दिल्‍ली में केंद्र और राज्‍य के दांवपेच

नई दिल्‍ली:

दिल्ली में सरकार कौन है इसकी लड़ाई रोज़ कोई न कोई नया मोड़ ले रही है। इस खेल में अधिकारियों को प्यादा बनाकर पहले चाल चली जाती है फिर उसे सही ग़लत की बहस में उलझा दिया जाता है।

प्रधानमंत्री ने चुनावों में कहा था कि वे केंद्र और राज्यों की एक टीम बनाना चाहते हैं लेकिन वो टीम दिल्ली में बिखर गई है लेकिन दिल्ली में कोई किसी को रोक नहीं रहा। राजनीतिक रूप से शांत मानी जाने वाली दिल्ली बहुमत के बाद भी गठबंधन सरकारों के दौर की तरह अस्थिर हो गई है। भाषा और दांव के स्तर पर दोनों पक्षों का योगदान बराबर है। कहीं भाषा मर्यादा से बाहर है तो कभी दांव सीमा से।

मंगलवार सुबह दस बजे दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर को उनके दफ्तर से उठा लिया और वसंत विहार थाने ले कर आ गई। यह मामला तोमर के विधायक बनने के पहले ही सामने आ गया था, इसके बाद भी वे कानून मंत्री बनाए गए। यही मामला दिल्ली हाई कोर्ट में भी है जहां अंतिम फैसला नहीं आया है।

इस बीच 11 मई को दिल्ली बार काउंसिल ने डीसीपी साउथ से कहा कि तोमर की बीएससी की डिग्री, मार्कशीट, एलएलबी प्रोफेशनल सर्टिफिकेट, मार्कशीट फर्ज़ी लगती है। दिल्ली पुलिस ने अपनी टीमें भागलपुर और फ़ैज़ाबाद के लिए रवाना कर दी। मंगलवार शाम को दिल्ली पुलिस ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जांच रिपोर्ट की फाइल पत्रकारों को दिखाते हुए कहा कि तोमर के दस्तावेज़ फर्ज़ी हैं।

जांच में पाया गया कि अवध युनिवर्सिटी की उनकी BSC की डिग्री का जो रोल नंबर था वो कॉलेज और युनिवर्सिटी के रिकॉर्ड में नहीं मिला। परीक्षा नियंत्रक ने भी बताया कि तोमर के नाम पर कोई भी डिग्री या मार्कशीट जारी नहीं की गई है। साथ ही, एलएलबी की डिग्री में जो रोल नंबर लिखा है, विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में उस रोल नंबर के सामने किसी दूसरे छात्र का नाम है।

पुलिस ने कहा कि तिलका मांझी युनिवर्सिटी ने ये तसदीक की है कि जो दस्तखत प्रोविजनल सर्टिफिकेट और तीसरे वर्ष की मार्कशीट पर हैं वो फर्ज़ी हैं। तब सवाल उठता है कि क्या पहले और दूसरे वर्ष की मार्कशीट भी है। इस पर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पुलिस ने कहा कि बीएससी प्रथम वर्ष और द्वितीय वर्ष की मार्कशीट पर प्रिंसिपल के दस्तखत हैं। कॉलेज के सुपरीटेंडेंट ने कहा कि वे इसे सत्यापित नहीं कर सकते। इसलिए पुलिस इस मामले में अभी जांच करना चाहती है।

प्रेस कांफ्रेंस में दिल्ली पुलिस ने कहा कि गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के मुताबिक की गई है लेकिन जब पत्रकारों ने सवाल पूछे तो कहा गया कि जांच का विषय है इसलिए तकनीकी पहलुओं पर जवाब नहीं दे सकते। राजनीतिक रूप से सवाल हो सकता है कि दिल्ली हाई कोर्ट में मामला चल रहा है तब अलग से जांच क्यों की गई और गिरफ्तारी क्यों की गई। इसका जवाब अदालत से ही मिलेगा, नैतिकता के पैमाने पर बहस ही हो सकती है।

साकेत के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने काफी लंबी बहस चली। दिल्ली पुलिस ने कहा कि उन्हें तोमर को पांच दिनों के लिए भागलपुर ले जाना है, ताकि जांच कर सके कि साज़िश में और कौन शामिल था। तोमर की तरफ से आम आदमी पार्टी के नेता एच.एस. फुल्का ने बहस करते हुए कहा कि तोमर का रोल नंबर 31518 है जबकि आरटीआई में जानबूझ कर दूसरा रोल नंबर देकर पूछा गया था कि क्या यह तोमर का नंबर है।

सवाल ग़लत पूछा जाएगा तो जवाब भी ग़लत मिलेगा। लेकिन पुलिस तो कह रही है कि तोमर की जमा की हुई डिग्री पर दस्तखत ही जाली हैं। जज ने पूछा भी कि बहुत तेज़ी से कार्रवाई हुई है तो पुलिस का जवाब था कि हमने पूरी जांच की है। फुल्का ने दलील दी कि ऐसा कैसे हो सकता है कि ये भागलपुर और अवध तक चले जाएं लेकिन हाईकोर्ट नहीं गए जहां यह मामला मूल रूप से चल रहा है। पुलिस ने अपनी दलील दी कि हमारी जांच में दस्तावेज़ सही नहीं निकले हैं। कोर्ट में तोमर की ज़मानत अर्ज़ी खारिज हो गई और चार दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिए गए।

स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव ने कहा है कि आम आदमी पार्टी को तोमर की डिग्री की ओरिजनल कॉपी सार्वजनिक कर देनी चाहिए। योगेंद्र और प्रशांत ने आम आदमी में रहते हुए तोमर जैसे मसलों को लोकपाल से जांच कराने की मांग की थी। मई में जनता का रिपोर्टर कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि ओरिजनल डिग्री लाने के लिए बिहार भेजा है लेकिन उस बात को एक महीने से भी ज्यादा हो गए। उससे पहले डिग्री के फर्ज़ी होने की बात आ गई। आम आदमी पार्टी और सीपीएम दोनों ने इस मामले को मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी से जोड़ दिया कि उन्होंने भी तो हलफनामे में अपनी डिग्री की जानकारी सही नहीं दी थी। हैरानी की बात है कि इतनी बड़ी गिरफ्तारी पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने एक भी ट्वीट नहीं किया है।

उनका आख़िरी ट्वीट सोमवार शाम 6 बजे के आस-पास का है। जब उन्होंने मनीष सिसोदिया के ट्वीट को री ट्वीट किया था। मनीष ने लिखा था कि क्या सीएनजी घोटाले की फाइल खुलने से घबरा कर की जा रही है एसीबी के नए चीफ़ की नियुक्ति।

इसी के साथ एक और घटनाक्रम को भी समझना होगा। शीला दीक्षित सरकार के समय सीएनजी किट लगाने के लिए दो कंपनियों को बिना ठेका टेंडर देने का आरोप है। मामला 2002 का है। आरोप यह भी है कि इससे सरकार को 100 करोड़ का नुकसान हुआ। सीबीआई ने जांच उपराज्यपाल को सौंप दी थी लेकिन 2012 में इस मामले में शीला दीक्षित को एसीबी से क्लिन चिट मिल गई।

आप का कहना है इसी मामले में सीबीआई ने अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने की अनुमति मांगी थी, जो नहीं दी गई। सूत्रों के अनुसार दिल्ली सरकार एलजी के खिलाफ केस चलाना चाहती है क्योंकि उन्होंने गलत तरीके से केस बंद करने को कहा था। दिल्ली सरकार इस केस की दोबारा जांच के आदेश एसीबी को दे चुकी है।

सोमवार को उप राज्यपाल ने अपने आदेश से एंटी करप्शन ब्रांच का नया मुखिया ज्वाइंट कमिश्नर एम.के. मीणा को बना दिया। दिल्ली सरकार ने कहा कि एसीबी में ज्वाइंट कमिश्नर का पद है ही नहीं। अभी तक एस.एस. यादव एसीबी के मुखिया थे लेकिन उनके ऊपर नया मुखिया आ गया। एक नया पद रातों रात बना दिया गया। मंगलवार शाम को खबर आती है कि तोमर की ज़मानत रद्द हो गई और थोड़ी देर बाद खबर आती है कि उप राज्यपाल ने गृह सचिव धर्मपाल के तबादले के दिल्ली सरकार के फैसले को रद्द कर दिया है।

मंगलवार दोपहर तीन बजे अरविंद केजरीवाल बिजली कंपनियों के मामले की जांच को लेकर सीएजी से मिलने गए। कुल मिलाकर एक कमेंटेटर रखना होगा जो बताता रहेगा कि दिल्ली सरकार का ये आदेश आ गया और उप राज्यपाल ने उस आदेश को रद्द कर दिया। उप राज्यपाल ने ये आदेश दिया, दिल्ली सरकार ने उसे रद्द कर दिया। वैसे एसीबी को लेकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच भी खूब खेल चल रहा है। नायडू ने गुंटूर की रैली में तेलंगाना के सीएम को चुनौती देते हुए कहा कि अगर तुम्हारे पास एसीबी है तो हैदराबाद के पास भी एसीबी है।

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तोमर की गिरफ्तारी के तरीकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। क्या उप राज्यपाल, विधानसभा के स्पीकर या मुख्यमंत्री को पता था कि गिरफ्तारी हो रही है। पर सवाल तरीके से ज्यादा बड़ा हो गया। क्या अब भी आम आदमी पार्टी तोमर का बचाव करेगी। हाईकोर्ट में ज़मानत को चुनौती दी जा सकती है लेकिन कब तक सरकार इस मामले को खींचेगी। क्या तोमर कमज़ोर कड़ी बन गए हैं। अगर डिग्री फर्ज़ी पाई गई तो क्या इस लड़ाई में आप सरकार की यह बड़ी नैतिक हार नहीं है। क्या तोमर का तुरंत इस्तीफा नहीं हो जाना चाहिए।