अविश्वास प्रस्ताव: संजू से बेहतर मनोरंजन प्रदान किया यूपीए ने!

करीब पंद्रह साल बाद यह बड़ा मंच (अविश्वास प्रस्ताव) सजा था, लेकिन ठोस विषय के अभाव और खराब तैयारी के चलते इस प्रस्ताव की हवा निकल गई और यह परिणाम में साफ दिखाई पड़ता है

अविश्वास प्रस्ताव: संजू से बेहतर मनोरंजन प्रदान किया यूपीए ने!

अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पीएम मोदी को गले लगाने की चर्चा देश भर में बनी हुई है

साहस और बेवकूफी के बीच बहुत ही महीन रेखा होती है! वास्तव में विपक्ष का एनडीए सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाना किसी गीले पटाखे की तरह टांय-टांय फिस्स हो गया. जैसी काफी हद तक उम्मीद थी, ठीक वैसा ही हुआ और सरकार वोटिंग में दो तिहाई अंतर से जीत गई. अब जबकि आम चुनाव करीब दस महीने दूर हैं, तो मोदी सरकार की यह जीत आम जनमानस की सोच को काफी हद तक प्रभावित करेगी. संपूर्ण देश और मीडया बहुत ही उत्साह से इस अविश्वास प्रस्ताव पर नजरें गड़ाए हुए था कि इस बड़े मंच पर यूपीए या विपक्ष किन मुद्दों के साथ सरकार पर वार करता है. करीब पंद्रह साल बाद यह बड़ा मंच (अविश्वास प्रस्ताव) सजा था, लेकिन ठोस विषय के अभाव और खराब तैयारी के चलते इस प्रस्ताव की हवा निकल गई और यह परिणाम में साफ दिखाई पड़ता है.

वास्तव में, यह अविश्वास प्रस्ताव इतिहास में विपक्ष के हमले और प्रधानमंत्री मोदी के जवाब से ज्यादा राहुल गांधी की कुछ हरकतों के लिए ज्यादा याद किया जाएगा. काग्रेस अध्यक्ष ने देश की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए अपनी लाइब्रेरी में हिफाजत से जमा करने के लिए सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ तस्वीरें प्रदान कर दी हैं. और इन तस्वीरों ने अविश्वास प्रस्ताव पर बहस की गंभीरता को भेदते हुए हाल ही में रिलीज हुई रणबीर कपूर स्टारर 'संजू' फिल्म से कहीं ज्यादा मनोरंजन देश की जनता को प्रदान किया. जनता, कांग्रेस समर्थक और सरकार से खफा चल रहे लोग कई घंटे तक इस उम्मीद में अपने टीवी सेटों से चिपके रहे कि राहुल गांधी इस बैटल में कुछ ‘गोल’ जरूर करेंगे. लेकिन हमेशा की तरह बार-बार अपनी आस्तीन ऊपर चढ़ाते हुए राहुल गांधी ने अपने ऊपर ही गोल कर लिया!

आम आदमी भी बड़े मंच के प्रदर्शन को लंबे समय तक याद रखता है क्योंकि बड़े मंच का संदेश बहुत दूर तक जाता है. यह राय और नजरिया बनाने या मिटाने में बड़ी अहम भूमिका निभाता है. कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार मिले इस बड़े मंच पर राहुल गांधी के पास इन सब तमाम बातों के लिहाज से और स्कोर करने का अच्छा मौका था, लेकिन राहुल गांधी ने इसे पूरी तरह से गंवा दिया. जो भी बातें राहुल ने कहीं, वे सत्र के किसी सामान्य दिन भी कही जा सकती थीं. जो भी मुद्दे राहुल गांधी ने उठाए, वो पुराने तो थे ही, उनमें वजन का भी अभाव रहा. और इस पर भी अगर कुछ कसर बाकी बची थी, तो वह राहुल गांधी की 'हगिंग' और 'विंकिंग' ने इन मुद्दों के 'हाईजैक' ने पूरी कर दी. सारा आकर्षण मुद्दों और चर्चाओं से हटकर राहुल की हरकतों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गया. 

विपक्ष की तरफ से मजबूत मुद्दों का अभाव दिखाई पड़ा और जिन मुद्दों को जोर-शोर से उठाने की कोशिश हुई, उन्हें राहुल गांधी की 'हगिंग' और 'विंकिंग' ने हाईजैक कर लिया! हमेशा की तरह पीएम अपनी नैसर्गिक फॉर्म में दिखाई पड़े, लेकिन सेशन खत्म होने के बाद कांग्रेसी प्रवक्ताओं की बॉडी लैंग्वेज जरूर निस्तेज हो गई. निश्चित ही, अगले चुनाव तक उनके प्रवक्ताओं लिए चुनौती बहुत और बहुत ही बड़ी होने जा रही है!

इस एकतरफा साबित हुए 'मैच' के बाद कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं. जैसे, आखिरकार विपक्ष का यह अविश्वास प्रस्ताव लाने का मकसद क्या था? क्यों विपक्ष सरकार को घेरने के लिए और बेहतर विषय नहीं ढूंढ सका? और क्या वास्तव में विपक्ष, खासतौर पर राहुल गांधी ने सरकार को घेरने के लिए होमवर्क किया? हो सकता है कि किया हो, लेकिन संसद के भीतर तो उनकी शैली मजाक का विषय बन गई, तो सवालों में वह वजन नहीं दिखा, जो इस खास दिन के लिए होना चाहिए था. इन तमाम बातों ने उनकी तैयारी की पोल खोल कर रख दी. सभी सोच रहे थे कि यूपी सत्ता पक्ष को घेरने के लिए नए या 'आउट ऑफ बॉक्स' मुद्दे लेकर आएगी, लेकिन रटे-रटाए मुद्दे मुद्दों के अलावा उनके तरकश में कुछ भी नहीं था.

जिस राफेल डील से राहुल ने भूकंप आने का इशारा किया था, उसकी फ्रांस सरकार के खंडन ने बीच बहस ही हवा निकाल दी. वैसे इस मुद्दे में भी जान नहीं थी और पीएम ने बखूबी अंदाज और विश्वास के साथ राफेल डील पर जवाब दिया. आखिर में राजनीतिक पंडित ही नहीं, एक आम शख्स भी साफ तौर पर पढ़ और समझ सकता था कि दीवार पर क्या लिखा है और किसको क्या मिला. किसी को यह समझ नहीं आया कि वास्तव में विपक्ष या कांग्रेस इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिए क्या ढूंढने निकली थी, लेकिन अंत में यह जरूर साफ हो गया कि उसके हिस्से में सिर्फ जगहंसाई ही ज्यादा आई. प्रवक्ताओं के कुतर्क दीवार पर लिखे सच और उनकी शारीरिक भाषा को नहीं ढांप सकते.

फिलहाल वर्तमान में कांग्रेस उस टी-प्वाइंट पर खड़ी है, जहां उसे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा कि उसे कौन से रास्ते पर चलना है. टोपी मार्ग पर या जनेऊ मार्ग पर! सिर्फ भ्रम ही भ्रम और अंधेरा ही अंधेरा! अब जबकि अगला आम चुनाव नजदीक आता जा रहा है, तो ऐसे में कांग्रेस को अपने राजनीतिक बोर्ड में नए, 'जादुई सलाहकारों' को शामिल करने की जरुरत है, जो उसका कायाकल्प करने में कुछ तो मदद कर सकें. और अगर पार्टी मोदी की काट के लिए कोई नया ट्रैक नहीं ढूंढ पाती है, तो आने वाले समय में हालात क्या होंगे, यह हर कोई आसानी से पढ़ और समझ सकता है.

(मनीष शर्मा Khabar.NDTV.com में डिप्‍टी न्यूज एडिटर हैं...)

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