उरी में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए लेफ्टिनेंट कर्नल संकल्प कुमार
रांची:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी में शायद आपको आसमान-जमीन का फर्क महसूस होता होगा, लेकिन आज मुझे इन दोनों में एक समानता दिखी, जो मैं आपको बताना जरूरी समझता हूं।
देश की रक्षा में शहीद हुए जवानों को जब सम्मान देने को बात आती है तो दोनों नेता वोटरों के बीच भाषण देने लग जाते हैं, जिसमें शुरुआत और अंत की महज़ दो लाइनों में शहीदों को नमन करते हैं और बाद बाकी वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश। हालांकि वोट के लिए दोनों नेताओं की लालच में कुछ डिग्री का फर्क देखा जा सकता है।
शनिवार को दोनों बड़े नेता झरखंड में थे। वहां रांची एयरपोर्ट से प्रधानमंत्री मोदी हज़ारीबाग गए और राहुल गांधी रांची शहर के आसपास के इलाकों में, लेकिन किसी ने एयरपोर्ट से कुछ ही दूरी पर स्थित शहीद संकल्प कुमार के घर जाकर उनके परिजनों का ढाढस बधाने की जरूरत नहीं समझी।
मुझे यकीन है कि दोनों नेताओं को उनकी रिसर्च टीम ने जरूर बताया होगा कि जम्मू कश्मीर में शुक्रवर को लोकतंत्र की रक्षा करते हुए शहीद हुए लेफ्टिनेंट कर्नल संकल्प कुमार का घर रांची शहर और एयरपोर्ट से महज़ छह किलोमीटर की दूरी पर है, जहां उनके बूढ़े मां-बाप अपने शहीद बेटे के शव का इंतजार कर रहे थे। लेकिन इन दोनों नेताओं ने उनकी आंखों के आंसू पोछने की जरूरत नहीं समझी.. बूढ़े मां-बाप के साथ मातम पुर्शी करने जाते तो शायद उनका रूटीन गड़बड़ा जाता।
काश दोनों नेता कुछ घंटे रुक जाते और संकल्प की बॉडी को खुद रिसीव करते.. शायद वह भारतीय सैन्य बलों की मजबूती और आतंकवादियों एवं विदेश में बैठे उनके आकाओं के लिए एक नासीहत होती, लेकिन मोदी और राहुल दोनों नेताओं ने शनिवार को एक बुढ़े मां-बाप को नजरअंदाज कर ना केवाल अपनी असंवेदनशीलता का परिचय दिया, बल्कि एक 'एतिहासिक मौका' खो दिया, जो हमारे देश के सैनिकों और अर्धसैनिक बलों के मनोबल को मजबूती देता और आतंकवादियों के लिए साफ संदेश होता। लेकिन लगता है हमारे नेताओं में चुनाव जीतने के चक्कर में बड़ी लड़ाई जीतने की इच्छा शक्ति का फिलहाल अभाव है।
हालांकि शहीद संकल्प कुमार का पर्थिव शरीर जब एयरपोर्ट पर आया तब राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन वहां मौजूद थे, लेकिन अगर पीएम मोदी और राहुल गांधी भी वहां होते तो शायद यह हमारे जवानों को सच्ची श्रद्धांजलि होती। इससे यह तो कहा ही जा सकता है कि देश में राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ क्षेत्रीय पार्टियों का भी रहना बहुत जरूरी है।