नए स्‍मार्ट सिटी बनाना कितना कारगर?

नई दिल्‍ली:

स्मार्ट तो ठीक है लेकिन 'ढेरे स्मार्ट' होना ठीक नहीं माना जाता है। मोहल्ले से लेकर क्लास रूम में कई बार टोका गया होगा। अजीब शब्द है स्मार्ट। अच्छाई भी झलकती है और चालूपना भी। भारत की आत्मा गांवों में बसती है। सुनते सुनते अब सुनने का टाइम आ गया है कि इस आत्मा को अब गांवों से उठकर शहरों में लाया जाएगा। बड़ी संख्या में ये आत्मा शहर आएगी तो ढंग के शहर होने चाहिए इसलिए स्मार्ट सिटी बसाया जा रहा है। एक नहीं सौ। जो बसे हुए अनस्मार्ट तरीके से उन्हें भी स्मार्ट बनाया जाएगा। कुछ सलून के नाम भी होते हैं। जैसे वसीम स्मार्ट सलून। उसी तरह स्मार्ट शहर।

भारत सरकार 100 नए स्मार्ट सिटी बनाने जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट ने इस परियोजना को मंज़ूरी दे दी है। शहरों के बुनियादी सुधार के लिए बने जेएनयूआरएम योजना की जगह नई योजना आ गई है जिसका अंग्रेजी नाम है अटल मिशन फॉर रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉरमेशन लेकिन ये संक्षेप में हिन्दी संस्कृत के अमृत जैसा सुनाई देता है। इसके तहत 100 नए और 500 पुराने शहरों को स्मार्ट बनाया जाएगा। इस योजना के लिए एक लाख करोड़ का बजट बनाया गया है।

2005 में जेएनयूआरएम शुरू हुई थी जिसके तहत शहरों के बुनियादी ढांचों में सुधार करने का लक्ष्य तय किया गया था। कई जगह अच्छा काम हुआ है लेकिन कई जगहों में काम के नाम पर पैसा तमाम ही हुआ है। 2012 में सीएजी ने रिपोर्ट दी थी कि जेएनयूआरम के तहत मंज़ूर 1298 योजनाओं में से 231 ही पूरी हुई हैं। इस योजना के तहत 65 हज़ार करोड़ से ज्यादा का बजट दिया गया लेकिन सरकार ने आधा से ज्यादा पैसा रिलीज ही नहीं किया। नई अमृत योजना के तहत हर राज्य में कम से कम एक स्मार्ट शहर होगा। जिस शहर या जगह का नाम स्मार्ट सिटी में आएगा उसे पांच साल के लिए हर साल 100 करोड़ की मदद मिलेगी।

पूरी दुनिया में बहस है कि स्मार्ट सिटी क्या है और किसके लिए है। चीन, कोरिया और सऊदी में स्मार्ट सिटी बनकर तैयार भी हो चुका है और कई देशों में जैसे रियो डि जनेरियो, मैड्रि‍ड टाइप के पुराने शहरों को स्मार्ट किया जा रहा है। 2008 में आईबीएम कंपनी ने स्मार्ट सिटी की अवधारणा विकसित की थी लेकिन अब कई आई और फाइनांस कंपनियां स्मार्ट सिटी बनाने में शामिल हैं। ये स्मार्ट सिटी मेक इन इंडिया से नहीं बल्कि विदेशी कंपनियों के सहयोग से बनेगी।

इस जनवरी जब अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा भारत आए तो यह करार हुआ कि अमेरिका भारत में तीन शहरों को स्मार्ट बनाने में मदद करेगा। तीन स्मार्ट शहर बनाने में मदद करेगा। इलाहाबाद, अजमेर और विशाखापत्तनम। 2014-15 के बजट में स्मार्ट सिटी के करीब 7000 करोड़ की राशि तय करते हुए कहा था कि स्मार्ट शहर बड़े शहरों के सैटेलाइट की तरह बसेंगे। जैसे मुंबई के पास नवी मुंबई है और दिल्ली के पास ग्रेटर नोएडा। इस तरह कई मल्टी नेशनल कंपनियां अब स्मार्ट सिटी बनाने के काम में लगी हैं। हमारे देसी रियल इस्टेट वालों को मौका मिलेगा या नहीं यह सब बाद में पता चलेगा। यूपीए सरकार के समय केरल के कोच्‍ची, गुजरात के अहमदाबाद, महाराष्ट्र के औरंगाबाद, हरियाणा के मनेसर, राजस्थान के खुशकेड़ा, आंध्रप्रदेश के कृष्णापट्टन, तमिलनाडु के पोन्नेरी और कर्नाटक के तुमकुर में स्मार्ट सिटी की योजना लॉन्‍च की गई थी।

2012 में कमलनाथ ने ऐलान किया था कि हर राज्य में दो स्मार्ट सिटी बनाएंगे। इसके लिए यूपीए ने जेएनएनयूआरएम के तहत स्मार्ट सिटी के लिए 2013 के बजट में 18500 करोड़ की राशि तय की थी।

दो साल में यूपीए क्या कर पाई पता नहीं लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी 100 स्मार्ट सिटी बनाने की योजना पर आगे बढ़ने जा रहे हैं। सरकार एक तरफ गांवों को डिजिटल बनाने की तैयारी में लगी है तो दूसरी तरफ गांव से शहर आने वालों के लिए डिजिटल शहर बना रही है। ये सारे लोग जो भारत की शहरी आबादी को 70 फीसदी कर देंगे मोबाइल सेंसर के ज़रिये स्मार्ट सिटी में रहने योग्य होंगे या नहीं ये सवाल तो किसी राजनीतिक दल को पूछना चाहिए। शहर अपने आप में एक विषय है। इसकी पढ़ाई करने वाले विद्वान पूछ रहे हैं कि दिल्ली, मुंबई में सत्तर फीसदी लोग औसत आय वाले होते हैं या गरीब होते हैं। ज्यादतर लोग गलियों के कोनों में अपनी दुकानें लगा लेते हैं, पटरियों पर चाट, चि‍निया बादाम बेच लेते हैं, पेड़ के नीचे मारुति कार के बोनट पर जूते से लेकर कपड़ा बेच लेते हैं और आराम से गर्मी के दिनों में बेल तो सर्दी के दिनों में अंडा बेचकर जी लेते हैं। क्या इन लोगों के लिए स्मार्ट सिटी में कोई जगह होगी। किसी को इसके बारे में ठीक से पता नहीं है और न ही हमारे राजनीतिक दलों की इस पर कोई समझ बनी है।

वैसे हमारे बिल्डरगण हर साल इस तरह की सिटी लॉन्‍च करते रहते हैं। अब तो बीस पचीस हज़ार की आबादी वाले इन प्राइवेट शहरों में थाने से लेकर स्कूल तक बनने लगे हैं। आपने देखा होगा कि बिल्डरों की सिटी के बाहर कपड़ा प्रेस करने वाला से लेकर सब्जी वाला दुकान लगाकर पेट पालता है। क्या स्मार्ट सिटी में उसे चांस मिलेगा।

क्या मौजूदा शहर एक हद से ज्यादा बेहतर नहीं हो सकते। वैसे दुनिया के कई पुराने शहरों ने खुद को बेहतर करने के लिए 20 से 50 मिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट बनाए हैं। रियो द जनेरियो, मैड्रीड वगैरह। (हमने ये वीडियो सिस्को कंपनी की साइट से लिया है) दक्षिण कोरिया का स्मार्ट शहर सोंगदो है जो 2009 में लॉन्‍च हुआ था। सोंगदो को हांगकांग, सिंगापुर की तरह फाइनांस सिटी बनना है। यहां सब कुछ ऑटोमेटिक है। एक सेंटर से आप किसी भी इमारत का तापमान या ऊर्जा की खपत नियंत्रित कर सकते हैं। सेंसर से आपको मोबाइल पर संदेश आ जाएगा कि कब बस आने वाली है, मोबाइल पर समस्या टाइप कीजिए, स्थानीय प्रशासन को पता चल जाएगा।

इसी से भारत के संदर्भ में सवाल उठता है कि क्या इसके लिए हमारी सरकारें नगरपालिका के प्रशासन और अधिकारों में भी बदलाव करेगी। सितंबर 2013 में बीबीसी और एक साल बाद नंवबर 2014 में फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने लिखा है कि सोंगदो के कर्मशियल स्पेस का 20 प्रतिशत भी इस्तमाल नहीं हो सका है। अभी क्या स्थिति है आपके एंकर को नहीं मालूम।

सोंगदो की तरह भारत में एक फाइनांस सिटी का एक चरण बनकर तैयार हो गया है। 2007 में मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने इसकी बुनियाद रखी थी जो 2022 में पूरा होगा और पूरा होने तक इसमें करीब 80000 करोड़ रुपया लग जाएगा। जितना मैं समझ सका हूं उसके अनुसार गुजरात सरकार ने बंज़र भूमि लेकर मुंबई की एक कंपनी से साझेदारी की और एक नई कंपनी बना ली। नई कंपनी ने 1000 करोड़ से ज्यादा की पूंजी लोन से उगाही और एक ढांचा तैयार कर दिया। गिफ्ट भी सोंगदो की तरह है। यहां पर सेंट्रली कूलिंग प्लांट है जिसके ज़रिये सारी इमारतों के तापमान को नियंत्रित किया जाएगा। ऊर्जा की भारी बचत होगी। वैसे ही सारी इमारतों का कचरा बेसमेंट से एक पाइप के ज़रिये केंद्रीय वेस्ट मैनेजमंट प्लांट में चला जाएगा। सड़कों के बगल में अंडरग्राउंड टनल बना है जिसमें बिजली, पानी, कचरा और एसी के लिए ठंडी हवा ले जाने की अलग-अलग पाइप हैं।

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चीन ने भी ऐसे कई स्मार्ट सिटी बनाए हैं। गांव के गांव ज़मींदोज़ कर दिये गए स्मार्ट सिटी के लिए मगर अब वहां रहने वाला कोई नहीं। इतनी तेज़ी से इतने शहर बना दिये कि ज्यादातर स्मार्ट सिटी ख़ाली है। इन स्मार्टों का अब नाम बदल गया है। इन्हें घोस्ट यानी भूतहा शहर कहा जा रहा है। क्या नहीं है वहां, बस आदमी नहीं है। टेक्नोलॉजी के दम पर शहर की क्षमता का विकास तो हो जाएगा मगर क्या शहर शहर रह जाएगा। बहुत सारे सवाल हैं स्मार्ट सिटी को लेकर। राजनीतिक सवाल भी हैं और आर्थिक भी।