उमाशंकर सिंह की कलम से : दिल्ली की हार के बाद मोदी पर वर्ल्ड कप का खुमार!

पीएम नरेंद्र मोदी की फाइल तस्वीर

नई दिल्ली:

दिल्ली की हार के बाद प्रधानमंत्री वर्ल्ड कप के खुमार में डूबते नज़र आ रहे हैं। कल गुरुवार को ही टीम इंडिया और उसके तमाम खिलाड़ियों के नाम प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीटर हैंडल से 16 ट्वीट कर न सिर्फ इन खिलाड़ियों को कप जीत कर लाने की शुभकामनाएं दीं, बल्कि हरेक खिलाड़ी के मज़बूत पक्ष की तारीफ़ करते हुए उनकी हौसला अफ़ज़ाई की कोशिश भी की।

शुक्रवार की सुबह उन्होंने चार और ट्वीट कर ये बताया कि उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़, अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, और श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति सिरीसेना से बात कर उन्हें वर्ल्ड कप की शुभकामनाएं दीं हैं। पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत स्थगित है और ऐसे में फोन पर इस बातचीत की अपनी अहमियत है। अपना कूटनीतिक महत्व भी क्योंकि अमेरिका से जानकारी आती रही है कि वो भारत को पाकिस्तान के साथ बातचीत के रास्ते खोलने को लगातार कह रहा है।

ख़ैर, इस बार भारत समेत 5 सार्क देशों की टीम वर्ल्ड कप में हिस्सा ले रही हैं और इस मौक़े पर प्रधानमंत्री ने एक बड़ा कूटनीतिक ऐलान भी किया है। वो ये कि वे देश के नए विदेश सचिव एस जयशंकर को सार्क देशों के बीच आपसी समझौतों के मज़बूती देने के लिए जल्द ही ‘सार्क यात्रा’ पर भेजेंगे।

वर्ल्ड कप में किसी प्रधानमंत्री की दिलचस्पी कोई नई बात नहीं है। आपसी रिश्तों की बेहतरी के लिए भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति (जिनकी भी सत्ता हो) कई बार साथ बैठ कर क्रिकेट मैच देख चुके हैं। इसे दोनों देशों के बीच क्रिकेट डिप्लोमेसी का नाम दिया जाता है। प्रधानमंत्री की तरफ से वर्ल्ड कप जैसे बड़े आयोजनों से पहले भारतीय टीम को शुभकामनाएं देने का चलन पहले भी रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क्रिकेट वर्ल्ड कप को लेकर एक के बाद एक 20 ट्वीट करना ख़ासी दिलचस्पी पैदा करता है।

क्या प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली की हार के बाद रिलैक्स होने की कोशिश कर रहे हैं और क्रिकेट वर्ल्ड कप उन्हें ये मौक़ा दे रहा है? क्या इसके ज़रिए वो ख़बरों में अपनी खोई हुई जगह पाना चाहते हैं, क्योंकि टीवी, अखबारों में पहले सिर्फ मोदी चल रहे थे और आजकल सिर्फ केजरीवाल चल रहे हैं? क्या भारत में अफीम की तरह का नशा बन चुके क्रिकेट पर फोकस कर वो एक बार फिर से 'जनता का आकर्षण दूसरी तरफ' ले जाना चाहते हैं? हार से बेतकल्लुफ दिखना चाह रहे हैं? सवाल तमाम हैं जिनका छोटा जवाब शायद हां में है।

दरअसल, अरविंद केजरीवाल की भारी जीत ने मोदी की जीत के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी। और ये लकीर सीधी भी नहीं है बल्कि मोदी की लकीर को काटती हुई खींची गई है। हालांकि एक बड़ा अंतर ये है कि मोदी लोकसभा चुनाव में पूरा देश जीते थे, केजरीवाल ने अभी सिर्फ दिल्ली जीती है। लेकिन ये सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं है। परसेप्शन की लड़ाई भी है, जिसमें मीडिया एक अहम भूमिका निभा रहा है।

मीडिया का एक तबका जिस तरह से मोदी की जीत के बाद उनके जयगान में लगा रहा, वैसे ही दूसरा तबका केजरीवाल की जीत के बाद उनके जयगान में जुट गया है। केजरीवाल चढ़ते दिख रहे हैं। मोदी उतरते दिख रहे हैं। टीवी आधारित लोकप्रियता से बने व्यक्तित्वों के लिए ये उतार-चढ़ाव ख़ास मायने रखता है। ख़ासतौर पर तब जब उन्हें एहसास हो कि वायदों के मुताबिक़ ज़मीन पर कामकाज़ या तो नहीं हो हुआ है और अगर कुछ हुआ भी है तो लोगों को उसका प्रतिफल नहीं मिला है।

जनता को राजनेताओं की कोशिशों से उतना मतलब नहीं होता जितना नतीजों से होता है। केजरीवाल की क़ामयाबी 49 दिनों की पिछली सरकार के दौरान की गई कोशिशों से उतनी नहीं मिली जितनी कि ज़मीन पर वो कुछ नतीजा दे पाए, उससे मिली है। जैसे बिजली, पानी के दाम में कमी और पुलिसिया वसूली पर रोक। इसलिए शायद अब मोदी को एहसास हो गया है कि भविष्य की ज़मीन बनानी और बचानी है, तो मीडिया का कोलाहल तो चाहिए ही, ज़मीन पर काम भी करना होगा।

"हमारे गांव, हमारे शहर, हमारे गली, हमारे मोहल्ले, हमारे स्कूल हमारे अस्पताल" की सफाई का उद्घोष करते विज्ञापन के सुर आजकल धीमे पड़ गए हैं। झाड़ू ने कुछ और ही बुहार दिया है। मोदी अपने भाषणों में इतने सारे वादे खर्च कर चुके हैं कि बिहार और फिर बंगाल के चुनावों में वो नया क्या बोलेंगे, ये सोच कर मैं चिंतत होने लगा हूं। एक सवाल ये भी है कि क्या वे अपना वही लय-सुर और ताल उसी आत्मविश्वास के साथ वापस हासिल कर पाएंगे, जिसे दिल्ली के चुनावी नतीजों ने पददलित कर दिया है? अब तो शायद वो अपना नाम लिखा सूट भी कभी नहीं पहन पाएंगे, जिसने उन्हें नसीबवाला से कम नसीबवाला बना दिया।

याद कीजिए कि लोकसभा चुनाव से पहले 20-20 मैच के नतीजों की तरह वो ‘विकास’ देने की बात कर रहे थे। सत्ता में आ गए तो बेहतर नतीजे के लिए मैच को 50-50 ओवरों तक खींचने की मांग करने लगे। ‘थोड़ा वक्त तो दीजिए। कांग्रेस को साठ साल दिया हमें साठ महीने तो दीजिए... मीडिया ने सौ दिन का हनीमून पीरियड भी नहीं दिया...आदि आदि’। वैसे केजरीवाल भी वादों के फ्री हिट के साथ सत्ता में पहुंचे हैं। दिल्ली की गीली ज़मीन पर इस बार उनकी कोशिश पैर जमा कर खेलने की होगी। इस बार टीम पूरी है। एक भी खिलाड़ी कम या चोटिल नहीं। इस बार फिसलने का कोई बहाना नहीं चलेगा। और मोदी से केजरीवाल का यही मुक़ाबला ट्वेंटी-20 के दो धुरंधरों को ‘टेस्ट मैच’ में उतरने को मजबूर कर दिया है। रुक कर, हर बॉल देख कर, टिक कर, ज़रूरत पड़े तो बैकफुट पर जाकर, कमज़ोर बॉल को परख कर और अच्छे बॉल को उचित सम्मान देकर, अतिरिक्त ख़तरा उठाने की हड़बड़ाहट के बिना दोनों को बैटिंग करना है। अपना स्कोर बड़ा करना है। टॉस जीत कर केजरीवाल ने अभी स्ट्राइक संभाली है। पहले उत्तेजना में दिखते थे, पर इस बार जीत से पैदा हुए एग्रेशन को संतुलित करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। अच्छा परफार्म करने के लिए ये ज़रूरी है।

उधर मोदी को अभी कुछ दिनों तक क्षेत्ररक्षण करना है। ऐसी जगह फील्डिंग करनी है, जहां वे मैदान में भी दौड़ते-भागते दिखें और टीवी पर भी आएं। फील्डिंग की उनकी हर ग़लती को एक्शन रिप्ले कर बार बार देखा जाएगा। ख़ासतौर पर तब जब पैवेलियन के ठीक बगल वाले स्टैंड में संघ भी बैठकर मैच देख रहा है। मोदी की हर ग़लती से केजरीवाल को एक्स्ट्रा रन मिलेगा। वैसे भी केजरीवाल को दो विकटों के बीच तेज़ी से दौड़ कर एक रन निकालने में महारथ हासिल कर चुके हैं। टेस्ट मैच में ये मज़बूती देता है। वैसे केजरीवाल कमज़ोर बॉल पर छक्का मार कर अंपायर से उसे ‘नो बॉल’ करार देने का ज़ोर भी डालते करते हैं ताकि एक बॉल में वो सात रन जुटा सकें। निगेटिव कैंपेन के ओवरथ्रो का केजरीवाल ने कैसा फायदा उठाया ये तो दिल्ली मैच के नतीजे में हम देख चुके हैं। उन्हें आसानी से आउट करना मुश्किल है। ऐसे में दोनों छोर से कसी गेंदबाज़ी और कैच लपकने की सिद्दहस्तता ही मोदी के लिए बैटिंग का अगला मौक़ा लेकर आएगा।

इसलिए मोदी चौकस हो रहे हैं। इस हार से अगर वे संभल गए हैं तो वे अपनी टीम के खिलाड़ियों पर अन्यथा दबाव बनाने की बजाय ड्रेसिंग रूम में उन्हें पूरा सम्मान देते हुए उनको जानने समझने की कोशिश करेंगे। किरण बेदी की तरह बाहर से खिलाड़ी लाने की बजाय अपने खिलाड़ियों की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें उसके मुताबिक़ मौक़ा देने की कोशिश करेंगे। वैसे ही जैसे ट्वीट कर टीम इंडिया के हर खिलाड़ी की खूबी को सराहा है। जब वे भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों की खूबी को इस बारीकी से पहचान और लिख सकते हैं तो अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों और पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं को उनकी खूबी के हिसाब से इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते। ऐसा हो पाएगा या नहीं एक अलग सवाल है। हो सकता है कि उन्हें डर होगा कि कहीं कोई ऐसा मज़बूत खिलाड़ी न निकल आए जो उनकी कप्तानी ही छीन ले। वैसे ये तो होता आया है और होता रहेगा। कपिल देव से लेकर गावस्कर तक और अज़हर, गांगुली, तेंदुलकर से लेकर धोनी तक, सबको एक न एक दिन कप्तानी से जाना पड़ता है। याद सिर्फ ये रह जाता है कि कौन अब तक का बेहतरीन कप्तान है।

फिलहाल मोदी चाहते हैं कि मीडिया और जनता का ध्यान मोदी-केजरीवाल मैच से दूर रहे। ख़ुद को रिआर्गेनाइज़ करने के लिए उन्हें थोड़ा टाइम चाहिए। इसलिए वो क्रिकेट वर्ल्ड कप की तरफ ध्यान ले जाना चाह रहे हैं। क्रिकेट अपने आप में एक खेल है लेकिन राजनीतिक खिलाड़ी ख़ुद को मैदान में फिर से जमाने के लिए इससे भी खेल जा सकता है।

अंत में बस इतना कि, प्रधानमंत्री जी आपने टीम में जोश भरने की कोशिश इसके लिए देश आपका शुक्रगुज़ार है। हमारी भी शुभकामना साथ है कि इस बार आप 'चाय पर चर्चा' करें 'वर्ल्ड कप' हाथ में लेकर... टीम इंडिया के साथ। हम आपके ट्वीट्स पर नज़र बनाए हुए हैं। आपके व्यक्तित्व में झांकने का कोई और झरोखा आपने छोड़ा नहीं हुआ है।


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