आप के अरविंद बनाम बीजेपी की किरण

नई दिल्ली:

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। क्या पता किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल के बीच किसी चैनल पर बहस हो भी जाए, लेकिन क्या हम सबको पता भी है कि हम इस बहस से क्या चाहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि बस इतना जांचना चाहते हों कि कौन कैसा बोलता है और अंत सब टीवी के एक मनोरंजक कार्यक्रम में बदलकर रह जाए। उम्मीद है आप मनोरंजन से ज्यादा कुछ इस बहस में ढूंढ़ रहे होंगे, लेकिन वह तो बाद की बात है पहले तो हम उस बहस को ही ढूंढ़ रहे हैं, जिसका पता नहीं है कि होगी भी या नहीं।

मंगलवार को नामांकन के लिए निकलने से पहले ट्वीट कर चुनावी चर्चाओं में सुगबुगाहट पैदा कर दी है। कहा कि किरण बेदी और उनके बीच सार्वजनिक बहस हो जाए। इसके बाद प्रतिक्रियाओं का मोर्चा संभाला बीजेपी के नेताओं ने। किरण बेदी ने कहा कि मैं डिबेट में नहीं काम कर दिखाने में यकीन करती हूं। बीजेपी किरण बेदी से बहस के लिए मना कर रही थी, लेकिन शाहनवाज़ ने कहा कि केजरीवाल पहले नूपुर शर्मा से बहस कर लें। इस बीच अरविंद केजरीवाल अपना नामांकन भरने के लिए निकलें तो तीन घंटे में सात किलोमीटर की दूरी तय नहीं कर सके। पांच किलोमीटर तक ही पहुंचे थे कि तीन बज गया और नामांकन नहीं कर सके।

पहली आईपीएस और पहला आईआरएस टाइप की सतही राजनीति के इस दौर में यह भी शायद पहला ही होगा कि कोई निकला गाजे बाजे के साथ और पर्चा भी नहीं भर पाया। नई दिल्ली सीट पर किरण बनाम केजरी के न होने का मीडयाई ग़म बहस की कल्पना से रोमांचित हो उठा। ट्वीटर पर दोनों के समर्थकों ने खूब बमबारी की है। दरअसल बहस की इस राजनीति की अपनी एक ट्रेजडी है, जो विदेश से आई है और देश में फंस गई है।

जब अमरीका में राष्ट्रपति का चुनाव होता है, हिंदुस्तान में ये सपना घर-घर पलने लगता है। साधो-शंभो देखो, अहा क्या बतियाते हैं ओबामा, वाह क्या लपेटा है रूमनी ने। काश कलियुगे कलि प्रथम चरणे, भूर्लोक जम्बू द्वीपे भारतवर्षे भरतखंडे आर्यावर्त में भी ऐसी बहस होती।

ट्वीट पुरातत्वेत्ता और आम आदमी पार्टी के प्रचारक कुमार विश्वास ने किरण बेदी का 2012 का ट्वीट निकाल दिया। उन ट्वीट्स में किरण बेदी ने कल्पना की थी कि ओबामा और रूमनी की तरह सोनिया और गडकरी की बहस होती।

अमरीका के टू पार्टी सिस्टम की नकल वाले इस देश में टू लीडर वाली डिबेट नहीं हो पा रही है। हम खुद को अमरीकी टीवी की इस बहस में अपने नेताओं का चेहरा देखने से नहीं रोक पाते। जबकि कई बार इधर उम्मीदवार होता है तो उधर का घोषित नहीं होता है और कई बार होते हुए भी बहस नहीं होती।

इस बार किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल को मुख्य उम्मीदवार के रूप में देखकर फिर से वह अमरीकी ट्रेजडी इंडिया में ड्रीम बन गई है। डिमांड बड़े नेता से बहस की होती है और सप्लाई दूसरी श्रेणी के नेताओं की होने लगती है।

86 फीसदी साक्षरता वाली दिल्ली में दो पढ़े लिखे बहस नहीं कर सकते, तो कहां करेंगे। मत भूलिएगा कि बहस की मांग के पीछे अपनी रणनीति है और राजनीति भी।

पर क्या इसी आमने-सामने की बहस के बगैर भारतीय राजनीति भूखी प्यासी है। जनता के बीच अलग-अलग जाकर अपनी बात कहने के सिस्टम में क्या बुराई है जो हम अमरीकी डिबेट चाहते हैं।

किरण बेदी ने पूर्वी दिल्ली के कृष्णा नगर में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। 1993 से इस सीट पर डाक्टर हर्षवर्धन जीतते रहे हैं। यहां की जनता डॉक्टर हर्षवर्धन को ज्यादा ही प्यार करती होगी, तभी उन्हें 2008 को छोड़ कभी 50 फीसदी से कम वोट नहीं मिले। 2008 में 45 प्रतिशत मिले थे। डॉक्टर हर्षवर्धन ने 2013 में कहा था कि आप यहां विधायक नहीं मुख्यमंत्री भी चुन रहे हैं। इस बार भी यही कहा, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किरण बेदी के लिए।

वहीं किरण बेदी ने कहा कि डाक्टर हर्षवर्धन को हमेशा तसल्ली होगी कि जो नया माली आया है, उसे पौधे लगाना आता है। बेदी ने कार्यकर्ताओं से कहा कि उन्होंने एक चैनल को बहुत अच्छा इंटरव्यू दिया है, तीन बार खुद ही तारीफ की और कहा कि देखना। वहां ज़ोरदार नारे डॉक्टर हर्षवर्धन के ही लगे। कार्यकर्ताओं ने मोदी के नारे तो लगाए मगर किरण बेदी के प्रति वैसा उत्साह नहीं दिखाया।

किरण बेदी की सभा के बाद विधानसभा के दूसरे हिस्से में अरविंद केजरीवाल की सभा हुई। अरविंद ने महंगाई से लेकर काले धन का सवाल उठाकर घेरा और कहा कि बीजेपी किरण बेदी को इसलिए लाई है, ताकि हार की जिम्मेदारी उन पर टाल सके। किरण बेदी टीवी में कहती हैं कि बिजली बिल से कोई समस्या नहीं है, तो अरविंद ने कहा कि बेदी जी लोगों के बीच जाकर तो देखो कि उनकी समस्या क्या है। मैं गलत तो नहीं कह रहा जी अरविंद का जुमला बना गया है।

मोदी बनाम राहुल की बहस से किनारा करने वाली कांग्रेस इस बार केजरीवाल बनाम किरण के बीच कूद गई है। अजय माकन ने हां कह दिया है। अगर केजरीवाल और किरण बेदी की बहस नहीं होती है, तो क्या सतीश उपाध्याय और अरविंदर सिंह लवली की हो सकती है। ये दोनों चुनाव भी नहीं लड़ रहे हैं। लवली का एक समर्थक तो उन्हें टिकट दिए जाने की मांग को लेकर टॉवर पर ही चढ़ गया।

वहीं सतीश उपाध्याय के समर्थक प्रदेश बीजेपी दफ्तर पहुंच गए, उनसे चुनाव लड़ने का आग्रह करने के लिए। समर्थकों ने नारे लगाए कि वे पैराशूट सीएम को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उपाध्याय ने कहा कि वे 70 सीटों से लड़ रहे हैं और न लड़ने का फैसला उनका है।

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वहीं मंगलवार को चुनाव आयोग ने अरविंद केजरीवाल को दूसरे दलों से पैसे लेकर वोट हमें देने वाले बयान पर नोटिस जारी किया है।