टेस्ट सिर्फ़ बेस्ट के बीच होना चाहिए...

3 टेस्ट मैचों में तमाम परेशानियों का हल टीम इंडिया को मिल गया. लेकिन क्या वाकई इस तरीके का क्रिकेट देखने के लिए लोग उत्साहित रहते हैं. ये सवाल अब बड़ा हो गया है क्योंकि इस जीत के बाद फैंस तो छोड़िए मीडिया भी दिवाली नहीं मनाने वाला है.

टेस्ट सिर्फ़ बेस्ट के बीच होना चाहिए...

श्रीलंका के ख़िलाफ़ टीम इंडिया के प्रदर्शन ने फैन्स को खुश तो किया, ख़बर की दुनिया वालों ने तमाम आंकड़े निकालकर हेडलाइंस भी बनाई, कप्तान विराट ने वो कर दिया जो कोई और भारतीय टीम नहीं कर पाई. टीम इंडिया को नया कपिल देव हार्दिक पंड्या के रूप में मिल गया. 3 टेस्ट मैचों में तमाम परेशानियों का हल टीम इंडिया को मिल गया. लेकिन क्या वाकई इस तरीके का क्रिकेट देखने के लिए लोग उत्साहित रहते हैं. ये सवाल अब बड़ा हो गया है क्योंकि इस जीत के बाद फैंस तो छोड़िए मीडिया भी दिवाली नहीं मनाने वाला है. ना तो टीम इंडिया का स्तर इस सीरीज़ को खेलकर बढ़ेगा ना ही बदलाव के दौर से गुज़र रही श्रीलंका की टीम का मनोबल बढ़ेगा.

टेस्ट क्रिकेट को बचाने के दौर में इस तरीके की सीरीज़ टेस्ट क्रिकेट को ख़त्म करने में योगदान देती है जहां पर एक टीम हर मोर्चे पर विरोधी को पस्त करने में हर बार कामयाब हो जाती है. डे-नाइट क्रिकेट को एक समाधान बताया जा रहा है. लेकिन मज़ा तब आता है जब टक्कर बराबरी की होती है. दर्शक टीवी स्क्रीन या स्टेडियम की तरफ तब आकर्षित होते हैं जब विराट का समाना मिचेल स्टार्क से हो, पुजारा के धैर्य को जेम्स एंडरसन जैसा गेंदबाज़ टेस्ट करे, या फिर जडेजा का इम्तिहान डिविलियर्स एंड कंपनी से हो रहा हो. ताकतवर विरोधी से लड़कर मिली जीत की बात ही कुछ और होती है.

इसलिए मेरी नज़र में टेस्ट को संजो कर रखना है तो इसमें भी प्रोफ़ेशनल बॉक्सिंग की तरह आमने सामने बेस्ट खिलाड़ी होने चाहिए. दुनिया भर में 12 टीमों को टेस्ट स्टेटस दिया गया है, रैंकिंग के आधार पर दो ग्रुप बनाने चाहिए कुछ उसी तरीके से जैसे भरातीय घरेलू क्रिकेट में होता है. एक एलीट ग्रुप जिसमें टॉप 6 टीमें आपस में खेलें और दूसरा प्लेट ग्रुप जिसमें बॉटम 6 टीमें ही आपस में टकारएं. एलीट ग्रुप में एंट्री और एग्ज़िट होने के नियम हों और टॉप 3 में रहने पर टीम के साथ साथ उसके बोर्ड को भी आर्थिक इनाम दिया जाए. इससे क्रिकेट के इस सबसे पुराने और पवित्र माने जाने वाले फ़ॉर्मेट का रोमांच ना सिर्फ़ बना रहेगा बल्कि बढ़ेगा भी.

ऐसा नहीं है कि अंतराष्ट्रीय क्रिकेट संघ इस तरफ काम नहीं कर रहा. टेस्ट चैंपियनशिप का प्लान बनाया गया और साल 2017 से इसे शुरू होना था, जिसे टीवी कंपनियों के दबाव में 2025 तक के लिए टाल दिया गया है. टीम इंडिया के गुणगान में मैं भी लगां हूं लेकिन ये मानिए कि भारतीय टीम की जो तस्वीर अभी दिखाई दे रही है वो द. अफ़्रीका, ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड जाकर बदल सकती है. टीम इंडिया का स्तर वही रहेगी बस टेस्ट क्रिकेट का असली मज़ा आने लगेगा. जब दो अच्छी टीमें एक चुनौतीपूर्ण विकेट पर बादशाहत की जंग लड़ेंगी और 5 दिन सेशन दर सेशन बाज़ी कभी इधर तो कभी उधर पलटेगी.

कुणाल वाही एनडीटीवी के खेल विभाग में एसोसिएट एडिटर हैं...
 
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