पीएनबी घोटाले के तार कहां-कहां तक फैले?

15 फरवरी को सीबीआई की ओर से दर्ज दूसरी एफ़आईआर में कहा गया है कि मेहुल चौकसी ने 143 एलओयू के ज़रिए 4,887 करोड़ रुपए का चूना लगाया है. मेहुल चौकसी गीतांजलि जेम्स लिमिटेड का प्रमुख है. मेहुल चौकसी कहां है, उससे पूछताछ कहां हो रही है, उसे बचाने में कौन लगा है.

पीएनबी घोटाले के तार कहां-कहां तक फैले?

नीरव मोदी (फाइल फोटो)

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि दावोस में प्रधानमंत्री के साथ नीरव मोदी की तस्वीर के लिए सीआईआई ज़िम्मेदार है, क्योंकि उन्होंने ही फोटो सेशन का आयोजन किया था. हमने सीआईआई से पूछने का बहुत प्रयास किया. हमारे सहयोगी हिमांशु शेखर की कोशिशें नाकाम रहीं. जवाब यही मिला कि मामला कोर्ट में है. हमें लिखित या मौखिक रूप से बोलने के लिए मना किया गया है. अब बताइये नीरव मोदी के कवरेज में हर जगह वो तस्वीर चल रही है, प्रधानमंत्री पर सवाल उठ रहे हैं मगर उद्योगों की संस्था यह बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है कि फोटो सेशन में नीरव मोदी कैसे पहुंचा. क्या सीआईआई की जवाबदेही नहीं बनती है कि वे इस मामले में कुछ कहे, क्या जय शाह के मामले की तरह अदालत से कोई रोक लगी है कि सीआईआई बोल नहीं रही है. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 15 फरवरी के प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि 'वो प्रधानमंत्री के डेलीगेशन का हिस्सा नहीं थे... वो अपने आप वहां पहुंचे... वी सीआईआई के ज्वाइंट फोटोग्राफ़ में थे तो इससे प्रधानमंत्री का क्या लेना देना... मैं कह रहा हूं कि नीरव मोदी की प्रधानमंत्री से कोई बात नहीं हुई...'

फोटो से संबंध कायम करने की राजनीति उनकी है जो नेहरू की बहनों के साथ की तस्वीर को गर्लफ्रैंड बनाकर ट्वीट कर रहे थे. फोटो लेकर उसमें घेरा बनाकर राजनीति करना और वायरल करना इस काम में कौन आगे रहा है, बताने की ज़रूरत नहीं है. यह बात सही है कि फोटो किसी की भी किसी के साथ हो सकती है मगर यह पूछा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के साथ फोटो खिंचाना, वो भी एक सीमित स्पेस में, क्या सबके लिए आसान है. प्रधानमंत्री किसी सामाजिक या रैली में तो नहीं थे, उद्योगपतियों के साथ थे. फिर सीआईआई क्यों नहीं जवाब दे रही है. पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने भी इस सवाल को और भी बारीक नज़र से देखा है.

प्रेस कांफ्रेंस में जो सवाल उठाए जा रहे हैं वो शोर पैदा करने के लिए ज़्यादा लगते हैं, जवाब देने के लिए कम. ख़बरों में यह सूचना ठेली गई कि 5000 करोड़ से अधिक की संपत्ति बरामद हो गई. तो इन मामलों के जानकारों ने कहा कि नीरव मोदी का खेल ही 10 रुपये के माल को 500 रुपए का बता कर बेचने का है. क्या हमारी जांच एजेंसियों ने 5000 करोड़ का ही माल पकड़ा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि सारा माल ही 100 करोड़ का हो. नीरव मोदी अभी तक जांच एजेंसियों की गिरफ्त में नहीं आया है. प्रधानमंत्री के हमारे मेहुल भाई भी अभी तक गिरफ्त में नहीं आए हैं जिनकी कंपनी पर 4,886 करोड़ का चूना लगाने का आरोप है. दुकानों में छापे पड़ रहे हैं. दुकानदार का ही पता नहीं है. पंजाब नेशनल बैंक ने अपनी तरफ़ से नहीं कहा है कि उसे 5000 करोड़ मिल गए हैं. अख़बारों की हेडलाइन मैनेज हो चुकी है. बिना किसी आधार के ख़बर छप गई कि 5000 करोड़ बरामद कर लिए गए. यह सूचना भी अपनी जगह यथावत है कि इस घोटाले का एक चरम बिंदु 2017 में भी पहुंचता है जब गीतांजलि जेम्स लिमिटेड क़रीब 5000 करोड़ की निकासी के लिए लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग यानी एलओयू हासिल करती है.

15 फरवरी को सीबीआई की ओर से दर्ज दूसरी एफ़आईआर में कहा गया है कि मेहुल चौकसी ने 143 एलओयू के ज़रिए 4,887 करोड़ रुपए का चूना लगाया है. मेहुल चौकसी गीतांजलि जेम्स लिमिटेड का प्रमुख है. मेहुल चौकसी कहां है, उससे पूछताछ कहां हो रही है, उसे बचाने में कौन लगा है.

बैंक जगत के कर्मचारी बार बार यह मैसेज कर रहे हैं कि इतने छोटे स्तर के कर्मचारियों से इतना बड़ा घोटाला संभव नहीं था. हम लोग दस करोड़ का लोन तक नहीं दे सकते हैं. हज़ारों करोड़ का लोन बिना बड़े स्तर के अधिकारियों की मिलिभगत के हो ही नहीं सकता. सारी जानकारी सूत्रों के हवाले से आ रही है, कोई इस पर मुकम्मल जानकारी नहीं दे रहा है, बस नीरव मोदी किसका किरायेदार था, किसने उससे हीरा ख़रीदा, इन सब बातों से जनता को बहलाया जा रहा है.

रक्षा मंत्री को यह बताने के लिए आना पड़ा कि अभिषेक मनु सिंघवी की पत्नी ने डेढ़ करोड़ का हीरा ख़रीदा है. क्या अब वे यह भी बताने वाली हैं कि इतने सालों में किस किस ने हीरा ख़रीदा. क्या वो इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि उनकी पार्टी के बड़े नेताओं ने वहां से हीरा नहीं ख़रीदा या नेताओं के बच्चे वहां काम नहीं करते थे. बेटी और बीवी के बहाने रक्षा मंत्री क्या साबित करना चाहती हैं. वैसे अब जब पता चल रहा है कि नीरव मोदी नाम के फ्रॉड ने 10 रुपये का हीरा 200 में बेचा है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि सारे ख़रीदार खुद ही रोते हुए बाहर आ जाएंगे. जिनके यहां शादियों में इन लोगों ने हीरे का सेट तोहफे में दिया होगा अब वे भी रो रहे होंगे. वैसे अगर निर्मला सीतारमण प्रेस कांफ्रेंस करने आई थीं तो उन्हें यह बताकर जाना चाहिए था कि अगस्त 2016 में रजिस्ट्रार ऑफ़ कंपनीज़ ने व्हिसल ब्लोअर की शिकायत को क्यों निरस्त कर दिया था. जबकि वो शिकायत पीएमओ ने फॉर्वर्ड की थी. वो दो बातें बता दें... क्या जब कोई शिकायत करता है तो उसकी जांच और निरस्त करने का फ़ैसला कोई क्लर्क लेता है या कोई अधिकारी लेता है, किस आधार पर फ़ैसला होता है, वे खुद भी कारपोरेट मामलों के मंत्री रही हैं.

यही नहीं संतोष श्रीवास्तव ने 2013 में गीतांजलि लिमिटेड से इस्तीफ़ा दिया और शिकायतें कीं तो मेहुल चौकसी ने बुलाकर धमकी दी. उनकी सैलरी का बकाया आज तक नहीं दिया. फ़र्ज़ी केस किए जिसमें संतोष बरी हो गए. आर्थिक अपराध शाखा ने अपनी जांच में एक भी आरोप सही नहीं पाया.

इस बीच मुंबई में नीरव मोदी के घर के अलावा सूरत के तीन और दिल्ली के एक ठिकाने पर प्रवर्तन निदेशालय के छापे पड़े हैं. उधर सीबीआई ने नीरव मोदी की कंपनी के दूसरे चीफ़ फाइनेंशियल ऑफ़िसर रवि गुप्ता को भी पूछताछ के लिए समन किया. कंपनी के एक और CFO विपुल अंबानी से सीबीआई रविवार से पूछताछ कर रही है. बैंक के कुछ निलंबित अधिकारियों से भी सीबीआई ने पूछताछ की है. पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के केंद्र में रही मुंबई की ब्रैडी हाउस ब्रांच को पहले सील कर दिया गया लेकिन बाद में सीबीआई अधिकारी सील खोलकर जांच के लिए ब्रांच के अंदर गए. कई बैंक अधिकारियों को भी वहां जांच और पूछताछ के लिए बुलाया गया. इसी ब्रांच से 11,400 करोड़ के इस घोटाले की बुनियाद पड़ी. इस घोटाले का एक मुख्य आरोपी गोकुलनाथ शेट्टी इसी ब्रांच का डिप्टी मैनेजर था जो अब सीबीआई की हिरासत में है. आरोप है कि गोकुलनाथ शेट्टी की मदद से ही लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग जारी किए गए जिनकी मदद से नीरव मोदी के लिए विदेशों में दूसरे बैंकों की गारंटी पंजाब नेशनल बैंक ने ली.

इस घोटाले को कैसे अंजाम दिया गया और इसमें कुल कितने लोगों की साठगांठ थी इसे लेकर अभी अलग अलग स्तरों पर कयास ही चल रहे हैं. Live Mint में तमल बंद्योपाध्याय ने अपनी रिपोर्ट में इस घोटाले को समझाने की कोशिश की है. पहले SWIFT को समझिए यानी Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunications. एक ऐसी व्यवस्था जिससे दुनिया भर के बैंक आपस में एक कोड सिस्टम के ज़रिए वित्तीय लेनदेन से जुड़ी सूचना और निर्देशों का सुरक्षित आदान-प्रदान करते हैं. तमल बंद्योपाध्याय अपने लेख में कहते हैं कि कि SWIFT के ज़रिए किसी बैंक को धराशायी करने के लिए कम से कम तीन अधिकारियों की ज़रूरत होती है. मेकर, चेकर और वेरिफ़ायर. मेकर वो होता है जो सिस्टम में SWIFT से जुड़ा मैसेज डालता है, चेकर इसकी जांच करता है और तीसरी स्टेज पर वेरिफ़ायर आता है जो मैसेज की जांच से संतुष्ट होने के बाद वेरिफाई करता है. लेकिन तीन ही काफ़ी नहीं हैं. क्योंकि वित्तीय लेनदेन के लिए SWIFT मैसेज जब विदेश में किसी बैंक को भेजा जाता है तो वो बैंक लोन को कन्फर्म करने के लिए इस मैसेज को वापस पहले बैंक में भेजता है. पहले बैंक में ये मैसेज उस व्यक्ति के पास जाता है तो मेकर, चेकर और वेरीफ़ायर से अलग होता है. ये मैसेज एक सिक्योर्ड रूम में आता है और एक अलग प्रिंटर पर प्रिंट होता है. इस रूम में जाने की इजाज़त बहुत ही कम लोगों को होती है. तो सवाल ये उठता है कि क्या ब्रैडी हाउस ब्रांच में गोकुलनाथ शेट्टी ने ये चारों भूमिकाएं निभाईं? क्या ऐसा हो सकता है? जानकारों का कहना है कि ये संभव नहीं है. इस मामले में कई और बड़े लोगों की निश्चित ही भूमिका होगी जो आगे की जांच में सामने आएगी. शीला भट्ट माहिर पत्रकार हैं, उन्होंने 1980 से 1997 तक यानी 17 साल हीरा कारोबार की रिपोर्ट की है. शीलाजी ने संडे गार्डियन अख़बार में एक रिपोर्ट लिखी है. उस रिपोर्ट के एक हिस्से का अनुवाद कर रहा हूं...

'सूरत में एक बड़ा हीरा कारोबारी पिछले छह महीने से 4000 करोड़ से अधिक के क़र्ज़ पर कोई ब्याज नहीं दे रहा है. उसने यह लोन प्राइवेट बैंक से लिए हैं. बैंक की सांस अटकी हुई है कि कहीं वो दुकान बंद कर भाग ना जाए. यह वही आदमी है जिसने कुछ साल पहले अपने सभी कर्मचारियों को कार तोहफ़े में दी थी.

इस कहानी को पढ़ा तो हम भी सहम गए... हमने भी एक ऐसे हीरा व्यापारी की कहानी दिखाई थी. क्या वही हीरा व्यापारी है जिसके बारे में शीला भट्ट इशारा कर रही हैं. जब उसने कार गिफ्ट की थी तब मीडिया में उसकी धूम मच गई थी. क्या भारतीय कारोबारी बग़ैर चोरी के सफलता का मुकाम हासिल नहीं कर सकते हैं? शीला भट्ट से एक हीरा व्यापारी ने कहा है कि पचास साल से हीरे का कारोबार 90 फीसदी ब्लैक मनी पर चलता है. ज़ाहिर है आज भी चल ही रहा होगा... उनके लेख का एक और हिस्सा है, 'बड़े हीरा कारोबारियों को पता था कि मेहुल और नीरव का धंधा चौपट होने वाला है लेकिन उन्हें भी पता नहीं था कि वो लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग के सहारे ये खेल करेंगे. माल की क़ीमत ज़्यादा बताना, बिल में कम दिखाना, स्मगलिंग का माल ख़रीदना बेचना, टैक्स चोरी करना यह सब तो चलता है मगर लेटर ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग का आइडिया किसी को नहीं था. इन हीरा कारोबारियों को भी समझ नहीं आ रहा है कि नीरव और मेहुल ने इतने लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग कैसे हासिल कर लिए.'

इस घटना ने हीरा व्यापार को ही संदेह के घेरे में ला दिया है. इसकी चमक के पीछे का अंधेरा बता रहा है कि हम सब कितने भोले हैं. चमक दिखा कर चकमा देने वाले अभी भी सारा माल बटोर ले जा रहे हैं. इस बीच क्विंट हिन्दी के संपादकीय निदेशक और वरिष्ठ पत्रकार संजय पुगलिया ने ट्वीट किया है कि 'नीरव मोदी ने अपने बच्चों का मुंबई के स्कूलों से छह महीने पहले ही नाम कटवा लिया था जब स्कूल सत्र के बीच में ही थे. बच्चे अपनी मां के साथ अमेरिका चले गए. कारोबारी परिवार हैरान थे कि ऐसा क्यों हुआ. अब उन्हें वजह पता लगी है.'

तो भागने की पूरी तैयारी थी... हमारे सहयोगी मानस प्रताप सिंह ने जानकारी दी है कि नीरव मोदी मार्च 2017 तक भारतीय नागरिक था लेकिन नवंबर 2017 से वो एनआरआई है और उसने अपना पता दुबई में बुर्ज ख़लीफ़ा का दिया है.

मेहुल चौकसी कहां हैं, क्यों नहीं पकड़ में आए हैं, बाकी लोगों से पूछताछ हो रही है, गिरप्तारी नहीं हुई है. बैंक के कर्मचारी तो तुरंत गिरफ्तार हो गए हैं. इस पर क़ानून मंत्री, मानव संसाधन मंत्री, रक्षा मंत्री के बाद कृषि कल्याण मंत्री प्रेस कांफ्रेंस करने वाले हैं. पता चला कि सारा मंत्रिमंडल प्रेस कांफ्रेंस कर गया मगर नीरव और मेहुल नहीं आए.

इस बीच केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी ने पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुलाया... ख़ास बात ये है कि इसी सीवीसी ने बीते तीन साल में तीन बार बैंकिंग में सतर्कता बरतने के लिए पंजाब नेशनल बैंक को अवॉर्ड दिये हैं. इनमे से दो अवॉर्ड पिछले ही साल पंजाब नेशनल बैंक को दिए गए जिस साल पीएनबी ने नीरव मोदी और उनके परिवार को 293 एलओयू जारी किए. इस सीवीसी से ही पूछा जाना चाहिए कि वो सतर्कता पुरस्कार कैसे देता है. पुरस्कार देने की इसकी प्रक्रिया क्या है. इस घटना से सतर्कता आयोग की छवि को कितना धक्का पहुंचा है, बशर्ते इस धक्के से किसी को फर्क पड़ता हो.

ख़ुद केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी ने ये अवॉर्ड अपने हाथों से दिए. अब वही उनसे पूछ रहे हैं कि गड़बड़ी क्यों और कैसे हो गई. उन्हें खुद ही जनता के सामने आकर अपनी बात बतानी चाहिए.

कारोबारी विक्रम कोठारी की कंपनी रोटोमैक की बनाई कलम ख़रीद कर हम लोग सच लिखते हैं मगर कंपनी वाले विक्रम कोठारी 3695 करोड़ नहीं चुका पा रहे हैं. इन्होंने इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ़ इंडिया, बैंक ऑफ़ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज़ बैंक, यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया से लोन लिया था. इन बैंकों ने नियमों को ताक पर रखकर विक्रम कोठारी को लोन दिया. लेकिन अब कोठारी न तो ब्याज चुका रहे हैं ना मूल. फरवरी 2017 में लोन चुकाने में नाकाम रहने पर बैंकों ने उन्हें विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया यानी जो जानबूझकर लोन चुकाने में असमर्थता जताए. इसके बाद कोठारी और उनके परिवार के लोगों की कई संपत्तियों को बैंकों ने पिछले साल नीलाम करने की कार्रवाई शुरू की ताकि अपने बकाए का कुछ हिस्सा वसूल किया जा सके. कानपुर के माल रोड के सिटी सेंटर में रोटोमैक कंपनी के ऑफ़िस पर कई दिनों से ताला बंद है. बैंक ऑफ़ बड़ौदा की शिकायत के बाद सीबीआई ने उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दायर की है और कानपुर में उनके तीन ठिकानों पर छापे मारे हैं.

विक्रम कोठारी, उनकी पत्नी और बेटे से सीबीआई के अफ़सर पूछताछ कर रहे हैं. इससे पहले कहा गया था कि विक्रम कोठारी भी विदेश भाग गए हैं लेकिन रविवार रात उन्हें कानपुर में एक शादी समारोह में देखा गया. गबन को लेकर सवालों के जवाब में कोठारी ने कहा कि 'मैं देश छोड़कर भाग नहीं रहा हूं. कानपुर का रहनेवाला हूं और यहीं रहूंगा. भारत से बेहतर कोई देश नहीं है. उनके मुख मंडल से सुनकर मैं सहम गया. लोन लेकर गबन करने में भारत से बेहतर कोई देश नहीं है या वाकई भारत से बेहतर कोई देश नहीं है. दरअसल सबको पता है कि होना जाना कुछ नहीं है. ऐसे ही जांच वांच होती रहेगी बाद में सब रफा दफा. लोन न चुकाने के सवाल पर कोठारी ने कहा कि 'बैंक से लोन ज़रूर लिया है, लेकिन लोन न चुकता करने की बात ग़लत है. मेरा और बैंक का नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के अंदर केस चल रहा है.' उधर कोठारी के वकील का कहना है कि अगर कोई बैंक का लोन ना चुका पाए तो इसे फ्रॉड नहीं कहा जाना चाहिए, ये कोई अपराध नहीं है. एक जाना पहचाना पान मसाला ब्रांड पान पराग विक्रम कोठारी परिवार का ही है.

पकौड़ा प्रकरण के बाद नीरव मोदी प्रकरण ने लोगों की कल्पनाशीलता को जगा दिया है. वो मोदी को लेकर तरह-तरह का जोगीरा सारा रारा लिख रहे हैं. एक ने लिख भेजा है कि क़र्ज़ भी कितना अजब है, अमीरों का बढ़े तो देश छोड़ जाते हैं, गरीबों का बढ़े तो देह छोड़ जाते हैं. इस बीच ख़बर आई है कि घोटाले के उजागर होने के बाद गीतांजली जेम्स लिमिटेड की कंप्लायेंस अधिकारी पंखुड़ी वारंगे ने अंतरात्मा की आवाज़ पर और चीफ फाइनेंशियल अफसर चंद्रकांत करकरे ने बीमार पत्नी के नाम पर इस्तीफा दे दिया है. बिहार में इसी तरह का पिछले साल अगस्त में सृजन घोटाला सामने आया था. सृजन घोटाला भी बैंकिंग घोटाला था. 2013 में ही भारतीय रिज़र्व बैंक ने लिखा था कि सृजन के खाते की जांच हो मगर जांच नहीं हुई, घोटाला चलता रहा. अब जब घोटाला सामने आया तो मामला सीबीआई के पास गया. 6 महीने से सीबीआई जांच कर रही है मगर सृजन घोटाले के मुख्य आरोपी गिरफ्तार तक नहीं हुए हैं.

हमारे सहयोगी मनीष कुमार ने रिपोर्ट फाइल की है कि अभी तक सृजन घोटाले के मुख्य अभियुक्त प्रिया और अमित फरार हैं. सीबीआई ने अभी तक गिरफ्तारी के लिए वारंट तक नहीं लिया है. 1500 करोड़ के इस घोटाले को लेकर सीबीआई की यह रफ्तार है. सरकार की योजनाएं जब भागलपुर पहुंचती थीं तो ज़िलाधिकारी चेक काट कर भागलपुर के बैंक ऑफ बड़ौदा की शाखा को देते थे कि पैसा सृजन नाम की संस्था के खाते में जमा करा दिया जाए. वहां से पैसा निकलता था और लोगों में बंट जाता था. यह ऐसा घोटाला है अगर इसकी तेज़ी से जांच होती तो दूसरे राज्यों पर भी असर पड़ता मगर सब कुछ धीमी गति के समाचार की तरह बढ़ रहा है. बिहार में सरकार बदल गई है और सृजन घोटाले की बात धीमी पड़ गई है. 6 महीने में सीबीआई मुख्य अभियुक्त को गिरफ्तार न कर सके तो क्या कहा जाए जबकि सीबीआई अभी तक 5 चार्जशीट, 2 सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर कर चुकी है.

अभी तो जांच में तेज़ी आ रही है. दो तीन दिनों बाद जब मीडिया का फोकस बदलेगा तो पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले का हाल भी सृजन घोटाले के जैसा हो जाएगा. बिहार जैसे ग़रीब राज्य में कोई 1500 करोड़ लूट ले जाए और किसी को फर्क ही न पड़े तो ग़रीबों का भगवान ही मालिक है.


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