यह ख़बर 01 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

राजीव रंजन की कलम से : शिक्षक दिवस पर मोदी की क्लास

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

दिल्ली के एक स्कूल से अपने बेटे को साथ लेकर बाहर निकलती कनिष्ठा को जब ये पता लगा कि पांच सितंबर की दोपहर तीन बजे से पौने पांच बजे तक बच्चों को प्रधानमंत्री का भाषण सुनना है तो वह नाराज़ हो उठीं। वह कहती हैं, 'बच्चों को उनका भाषण क्यों सुनना है। शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को प्रधानमंत्री अपना भाषण सुनाएं, बच्चों को क्या समझ में आएगा? खासकर छोटे बच्चों को।'

कुछ ऐसी ही राय कालका पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. ओनिका मेहरोत्रा की भी है। वह कहती हैं हमें जो आदेश मिला है, उसको मानना ही पड़ेगा, लेकिन स्कूल के बच्चे से लेकर टीचर तक को उस दिन दिक्कत आएगी। बच्चों को देर तक रोकने और फिर घर पहुंचाने का सवाल है− बस कहां से मिलेगी? अगर नहीं मिली तो क्या पैरेंटस बच्चों को स्कूल से लेकर जाएंगे। शहरों में तो फिर भी कुछ इंतज़ाम हो जाएंगे गांव−देहातों में कहीं ज्यादा मुश्किल होगी।'

प्राइवेट स्कूलों के कई प्रिंसिपल सरकार इस कदम के खिलाफ तो हैं, लेकिन डर के मारे कुछ बोलने से बचते दिखे। हालांकि शिक्षक दिवस के मौक़े पर प्रधानमंत्री के भाषण को लेकर विवाद छिड़ा तो केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री को सफ़ाई देने आना पड़ा कि ये कायर्क्रम पूरी तरह से स्वैच्छिक है और अगर इस मामले में कोई गलतफहमी हुई है, तो इसलिए कि इसे राजनीतिक तौर पर तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।

हालांकि दिल्ली या फिर देश के दूसरों स्कूलों को सरकार ने जो सर्कुलर जारी कर कहा है, उसमें कहीं इसे ऐच्छिक नहीं बताया गया है। सर्कुलर में साफ़ लिखा गया है कि मानव संसाधन मंत्रालय का ये निर्देश है कि देश भर के सभी स्कूल पूरी व्यवस्था करें जिससे कि बच्चे प्रधानमंत्री का पूरा भाषण सुन सकेंगे।

खास बात यह है कि ये जानते हुए भी कि अमूमन सारे स्कूलों में 2 बजे छुट्टियां हो जाती हैं, प्रधानमंत्री ने बच्चों की नहीं अपनी सुविधा से समय चुना। बताया जा रहा है कि चूंकि सुबह राष्ट्रपति शिक्षकों को सम्मानित करते हैं, इसलिए ये कायर्क्रम शाम को रखा गया है।

फिर स्कूलों में संसाधन की कमी का भी संकट है। भोपाल के एक स्कूल के प्रिंसिपल मनोज भटनागर कहते हैं कि स्कूल में बिजली के बिल देने का पैसे नहीं है तो फिर कैसे जेनरेटर का इंतजाम कर बच्चों को मोदी का भाषण सुनवाएंगे? वहीं बिहार के शिक्षा मंत्री वृषण पटेल तो कह रहे हैं कि ये तो बच्चों को भी झूठे सुनहरे सपने दिखाने में लगे हैं, जैसे देश के लोगों को दिखा रहे है।

एक प्राइवेट स्कूल की टीचर यूना बावल कह रही हैं, 'पीएम शिक्षक दिवस पर बच्चों से बातचीत क्यों कर रहे हैं? इससे हमारा और बच्चों के बीच जो प्रोगाम होता था, उसे कैंसिल करना पड़ेगा।'

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जाहिर है जिसे मोदी सरकार राष्ट्रीय मसले की तरह पेश कर रही है उसे कई लोग उसकी राजनीति की तरह भी देख रहे हैं।