गोल मार्केट में एक आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता ने चाय के ठेले पर बातचीत के दौरान कहा, "हमारा वोटर घर में बैठे रहने वाला नहीं है... वे सारे गरीब लोग हैं, जो महंगाई और भ्रष्टाचार से छुटकारा चाहते हैं... उनको (बीजेपी को) पैसे वाले लोग ही वोट देंगे, जो लाइन में खड़े होने के लिए आसानी से बाहर निकलते नहीं है..."
मैंने सवाल किया, "आप लोगों के नेता कह रहे हैं कि बीजेपी पैसे बंटवा रही है... आशुतोष ने ट्वीट किया है..." उसने हंसते हुए जवाब दिया, ''मफलरमैन ने सबको समझा दिया है न... पैसे ले लेंगे, लेकिन वोट वे लोग हमें ही देंगे..."
इस आदमी का इशारा अरविंद केजरीवाल के उस बयान की ओर था, जो उन्होंने जनसभाओं में दिया और जिसके लिए उन्हें चुनाव आयोग से नोटिस भी मिला है।
इस बीच, आम आदमी पार्टी के वॉलन्टियर स्पाईकैम आर्मी (खुफिया कैमरों वाली सेना) बनाने का दावा कर रहे हैं। जंगपुरा में एक आप कार्यकर्ता ने कहा, "हम किसी भी तरह की धांधली को रोकने के लिए चौकन्ने हैं..."
बीजेपी ने भी आम आदमी पार्टी के खतरे को भांप लिया है और बड़ी संख्या में अपने कार्यकर्ताओं और आरएसएस के लोगों को वोटिंग के दिन सक्रिय रहने को कहा है। इन लोगों की मेहनत ही बीजेपी का ताकत और किस्मत को तय करने वाली है। बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस कठिन लड़ाई को समझ रहे हैं। दिल्ली का चुनाव नरेंद्र मोदी की नाक का सवाल बन गया है।
केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने बुधवार को कह दिया कि दिल्ली चुनाव को नरेंद्र मोदी पर रेफरेंडम (जनमत) नहीं समझा जाना चाहिए। इस बयान को भी बीजेपी के भीतर घबराहट के तौर पर देखा जा रहा है।
बीजेपी के नेताओं ने पिछले दिनों 'स्थिर सरकार' और 'चलें मोदी के साथ' जैसे नारे दिए हैं और वोटरों से 'झूठे वादों से सावधान' रहने को कहा है। प्रधानमंत्री मोदी रैलियों के साथ बीजेपी के विज्ञापनों में यह कहते दिखे हैं कि जिन्हें फुटपाथ पर धरना करने में महारत है, उन्हें वही काम दीजिए, हमें अच्छी सरकार चलाने में महारत है, हमें वह काम दीजिए। असल में यही जुमला बीजेपी के पास है, जिसे वह वोटरों को लुभाने के लिए इस्तेमाल कर रही है और दिल्ली की सड़कों पर नरेंद्र मोदी के चाहने वाले और समर्थकों पर इसका असर भी हो रहा है। कनॉट प्लेस में 36 साल के हंसराज कहते हैं, "केजरीवाल जितना भी ज़ोर लगा लें, लेकिन पिछली बार वह सरकार छोड़कर भाग गए थे... मोदी जी परफॉर्मर हैं... वोट उन्हीं को दिया जाएगा..."
यानि एक ओर नरेंद्र मोदी की छवि है, जो अब भी मिडिल क्लॉस में अपील करती है और दूसरी ओर केजरीवाल के पास भ्रष्टाचार-विरोधी नारा और गरीब आम आदमी का साथ है, लेकिन इस लड़ाई में कांग्रेस कहां खड़ी है। कांग्रेस के लिए इन चुनावों में वाकई हाल खराब हैं... आखिरी वक्त में राहुल गांधी लोगों के सामने आए ज़रूर हैं, लेकिन उनका वोट टूटकर केजरीवाल की ओर चला गया है। बुधवार को राहुल गांधी ने आदिवासियों और कमज़ोर तबके की तरफदारी करते हुए जयंती नटराजन का मुद्दा उठाया। कहा कि उन्होंने ही (राहुल ने ही) जयंती से कहा था कि वह प्रोजेक्ट पास करते वक्त गरीबों और आदिवासियों का खयाल रखें।
राहुल ने चुनाव प्रचार के आखिरी दिन भी रोड शो किया, जिसमें अच्छी भीड़ जुटी, लेकिन हर चुनाव में उनका आधा-अधूरा उत्साह वोटर को जुटा नहीं पाता। लोकसभा चुनाव के दौरान बनारस में मोदी और केजरीवाल की टक्कर में भी राहुल आखिरी दिन प्रचार करने आए, जिसमें भीड़ तो आई थी, लेकिन वोट उनके उम्मीदवार को नहीं मिल पाए थे। दिल्ली के लोगों की आम राय है कि राहुल गांधी की इस अपील का भी तुरंत असर नहीं होगा।
"कांग्रेस का झंडा और डंडा हिल गया है... अभी तुरंत कोई वोट नहीं देने वाला..." कभी कांग्रेस के समर्थक रहे बीरेन कहते हैं, जो इस बार आम आदमी को वोट डालने वाले हैं। वह फिर कहते हैं, 'कांग्रेस का नुकसान मतलब, आम आदमी पार्टी का फायदा, और झाड़ू का नुकसान, मतलब वोट कमल को चला जाएगा..."
आज दिल्ली चुनाव की सच्चाई यही है... कांग्रेस का वोट खिसककर झाड़ू के पास जा रहा है। बीजेपी के सामने इस बढ़त को काटने के लिए अपने वोटर को बाहर निकालने की चुनौती है। शनिवार को वोटर टर्नआउट अहम संकेत देगा, तैयार रहिएगा...