बहुत आसानी से मोदी सरकार को वॉकओवर दे रहा है विपक्ष

ज़ाहिर है, सरकार का ऐसा कोई इरादा है, जो हमारी जानकारी में नहीं है, और एक बार फिर विपक्ष भौंचक्का रह जाने वाला है, जैसा हाल ही में आरक्षण बिल के मुद्दे पर हुआ था.

बहुत आसानी से मोदी सरकार को वॉकओवर दे रहा है विपक्ष

यशवंत सिन्हा ने केंद्र सरकार को लेकर की टिप्पणी

सरकार पहले ही जानकारी में ला चुकी है (हालांकि औपचारिक घोषणा होना शेष है) कि संसद के दोनों सदन 31 जनवरी से 13 फरवरी के बीच फिर मिलेंगे, ताकि 'लेखानुदान' पारित करने से जुड़ी वित्तीय कार्यवाही को अंजाम दिया जा सके. इस लोकसभा का यह अंतिम सत्र होगा. पहले, हमें यह समझने दिया गया कि शीतकालीन सत्र को ही बढ़ाकर लेखानुदान के लिए दोबारा बैठक की जाएगी. लेकिन अब सरकार ने संसद सत्र को 'समाप्त' किए बिना उसे खत्म कर दिया, और 31 जनवरी से नया सत्र आहूत किया जाएगा. इससे सरकार को दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को राष्ट्रपति द्वारा संबोधित करवाने का अधिकार मिल जाएगा, क्योंकि यह इस साल का पहला सत्र कहलाएगा. इसी कदम से सरकार को राष्ट्रपति की ज़ुबान से नए सिरे से प्रचार करवाने का भी मौका मिल जाएगा. वैसे उन्हें आम चुनाव 2019 के बाद इसी साल एक और संयुक्त सत्र को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा, जब नई लोकसभा का गठन होगा. अतीत में भी राष्ट्रपति इन्हीं हालात में एक ही साल मे दो-दो संयुक्त सत्रों को संबोधित कर चुके हैं. लेकिन विश्लेषक इस बात से हैरान है कि लेखानुदान पारित करने के लिए सामान्य से काम के लिए दो सप्ताह का सत्र क्यों आहूत किया गया है, जबकि उसे दोनों ही सदनों में दो-दो दिन में निपटाया जा सकता था.

 

ज़ाहिर है, सरकार का ऐसा कोई इरादा है, जो हमारी जानकारी में नहीं है, और एक बार फिर विपक्ष भौंचक्का रह जाने वाला है, जैसा हाल ही में आरक्षण बिल के मुद्दे पर हुआ था. मीडिया में कुछ वक्त पहले तक अफवाहों का बाज़ार गर्म था कि मोदी सरकार स्थापित परम्परा का पूरी तरह उल्लंघन करते हुए सम्पूर्ण बजट पेश कर सकती है, जैसा उसने पहले भी कई बार संसद की अन्य स्थापित परम्पराओं के साथ किया है. एक हिन्दी दैनिक, जो कदाचित सरकार के काफी करीब है, ने संकेत दिए हैं कि सरकार तो आर्थिक सर्वेक्षण पेश करने की भी योजना बना रही है.

 

विपक्षी दलों को तैयार रहना होगा. नागरिकता (संशोधन) विधेयक सरीखा कोई भी विधायी कामकाज विचार-विमर्श तथा पारित करवाने के लिए राज्यसभा के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए. दरअसल, कोई भी नया और गंभीर कामकाज संसद के इस सत्र में प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए, और इस सत्र में केवल लेखानुदान एवं राष्ट्रपति के संबोधन पर चर्चा कर 'धन्यवाद प्रस्ताव' पारित किया जाना चाहिए. इसके लिए एक सप्ताह का सत्र ही काफी होता, लेकिन ज़ाहिर है, सरकार का इरादा कुछ और है.

 

सम्पूर्ण बजट का पेश किया जाना हर कीमत पर रोका जाना चाहिए. जाती हुई लोकसभा के पास अगले साल के लिए सम्पूर्ण बजट पर चर्चा कर उसे पारित करने का हक नहीं होता. उसके पास ऐसा करने के लिए जनादेश नहीं है. ऐसा किया जाना संविधान तथा स्थापित परम्पराओं का भी पूरी तरह उल्लंघन करना होगा. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 में लेखानुदान कि प्रक्रिया का वर्णन है. इसमें संसद द्वारा वित्तवर्ष के एक हिस्से के लिए अनुमानित खर्च को मंज़ूरी देने भर का ज़िक्र है, और जो पिछले अनुच्छेदों में वर्णित प्रक्रिया द्वारा सम्पूर्ण बजट के पारित होने तक वैध रहेगी.

 

कौल तथा शकधर भी साफ-साफ लिखते हैं कि लेखानुदान में व्यय का जो लेखा दिया जाएगा, उसमें किसी 'नई सेवा' का कोई प्रस्ताव शामिल नहीं हो सकता. परम्परा के मुताबिक, लेखानुदान से पहले आर्थिक सर्वेक्षण भी प्रस्तुत नहीं किया जाएगा, न उसमें करों (टैक्सेशन) में, विशेषकर प्रत्यक्ष करों में, किसी तरह का बदलाव किया जाएगा, जिनसे वित्त विधेयक में संशोधन करना पड़े. लेखानुदान में सालभर के लिए सिर्फ व्यय का ब्योरा होगा, जिसमे कोई नई सेवा नहीं होगी, और संसद से वित्तवर्ष के एक हिस्से के लिए, जो दो माह भी हो सकता है और तीन माह भी, सरकार द्वारा किए जाने वाले खर्च को मंज़ूरी देने के लिए कहा जाएगा.

 

यह लोकसभा चुनाव के बाद स्थापित होने वाली नई सरकार का अधिकार है कि वह संसद के सामने सम्पूर्ण बजट प्रस्तुत करे, अपने कार्यकाल के अंत में पहुंच चुकी सरकार का नहीं. यह संविधान का प्रावधान है, यह भलीभांति स्थापित परम्परा है, जिससे इतर कुछ भी किए जाने को संविधान का उल्लंघन माना जाना चाहिए.

 

कौल तथा शकधर यह भी सुझाव देते हैं कि लेखानुदान, जो सिर्फ दो महीने के लिए होगा, पर संसद में विचार किए जाने की भी ज़रूरत नहीं. लेकिन भले ही इस तरह की चर्चा पर कोई रोक नहीं है, यह सच्चाई नहीं बदल सकती कि यह सिर्फ रूटीन कामकाज ही रहेगा. इस परम्परा को बदलने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध करना होगा.

 

मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिल रहे हैं कि सरकार अंतरिम बजट में या उससे पहले भी जिन विभिन्न योजनाओं के साथ सामने आ सकती है, उनमें गरीबों के लिए आय की योजना भी शामिल है. मैं इस योजना के खिलाफ नहीं हूं. मैंने खुद भी कुछ समय पहले किसानों के लिए इसी तरह की योजना का सुझाव दिया था, लेकिन इस सरकार का समय अब पूरा हो चुका है. इसे इस वक्त इस तरह की योजना पेश करने का कोई अधिकार नहीं है. विपक्ष को चौकन्ना रहना होगा. उसे सरकार के सामने उस तरह समर्पण नहीं कर देना चाहिए, जिस तरह उसने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के लिए लाए गए संविधान संशोधन बिल के समय किया था. इस कदम से किसी का भी फायदा नहीं होगा, और यह संविधान के साथ धोखाधड़ी है, लेकिन उन्होंने सरकार को संसद में वॉकओवर दे दिया, जो अब जनता के बीच उसका पूरा फायदा उठा रही है. मीडिया दब्बू है, और सरकार के साथ चल रहा है, इसलिए जल्द ही होने जा रहे चुनाव तक जनता को बेवकूफ बनाना मुश्किल नहीं है. जब तक जनता को एहसास होगा कि यह कदम भी नोटबंदी की तरह बेवकूफाना था, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.

 

क्रिकेट की भाषा में बात करें, तो सरकार के पास शुरुआती ओवरों में रन बनाने के सभी मौके मौजूद थे. उस वक्त सरकार ने रन नहीं बनाए. अब, आखिरी ओवर में वह सिर्फ छक्के लगाकर 40 रन बनाना चाह रही है. क्या वे ऐसा कर पाएंगे, यह अंदाज़ा कोई भी लगा सकता है. लेकिन अगर दूसरी टीम, यानी विपक्ष, ने लापरवाही से खेला और नो-बॉलें फेंकीं, जैसा वे अतीत में करते रहे हैं, तो सरकार के लिए वह भी मुमकिन है.

 

बहरहाल, इस दौरान नवंबर में औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (IIP) धराशायी होकर 0.5 फीसदी पर पहुंच गया है, नोटबंदी के बाद बेरोज़गारी चार वर्ष के उच्चतम स्तर पर है, इसी के परिणामस्वरूप उद्योग निश्चित रूप से धीमे पड़ गए हैं, और 2018 में एक करोड़ 10 लाख नौकरियां घट गई हैं. सो, 'मोदी एंड कंपनी' तो बेचैन होगी ही.

 

यशवंत सिन्हा, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पूर्व नेता, केंद्रीय वित्तमंत्री (वर्ष 1998-2002) तथा विदेशमंत्री (2002-2004) रहे हैं.

 

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