भारतीय शेयर बाजार में कोहराम, चीन के आर्थिक संकट का असर

भारतीय शेयर बाजार में कोहराम, चीन के आर्थिक संकट का असर

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

नई दिल्‍ली:

सोमवार सुबह जब सेंसेक्स खुलते ही 500 अंक के आस पास गिरा तो लोगों को लगा कि इतना तो कई बार गिर चुका है लेकिन जल्दी ही बाज़ार 800 के आंकड़े को पार करते हुए 1000 अंक तक जा गिरा। तब भी लगा कि बाज़ार जल्दी संभलेगा क्योंकि पिछले एक साल में 500,800 अंक गिर कर बाज़ार कब संभल जाता था किसी को पता भी नहीं चलता। लेकिन दोपहर पार करते करते सेंसेक्स तो लगा कि नशे में झूम रहा है। 1200 गिरा, 1500 गिरा, 1700 तक जा गिरा। बाज़ार के बंद होने तक 1625 अंकों की गिरावट दर्ज हो चुकी थी। 28000 पर या उसके पार चमकने वाला सेंसेक्स 25,635 अंकों पर जाकर बंद हो गया।

टीवी स्क्रीन पर गिरावट के लाल लाल ग्राफिक्स बनने लगे। छोटे मझोले और बड़े निवेशकों के सात लाख करोड़ एक दिन में हवा हो गए। 2007-08 की मंदी के दौर में ऐसी गिरावट देखी गई थी। 21 जनवरी 2008 को सेसेंक्स 2000 अंक गिर गया था। अक्टूबर 2008 के बाद भारतीय बाज़ार की सबसे बड़ी गिरावट है। निफ्टी भी 461.20 अंक नीचे गिरा और 7,838.75 पर जाकर बंद हुआ।

चीन के कारण सारे प्रमुख बाज़ार चित हो गए। जापान, हांगकांग जैसे एशिया के बाज़ारों में ज़्यादा गिरावट आई। दुनिया भर में चीन के बाद भारत के बाज़ारों में सबसे अधिक गिरावट देखी गई है। चीन की सरकार पिछले कुछ महीनों से अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जनता का पैसा डाल रही है। इसके बाद भी वो संभाल नहीं सकी। चीन मांग पैदा नहीं कर पा रहा है।

चीन का शंघाई कंपोजिट पिछले हफ्ते से गिरता चला आ रहा था। सोमवार को 8.49 प्रतिशत की गिरावट ने दुनिया में हड़कंप मचा दिया। 2007 के बाद चीन के बाज़ारों में ऐसी गिरावट देखी गई है। चीनी अधिकारी कई हफ्तों से अपने स्टाक को बचाने के लिए कंपनियों से कह रहे थे कि नए शेयर न लाएं और कंपनी के अधिकारी अपने शेयर न बेचें। केंद्रीय बैंक ने ब्याज़ दरों में खूब कटौती की ताकि लोग बैंकों से लोन लेकर खरीदारी कर सकें। फिर भी चीन के भीतर मांग नहीं बढ़ सकी। चीन के बाहर चीन के सामानों की मांग नहीं बढ़ सकी। नतीजा निर्यात गिरता जा रहा है। इसे बल देने के लिए चीन ने डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा युआन को कमज़ोर करना शुरू कर दिया ताकि चीनी सामान सस्ते हो जाएं और निर्यात बढ़ जाए। इसके बाद भी स्थिति नहीं बदली। चीनी कंपनियों का मुनाफा गिरता जा रहा था मगर विदेशी निवेश जारी रहा। ठीक जैसे इस वक्त भारत में हो रहा है। भारतीय कंपनियों का मुनाफा गिरता जा रहा है मगर निवेश के आने के दावे किये जा रहे हैं। भारत का निर्यात भी तेज़ी से नहीं बढ़ पा रहा है।

क्या वाकई भारत दावे से कह सकता है कि उसकी हालत चीन की तरह नहीं है। पर चीन में भी रियल इस्टेट की मांग घट गई है। भारत में भी लाखों फ्लैट के खरीदार नहीं हैं। रिजर्व बैंक के गर्वनर को कहना पड़ रहा है कि दाम घटाकर बेचिये तब भी फ्लैट नहीं बिक रहे हैं। चीन का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर लगातार गिरावट देख रहा है। भारत का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर भी मामूली सुधार और गिरावट के बीच ऊपर नीचे होते रहता है।

दुनिया देख रही थी कि चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ रही है। क्योंकि पूरी दुनिया के विकसित देशों की रफ्तार धीमी होती जा रही है। बल्कि 2008 की मंदी के पहले वाली गति आ ही नहीं सकी। क्या दुनिया स्वीकार करने लगी है कि चीन लंबे समय के लिए संकट का शिकार हो गया है। उसका बुलबुला अब फटने वाला है। क्या ये 2008 की मंदी जैसी स्थिति है या 1997 जैसी है जब एशिया के तमाम बाज़ार धाराशाही हो गए थे। इस वक्त मलेशिया और इंडोनेशिया की मुद्रा भी डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हो रहे हैं। भारत का रुपया तो दो साल में सबसे कमज़ोर दिख रहा है। गनीमत है कि चुनाव नहीं हो रहे हैं वर्ना रुपये की गिरावट को लेकर जिस तरह से राजनीतिक बयान दिये गए उसका हिसाब होने लगे तो अर्थशास्त्रियों को अपना विषय छोड़कर फिज़िकल ट्रेनिंग का कोर्स करना पड़ जाए। सुषमा स्वराज का एक पुराना बयान चैनलों पर चल रहा है कि जैसे जैसे करेंसी गिरती है वैसे वैसे देश की प्रतिष्ठा गिरती है।

28 अगस्त 2013 को एक डालर जब 69 रुपये का हो गया था तब कहा गया कि भारत की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है, दो साल बाद गिरते गिरते 66 रुपये 44 पैसे पर पहुंचा तो कहा जा रहा है सब कंट्रोल में है। डीएलएफ, वेदांता, टाटा स्टील, गेल के शेयरों में आई गिरावट बता रही है कि किन सेक्टरों की हालत खराब है। भारत के बाज़ार भी मांग के लिए तरस रहे हैं। दुनिया भर में तेल के दाम गिरते ही जा रहे हैं। फिर भी इसका लाभ दुनिया की अर्थव्यवस्था को क्यों नहीं मिल रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन ने कहा कि अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत कहीं बेहतर स्थिति में है। देश को घरेलु स्थिति और मज़बूत करनी होगी। देश के पास पर्याप्त विदेशी विदेशी मुद्रा भंडार है और ज़रूरत पड़ी तो रुपये को संभालने के लिए इसके इस्तेमाल से नहीं हिचकिचाएंगे। गर्वनर को भरोसा है कि भारत निवेशकों की निगाह में बना रहेगा। वैसे विदेशी निवेशकों ने अगस्त के महीने में पांच हज़ार करोड़ से ज्यादा रुपया भारत से निकाल लिया है।

पिछले कुछ दिनों से वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयानों को देखें तो वैश्विक संकट के संकेत मिल रहे थे। रेटिंग एजेंसियों ने 2015-16 के लिए भारत की जीडीपी की संभावित दरों में कटौती कर दी है इसके बाद भी वित्त मंत्री कह रहे हैं कि 8 से 10 फीसदी का ग्रोट रेट हासिल करना संभव है। मनमोहन सिंह भी कई साल तक कहते रहे कि डबल डिजिट में पहुंचेंगे लेकिन नहीं पहुंच पाये।

कोलकाता में इंडियन चेंबर आफ कॉमर्स के कार्यक्रम में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि हमें बहुत ज़्यादा विपरीत वैश्विक परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ रहा है। इसलिए हम 8 से 10 फीसदी की विकास दर हासिल कर सकते हैं। एक दिन बाद सोमवार को बाज़ार के गिरने पर प्रतिक्रिया देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि बाज़ार में जो गिरावट आई है वो बाहरी कारण हैं। एक भी घरेलु कारण से बाज़ार में गिरावट नहीं आई है। यह अस्थायी दौर है। हम इस पर नज़र रखे हुए हैं। भारत को अपनी अर्थव्यवस्था मज़बूत करनी होगी।

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कोई नहीं जानता कि यह गिरावट कहां जाकर रुकेगी। यह गिरावट आज की नहीं है। पिछले कई महीनों से आ रही थी। भारत की तरफ से कहा जा रहा है कि हम मज़बूत स्थिति में हैं। मुद्रास्फीति, कर संग्रह ठीक है। भारतीय रुपया दुनिया में काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों की एक धारा कहने लगी है कि 2008 की मंदी से पहले की स्थिति में अब लौटना संभव नहीं है। क्या ये ग्लोबल संकट है, क्या वाकई इस संकट से भारत प्रभावित नहीं है। कहा जा रहा है कि भारत मज़बूत स्थिति में है लेकिन यह भी तो दिख रहा है कि दुनिया की बड़ी और महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। क्या चीन का नुकसान भारत के लिए मौका है।