निधि का नोट : दिल्ली के पर्यावरण सुधार का छोटा अभियान सफल, अब सवाल भविष्य का

निधि का नोट : दिल्ली के पर्यावरण सुधार का छोटा अभियान सफल, अब सवाल भविष्य का

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली:

तो दिल्ली में ऑड-ईवन प्रयोग का पहला दौर समाप्त हो गया...। कई लोग खुश हो रहे होंगे, नियमों से राहत भी महसूस कर रहे होंगे...लेकिन शायद इसकी सफलता से लग रहा है कि यह जल्दी खत्म हो गया। पिछले 15 दिनों से सड़कों पर भीड़ कम मिलती थी, ट्रैफिक जाम नहीं मिलता था, घर जल्दी पहुंचा जा सकता था। बस में सफर करने वाले भी खुश थे क्योंकि बैठने की जगह मिल जाती थी। प्रदूषण भी कुछ कम हुआ होगा। लेकिन शायद इसमें सबसे खास बात रही कि दिल्ली वासी एकजुट हुए। शहरियों ने भी परेशानियों के बावजूद नियम का पालन किया। दिल्ली पुलिस के लिए भी खासी चुनौती नहीं थी क्योंकि लोग स्वेच्छा से नियम पालन करते हुए दिखे।

एक रिपोर्ट के अनुसार - दिल्ली का बीता पखवाड़ा

  • एम्बुलेंस का रिस्पांस टाइम सुधरा क्योंकि लालबत्तियों पर 5 से 10 मिनट कम रुकना पड़ा।
  • गाड़ी चलाने वाले खुश थे क्योंकि सड़कों पर कम वाहनों के कारण आधा घंटे जल्दी पहुंच सके।
  • सीएनजी पर अच्छा माइलेज मिला क्योंकि ट्रैफिक कम था।
  • पेट्रोल डीजल की बिक्री में 30 प्रतिशत कमी हुई।
  • बस ड्राइवरों को ज्यादा ट्रिप लगाने का अवसर मिला क्योंकि ट्रैफिक कम था।
  • पार्किंग लॉट 15 से 20 प्रतिशत खाली रहे।
  • एक ऑनलाइन पोल के अनुसार 67 प्रतिशत दिल्ली वासियों ने इस प्रयोग का स्वागत किया है।

दिल्ली सरकार को मिली आशातीत सफलता
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को भी शायद यह अंदाजा नहीं होगा कि दिल्ली वासी इतना साथ निभाएंगे। काफी खुश नजर आए केजरीवाल ने जनता और दिल्ली पुलिस की तारीफ की व धन्यवाद कहा।

शहरीकरण में सबसे आगे
तो अब जब  दिल्ली के प्रदूषण पर थोड़ा बहुत असर भी पड़ा है तो और क्या किया जा सकता है जिससे हवा सुधरे? हालांकि दिल्ली में शहरीकरण देश में सबसे ज्यादा 98 प्रतिशत है लेकिन सार्वजनिक परिवहन सबसे देरी में विकसित हुआ। मुंबई में लोकल ट्रेन 1853 से दौड़ रही है, कोलकाता में मेट्रो 1984 में आ गई थी, जबकि दिल्ली में तो 2002 तक बस सर्विस ही होती थी।

सार्वजनिक परिवहन के विकास से समस्या का निदान संभव
एक रिपोर्ट  के अनुसार दिल्ली में दोपहिया वाहनों से 33 प्रतिशत और  ट्रकों से 46 प्रतिशत प्रदूषण होता है। इसके अलावा दिल्ली में गाड़ियों की तादाद अन्य बडे़ शहरों के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। दिल्ली में प्रत्येक 1000 व्यक्तियों में से 451 के पास गाड़ी है। ग्रेटर मुंबई में इस अनुपात में 102, कोलकाता में 110 वाहन हैं। सिर्फ बेंगलुरु ही ऐसा शहर है जहां प्रति हजार व्यक्ति पर दिल्ली से ज्यादा 489 वाहन हैं। अगर हमारा पब्लिक ट्रांसपोर्ट दुरुस्त होगा तो लोग निजी वाहन खरीदने की जरूरत महसूस नहीं करेंगे।

छूट पाने वाली श्रेणियां घटाई जाएं
दिल्ली पुलिस के अनुसार बड़ा जुर्माना यातायात समस्या के निदान में कारगर होता है। 2000 रुपये का फाइन लोगों को अखरा। सौ-दो सौ रुपये के चालान की लोग परवाह नहीं करते। पुलिस महकमे का सुझाव है कि अवैध पार्किंग, सड़कों पर अवैध दुकानों पर जुर्माने की राशि बढ़ाई जाए। आम आदमी पार्टी सरकार 'पर्यावरण मुआवजा शुल्क' के बारे में विचार कर रही है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अगर ऑड-ईवन दूसरी बार लागू होता है तो दोपहिया वाहनों पर भी लगाम लगे। यह दिल्ली सरकार के लिए चुनौती होगी। इस दौरान नियम से छूट पाने वाली श्रेणियों को भी कम किया जाए। अगर 56 प्रतिशत प्रदूषण सड़कों की धूल से होता है तो पौधों के रोपण पर जोर दिया जाए। बहरहाल हर स्तर पर विचार हो रहा है कि अब अगला कदम क्या हो?  

खास बात यह भी है कि NDTV के अभियान 'सांस है तो आस है' में दिल्ली के कई स्कूलों के बच्चों ने सड़कों पर उतरकर साथ दिया और दिल्ली की जनता को धन्यवाद दिया। उमीद की जानी चाहिए कि दिल्ली के लिए जल्द ही एक नई मुहिम सामने आएगी।

(निधि कुलपति NDTV इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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