐसी भीड़ के प्रति सख्त होती, किनारे खड़ी न होती तो उसे इतना बढ़ावा नहीं मिलता. हालत यह हो गई कि सुप्रीम कोर्ट को दिशा निर्देश जारी करना पड़ गया कि दरोगा स्तर से लेकर डीजीपी स्तर तक के पुलिस अधिकारियों को क्या करना होगा. सुप्रीम कोर्ट चाहे तो गुजरात से रिपोर्ट मंगा कर देख सकता है कि उसकी बनाई गाइडलाइन ज़मीन पर कितनी कारगर है. वैसे गुजरात के सात ज़िलों में हालात पिछले दो दिनों से काबू में हैं. लेकिन उसके पहले हालात इतने क्यों बिगड़ गए कि बिहार यूपी के मज़दूरों को छोड़ कर जाना पड़ा. पुलिस हरकत में आ गई है. रात में गश्त बढ़ा दी गई है. साइबर सेल सोशल मीडिया पर नज़र रख रहा है. पुलिस ने 450 लोगों को गिरफ्तार किया है, 35 एफआईआर हुई है और गुजरात के गृह मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने राज्य छोड़ कर गए लोगों से लौट आने की अपील की है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुजरात के मुख्यमंत्री से भी इस बारे में बात की है. कितने लोग भागे हैं उसकी अलग-अलग संख्या गुजरात के मीडिया में है.

कितने लोग राज्य छोड़ कर गए हैं इसकी कोई निश्चित संख्या नहीं है. अलग अलग मीडिया में अलग-अलग संख्या है. अहमदाबाद मिरर में एक उत्तर भारतीय संगठन के नेता के हवाले से छपा है कि 50,000 लोग गुजरात छोड़ कर चले गए. संदेश अखबार ने लिखा है कि 20,000 लोग छोड़ कर चले गए हैं. अहमदाबाद-बोटाद भास्कर ने लिखा है कि अहमदाबाद से 2000 लोग गए हैं. गुजरात समाचार ने लिखा है कि मेहसाणा और पाटण से 1800 लोग गए हैं. अब इनमें से कौन दिवाली के लिए गया है और कौन दहशत के कारण बताना मुश्किल है. संख्या भी हम अपनी तरफ से नहीं बता रहे हैं.

उन आठ दस दिनों में क्या हुआ जिसके कारण इतनी बड़ी संख्या में लोगों को राज्य छोड़ना पड़ा, क्या हिंसा इतनी भयावह थी. आखिर हिंसा फैलाने वाले लोगों की बातें कितनी भी जायज़ हों, उनकी बात कितनी भी सही हो, क्या उन्हें इस तरह से कानून हाथ में लेने दिया जा सकता है.

अहमदाबाद के स्टेशन और बस स्टॉप पर राज्य छोड़ कर जाने वाले लोगों से मीडिया अब बात कर रहा है तो पता चल रहा है कि वहां क्या हुआ था, ये लोग क्यों डरे हुए हैं. इडियन एक्सप्रेस की रविवार को रिपोर्ट लिखी है कि अहमदाबाद से बसों में भर भर कर बिहार यूपी के लिए लोग रवाना हुए हैं. तीस-तीस घंटे की यात्रा आसान नहीं होती है. दरंभगा से लेकर बनारस के रेलवे स्टेशन पर उतरे लोगों ने अपनी व्यथा बताई है. यहां तक कि बिहार यूपी से आए लोगों के आधार कार्ड चेक किये गये हैं कि वे बाहरी हैं या नहीं क्योंकि कुछ लोग वहां रहते रहते गुजराती बोलना सीख गए थे. ऐसे कई वीडियो हम तक भी पहुंचे थे जिसमें लोग वैसे घरों में जाकर मज़दूरों को 24 घंटे के भीतर छोड़ कर चले जाने की बात कर रहे हैं. सोशल मीडिया में आने वाले ऐसे वीडियो को बहुत ध्यान से देखने की ज़रूरत है. न तो इन्हें देखकर बहकावे में आना है और न ही भीड़ का हिस्सा बनना है. पहले पुलिस ने कहा कि लोग त्योहारों के कारण राज्य छोड़ कर जा रहे हैं मगर दूसरी तरफ पहुंचे मज़दूरों ने कुछ और ही बताया.

गुजरात के साबरकांठा ज़िले के हिम्मतनगर शहर के पास एक गांव है. 28 सितंबर को यहां एक बच्ची के साथ बलात्कार हुआ. आरोपी बिहार का बताया जा रहा है. पुलिस ने इस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन बलात्कार की घटना से आहत लोगों का गुस्सा धीरे-धीरे प्रवासी मज़दूरों के खिलाफ बढ़ने लगा. उनके साथ मारपीट की घटनाएं भी सामने आई हैं. गांधीनगर, अहमदाबाद, पाटन, साबरकांठा और मेहसाणा ज़िलों में हिंसा हुई है. यहां पर हालात अब काबू में हैं. सभी राजनीतिक दलों ने इस घटना की निंदा की है. कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर का नाम आया था कि उनका कोई वीडियो मेसेज है जिसमें हिंसा को भड़काने की बात कही गई है मगर अभी तक पुलिस के रिकॉर्ड से ऐसी बात सामने नहीं आई है और न ही पुलिस ने अल्पेश ठाकोर के खिलाफ कोई मामला दर्ज किया है. अल्पेश का एक वीडियो ज़रूर है जिसमें वे शांति की अपील कर रहे हैं और कह रहे हैं कि हिंसा के बहाने उनके समाज को बदनाम किया जा रहा है. लेकिन गुजरात पुलिस ने आज एक ऐसे नेता को गिरफ्तार किया है जिन्होंने वीडियो मैसेज में हिंसक बातें की हैं. इस नेता को कांग्रेस का एक नेता बताकर गिरफ्तार किया गया है जो तालुका का चुनाव जीत चुका है. इसका नाम माहोत्जी ठाकोर है जो एक वीडियो में प्रवासी मज़दूरों को छोड़ कर चले जाने की धमकी दे रहे हैं.

हमले का शिकार वो लोग हुए हैं जो फैक्ट्री में मज़दूरी करते है. साबरकांठा में एक कॉटन फैक्ट्री पर हमला कर मज़दूरों को निशाना बनाया गया. गुजरात चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इडस्ट्री के शैलेश पटवारी ने कहा है कि 70-80 प्रतिशत मज़दूर बाहर के हैं, इनके जाने का असर काम धंधे पर पड़ रहा है. नरोडा इंडस्ट्री संघ ने कहा है कि मज़दूरों को फैक्ट्री कैंपस में ही रुकने का इंतज़ाम किया जा रहा है. कई जगहों पर फैक्ट्री मालिकों ने मज़दूरों के साथ मीटिंग की है, उन्हें भरोसा दिलाया गया है. शैलेश पटवारी ने कहा कि दिवाली के समय यह नहीं होना चाहिए था. उन्होंने कहा कि सात और आठ अक्तूबर को सैलरी बंटती है. इंडस्ट्री के लोग कोशिश कर रहे हैं कि सैलरी लेने के बाद कोई राज्य से बाहर नहीं जाए वर्ना दिवाली के समय इसका कारोबार पर बड़ा असर पड़ेगा.

गुजरात चेंबर ऑफ कॉमर्स के सेक्रेटरी कहते हैं, 'इसलिए अभी का जो माहौल है दहशत का है. लेकिन सरकार ने अच्छे कदम उठाए हैं. पुलिस ने कामगारों के साथ मीटिंग की हैं. आश्वासन दिए हैं. मैं समझता हूं कि भरोसा बन रहा है. जो चले गए उन्हें वापस लाने में एक महीना लग जाएगा. शायद अब और कामगार ना जाएं. नरोडा में बाहर के वर्कर के फैक्ट्री के अंदर ही रहने का इंतज़ाम कर देंगे. 70-80 वर्कर गैर गुज़राती हैं. हमारे कारीगर लोग ये काम नहीं कर सकते हैं. हमारे पास कच्चा माल कितना भी होगा लेकिन कारीगर नहीं होगा तो फैक्ट्री नहीं चलने वाली है. इसलिए कारीगर को निकालना गुजरात के इंडस्ट्री के लिए बहुत खराब होगा. कोई भी पार्टी कर रहा है वो देश का अहित कर रहा है. इनको माफ नहीं करने वाला है. गुजराती को विकल्प मिलना चाहिए लेकिन आप जानते हैं कि गुजरात के लोग ऐसे लेबर नहीं कर सकते हैं. उनके ब्लड में लेबर करने की आदत कम है. धंधा कर लेगा लेकिन बैग कंधे पर उठाकर नहीं ले जाएगा. यह समझना पड़ेगा और मानना भी पड़ेगा.'

शैलेश पटवारी ने जो बात कही है उस पर गौर करना चाहिए. बिहार यूपी के मज़दूरों के बिना इंडस्ट्री नहीं चल सकती है. इन राज्यों के मज़दूरों ने अपने सस्ते और उम्दा श्रम की बदौलत कई दूसरे राज्यों को समृद्ध किया है. इसलिए जब किसी ने अपराध किया हो, तो उसके लिए पूरे समुदाय को निशाना बनाना ठीक नहीं. खासकर तब जब पुलिस ने बलात्कारी को पकड़ लिया है.

दस दिन तक जो दहशत का माहौल रहा, उस पर तुरंत ही काबू पा लिया जाना चाहिए था. अब तो सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है कि भीड़ बनने से पहले उसकी हर सूचना पर एक्शन लेना है और भीड़ को हावी नहीं होने देना है. सुप्रीम कोर्ट इसे टेस्ट केस के रूप में ले सकता है कि गुजरात में उसके बनाए मॉडल पर कितना काम हुआ है. आपसे भी अपील है कि वहां से आ रही ख़बरों को ज़्यादा बढ़ा चढ़ा कर पेश न करें. सबकी भलाई इसी में है कि आपसी विश्वास बने और लोग काम पर लौटें.

एक वीडियो आया है जो मुंबई का है. जो बता रहा है कि भीड़ बन कर टूट पड़ने का कॉपीराइट अब किसी एक के पास नहीं है. ठाणे में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लोगों ने एक शख्स को थाने में देने के बजाए मीडिया को बुलाया और कैमरों के सामने मारना शुरू कर दिया. इनके अनुसार यह एक बच्ची के साथ अश्लील हरकतें कर रहा था. अगर पकड़ा गया तो कानून के पास पर्याप्त अधिकार हैं एक्शन लेने के, कानून के हवाले कर देना था मगर चार लोगों की यह टोली कोर्ट में बदल गई. एमएनएस के ज़िला अध्यक्ष ने तुरंत इसमें पूरे यूपी बिहार का हाथ देख लिया और समझ लिया.

क्या भीड़ सिर्फ गुजरात और महाराष्ट्र में बनती है, हकीकत यह है कि वो कहीं भी बन सकती है. बिहार में ही बिहार की लड़कियों के खिलाफ एक भीड़ बन गई. उसका क्या करेंगे. उसे किस भावुकता से देखें. सुपौल ज़िले के एक गांव के लोग ही लड़कियों के स्कूल में लाठी लेकर घुस गए और उन्हें मारने पीटने लगे. इतना मारा कि लड़कियों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ गया. इस स्कूल में 100 छात्राएं पढ़ती हैं.

स्कूल की छात्राओं के साथ छेड़खानी आम हो गई थी. छात्राओं के स्कूल के सामने छात्रों का भी एक स्कूल है. लड़के अपने स्कूल की दीवार पर अपशब्द लिख दिया करते थे जिसे लेकर विवाद हो गया. जिसके अगले दिन लड़कों के परिवार और गांव वाले आए और लड़कियों पर टूट पड़े. लाठियों, ईंटों और रॉड्स से बुरी तरह मारा गया. इनमें से ज्यादातर 12 से 14 साल की छात्राएं हैं. हिंसक भीड़ में महिलाएं भी शामिल थीं. पुलिस ने 9 लोगों को नामजद किया है. कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है. क्या यह भयावह नहीं है कि छेड़खानी का विरोध करने पर गांव के लोग ही लड़कियों पर टूट पड़े. उनके लिए यह मंज़र कितना खौफनाक रहा होगा. क्या इसी तरह से भीड़ गुजरात में नहीं बन गई होगी, क्या इसी तरह की भीड़ महाराष्ट्र में नहीं बन गई होगी.

एक भीड़ न्यूज़ चैनल वाले बनाते हैं. जब से चैनलों को हिन्दू मुस्लिम नेशनल सिलेबस थमाया गया है वे बेकाबू हो चले हैं. किसी मामले में मुस्लिम आरोपी हो या मुसलमान शामिल हो बस देखिए सोशल मीडिया पर कैसा तूफान मचता है. फिर वही आग चैनलों पर बरसती है. क्विंट बेवसाइट की एक रिपोर्ट ने मीडिया को आइना दिखाया है. 1 अक्तूबर को दिल्ली के जहांगीरपुरी के अंकित कुमार गर्ग की हत्या हुई थी. अंकित की एक मुस्लिम लड़की से दोस्ती थी. आल्ट न्यूज़ बताया है कि कैसे न्यूज़ चैनल और चैनलों के वेबसाइट ने लिखा कि क्या अंकित गर्ग को हिन्दू होने की सज़ा दी गई. चूंकि इसके पहले एक और अंकित की हत्या हो चुकी थी तो कुछ ने लिखा कि कितने अंकित मारे जाएंगे. जिन्होंने जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग की उन्होंने भी धर्म के एंगल को प्रश्नवाचक लगाकर छोड़ दिया. आल्ट न्यूज़ के अर्जुन सिद्धार्थ की इस रिपोर्ट को देखेंगे तो आप सहम जाएंगे कि आपका मीडिया धार्मिक भावनाएं भड़काने के लिए क्या कुछ कर सकता है. ऐसी रिपोर्टिंग से कब शहर जल जाए, कौन उस आग की चपेट में आ जाए पता नहीं. अब जाकर पता चला है कि अंकित गर्ग की हत्या ऑनर कीलिंग नहीं थी. अंकित की हत्या के मामले में आकाश गिरफ्तार हुआ है जिसे अंकित और उसकी दोस्त के साथ दोस्ती पसंद नहीं थी. हिन्दू मुस्लिम एंगल आते ही सोशल मीडिया पर जाने पहचाने लोग हवा देने लगे थे.

क्या मीडिया संस्थान अपनी वेबसाइट से अंकित गर्ग की ख़बर डिलिट करेंगे, रिपोर्टिंग की संस्था इतनी ध्वस्त हो गई है कि चैनल हों या अखबार अब दिल्ली से भी ढंग की रिपोर्टिंग नहीं कर पाते हैं. अंकित की बहन के बयान के हवाले से धर्म का एंगल आया था मगर मीडिया ने हेडलाइन ऐसे लगाई जो उनके बयान को कुछ और मतलब देता था. हम सब पर सवाल उठाया है आल्ट न्यूज़ ने. आल्ट न्यूज़ की इस रिपोर्ट को हर न्यूज़ रूम में फिर से पढ़ा जाना चाहिए वर्ना जो मीडिया खुद भीड़ बनाता हो वह गुजरात और बिहार की भीड़ पर कैसे सवाल उठाएगा.


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