प्राइम टाइम इंट्रो : क्या डिग्री को लेकर इतना विवाद जायज़ है?

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या डिग्री को लेकर इतना विवाद जायज़ है?

प्रेस कांफ्रेस के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली

मेरी राय में यह बेहद विचित्र बात है कि प्रधानमंत्री की डिग्री पर चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री के बयानों, नीतियों की आलोचना होनी चाहिए। समीक्षा होनी चाहिए, लेकिन उनकी डिग्री पर चर्चा हो तो सोचना पड़ता है कि इससे हासिल क्या होने वाला है। क्या हम और आप नहीं जानते कि जब कोई राजनीति में जाता है, तब उसके परिवार-रिश्तेदार कितनी निंदा करते हैं। घूम-घूम कर कहते हैं कि लड़का लोफर हो गया। ऐसा नहीं कि एजुकेटेड क्लास राजनीति में नहीं आता, मगर इसका बड़ा हिस्सा राजनीति को कमतर निगाह से ही देखता रहा है, भले ही वो भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताने में सबसे आगे रहता हो। इसी एजुकेटेड क्लास ने राजनीति को कमतर निगाह से देखा। ज़ाहिर है यह जगह खाली तो रहती नहीं। इसलिए इस जगह को उन लोगों ने भरा, जिन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगाया। पढ़ाई छोड़कर राजनीति में आए, तो राजनीति में आने के बाद पढ़ाई छूट गई।

कई बार ग़रीबी के कारण पढ़ाई छूटी, तो कई बार परिवार इतना राजनीतिक हो गया कि बच्चों की पढ़ाई छूट गई। बहुतों के नाम ले सकता हूं, मगर अभी उसकी ज़रूरत नहीं है। हमारी राजनीति में अच्छे विद्यार्थी भी आए और वो भी आए जिन्हें विद्यार्थी बनने का मौका नहीं मिला। लेकिन कम पढ़े लिखे नेताओं का हमारे एजुकेटेड क्लास ने खूब मज़ाक उड़ाया। इन नेताओं की उपलब्धि को अपनी तौहीन के रूप में देखा कि वे बीए पास कर निदेशक हैं, मगर फलाना दसवीं फेल होकर मुख्यमंत्री। लेकिन यही तो हमारे लोकतंत्र की उपलब्धि रही कि जो नहीं पढ़ सका, वो भी राजनीति में चमका। उसके अनुभवों से भी हमारी राजनीति बेहतर हुई। एजुकेटेड हो जाने से कोई अच्छा नेता हो जाता है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। पढ़ा-लिखा होना चाहिए मगर जिस देश में आज भी साक्षरता एक सपना हो, वहां डिग्री एकमात्र शर्त नहीं हो सकती है। आज़ादी के दिनों से लेकर हाल के दिनों तक हमारे मुल्क में सबसे पहले वही तालीम के शिखर तक पहुंचे जो ज़मींदार थे, अमीर थे, जिनके पास पैसा था। ग़रीबों की बारी बहुत बाद में आई।

इसलिए जब आप किसी राजनेता को एजुकेटेड और अनएजुकेटेड में बांटते हैं, आप इतिहास और राजनीति की समझ के प्रति अपनी नादानी ही प्रकट करते हैं। किसी का बारहवीं पास होना और शिक्षा मंत्री होना इन दो बातों में कोई संबंध नहीं है। लेकिन मज़ाक तो उड़ा ही। पहले भी उड़ा और आज भी उड़ा। डिग्री की राजनीति एक दिन हमें उस मुकाम पर ले जाएगी कि हम थर्ड डिविजन और फर्स्ट डिविजन के आधार पर राजनीतिक योग्यता में फर्क करने लगेंगे। मगर दुख है कि इस नियम को हमारी राजनीति ने ही तोड़ा। उसी राजनीति ने सबसे पहले हरियाणा और राजस्थान में यह नियम लागू किया कि पंच-सरपंच बनने के लिए दसवीं पास होना ज़रूरी है। वर्ना आप चुनाव नहीं लड़ सकते। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को सही माना, लेकिन इस फैसले के कारण वो लोग चुनाव की प्रक्रिया से बाहर हो गए, जो किसी कारण से स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई जारी नहीं रख सके। इस फैसले ने तय कर दिया कि ज्ञान का मतलब डिग्री है। सर्टिफिकेट है। आज दसवीं तय किया है। कल बीए और एम ए भी तय होने लगेगा। अगर पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी है, तो फिर सांसद, विधायक, पार्षद के लिए दसवीं पास होने का नियम क्यों नहीं बनाया गया। यहां तो मामला पंचायत का है, वहां मामला राज्य और देश का है।

कुछ स्कूल, कॉलेजों को छोड़ दें तो बाकी कई संस्थानों की हकीकत हम और आप जानते हैं। लेकिन सवाल है कि डिग्री को लेकर राजनीति में नियम कभी थे क्या। नीतीश कुमार ने सही कहा कि 'तू तू मैं मैं' की राजनीति नहीं होनी चाहिए। नीतियों को लेकर हो। डिग्री के सवाल को महत्वपूर्ण नहीं मानते। लेकिन सबने इस नियम को अपने हिसाब से तोड़ा है। क्या तब भी यह सवाल न उठे जब डिग्री के फ़र्ज़ी होने का आरोप लगने लगे।

दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की डिग्री पर सवाल उठा तो पुलिस ने कितनी तत्परता दिखाई। कई राज्यों का दौरा किया। तोमर को गिरफ्तार किया और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। आपको याद दिला दें तब मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तोमर का बचाव किया था, मगर जब अदालत में तोमर अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाए तो इस्तीफा लेना पड़ा। उस वक्त कई नेताओं की डिग्री को लेकर सवाल उठ रहे थे, मगर उनके मामले में तोमर जैसी तत्परता नहीं दिखाई गई। ज़ाहिर है आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री केजरीवाल प्रधानमंत्री की डिग्री का मामला उठाकर वैसे ही आक्रामक हो रहे थे, जैसे उन्हें दिल्ली पुलिस तोमर के मामले में सक्रिय लगती थी। आम आदमी पार्टी के नेता सक्रियता से ट्वीट कर रहे थे। चुनौती दे रहे थे और अपनी डिग्री बताकर प्रधानमंत्री की डिग्री पूछ रहे थे।

मामले को औपचारिक मान्यता तब मिल गई जब 29 अप्रैल को केंद्रीय सूचना आयुक्त ने पीएमओ और दिल्ली विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि प्रधानमंत्री की डिग्री की जानकारी उपलब्ध कराई जाए। दिल्ली विश्वविद्यालय और पीएमओ ने डिग्री के मामले में कोई जानकारी दी है या नहीं, मुझे नहीं पता। लेकिन सोमवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने प्रेस कांफ्रेंस किया और प्रधानमंत्री की बीए और एमए की डिग्री जारी कर दी। बीजेपी भी क्या करती। इतने सवाल उठ रहे थे कि जवाब देना ही पड़ा, लेकिन अगर दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपनी तरफ से जवाब दे दिया होता तो इस विषय के लिए इन दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों को अपना समय नहीं बर्बाद करना पड़ता।

सोमवार को दोपहर 1 बजे बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में अमित शाह और अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री की डिग्री दिखाकर कहा कि केजरीवाल ने देश का नाम बदनाम किया है। वे इसके लिए सबसे माफी मांगें। प्रधानमंत्री ने 1978 में तृतीय श्रेणी में दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए पास किया। 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से प्रथण श्रेणी में एमए की डिग्री दी गई। बीजेपी ने प्रधानमंत्री की मार्कशीट भी जारी की है, ताकि आरोप की कोई गुज़ाइश न रहे। अरुण जेटली ने बताया कि जिस दशक में प्रधानमंत्री ने डिग्री हासिल की है, उस समय देश में आपातकाल लगा था। प्रधानमंत्री गुजरात से दिल्ली परीक्षा देने आते थे। अरविंद केजरीवाल ने तथ्यों की जांच किए बगैर इतना बड़ा मामला बना दिया। आम आदमी पार्टी ने इसे काफी गंभीरता से उठाया है। इसलिए अब उसकी जवाबदारी है कि इस मसले पर अपने तथ्य रखे या इससे किनारा करे।

बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस के बाद आशुतोष आए और उन्होंने जवाबी प्रेस कांफ्रेंस की। आशुतोष ने कहा कि अमित शाह और अरुण जेटली कोई भगवान नहीं हैं कि वो बोल देंगे तो जनता मान लेगी। आशुतोष ने चुनौती दी कि अमित शाह और अरुण जेटली हलफनामा पेश करें। आशुतोष ने बीए की डिग्री पर प्रधानमंत्री के नाम और एमए की डिग्री पर लिखे नाम के अंतर के आधार पर दावा किया कि डिग्री फर्ज़ी है। इस पर मेरी अपनी एक राय है। डिग्रियों में नामों की छपाई में गलती हो जाती है। लाखों लोगों के साथ होती है। कुछ लोग समय पर ठीक करा लेते हैं और कुछ लोग कई कारणों से या तो ठीक ही नहीं कराते या बहुत बाद में कराते हैं। इसलिए इस मामले के आधार पर आशुतोष की बात कमज़ोर ही लगी।

इसके बाद आशुतोष ने कहा कि मार्कशीट पर 1977 लिखा है। बीए की डिग्री पर 1978 लिखा है। अब पता चला है कि 1977 में प्रधानमंत्री फेल हो गए। उन्हें 1200 में 473 नंबर ही आए। लेकिन 1978 में वे पास हो गए। 1200 में 489 नंबर आ गए। 1977 की तुलना में 1978 में 16 नंबर ज़्यादा आए। मुझे तो बुरा लग रहा है किसी का नंबर इस तरह से पब्लिक में डिस्कस किया जा रहा है, वो भी प्रधानमंत्री का। फिर भी आम आदमी पार्टी आक्रामक है। आशुतोष ने अमित शाह और अरुण जेटली को न्यौता दिया है कि वे भी साथ चलें दिल्ली विश्वविद्यालय। दोनों मिलकर कागज़ात जांचेंगे।

4 मई को आम आदमी पार्टी की तरफ से आशुतोष, आशीष खेतान और राघव चड्ढा दिल्ली विश्वविद्यालय गए थे। इनके पास मुख्यमंत्री केजरीवाल का अथॉरिटी लेटर था, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग ने पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी केजरीवाल को देने का आदेश दिया था। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपना अधिकार इन तीन नेताओं को हस्तांतरित कर दिया था। वहां पर ये तीनों एक घंटा रहे। बाहर आकर कहा कि हमें कोई जानकारी नहीं दी गई। पीएमओ से जानकारी ले लो। 'आप' के नेता मंगलवार को फिर से दिल्ली विश्वविद्यालय जायेंगे। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ट्वीट किया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में दस्तावेज़ों को सील कर दिया गया है। बीजेपी ने प्रेस कांफ्रेंस में फर्ज़ी दस्तावेज़ पेश किये हैं। केंद्रीय सूचना आयुक्त के आदेश को लागू किया जाए और इसकी जांच की अनुमति मिलनी चाहिए।

कायदे से दिल्ली विश्वविद्यालय को ही अब तक जानकारी देकर इस विवाद को रफा-दफा कर देना चाहिए था जैसा कि गुजरात विश्वविद्यालय ने किया। गुजरात विश्वविद्लाय ने उनकी डिग्री जारी कर बता दिया कि 1983 प्रथम श्रेणी में एमए पास हुए हैं। अब एक सवाल उठाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री की डिग्री पर एंटायर पोलिटिकल साइंस लिखा है। आम आदमी पार्टी के नेता कहते हैं कि एंटायर पोलिटिकल साइंस की डिग्री तो कभी देखी नहीं, सुनी नहीं। हमारे सहयोगी राजीव पाठक ने बताया है कि गुजरात में पहले संपूर्ण राज्यशास्त्र की डिग्री मिलती थी। गुजराती में पोलिटिकल साइंस को राज्य शास्त्र कहते हैं। हिन्दी प्रदेशों में राजनीति शास्त्र कहते हैं। शुक्र है कि किसी ने यह नहीं कहा कि राजनीति शास्त्र तो सुना है राज्य शास्त्र क्या होता है। वर्ना और फंस जाते।

एंटायर पोलिटिकल साइंस का मसला आप समझ गए होंगे। अगर आपने पोलिटिकल साइंस के साथ कोई सब्सिडयरी विषय न पढ़ा हो तो ऐसी डिग्री मिलती थी। एक ही विषय के सारे पेपर पढ़ने पर संपूर्ण राज्य शास्त्र की डिग्री मिलती थी। केजरीवाल ने न सिर्फ इस मसले को उठाया बल्कि दूसरे दलों पर भी दबाव उठाया कि वो क्यों नहीं बोल रहे हैं। कांग्रेस तो प्रभाव में आकर डिग्री की बात करने लगी, मगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस विवाद से खुद को दूर कर लिया।

दरअसल डिग्री और नाम के विवाद का खेल सबने खेला है। 2005 में सुब्रम्णियन स्वामी सुप्रीम कोर्ट चले गए कि अदालत चुनाव आयोग को सोनिया गांधी के ख़िलाफ शिकायत दर्ज करने को कहे। स्वामी के अनुसार सोनिया गांधी ने 2004 के हलफनामे में अपनी डिग्री के बारे में ग़लत जानकारी दी थी। 12 अप्रैल 2005 के हिन्दू अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार डा स्वामी ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से जब सोनिया गांधी की डिग्री के बारे में पूछा तो बताया गया कि वो कभी छात्र नहीं रही हैं। स्वामी ने यह भी आरोप लगाया था कि सोनिया ने अंग्रेज़ी में जिस सर्टिफिकेट कोर्स का ज़िक्र किया है, वो कैंब्रिज के किसी भी इंग्लिश टीचिंग शॉप से मिल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी की याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब सोनिया गांधी ने कोई जानकारी छिपाई नहीं, तब किस बात के लिए आदेश दें। तब स्वामी में बीजेपी में नहीं थे। जनता पार्टी के नेता थे। स्वामी अब ज़रूर बीजेपी में हैं और राज्य सभा के सदस्य बने हैं। स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी इस मसले को कई बार उठाया है। वन इंडिया वेबसाइट के अनुसार 14 जुलाई, 2015 के दिन स्वामी ने बेंगलुरू में सोनिया की डिग्री का मामला उठाया था जिसका यू ट्यूब पर बकायदा वीडियो मौजूद है। स्वामी का कहना था कि सोनिया गांधी सिर्फ पांचवीं क्लास तक पढ़ी हैं। सोनिया गांधी ने अपने हलफनामे में कहा है कि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पी एच डी की है। लेकिन मैं साबित कर सकता हूं कि उनकी डिग्री नकली है। सोनिया गांधी भी आम आदमी पार्टी के नेता जितेंद्र सिंह तोमर की तरह जेल जा सकती हैं।

सोमवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि केजरीवाल ने सार्वजनिक जीवन के स्तर को गिराया है। स्वामी भी सोनिया गांधी को तोमर की तरह जेल भेजने की बात कर चुके हैं। क्या स्वामी ने भी केजरीवाल की तरह सार्वजनिक जीवन के स्तर को गिराया है। इस बीच यह ख़बर आई है कि मध्यप्रदेश के बीजेपी के विधायक मोती कश्यप की सदस्यता जाने की नौबत आ गई है। मोती कश्यप कटनी की बड़वारा सीट से विधायक रहे हैं और मंत्री भी रहने का मौका मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने मोती कश्यप का जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाया है। वे 2008 में भी विधायक चुने गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने उनके उस चुनाव को शून्य घोषित कर दिया है। वह 2013 में भी चुने गए जिसकी सदस्यता ख़तरे में बताई जा रही है। उन पर धोखाधड़ी की कार्रवाई भी शुरू हो सकती है। 2013 में जबलपुर हाईकोर्ट ने उनके 2008 के विधायक चुने जाने को खारिज कर दिया था। बड़वारा के एक आदिवासी नेता रामलाल कील की याचिका पर सुनवाई करते हुए जबलपुर हाईकोर्ट ने पाया था कि मोती कश्यप ने खुद को अनुसूचित जनजाति का बताया और रिजर्व सीट से चुनाव जीत गए। अदालत ने पाया कि कश्यप अनुसूचित जनजाति के नहीं बल्कि ढीमर जाति के हैं, जो ओबीसी में आती है।

सोमवार को एक और ख़बर आई कि महाराष्ट्र के कोल्हापुर की मेयर अश्विनी रमाणे का पद रद्द हो चुका है। वे अब मेयर नहीं रहीं। एनसीपी की अश्विनी रमाणे ने फर्ज़ी जाति प्रमाणपत्र देकर पार्षद का चुनाव लड़ा था। फर्ज़ी डिग्री के साथ साथ दो-दो जन्म प्रमाण पत्र का मामला भी मिल जाता है। पूर्व सेनाध्यक्ष और मौजूदा केंद्रीय मंत्री वीके सिंह के तो दो-दो जन्म प्रमाण पत्र निकल आए। कितना विवाद हुआ था। लोगों के सर्टिफिकेट में और घर में जन्मदिन की तारीखें अलग हो जाती हैं। अपना देश है ही अजूबा। इसलिए आप डिग्री विवाद को हमेशा हल्के में नहीं ले सकते। हमारे देश में फर्ज़ी प्रमाण पत्र बनवाना भी एक सच्चाई है। फर्ज़ी डिग्री की दुकानें भी खुली हैं, यह भी नॉर्मल है। दसवीं फेल को बारहवीं पास कराने वाले मिल जायेंगे। भारतीय रिज़र्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन ने शिवनादर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बोलते हुए कहा कि छात्रों को शिक्षा के लिए कर्ज़ लेते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए। उन्हें ऐसे स्कूलों से बचना चाहिए जो बेकार की डिग्री के नाम पर उन्हें गहरे कर्ज़ में डाल देते हैं। राजन ने कहा कि हमें देखना चाहिए कि बेइमान स्कूल ऐसे छात्रों को निशाना न बनाएं जिन्हें उनके बारे में पता नहीं है, क्योंकि ऐसे में वो बेकार की डिग्री के साथ-साथ कर्ज़ में फंस जाते हैं।

कई बार आपकी डिग्री सही होती है लेकिन कॉलेज ही फर्ज़ी निकल जाता है। कई बार कालेज सही होता है मगर उसकी डिग्री फर्जी की तरह निकल आती है। हाल ही में हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन ने पंजाब से स्टोरी की थी। मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर हैं नहीं, मगर मान्यता मिल चुकी है। कितने ही इंजीनियरिंग कॉलेज ऐसे ही चल रहे हैं। ऐसे संस्थानों में लाखों छात्र फंसे रहते हैं और फीस भर भरकर अपनी असली डिग्री ले लेते हैं। कई बार ऐसी खबरें भी आती हैं कि मान्यता देने वाली संस्थाओं ने पैसे लेकर मान्यता बांट दी। इसलिए डिग्री और भगवान दोनों के बारे में पता करना इतना आसान नहीं है अपने यहां।


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