प्राइम टाइम इंट्रो : भावुक विमर्श में नुकसान नदियों का ही हो रहा है

प्राइम टाइम इंट्रो : भावुक विमर्श में नुकसान नदियों का ही हो रहा है

5 करोड़ रुपये के जुर्माने के साये में दिल्ली में यमुना तीरे 11 मार्च से 13 मार्च के बीच श्री श्री रविशंकर के विश्व सांस्कृति समारोह को अनुमति मिल गई है। इस आयोजन को कानूनी मंज़ूरी मिल गई है लेकिन 5 करोड़ का जुर्माना इसकी नैतिकता पर सवाल नहीं खड़े करता। उन विभागों को जुर्माना भरने का आदेश क्या हल्का नहीं है। विभाग जनता के पैसे से ही तो जुर्माना भरेंगे। यमुना के किनारे संस्कृतियों का महासंगम तो होगा लेकिन क्या उसमें यमुना भी शामिल होगी। नदियों को मां, मौसी कहने के भावुक विमर्श में नुकसान नदियों का ही हो रहा है। ऐसा लगता है कि कसूरवार वो आवेदक है जो आयोजन के ख़िलाफ़ ट्राइब्यूनल तक देरी से पहुंचा और बेकसूर वो सभी हैं जिनके पास जुर्माने के तौर 5 करोड़ देने की कोई कमी नहीं है।

नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने अपने आदेश में कहा है कि आवेदक ने ट्राइब्यूनल में आने में देर की और यमुना को होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है इसलिए आवेदक की ये प्रार्थना स्वीकार नहीं की जा सकती कि इस कार्यक्रम पर रोक लगा दी जाए या फिर निर्माण सामग्री को हटवा दिया जाए। ट्राइब्यूनल ने कहा कि आवेदक ने 11 दिसंबर को दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर को इस सिलसिले में लिखा था लेकिन कोर्ट में याचिका उन्होंने आठ फरवरी को ही दी और इस दौरान यमुना के खादर में निर्माण का काफ़ी काम हो चुका था।

आवेदक ने 20 जून 2015 को डीडीए की ओर से दी गई इजाज़त को भी चैलेंज नहीं किया ना ही बाकी विभागों के उन ख़तों को जिनमें कहा गया कि कार्यक्रम के लिए उनकी मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं है।

ट्राइब्यूनल ने ये भी कहा कि हम दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी की उस दलील से भी सहमत नहीं हैं जिसमें कहा गया कि उन्हें इस कार्यक्रम के लिए इजाज़त देने या ना देने की ज़रूरत नहीं है। इस मामले में डीपीसीसी अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में नाकाम रहा है इसलिए उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाता है।

ट्राइब्यूनल के आदेश के मुताबिक आयोजकों ने पुलिस, दमकल, जल संसाधन और नदी विकास मंत्रालय से इजाज़त मांगी थी लेकिन कहीं से नहीं मिली। जबकि 31 जुलाई 2014 के नोटिफिकेशन के मुताबिक जल संसाधन मंत्रालय यमुना नदी के संरक्षण, विकास, प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण के लिए ज़िम्मेदार है। कुल मिलाकर ये सभी विभाग अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे हैं।

आदेश में ये भी कहा गया है कि आयोजकों ने यह नहीं बताया कि कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है। ज़मीन को समतल करने का काम, सड़कें, पॉन्टून ब्रिज, रैंप, पार्किंग स्पेस का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। 40 फीट ऊंचा, 1000 फीट लंबा और 200 फीट चौड़ा स्टेज बनाया जा रहा है। ये सब आयोजक के ख़िलाफ़ जाता है और इसके लिए उसे मुआवज़ा चुकाना होगा।

अदालत वन और पर्यावरण मंत्रालय की उस दलील से भी सहमत नहीं है कि उसके विभाग की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं है जबकि 2006 के एक नोटिफिकेशन के मुताबिक 50 हेक्टेयर से ज़्यादा इलाके में किसी भी काम के लिए वन और पर्यावरण मंत्रालय की मंज़ूरी की ज़रूरत है।

ट्राइब्यूनल के मुताबिक विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना के फ्लड प्लेन के साथ बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई है, उसके प्राकृतिक बहाव पर असर डाला गया है। यमुना किनारे प्राकृतिक वनस्पति जैसे घास, सरकंडों पर असर पड़ा है, पानी में रहने वाले जीव जंतु प्रभावित हुए हैं और यमुना के आसपास की वॉटर बॉडीज़ को नुकसान हुआ है।

आदेश में ये भी कहा गया है कि जल संसाधन मंत्रालय की इजाज़त के बगैर रैंप, रोड, पॉन्टून ब्रिज बना दिए गए और अस्थायी निर्माण कर दिया गया। इसके अलावा दिल्ली सरकार से जो इजाज़त मांगी गई उसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि इस बारे में इजाज़त देने के लिए वो सक्षम नहीं है। पर्यावरण, पारिस्थितिकी, नदी के जीव जंतुओं को हुए नुकसान के लिए आयोजक ज़िम्मेदार हैं और पर्यावरण को इस नुकसान के मुआवज़े के तौर पर उन पर शुरू में पांच करोड़ का जुर्माना लगाया जाता है। आयोजकों को कार्यक्रम होने से पहले ही ये रकम चुकानी होगी। ये रकम बाद में नुकसान के आधार पर तय होने वाले मुआवज़े की अंतिम रकम में एडजस्ट की जाएगी।

दिल्ली सरकार से लेकर केंद्र सरकार के विभाग मिलकर मदद करते रहे। अब केंद्रीय मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सब खुश हैं कि भारत का प्रचार होगा क्योंकि श्री श्री रविशंकर भारत के ब्रांड अंबेसडर हैं। फैसले के मुताबिक आर्ट ऑफ लिविंग को पांच करोड़, Delhi Development Authority यानी डीडीए पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगा है। दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड पर एक लाख रुपए का जुर्माना किया गया है। अब सुप्रीम कोर्ट का ही रास्ता बचा है। आर्ट ऑफ लिविंग का कहना है कि इस फैसले के खिलाफ अपील में जाएगी क्योंकि उसने अपनी तरफ से नियमों का उल्लंघन नहीं किया है। क्या सरकारी विभाग भी जाएंगे।

फ़ैसला सुनाने से पहले नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने वन और पर्यावरण मंत्रालय की खिंचाई की क्योंकि उसने मंगलवार को मांगा गया हलफ़नामा नहीं सौंपा था। नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने कहा मंत्रालय से साफ़ निर्देश लेकर आइए कि क्या यमुना पर अस्थायी पुल बनाने के लिए इजाज़त की ज़रूरत है। पर्यावरण मंत्रालय ने बाद में अपने एफ़िडेविट में कहा कि यमुना के बेसिन में अस्थायी ढांचों के निर्माण के लिए पर्यावरण से जुड़ी कोई मंज़ूरी नहीं चाहिए। हालांकि इससे पहले NGT को दिए एक और हलफ़नामे में पर्यावरण मंत्रालय कह चुका था कि यमुना के बेसिन में किसी भी तरह का निर्माण ग़ैर क़ानूनी है। यानी इस मामले पर पर्यावरण मंत्रालय का कोई एक स्टैंड नहीं दिखा जबकि पर्यावरण मंत्रालय की इस मामले में बड़ी जिम्मेदारी बनती है।

हम पर्यावरण मंत्रालय की साइट पर गए तो वहां हमें एक विभाग मिला National River Conservation Directorate. इस विभाग की ज़िम्मेदारी है देश में नदियों, उनमें रहने वाले जीव जंतुओं, झीलों, और वेटलैंड्स के संरक्षण का काम करना। इसके लिए केंद्र सरकार की स्कीमों जैसे National River Conservation Plan (NRCP) and National Plan for Conservation of Aquatic Eco-systems (NPCA) को लागू करना इसकी ज़िम्मेदारी है। साफ़ है यमुना किनारे इस आयोजन के दौरान इस विभाग की भूमिका कहीं स्पष्ट दिखाई नहीं दी।

इस आयोजन की स्वागत समिति की सूची देखनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस आर सी लाहोटी, संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व सेक्रेटरी जनरल बुतरस बुतरस घाली जी, नीदरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री, भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, राज्यसभा में कांग्रेस सांसद डॉक्टर कर्ण सिंह, केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, दिल्ली सरकार के संस्कृति मंत्री कपिल मिश्रा का नाम आपको कई विदेशी सांसदों और हस्तियों के बीच मिलेगा। NGT ने जल संसाधन मंत्रालय से भी पूछा कि क्या इस मामले में उनकी भी कोई भूमिका है तो मंत्रालय ने साफ़ कह दिया कि उनकी कोई भूमिका नहीं है। और ये बात संसद के बाहर जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने ख़ुद भी कही।

अब सवाल ये है कि जिस मंत्रालय के पास देश की नदियों और उसके फ्लड बेसिन के रख रखाव की ज़िम्मेदारी हो वो ऐसा बयान कैसे दे सकता है। हम जल संसाधन मंत्रालय की वेबसाइट पर गए। यहां अपर यमुना रिवर बोर्ड नाम से पूरा एक महकमा है जो इस मंत्रालय के तहत आता है। इस बोर्ड में सेंट्रल वॉटर कमीशन के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के सदस्य होते हैं। यमुना में पानी के न्यूनतम बहाव को सुनिश्चित करने के लिए बने इस बोर्ड की और भी कई ज़िम्मेदारियां हैं। इनमें यमुना के खादर में ज़मीन के ऊपर और ज़मीन के अंदर पानी की गुणवत्ता को बेहतर करना, यमुना बेसिन में पानी के बहाव के आंकड़ों को जमा करना, दिल्ली में ओखला बैराज तक सभी प्रोजेक्ट्स की निगरानी और समीक्षा शामिल है। साफ़ है मंत्रालय के इस विभाग ने भी अपनी कोई स्पष्ट भूमिका नहीं निभाई।

यही नहीं इस आयोजन से पहले पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का कोई अध्ययन नहीं किया गया। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पिछले साल एनजीटी ने आदेश देकर यमुना के किनारे किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी थी। आप जानते हैं कि यमुना को बचाने को लेकर मथुरा से एक बड़ा आंदोलन समय समय पर दिल्ली आता रहता है।

पिछले साल मार्च के महीने में ही मथुरा यमुना मुक्तिकरण पदयात्रा दिल्ली के लिए आई थी। जंतर मंतर पर इसके सदस्यों ने आमरण अनशन भी किया था। इनकी मांग है कि यमुना में पानी का बहाव अविरल और निर्मल हो। उमा भारती ने इनसे मुलाकात कर आश्वासन भी दिया था मगर अब आयोजकों का कहना है कि एक साल में कुछ भी नहीं हुआ। मथुरा के कई संप्रदायों के लोग खासकर बल्लभपुर संप्रदाय के माननेवाले यमुना बचाओ ब्रज बचाओ का अभियान चला रहे हैं। इन्होंने यूपीए के समय 2013 में भी मार्च निकाला था मगर कुछ नहीं हुआ। तब संसद में इस मार्च के बहाने बीजेपी के नेताओं ने ज़ोरदार भाषण दिये थे। एनडीए की सरकार आई तो इन्हें लगा कि बहुत कुछ होगा मगर अभी तक इंतज़ार ही हो रहा है।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

21 साल से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यमुना जी को साफ करने का अभियान चल रहा है। कुछ नहीं हुआ। पहले वहां अक्षरधाम मंदिर बनने को लेकर विवाद हुआ मगर बाद में सब सही हो गया। फिर कॉमनवेल्थ गेम के दौरान खेलगांव को लेकर विवाद हुआ बाद में सही हो गया। डीटीसी बस डीपो को लेकर भी विवाद हो गया। सारे विवादों की किस्मत अच्छी होती है। बाद में वे सही हो जाते हैं। रही बात यमुना जी की तो वो सही नहीं हो पाती हैं। फिलहाल यमुना को छोड़िये, भारत के ब्रांड अंबेसडर के कार्यक्रम देखिये। जुर्माने की चिंता मत कीजिए।