प्राइम टाइम इंट्रो : ऑड ईवन पर अलग-अलग अध्ययनों के मिलेजुले नतीजे

प्राइम टाइम इंट्रो : ऑड ईवन पर अलग-अलग अध्ययनों के मिलेजुले नतीजे

ट्रैफिक जाम रोज़ हमारी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा खाये जा रहा है। किस शहर का नाम लिया जाए और किसका नहीं, आलम ये है कि आदमी अपने परिवार से ज़्यादा समय ट्रैफिक जाम से ज़्यादा सामने या बगल वाली कार को देखते हुए बिता रहा है। हर मुल्क में इस जाम से मुक्ति के कुछ न कुछ प्रयोग हुए हैं मगर मुक्ति कहीं नहीं मिली है। कुछ मुल्क हैं जहां प्रयोग सफल हुए हैं और मुक्ति मिली है, उनको दूसरी जगह आज़माने को लेकर बहस है कि क्या ये तरीका हमारे यहां चलेगा। इसलिए हम अहमदाबाद में बीआरटी रहने देते हैं और दिल्ली में तोड़ देते हैं। समाधान के तरीके पर विवाद है मगर समाधान होना चाहिए इसे लेकर किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए।

दिल्ली में ऑड ईवन फिर से शुरू हो गया है। प्रतिक्रियाएं उतनी ही तीव्र हैं जितनी पहली बार थी। इस योजना के पीछे प्रचार का मकसद भी है तो प्रदूषण पर इसके असर को लेकर विवाद भी। मेट्रो ने 56 अतिरिक्त फेरे लगाए। पहली बार में मेट्रो ने ऑड ईवन के एक दिन में 3192 फेरे लगाए थे, इस बार  3248 फेरे लगाए इसके बावजूद कई जगहों पर भारी भीड़ थी और लोगों को लंबे समय तक लाइन में लगना पड़ा। टोकन और सुरक्षा कारणों से। आज कई लोगों ने शिकायत की कि उबर और ओला टैक्सी कंपनी वाले ज्यादा किराया वसूल कर रहे हैं। इस पर हाईकोर्ट ने भी दिल्ली सरकार से पूछा है कि वो बताये कि इसे रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है। अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि रेडियो टैक्सी ने अगर ऑड ईवन के दौरान किराया बढ़ाया तो परमिट रद्द करने से लेकर गाड़ियां भी ज़ब्त कर ली जाएंगी। जैसे ही हल्ला हुआ, रेडियो टैक्सी वालों ने किराया सामान्य कर दिया और तर्क देने लगे कि हमारे बिजनेस का मॉडल ही यही है कि आम दिनों में भी हम ज्यादा मांग होने पर किराया बढ़ा देते हैं।

ऑड ईवन ने एक और फार्मूला दिया है। खासकर वैसे नेताओं के लिए जो दिन भर अपने नेतृत्व को कोसते रहते हैं और खुद कुछ नहीं करते। राजस्थान से राज्यसभा सांसद और दिल्ली बीजेपी के नेता विजय गोयल ने विरोध की ऐसी तरकीब निकाली कि आम आदमी पार्टी सरकार की इस योजना के ख़िलाफ़ प्रतिपक्ष की वे अकेली आवाज़ बन गए। 15 अप्रैल यानी शनिवार को ऐलान किया कि मैं सोमवार को ऑड ईवन के नियम को तोड़ूंगा। शनिवार और रविवार उन्हीं की चर्चा रही। सोमवार को ट्वीट किया किया कि मैं अपनी कार से संसद की तरफ 'आप' के ऑड ईवन भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने जा रहा हूं। जितने कैमरे इस बार अरविंद केजरीवाल के घर लगे थे, विजय गोयल के घर भी उतने ही कैमरे पहुंच गए।

विजय गोयल के घर से निकलने से पहले दिल्ली के परिवहन मंत्री गोपाल राय गुलाब का एक फूल लेकर पहुंच गए। विजय गोयल ने सौ फूलों का गुलदस्ता देकर विरोधी का स्वागत किया। गोपाल राय यह अनुरोध करने पहुंचे कि विजय गोयल साहब ऑड ईवन का अनुकरण करें और नियम तोड़कर जुर्माना न दें। विजय गोयल ने कहा कि उन्हें ऑड ईवन से कोई समस्या नहीं है। समस्या इस बात से है कि इसे लेकर इतना प्रचार क्यों हो रहा है। संवाददाताओ ने तो विजय गोयल की कार भी दिखाई, उसका नंबर प्लेट दिखा दिखाकर बयां किया कि इसी ऑड नंबर की कार से वे ईवन डे पर नियम तोड़ने जा रहे हैं।

केजरीवाल सरकार के प्रचार का विरोध करने का विजय गोयल ने जो तरीका निकाला उससे उनका प्रचार भी खूब हुआ। प्रचार में माहिर माने जाने वाले केजरीवाल को विजय गोयल ने अच्छी टक्कर दी। अब वक्त आया जब गोयल जी कार में सवार होकर सविनय अवज्ञा करने सड़क पर निकले। पूरे तामझाम के साथ विजय गोयल का चालान कटा। जुर्माना था दो हज़ार का लेकिन चालान कट गया साढ़े तीन हज़ार का। डेढ़ हज़ार इसलिए कटा क्योंकि उनके पास लाइसेंस नहीं था और बीमा के कागज़ात नहीं थे। विरोध की जल्दी में शायद भूल गए होंगे।

जो भी हो प्रचार युग की राजनीति में सोमवार के मैन आफ द मैच तो विजय गोयल साहब ही रहे। उनका कहना था कि ऑड ईवन के प्रचार पर जो करोड़ों का खर्चा हुआ है उसका पूरा ब्योरा दिया जाना चाहिए। यह एक अच्छी राजनीति है। आज कल केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारें कुछ योजनाओं के प्रचार पर आपने विज्ञापनों की अति देखी होगी। इन सबका हिसाब मांगा जाए तो काफी कुछ पता चलेगा कि प्रचार ही हुआ या काम भी। जैसे आम आदमी पार्टी के पिछली बार के प्रचार बजट की जमकर आलोचना हुई तो इस बार राशि में काफी कटौती तो करनी ही पड़ी। गोपाल राय ने कहा है कि वे इसके प्रचार पर और अधिक खर्च करने वाले हैं। लोग यह पूछ रहे हैं कि पिछली बार पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर करने के जो वादे हुए थे उनका क्या हुआ। हमारे सहयोगी क्रांति संभव ने ndtv.in पर लिखा है कि ऑड ईवन के पहले चरण में चालान से 2 करोड़ रुपये मिले थे। तब सरकार ने कहा था कि चालान के पैसों से पैदल यात्रियों के लिए रास्ते बनाए जाएंगे। साइकिल सवारों के लिए कितनी जगहों पर ट्रैक बने हैं या बनने शुरू हुए हैं।

जनवरी में दिल्ली सरकार ने कहा था कि वो जल्द ही 3000 नई बसें खरीदेंगे। इनमें से 1000 बसें एलिट क्लास के लिए होंगी जिनका किराया महंगा होगा। फरवरी में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार से पब्लिक ट्रांसपोर्ट ठीक करने के लिए केंद्र सरकार से 5000 बसों के लिए 4000 करोड़ का पैकेज मांगा था। 28 मार्च के अपने बजट में दिल्ली सरकार ने 3000 नई बसों के लिए 1,735 करोड़ रुपये का प्रावधान कर दिया। अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि ट्रांसपोर्ट सिस्टम को ठीक करने में डेढ़ साल लग जाएंगे। केजरीवाल ने जनवरी में कहा था कि सड़कों से धूल हटाने का प्रयास किया जाएगा, कई जगहों पर मशीन से धूल हटाने का काम होने लगा है लेकिन केजरीवाल ने कहा है कि पूरी दिल्ली में इसे शुरू करने में थोड़ा वक्त लगेगा।

केजरीवाल ने वादा किया था कि एक अप्रैल से सड़कों की वैक्यूम क्लीनिंग शुरू हो जाएगी। एक अप्रैल को शुरू हो भी गई लेकिन अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि शुरुआत तो हो गई है लेकिन दिल्ली की 1300 किमी लंबी सड़कों को साफ करने में दो महीने और लगेंगे। यानी केजरीवाल का वादा सिर्फ पीडब्ल्यूडी के तहत आने वाली 1300 किमी लंबी सड़कों तक ही सीमित था। एमसीडी के तहत आने वाली सड़कों का क्या होगा। ठीक है कि उनकी जिम्मेदारी नहीं है मगर वो सड़कें भी तो दिल्ली की हैं।

ऑड ईवन योजना को लेकर नेताओं और नागरिकों के साथ-साथ पर्यावरण और परिवहन पर शोध करने वाली तमाम संस्थाओं की भी नज़र है। इंटरनेट से रिसर्च के बारे में पता करते वक्त लगा कि इस स्कीम ने कई संस्थाओं को पढ़ने लिखने का अच्छा काम दे दिया है। चंद नाम बताना चाहता हूं।

- सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टिट्यूट (CRRI)
- IIT दिल्ली
- IIT-Roorkee
- IIT Kanpur
- CSE : सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरनमेंट
- School of Planning and Architecture (SPA)
- TERI : दि एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट
- Amity University
- सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड
- दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड
- WRI INDIA
- दिल्ली की संस्था Council on Energy, Environment and Water (CEEW) ने यूनिवर्सिटी आफ शिकागो के Energy Policy Institute at the University of Chicago के साथ मिलकर शोध किया।
- मेसेचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी

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13 संस्थाओं की जानकारी हमारे पास है, जिन संस्थाओं के नाम छूट गए वे या तो हमे माफ करें या फिर संपर्क करें। किसी संस्था ने एक रूट पर यह देखा कि बस, मेट्रो कार और ऑटो रिक्शा में यात्रियों की संख्या पर क्या असर पड़ता है। किसी ने देखा कि व्यस्त समय में औसत रफ्तार कम होती है या ज्यादा होती है। किसी ने वायु प्रदूषण की जांच की तो कोई इस बात को लेकर शोध कर रहा था कि ऑड ईवन स्कीम के दौरान लोगों का व्यवहार कैसा था। ट्रैफिक फ्लो कैसा था। दिल्ली के पड़ोस नोएडा की आबो हवा पर क्या असर पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण पर क्या असर पड़ा। ड्राईवरों के व्यवहार पर क्या असर पड़ा। कई सारे सवालों को लेकर शोध किये गए जिनके अलग अलग नतीजे आए।