प्राइम टाइम इंट्रो : माल्या पर किसकी मेहरबानी?

प्राइम टाइम इंट्रो : माल्या पर किसकी मेहरबानी?

विजय माल्या (फाइल फोटो)

न भागा हूं न भगोड़ा हूं, यह किसी कवि की कविता का मुखड़ा नहीं है बल्कि अपनी इच्छानुसार नियमों के तहत विदेश गए विजय माल्या जी का ट्वीट है। विजय माल्या जी विदेश क्या चले गए हैं देश में रहने वाले दो दलों के नेता और सिस्टम को कमज़ोर आदमी के अनुकूल बनाने वाले लोग बहस कर रहे हैं। यह बहुत बुरा हो रहा है कि किसी व्यक्ति का विदेश जाना लोगों को बुरा लग रहा है। आखिर माल्या जी किसी से उधार मांग कर तो नहीं गए हैं। उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं होती है। अपना तो है ही, दूसरों का भी पैसा है उनके पास। कई बैंकों से लिया गया कर्ज़ा है। मुंबई की एक अदालत में एक मामला चल रहा है कि सर्विस टैक्स का भी पैसा है जो उन्होंने आपसे लेकर सरकार को नहीं दिए। अगर ऐसा व्यक्ति विदेश जाने के लिए योग्य नहीं है तो फिर कौन है।

आप इन्हें तो जानते ही होंगे। विजय माल्या को अगर ठीक से किसी ने समझा है तो वो हैं जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला। उन्होंने कहा कि विजय माल्या ने देश के लिए बहुत मुनाफा कमाया है। अब जब देश की बात है तो मामला सेंटी हो सकता है। पर एक छोटा सा सवाल है कि जब देश के लिए मुनाफा कमा रहे थे तो देश के बैंकों को हज़ारों करोड़ का घाटा कैसे हो गया। क्या वे सारे बैंक मालदीव माल्टा के थे। मैं तो फारूक साहब की बात पर भावुक हो गया कि माल्या ने देश के लिए मुनाफा कमाया है। ऐसा व्यक्ति इतनी मेहनत के बाद विदेश चला जाए और हंगामा हो, कितनी नाइंसाफी है। सुनिये अब्दुल्ला साहब को।

काश कोई किसानों के लिए भी बोलता कि खेती में फेल होना जाना नेचुरल होता है। 11 मार्च के ही दिन पिछले साल मौसम की मार से हज़ारों किसान कर्ज़ में डूब गए थे। आधी खेती तो नेचर के कारण ही नेचुरली फेल हो जाती है। अच्छा है किसान लोग ट्वि‍टर पर नहीं हैं, शायद टीवी भी नहीं देखते होंगे। पता नहीं चैनल वाले उन्हें भूत प्रेत और पांच हज़ार साल पुरानी तलवार की स्टोरी में उलझा देते हों। जो खूबी फारूक अब्दुल्ला साहब को विजय माल्या में नज़र आई वो बात शरद यादव को नज़र नहीं आई। शरद जी ज़रूर निगेटिव व्यक्ति होंगे। वैसे उस वक्त वे विजय माल्या को लेकर काफी पोज़िटिव रहे होंगे जब विजय जी उनकी पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष थे। एक साल बाद यानी कि 2003 में अगर माल्या ने जनता दल युनाइटेड न छोड़ी होती तो पक्का इस मामले में पटना में प्रेस कांफ्रेंस हो रहा होता।

विजय माल्या जी कहते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय बिजनेसमैन हैं। विदेश यात्राएं करते रहते हैं। सांसद होने के नाते वे कानून का सम्मान करते हैं। हमारी न्यायपालिका बहुत बेहतर है और सम्मान करते हैं। तो रही बात सम्मान की तो उनके बयानों से लगता तो है कि वे सम्मान में कोई कमी नहीं करते हैं। उन्हें दिक्कत है तो मीडिया ट्रायल से। बाद में उन्होंने एक दूसरे ट्वीट में संकेत दिया कि मीडिया उनका ट्रायल करेगा तो वे भी मीडिया का ट्रायल कर सकते हैं।
वो ट्वीट करते हैं, 'मीडिया के बॉस लोगों को नहीं भूलना चाहिए कि मैंने उन्हें कई वर्षों तक मदद की है, ठहराया है, जिसके सभी दस्तावेज़ भी मौजूद हैं। इसलिए टीआरपी के लिए कोई झूठ नहीं चलेगा।'

अब इस तरह का ट्वीट करेंगे तो कौन उनके बारे में क्या बोलेगा। पता नहीं उन्हें ये सब कौन सिखा रहा है कि मीडिया के पीछे ही पड़ जाओ। बड़ी मुश्किल से तो मीडिया को पीछे पड़ने के लिए कोई मिला है और ये हैं कि कह रहे हैं कि मीडिया के ही पीछे पड़ जाएंगे वो भी डाक्यूमेंट लेकर। कहीं ऐसा तो नहीं कि माल्या को ललित मोदी जी ने बहका दिया है। पिछले साल ललित मोदी भी इसी तरह ट्वीट कर सबके पीछे पड़ गए थे। अंत में वही हुआ कि ललित मोदी को सबने मिलकर भुला दिया। वर्ना उन्हें लेकर सब एक दूसरे की ही पोल खोलने लगे थे। ललित मोदी और विजय माल्या को देखकर हताश होने वालों को मेरा यही संदेश है कि चिन्ता न करें। जब भी बड़ा आदमी बनें कम से कम दो राजनीतिक दलों का ख़्याल ज़रूर रखें और इनसे कुछ बच जाए तो मीडिया का भी। उसका डाक्यूमेंट रखें और जब कोई सवाल करे तो ट्वीट कर दें कि सबको बता देंगे।

पता नहीं किसका वीडियो और किसका किस अवस्था में फोटो निकल जाए, पता चला कि उन्हें लेकर कुछ और बवाल हो गया। ज़रूर सब भीतर ही भीतर मना रहे होंगे कि विदेश गए हैं तो वहीं रहें। आने की क्या ज़रूरत है। आज कल आर्ट ऑफ लिविंग की बहुत चर्चा हो रही है, लेकिन माल्या मामले में आर्ट ऑफ लिविंग यानी भागने की कला पर चर्चा होने लगी है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने शुक्रवार को रिपोर्ट छापी है कि माल्या साहब ने 2 मार्च दोपहर की जेट एयरवेज़ की फ्लाईट पकड़ी, फर्स्टक्लास में सवार हुए और लंदन चले गए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से ख़बर छापी है कि वे अपने साथ सात भारी भरकम बैग लेकर गए हैं। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मीडिया के लोगों वाला दस्तावेज उन सातों बैग में न हो। कैश कपड़े हों ये तो चलेगा लेकिन अगर वहां से वे निकाल कर ट्वीट करने लगे तो ग़ज़ब हो सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार माल्या साहब लंदन जाने से पहले 1 मार्च को राज्यसभा गए थे। राज्यसभा की वेबसाइट पर हाज़िरी का जो रिकॉर्ड है उसके अनुसार माल्या जी एक मार्च को सदन में मौजूद थे। कितनी अच्छी बात है। विदेश जाने से पहले वे देश का काम करने संसद भी गए थे। फिर क्यों सब उनके पीछे पड़े हैं मुझे समझ नहीं आता जबकि मैंने तो उनकी किंगफिशर फ्लाइट से सिर्फ वो लाल वाला ईयर फोन ही लिया था।

जो लोग माल्या जी के विदेश चले जाने से निराश हैं उनके लिए एक अच्छी ख़बर है। एनडीटीवी डॉट कॉम के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें 18 मार्च को मुंबई बुलाया है ताकि उनसे मनी लाउंड्री के एक केस में पूछताछ कर सके। इसी हफ्ते प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लाउंड्री का केस दर्ज किया है। आरोप है कि उन्होंने आईडीबीआई बैंक से 900 करोड़ का कर्ज़ लिया है और ग़लत तरीके से विदेश भेज दिया है। यानी कि वे खुद ही विदेश नहीं जाते, पैसे को भी विदेश भेजते हैं। कब तक हमारा रुपया डॉलर के मुकाबले कमज़ोर होता रहेगा। ज़रा बाहर भी तो घूम फिर कर आए। विजय माल्या जिस तरह से न्यायपालिका और कानून के सम्मान पर ज़ोर दे रहे हैं उस हिसाब से 16-17 दिनों के लिए विदेश जाना कोई बड़ी बात तो नहीं है। 2 मार्च को जब वे लंदन गए तो उनके ख़िलाफ किसी प्रकार का नोटिस नहीं था। वित्त मंत्री अरुण जेटली का बयान है कि जिस दिन माल्या ने देश छोड़ा उस दिन बैंक ने अपनी कानूनी प्रक्रिया शुरू नहीं की थी। तब उस वक्त तक किसी भी एंजेसी की तरफ से कोई भी आदेश नहीं था कि उन्हें देश छोड़ने से रोका जाए।

कांग्रेस नेता गुलाम अली आज़ाद वित्त मंत्री जेटली के इस दावे को चुनौती दे रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले नवंबर में सीबीआई ने विजय माल्या के लिए लुकआउट नोटिस जारी किया था लेकिन उसके एक महीने बाद ही बदल दिया गया। पहला नोटिस ये था कि देखते ही गिरफ्तार कर लिया जाए। आज़ाद के अनुसार बाद में यह कर दिया गया कि सिर्फ उनके दौरों पर नज़र रखी जाए।

राहुल गांधी ने कहा कि जिसने देश का 9000 करोड़ रुपया चुराया हो उसे देश से कैसे भागने दिया गया। वित्त मंत्री जेटली ने भी जवाब दिया कि कांग्रेस के टाइम में ही तो माल्या को हज़ारों करोड़ के लोन दिये गए।

आज़ाद का कहना है कि बिना सरकार की भागीदारी के माल्या भाग नहीं सकते। सरकार का कहना है कि विपक्ष वाले जब सरकार में थे बिना उनकी मदद के माल्या को लोन नहीं मिल सकता। अब आप ही बताइये कि दोषी कौन है। पहले वाला कि अब वाला। बताने से पहले याद रखियेगा कि माल्या साहब सात भारी भरकम बैग लेकर गए हैं। इतना मत बता दीजिएगा कि उनके बैग से आपके ही खिलाफ कुछ निकल जाए। क्या वाकई माल्या को बाहर जाने में मदद दी गई। उनके लुक आउट नोटिस को क्यों बदला गया। जबकि वित्त मंत्री भी मान रहे हैं कि 30 नवंबर तक माल्या जी पर मात्र 9 हज़ार 91 करोड़ का कर्ज़ था। किसी पर इतना कर्ज़ हो, उसके भागने की संभावना पर किसी का ध्यान ही नहीं आया। हो सकता है। रकम इतनी बड़ी है कि सबका ध्यान गिनने में लगा रह गया होगा। वैसे वित्त मंत्री ने एक और उदाहरण से समझाने का प्रयास किया कि क्वात्रोकि के भागने और माल्या के भागने में क्यों फर्क है।

जब स्वीटजरलैंड के अधिकारियों ने बताया कि क्वात्रोकि बोफोर्स घोटाले का एक लाभार्थी है, के माधवन ने एक खत लिखा है कि उसका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया जाए, तब सरकार ने उसे नहीं रोका और दो दिन के अंदर ही उसने देश छोड़ दिया। वो एक आपराधिक मामला था।

इस बयान से कांग्रेस के कारनामे का पता तो चलता है लेकिन माल्या जी के मामले में जो हुआ क्या उसका जवाब मिलता है। एक पुरानी घटना का यहां ज़िक्र करना चाहिए। जनवरी 2015 में ग्रीनपीस एनजीओ की सदस्य प्रिया पिल्लई को लंदन जाने से रोक दिया गया। वे भाग कर नहीं जा रही थीं बल्कि आदिवासियों के हक में आवाज़ उठाने लंदन जा रही थीं। हवाई अड्डे पर बताया जाता है कि आईबी का उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस है। तीन महीने बाद मार्च 2015 में दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रिया पिल्लई के बारे में फैसला सुनाया कि सरकार की नीति के अनुसार किसी के बोलने या किसी के हक के लिए
लड़ने के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकते। इसलिए प्रिया पिल्लई के पासपोर्ट से ऑफ लोड रिमार्क को हटाया जाए। देश से बाहर न जाने देने की सूची से उनका नाम हटाया जाए। पिल्‍लई ने बताया, 'मुझे एयरपोर्ट पर बताया गया कि आप देश से बाहर नहीं जा सकती हैं। मेरे पास सारे दस्तावेज़ थे। मेरे खिलाफ जांच नहीं थी। कोई केस नहीं था। फिर भी मुझे रोका गया। ये तो हैरानी वाली बात थी। मेरे खिलाफ कोई लुकआउट नोटिस भी जारी नहीं था।'

पर क्या विजय माल्या के खिलाफ कोई मामला भी नहीं चल रहा था। चंद उदाहरणों से पता चलता है कि वे काफी लंबे समय से अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं या कहिये कि कई विभाग उनसे वसूलने के चक्कर में अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। अगस्त 2014 में विजय माल्या बंगलुरू की एक विशेष अदालत में पेश होते हैं। उनके ख़िलाफ़ आयकर विभाग ने तीन मुकदमें दायर किये थे। बंगलुरू वाला मामला यह है कि विजय माल्या ने 400 करोड़ रुपये का टैक्स सरकार को नहीं दिया था। माल्या साहब को एक एक लाख रुपये के मुचलके पर ज़मानत दे दी गई। अदालत ने आदेश दिया कि वे ट्रायल में सहयोग करेंगे। आयकर विभाग ने दलील दी थी कि माल्या कार्रवाई कार्यवाही में मदद नहीं कर पायेंगे कि वे नॉन रेसिडेंट इंडियन (एनआरआई) हैं। बाहर आते जाते रहते हैं। इसलिए हो सकता है कि वो ट्रायल में सहयोग न करें। वे एक प्रभावी बिजनेसमैन भी हैं और सत्ता के गलियारों में उनका काफी रसूख हैं।

उनके ख़िलाफ एक और मामला मुंबई की एक अदालत में चल रहा था। आरोप था कि माल्या साहब ने उपभोक्ताओं से लिया गया सर्विस टैक्स का पैसा सरकार को नहीं दिया है। इस मामले में उन्हें मुंबई की निचली अदालत से फरवरी 2015 में ज़मानत मिल गई थी। सर्विस टैक्स विभाग ने इस फैसले को अगस्त 2015 में बॉबे हाईकोर्ट में चुनौती दी। 11 मार्च यानी आज बांबे हाईकोर्ट में इसी मामले में सुनवाई हुई तो सर्विस टैक्स विभाग को काफी कुछ सुनना पड़ा। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर आप निचली अदालत के ज़मानत देने के फैसले से खुश नहीं थे तो आपने अगस्त 2015 तक इंतज़ार क्यों किया। आज तक उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस क्यों नहीं जारी हुए हैं जिन्हें आप सुनवाई के लिए बुलाना चाहते हैं। और तो और विभाग को इस बात के लिए भी सुनना पड़ा कि उसके कागज़ात पूरे नहीं है। मामला यह था कि माल्या की कंपनी किंगफिशर एयरलाइन्स ने 32 करोड़ का सर्विस टैक्स उपभोक्ताओं से वसूल कर सरकार को नहीं दिया था। सर्विस टैक्स विभाग का कहना था कि माल्या का पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया जाए लेकिन कोर्ट ने कहा था कि आप ये बात साबित नहीं कर पा रहे हैं कि माल्या आदतन अपराधी हैं। दूसरी बात ये है कि माल्या ने लिखित रूप में दिया है कि वे हरेक सुनवाई पर मौजूद रहेंगे तो फिर ये मामला नहीं बनता है कि पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया जाए।

विजय माल्या ने बार बार कहा है कि वे अदालत का सम्मान करते हैं और कानूनी कार्रवाई में मदद करते हैं, लेकिन इस घटना से लगता है कि उन्होंने अदालत के शुरुआती भरोसे को भी तोड़ा है। आयकर विभाग और सर्विस टैक्स विभाग दोनों को आशंका थी कि एनआरआई होने के नाते माल्या देश छोड़ सकते हैं और यह भी संकेत मिलता है कि इन विभागों ने माल्या को रोकने के लिए ठोस प्रयास नहीं किये। बड़े लोगों के मामले में इस तरह की छोटी ग़लतियां हो जाती हैं। खास बात है कि ऐसी ग़लतियां हर सरकार में हो जाती हैं। पत्रकार शेखर गुप्ता ने चलते चलते में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य से बात की है। उनकी बात से आपको यकीन हो जाएगा कि माल्या के ख़िलाफ विजय प्राप्त करना इतना आसान नहीं है।

इन तीन उदाहरणों से ज्ञात होता है कि विजय माल्या के ख़िलाफ विभागीय कार्रवाई चल रही थी। मीडिया में आर बी आई के चीफ रघुराम राजन का बयान भी आ रहा था कि माल्या जैसे लोगों को शाही खर्च नहीं करना चाहिए, इससे लोगों में गलत मैसेज जाता है। राजनीतिक दलों के अलावा तमाम विभागों की मेहरबानियों को आप किस खाते में डालेंगे। उनके सात बैग में से किसी एक बैग में या किसी और झोले में। भारतीय स्टेट बैंक अपने 1500 करोड़ की वसूली के लिए माल्या जी को खोज रहा है। तमाम बैंक अपना अपना पैसा वसूलना चाहते हैं। माल्या ने अपने बयान में कहा है कि वे बैंकों से बात कर मामला सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य ने शेखर गुप्ता से कुछ और कहा।

विजय माल्या को हमने वन टाइम सेटलमेंट के लिए ऑफर दिया था। उन्होंने बात तो शुरू तो की लेकिन कोई औपचारिक जवाब नहीं दिया। इसलिए हम कोर्ट को बार-बार कह रहे थे कि एसेट अंडर ओथ हमें दें। एसेट अंडर ओथ ये है कि आपके पास जितनी संपत्ति है आप कोर्ट को लिखकर दें कि हमारे पास ये संपत्ति है और मैं इसमें से अपना लोन दे दूंगा। जब हमने किंगफिशर एयरलाइन्स को दूसरा चांस दिया तब उन्होंने अपनी पर्सनल गारंटी दी थी। इसलिए उन पर एसेट अंडर ओथ का कंसेप्ट लागू होता है। मैं यही कहना चाहती हूं कि हम एक ही टीम हैं। हम सबको मिलकर काम करना चाहिए।

2012 में किंगफिशर एयरलाइन्स घाटे से गुज़र रही थी तब यूपीए सरकार इसकी मदद करना चाहती थी। जिसका बीजेपी ने विरोध किया था। उसके चलते यूपीए के मंत्रियों ने बयान दिये कि सरकार किंगफिशर को बचाने का प्रयास नहीं कर रही है। कुछ ही महीनों बाद किंगफिशर को भारतीय स्टेट बैंक से 1500 करोड़ का लोन मिल गया। इस पूरे मामले में बैंकों के भीतर माल्या के हक में फैसले लेने वाले अधिकारियों या निदेशक की कोई बात ही नहीं हो रही है। क्या वे पूरी तरह निर्दोष रहे होंगे। अब सवाल है कि सात हज़ार करोड़ के कर्ज़ को चुकाने के लिए विजय माल्या के पास संपत्ति है या नहीं। एक बात का ध्यान रखियेगा। सारा मामला अदालत में है। अदालत से ही तय होगा कि उन पर कितनी देनदारी बनती है। कितना चुकायेंगे और कितनी सज़ा होगी। फिर भी एक मोटा मोटी बात हो जानी चाहिए कि उनके पास अपना कितना है।

फारूक अब्दुल्ला कहते हैं कि माल्या देश के लिए मुनाफा कमाया है। अब आप स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की अरुंधति जी की भी सुनिये। वो किस देश के लिए अपने बैंक का घाटा वसूलने के लिए इतनी लड़ाई लड़ रही हैं। बहरहाल माल्या साहब को लेकर तरह तरह के बयान आ रहे हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बयान के एक शब्द से सहमत तो नहीं हूं क्योंकि उन्होंने विजय जी को सफेद कॉलर आतंकवादी कह दिया है। फिर भी उद्धव ठाकरे की निर्भीकता से लगा कि उनके बारे में तो विजय माल्या के पास पक्का कोई सबूत नहीं होगा।

ललित मोदी के भाग जाने के बाद जो चिल्ला रहे थे, उन्हें माल्या कैसे भाग गया इसका जवाब देना ही होगा। दाऊद को लाने के लिए सरकार पाकिस्तान के सामने याचना कर रही है। लेकिन उसकी नज़रों के सामने वाइट कॉलर आतंकवादी भाग चुका है। माल्या भाग जाएगा यह देश का दूध पीता बच्चा भी बता रहा है। लेकिन सरकार को समझ में न आया कि अचरजभरी बात है। माल्या की पार्टियों में परोसी शराब का नशा अब भी कइयों के रगों में दौड़ रहा है। उसके उतरने के बाद ही बात होगी।

बीजेपी प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने कहा है कि कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में विजय माल्या को जमकर लूटने की छूट दी है। इसका मतलब है कि बीजेपी भी मानती है कि माल्या ने लूटा है। तो आने वाले दिनों में बीजेपी ये इम्तहान देगी को वो माल्या को बिल्कुल नहीं छोड़ने वाली है। कांग्रेस के मनीष तिवारी ने पूछा है कि विजय माल्या को राज्यसभा का सदस्य बनाने में किस बीजेपी के विधायक ने वोट किया था। जब भी दोनों पार्टियां एक दूसरे की पोल खोलती हैं उम्मीद बढ़ जाती है कि अब सब बाहर आ जाएगा। मगर तभी पर्दा गिरता है और दूसरा मसला आ जाता है। उम्मीद है विजय माल्या का मामला ललित मोदी की तरह ठंडा नहीं पड़ेगा। वैसे भी प्रवर्तन निदेशालय के फैसले पर अमल हुआ तो माल्या 18 मार्च को भारत आ सकते हैं।

विजय माल्या जैसे बड़े लोग अगर बचाये नहीं गए तो छोटे लोगों का बड़ा बनने में यकीन चला जाएगा। इससे हमारी अर्थव्यवस्था के ग्रोथ रेट को नुकसान पहुंच सकता है और विदेशी निवेशकों में डर पैदा हो सकता है। क्या विजय माल्या की संपत्ति ज़ब्त कर बैंक अपना पैसा वसूल सकेंगे यह इस बात पर निर्भर करेगी कि मीडिया कितनी जल्दी विजय माल्या के मसले को भुला देता है जैसे ललित मोदी के मामले में हुआ। अगर आपने बैंक का लोन लिया है और चुका नहीं पा रहे हैं तो आपके लिए एक संवैधानिक चेतावनी है। कृपया करके माल्या की कहानी से प्रेरित न हों, ये कहानी आपको जीने के लिए मजबूर कर सकती है।

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इस पूरे विवाद में एक सवाल का जवाब मिल गया है। सवाल उठ रहा था कि माल्या के खिलाफ सीबीआई ने लुकआउट नोटिस क्यों जारी किया और उसे क्यों बदला गया। पीटीआई के अनुसार सीबीआई ने जो जवाब दिया है आप उसे गंभीरता से लीजिएगा। अगर इसका जल्दी खंडन नहीं किया गया तो ग़ज़ब हो सकता है। सीबीआई ने कहा है कि विजय माल्या के बारे में जो पहला लुकआउट नोटिस जारी हुआ था वो ग़लती से हो गया था। अब बताइये। हमारे देश में गलती से लुकआउट नोटिस जारी हो जाता है। अगर इसी तरह ग़लती से लुकआउट नोटिस जारी होते रहे तो आप लोग भी एयरपोर्ट पर लुकआउट करते रहिए, क्या पता कोई अफसर आपके खिलाफ गलती से लुकआउट नोटिस लेकर आ जाए। अब तो मुझे यह भी लगने लगा है कि विजय माल्या को प्राइम टाइम देखते ही भारत आ जाना चाहिए। क्या पता सीबीआई की तरह सारे बैंक ये कह दें कि 7000 करोड़ का कर्ज़ विजय माल्या ने नहीं, प्राइम टाइम के एंकर रवीश कुमार ने लिया है। क्या मेरा कोई दर्शक लंदन में है जो कल का टिकट भेज सकता है। मैं तो इकोनोमी में भी जाने के लिए तैयार हूं।