निधि का नोट : वाद...विवाद...संवाद - एक जरूरत

निधि का नोट : वाद...विवाद...संवाद - एक जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह।

नई दिल्ली:

वाद विवाद संवाद ...इन दो दिनों में संसद के अंदर वाद-विवाद तो संसद के बाहर संवाद देखने को मिला। प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चाय पर बुलाया। इस संवाद की खास अहमियत है, क्योंकि शायद पहली बार ऐसा हुआ जब प्रधानमंत्री ने कांग्रेस अध्यक्ष को किसी सरकार के मसले पर बातचीत के लिए बुलाया। वे पहली बार सर्वदलीय बैठक का हिस्सा भी बने। ...तो क्या इस मुलाकात को प्रधानमंत्री के रुख में बदलाव माना जाए...क्या सरकार की कार्यशैली बदल रही है...। प्रधानमंत्री के भाषण में भी भाव और भाषण हाल के उनके भाषणों से अलग दिखे...लाल किले के प्रचीर वाली या फिर लोकसभा चुनावों से पहले वाली सोच...।

अपने भाषण में उन्होंने संविधान के सभी रचयिताओं के योगदान का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि देश को बनाने में सभी सराकारों, महापुरुषों और जन-जन का योगदान रहा है। 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता रहे। लोकसभा से कैसे इसे जन सभा तक ले जाना है...लेकिन चुनावी दल भक्ति इतनी तीव्र है कि विवाद चलता रहेगा। संविधान एक सामाजिक दस्तावेज है...लेकिन हमें अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों पर जोर देने का समय आ गया है।

दो दिन चली बयानों की राजनीति
प्रधानमंत्री के भाषण से पहले  संसद में संविधान पर दो दिन की चर्चा में वाद-विवाद और राजनीति छायी रही। एक-दूसरे पर बयानों से प्रहार होता रहा। पहले दिन देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द बाद में डाले गए। जो हो गया सो हो गया, लेकिन बाबा साहेब आम्बेडकर ने धर्मनिरिपेक्ष शब्द का प्रयोग नहीं किया था....क्योंकि भारत एक पंथ निरपेक्ष देश है। आज की राजनीति में यदि किसी शब्द का सार्वजनिक दुरुपयोग हो रहा है तो वो सेक्युलर शब्द का। उन्होंने आमिर खान के मसले पर संसद के पटल से डा आम्बेडकर का उदाहरण देकर कहा कि कि वे कितने अपमानित हुए। कटाक्ष झेले लेकिन कभी देश छोड़ने की नहीं सोची। सवाल उठे क्या यह उचित जगह थी?

गृहमंत्री पर सोनिया का पलटवार
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाधी ने भी गृहमंत्री पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि संविधान के रचियताओं की चेतावनी नहीं भूलनी चाहिए कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, लागू करने वाले लोग बुरे निकले तो वह निश्चित रूप से बुरा ही साबित होगा। अगर बुरा हो लेकिन लागू करने वाले अच्छे हों तो अच्छा होगा। सोनिया गांधी ने यह भी कहा कि संविधान के जिन मूल्यों ने प्रेरित किया, आज उन पर खतरा, उन पर जानबूझकर हमला हो रहा है। पिछले कुछ महिनों से जो कुछ भी देखा, वह पूरी तरह से मूल्यों के खिलाफ है। जिन लोगों की संविधान में किसी तरह की आस्था नहीं रही है, न इसके निर्माण में भूमिका रही है, वे आज इसके अगुवा बनना चाहते हैं। इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है। शायद पंडित जवाहरलाल नेहरू के योगदान पर ज्यादा तवज्जो नहीं देने से यह पीड़ा थी जो गुलाम नबी आजाद के भाषण में साफ दिखी। उनका कहना था कि नेहरू ने संविधान के मूल मूल्यों को रूप दिया और उनका जिक्र न करना असहिष्णुता है।

इमरजेंसी और हिटलर की तानाशाही
बहरहाल वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इमरजेंसी को सबसे घातक तानाशाही करार दिया। संविधान के प्रावधानों के गलत इस्तेमाल पर जर्मनी में 1933 में हिटलर की तानाशाही का उदाहरण सामने रख काग्रेस पर तंज कसा। आतंकवाद के मसले पर निंदा करने से संकोच का वार किया। संविधान पर चर्चा के जरिए वे मुद्दे सामने रखे जो हाल में सुर्खियो में थे। उन्होंने कहा कि 1950 में आम्बेडकर ने अपने एक भाषण में अनुच्छेद 48 के तहत डा आम्बेडकर के गौ रक्षा, उसे मारने पर रोक और अनुच्छेद 44 के तहत uniform civil code की सोच सामने रखी थी।

सरकार पर मतलब के मसले रखने का आरोप
इसी पर सीपीएम प्रमुख सीताराम येचुरी का वार था कि सरकार अपने मतलब के मसले ही सामने रख रही है। वह अनुच्छेद 47 में कुपोषण हटाने जैसे लक्ष्य और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा नहीं दे रही, बल्की गणेश की प्लास्टिक सर्जरी और कर्ण के टेस्ट ट्यूब शिशु के उदाहरण दे रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार कट्टर हिन्दुत्व के कार्यक्रम को पुनर्जीवित कर रही है। बहरहाल जो भी इन दो दिनों में हुआ देश की जनता के लिए जरूरी था यह वाद-विवाद और संवाद...।

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