रवीश रंजन शुक्ला : अरविंद केजरीवाल के नाम एक खुली चिट्ठी

नई दिल्ली:

अरविंद जी मित्रवत नमस्कार

इलाहाबाद में पढ़ते वक्त अपनी मां को पत्र लिखा करता था, सालों बाद इसलिए पत्र लिख रहा हूं कि देश में डाकखाने के खोते वजूद के बावजूद जिस थोक के भाव आपकी पार्टी के नेता एक दूसरे को पत्र लिख रहे हैं। उसी से प्रेरणा ग्रहण करते हुए मैंने सोचा अगर आपकी नजरों में पत्रों की प्रासंगिकता बची है तो मैं भी क्यों न लिखूं। अरविंद जी आपकी सरकार के 49 दिन पूरे हो चुके हैं। उस लिहाज से अब तक आपका कार्यकाल अच्छा रहा है।

हालांकि ईमानदार, बेईमान और अच्छे-बुरे का सर्टिफीकेट देने का कॉपीराइट आपकी पार्टी ने ले रखा है। लेकिन फिर भी ये हिमाकत कर रहा हूं।

इन 49 दिनों में देश में सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति आय (2 लाख रुपए) वाली दिल्ली के लोगों को आपने आधे दर में बिजली और मुफ्त पानी मुहैया कराया। रेलवे को निर्देश दिए कि दिल्ली में एक भी झुग्गी नहीं तोड़ी जाएगी। राजनीति में स्टिंग और स्टंट दोनों के आप बेताज बादशाह हैं। करीब ढाई करोड़ मोबाइल कनेक्शन वाले दिल्ली में 1031 की हेल्प लाइन देने के साथ एक मोबाइल एप भी आप लोगों को देने जा रहे हैं ताकि दिल्ली में करीब 10 लाख कुल सरकारी मुलाजिमों में बेईमानों का थोक के भाव स्टिंग हो। हालांकि इसका प्रयोग आपकी पार्टी के लोगों ने भी खूब किया। लेकिन आपने अच्छा किया स्टिंग करने वालों को लात मार कर कमेटियों से बाहर कर दिया।

डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया, स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन, परिवहन मंत्री गोपाल राय का कामकाज मुझे बेहद पसंद आया। खासतौर पर आपके स्वास्थ्य मंत्री जिस तरह से रात-बिरात सरकारी हॉस्पीटल पहुंचकर गरीब मरीजों का हाल चाल जानते हैं वो अच्छा कदम है। मनीष सिसौदिया ने ये कहकर दिल जीत लिया कि अगर बीजेपी नगर निगम को नहीं चला पा रही है तो उन्हें दे दिया जाए, वो चलाकर दिखाएंगे। आगे बढ़कर जिम्मेदारी उठाने का ये भाव देखकर राजनीति भी शरमा गई होगी। वाई-फाई और चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी की चर्चा कनॉट प्लेस के पार्क में युवाओं के मुंह से बहुत सुनने को मिल रही है। मजदूरों का स्वास्थ्य बीमा और न्यूनतम मजदूरी बढ़ाना भी अच्छा कदम है।

लेकिन देश बचाने के जिस अभियान पर आप लोग निकले हैं वो राजनीतिक अंधेरे में एक दीपक की लौ की तरह दिखती है। हालांकि आपके ही पार्टी के नेता प्रो. आनंद कुमार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं वो कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल अब राजनीति में सवाल की जगह जवाब बनने लगे हैं। राजनीतिक अंधेरे का एक कोना उन्होंने भी पकड़ लिया है। ये बात मुझे काफी हद तक सही लगती है कि पिछले 49 दिनों के मुकाबले इस बार का कार्यकाल बंगला-गाड़ी जैसी व्यावहारिकताओं से भरा रहा जिन्हें आपने ही पिछली बार अव्यावहारिक बना दिया था। आपने अति आदर्शवादी टोपी उतार कर राजनीतिक व्यवहारवाद का चोला पहन लिया है, जिसमें दूसरी पार्टी के दलबदलुओं को जहां अच्छी-खासी जगह मिली वहीं आपकी पार्टी के कथित आदर्शवादियों को गालियां भी। ये भी सही है कि इन 49 दिनों में आपकी सरकार के अच्छे काम कम और पार्टी में आदर्शवाद बनाम व्यवहारवाद की लड़ाई ज्यादा सुर्खियों में रही। हालांकि इसका संकेत आपने इस बार के शपथ ग्रहण के भाषण में भी दिया था।  

पत्र लंबा हो रहा है आपके पास वक्त की कमी रहती है आपको अब पूरे देश की राजनीति करनी है लिहाजा समय-समय पर अपने कार्यकर्ताओं को ये जरूर नसीहत देते रहें कि पालना हो तो बकरी पाले लेकिन घमंड मत पालें। हालांकि जहां सरकार है वहां चापलूस तो रहेंगे ही लेकिन फिर भी आलोचकों को बेईमान या दलाल न समझें बल्कि आदत समझकर भूलने की कोशिश करें।

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मुझे उम्मीद है कि सरकार चलाने का यही उत्साह और गंभीरता दूसरी सरकारों से आपको अलग करेगा। कुछ लाइनों पर अगर आपत्ति होगी तो आदत समझकर भूल जाइएगा।  
 
दिल्ली का एक नागरिक