सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)।
नई दिल्ली: अक्सर लोकतंत्र में जनता यह सवाल पूछती है कि हमारे जो नेता हैं वे कितने काबिल और जिम्मेदार हैं। सियासत की शुरुआत का स्तर पंचायत स्तर पर होता है और उससे जुड़े हरियाणा सरकार के एक फैसले पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई। वह फैसला क्या था? वह फैसला था कि पंचायत चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग का दसवीं, जबकि दलित और महिला के लिए आठवीं पास होना जरूरी है। साथ ही बिजली का बिल बकाया न होने और घर में टॉयलेट होने की शर्त भी रखी गई है।
इसके खिलाफ दायर अपील का खारिज होना साबित करता है कि कोर्ट भी एक थमे और लचर लोकतंत्र के पक्ष में नहीं है। आजादी के सातवें दशक में छोटी ही सही, एक सीमा रेखा तो खींची ही जानी चाहिए। इससे न सिर्फ सियासत के स्तर में सुधार आएगा बल्कि समाज में शिक्षा और कुछ बुनियादी दायित्वों को लेकर जागरूकता भी आएगी।
इसका विरोध हम सिर्फ लोकतंत्र में वोट के अधिकार का हवाला देकर नहीं कर सकते, एक नेता के लिए अपने आप को वोटर की नज़रों में उसकी उम्मीदों की कसौटी पर खरा साबित करना जरूरी है। जातिवाद, क्षेत्रवाद और सांप्रदायिक मुद्दों से भरी राजनीति में रोजमर्रा के जिंदगी के मुद्दे अगर किसी के नेता बनने के लिए आवश्यक बन जाएं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
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