राजीव मिश्रा : राष्ट्रभक्ति के नाम पर शिवसेना ने की शर्मसार कर देने वाली हरकत

राजीव मिश्रा : राष्ट्रभक्ति के नाम पर शिवसेना ने की शर्मसार कर देने वाली हरकत

नई दिल्ली:

महाराष्ट्र तक को ही अपनी ‘कर्मभूमि’ बनाए रखने वाली पार्टी शिवसेना का विरोध हो सकता है जायज हो लेकिन, उनका आज का काम घोर निंदनीय है। विरोध का अपना तरीका होता है। वह शांतिपूर्ण भी हो सकता था, लेकिन किसी का मानमर्दन, अस्वीकार है। मैंने महाराष्ट्र में कुछ वर्षों तक नौकरी की है। शिवसेना के तमाम क्रियाकलापों को करीब से देखा है। तमाम ऐसे स्थानीय नेता रहे जिनमें मैं मिला बातचीत की, चर्चा की तमाम मुद्दों पर, और कई बार लगा कि उनकी सोच अपनी जगह सही है, लेकिन राष्ट्रभक्ति के नाम पर आज की हरकत ने मुझे भी शर्मिंदा कर दिया।

मैं आईआईटी मुंबई के स्नातक इंजीनियर सुधींद्र कुलकर्णी का बहुत बड़ा प्रशंसक न रहा हूं और न ही हूं, क्योंकि उन्हें मैं बहुत ज्यादा जानता नहीं हूं। टीवी पर अकसर देखा करता था। आजकल बहुत दिनों से तो उन्हें देखा नहीं, पर आज फिर वह टीवी पर छाए हुए हैं।

आप तमाम लोगों को याद दिलाना चाहता हूं कि कुलकर्णी साहब बीजेपी के सांसद रहे हैं और संसद में नोटों की गड्डियां उड़ाने वाले कांड में इनका नाम भी आया था। 2008 के इस मामले को हम और आप 'कैश फॉर वोट' के नाम से जानते हैं। कांग्रेस की सरकार पर अपने पक्ष में वोटिंग करने के लिए सांसदों को खरीदने का आरोप संसद में नोट लहराने वाले सांसदों ने लगाया था। उन्होंने एक स्टिंग करने का दावा भी किया जो तमाम टीवी चैनलों में चला भी।

कहते हैं कि स्टिंग ऑपरेशन के पीछे भी इन्हीं कुलकर्णी साहब का दिमाग था। बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के भाषण भी कुलकर्णी लिखा करते थे। वैसे कैश फॉर वोट के मामले की जांच के लिए बनी संसदीय समिति को रिश्वत देने का ठोस सबूत तो नहीं मिला, लेकिन 2009 में इस मामले को पुलिस जांच के लिए सौंप दिया गया। 2011 में कुलकर्णी को गिरफ्तार भी किया गया था।

मुझे आज भी कुलकर्णी का एक टीवी चैनल पर दिया गया इंटरव्यू याद है जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि संसद में हो रहे ऐसे किसी काम को उजागर करने के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़े तो वह तैयार हैं। उनके हाव-भाव पूरी निष्ठा दर्शा रहे थे। हो सकता है, यह मेरा नजरिया हो, लेकिन मुझे ऐसा ही प्रतीत हुआ था।

आज शिवसेना ने जो किया, कमजोर दिल का आदमी या तो उस कार्यक्रम जाता ही नहीं या फिर शाम तक इंतजार के बाद इतना साहस बचा पाता कि उद्दंड लोगों के भय के बीच वही काम करता जिसकी योजना रही हो। लेकिन, सुधींद्र कुलकर्णी ने मेरी सोच को सही साबित करते हुए अपने संकल्प को पूरा किया यानी पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की किताब के विमोचन कार्यक्रम को मुंबई में संपन्न कराया। अपने मनोबल के सहारे कुलकर्णी साहब ने वाकई पूरी शिवसेना को करारा जवाब दिया।

मुझे आज कुलकर्णी का वह बयान भी याद आया जब उन्होंने कैस फॉर वोट कांड पर कहा था कि उन्होंने केवल विसिल ब्लोअर की भूमिका अदा की है। और तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कदमों और राय से इतर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर इन नेताओं का मकसद घूस लेना होता, तो वे स्टिंग नहीं करवाते। इस फैसले के बाद तिहाड़ जेल भेजे गए कुलकर्णी बाहर आ गए। फिर उनके इस कदम ने उन्हें विजेता के रूप में प्रस्तुत किया है। मैं कुलकर्णी जी का कायल हो गया।

शिवसेना ने कुछ ही दिन पहले पाकिस्तानी गज़ल गायक गुलाम अली का कार्यक्रम रद्द करने पर मजबूर कर दिया था। महाराष्ट्र की सरकार तब भी नाकाम साबित हुई थी और आज भी नाकाम रही। सरकार में शिवसेना की भी भागीदारी है और कार्यक्रम को मंजूरी मिलने के बाद पार्टी का ऐसा रुख सिर्फ यही दिखा रहा है कि पार्टी बीजेपी से अपना स्वार्थ साधने में लगी है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी से मिली हार के बाद (ज्यादा सीटें न पाने को मैं हार कह रहा हूं) शिवसेना इस प्रकार की हरकत कर रही है जिससे बीजेपी की सरकार को असमंस की स्थिति का सामना करना पड़े। यही नहीं, केंद्र में पीएम नरेंद्र मोदी पर आजकल शिवसेना खूब हमले कर रही है। यह वही पीएम मोदी हैं जिन्हें पार्टी सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे काफी पसंद किया करते थे और पार्टी ने हमेशा जिनका साथ दिया। ऐसे तमाम मौके आए हैं जब शिवसेना, राज्य और खास तौर पर मुंबई में अपने को सरकार से ऊपर की हस्ती साबित करने का प्रयास करती रही है।

आज वह वाकया बताना भी प्रासंगिक हो जाता है जब भारत और पाकिस्तान के बीच मैच के लिए बीसीसीआई के अधिकारियों को शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे से मुलाकात कर मैच कराने की अनुमति मांगनी पड़ी थी। कहा जाता है कि उनसे अनुमति मिलने के बाद यह मैच हो पाया था। तब भी यह देश और राज्य सरकार के लिए शर्मिंदगी का विषय था और आज भी है। सवाल तो तब यही मेरे ज़हन में उठा कि यदि मैच गलत था तो क्यों इजाजत दी। फिर बीसीसीआई वाले क्यों इजाजत लेने गए थे। क्या ठाकरे साहब सरकार थे।

कुलकर्णी ने भी यही गलती की कि वे 'इजाजत' लेने गए थे और इजाजत नहीं मिली। वे बता रहे हैं कि कार्यक्रम के एक दिन पहले वह उनसे मिलने गए थे और चर्चा की थी। कुलकर्णी जी तो पहले ही जानते हैं कि शिवसेना का विरोध का तरीका क्या रहता है। आपको याद दिलाते हैं शाहरुख खान की फिल्म का जिस प्रकार विरोध किया गया था और वही एक समय था जब सरकार ने अपनी मंशा के साथ-साथ जमीन पर भी यह दिखाया कि वह जो चाहे करवा सकती है और कानून से बड़ा कोई नहीं है। फिल्म रिलीज भी हुई और चली भी। शिवसेना की सोच की करारी हार हुई थी।

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मेरा तो मानना साफ है कि यदि सरकार की इच्छाशक्ति होती तो यह देश को शर्मसार करने वाली वारदात नहीं हो पाती। लेकिन राज्य की देवेंद्र फड़णवीस सरकार भले ही घटना के बाद लम्बी बातें करे लेकिन जमीन पर वह नाकाम ही साबित हुई है।