प्राइम टाइम इंट्रो : एमसीडी और दिल्ली सरकार में ठनी

प्राइम टाइम इंट्रो : एमसीडी और दिल्ली सरकार में ठनी

बेंगलुरु में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते अरविंद केजरीवाल

आठ दिनों से एमसीडी में हड़ताल है। आठ दिनों से हम यही सुन रहे हैं कि दिल्ली सरकार ने पैसा नहीं दिया, तो एमसीडी को बीजेपी ने कंगाल बना दिया। दोनों पक्ष अपना-अपना तथ्य दे रहे हैं, लेकिन कोई मुकम्मल तस्वीर नहीं बन पा रही है, जिससे पता चले कि दोषी कौन है। बीजेपी इस तरह से पेश आ रही है जैसे इस मामले में वो जो कह रही है वही सही है। आम आदमी पार्टी भी दावा कर रही है कि उसका कहा हुआ ही अंतिम सत्य है।

दिल्ली नगर निगम के डेढ़ लाख से ज्यादा कर्मचारी हड़ताल पर हैं। इसके कारण निगम के तहत चलने वाले सरकारी स्कूल और अस्पताल में काम ठप पड़ा है। सड़कों पर कूड़ा फैलता जा रहा है। कहीं डॉक्टर तो कहीं सफाई कर्मचारी तो कहीं प्रशासनिक कर्मचारी अलग-अलग जगहों पर धरना प्रदर्शन करते रहे। कोई किसी के घर जाकर कूड़ा फेंक आ रहा है तो कोई दिल्ली सरकार से यह भी मांग कर रहा है कि दिल्ली नगर निगम को फिर से एक कर दिया जाए। संयुक्त कर्मचारी फ्रंट के अध्यक्ष राजेश मिश्रा ने कहा है कि जब तक तीनों नगर निगम एक नहीं होंगे तब तक हड़ताल चलेगी। आठ दिनों से चल रही इस हड़ताल के कारण आम लोगों को तकलीफ तो हो ही रही होगी, यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि कर्मचारियों और पेंशन पर निर्भर रहने वालों को पैसे नहीं मिलेंगे तो वो अपना खर्च कैसे चलायेंगे। आप सबका दुख और सुख पता लगा सकते हैं मगर यह नहीं पता लगा सकते कि इस स्थिति के लिए कौन ज़िम्मेदार है। इस बहस में शामिल लोगों की भाषा से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पहले राजनीतिक विरोध निकलता है, बाद में उस विरोध को सही ठहराने वाला तथ्य जो उनके ही हिसाब से निकलता प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि भरमाने की होड़ मची है। दोनों पक्ष अपने अपने तथ्यों से इस तरह भरमा दे रहे हैं कि तथ्य तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है।

अभी तक केंद्र बनाम दिल्ली की इस लड़ाई में यही अहसास कराया जाता था कि दिल्ली के पास कोई अधिकार नहीं है। किसी अन्य मामले में चल रही सुनवाई के दौरान शहरी विकास मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि तीनों निगम दिल्ली सरकार के तहत आते हैं। अब क्या इसका यह मतलब निकाला जाए कि लेफ्टिनेंट गर्वनर मुखिया के नाते एमसीडी के लिए ज़िम्मेदार हैं। लेकिन एलजी को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार के पास यही मौका नहीं है कि वो एलजी से बिना पूछे फैसला ले और अपने अधिकार का इस्तेमाल करे। दिल्ली सरकार ने कहा कि एमसीडी कमिश्नर की नियुक्ति से लेकर निगम को भंग करने का अधिकार केंद्र के पास है।

बेंगलुरु में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली म्यूनिसिपल एक्ट की धारा 486 के तहत दिल्ली सरकार एमसीडी की जांच कर सकती है, लेकिन जब सरकार ने अकाउंट दिखाने को कहा तो एमसीडी ने मना कर दिया। केजरीवाल ने पूछा कि एमसीडी को पार्किंग, होर्डिंग और हाउसिंग टैक्स के जो करोड़ों रुपये मिलते हैं, उसका हिसाब क्यों नहीं दिया जा रहा है। वो पैसा कहां जा रहा है। उनकी सरकार ने इस साल एमसीडी को 100 करोड़ ज्यादा दिए हैं। ये 100 करोड़ रुपये कहां गए। उनकी अपनी सरकार ने नार्थ एमसीडी में 300 करोड़ और ईस्ट एमसीडी में 76 करोड़ की रिकवरी की है। ये पैसा कहां गया। केजरीवाल ने कहा कि 31 दिसंबर तक का पैसा दे दिया गया था, फिर भी 27 जनवरी से कर्मचारी हड़ताल पर क्यों गए। एमसीडी को 31 जनवरी तक 690 करोड़ की ज़रूरत है जिसमें से हम 550 करोड़ का लोन दे रहे हैं। जब पैसे देने की बात आती है तो कहते हैं दिल्ली सरकार दे और हंगामा करने के वक्त दिल्ली केंद्रशासित राज्य बन जाता है।

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि डॉक्टरों ने लिखा है कि एमसीडी के अस्पतालों को दिल्ली सरकार ले ले। वे एमसीडी के साथ नहीं रहना चाहते हैं। 19 यूनियनों ने लिखा है कि दिल्ली नगर निगम को भंग कर दिया जाए। केजरीवाल ने मांग की कि एमसीडी की सीबीआई जांच होनी चाहिए। इसके जवाब में पूर्वी और उत्तरी एमसीडी के मेयरों ने कहा कि
सीबीआई की जांच के लिए तैयार हैं, लेकिन उनके साथ साथ केजरीवाल सरकार, मंत्री और विधायकों की भी सीबीआई जांच होनी चाहिए। इसे कहते हैं भरमाने की पोलिटिक्स। इतना भरमा दो कि पता ही न चले कि मसला क्या था। मेयर ने केजरीवाल के उस दावे को चुनौती दी कि आपने उत्तरी एमसीडी को 890 करोड़ दिए हैं। लेकिन साल भर के वेतन का हिसाब तो 3,000 करोड़ आता है। सही बात है, लेकिन क्या मेयर रवींद्र गुप्ता साल भर का सारा पैसा एक ही साथ मांग रहे हैं। एक एमसीडी पूरे साल का वेतन जनवरी में ही कर्मचारियों को दे देती है। क्या इस बकाये से एमसीडी का संकट एक बार में ही समाप्त हो जाएगा या यह संकट फिर खड़ा होने वाला है। रवींद्र गुप्ता ने कहा कि दिल्ली की जनता को अपनी महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ा देना स्कैम नहीं है। इस नए स्कैम के लिए उनकी दाद दी जानी चाहिए। इस स्कैम में न जाने कितने नेता नप जाएंगे। उम्मीद है रवींद्र गुप्ता ने ये वाला स्कैम नहीं किया होगा। खैर मेयर की बात से लगा कि वे मानते हैं कि एमसीडी में वित्तीय संकट है। उन्होंने आर्टिकल 243 का हवाला देते हुए कहा कि किसी राज्य के नगर निगम में कोई वित्तीय संकट है तो उसे लिटिगेट करने की ज़िम्मेदारी उस राज्य सरकार की होगी। अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रहे हैं केजरीवाल। अगर वित्तीय संकट है तो इसका जिम्मेदार भी कोई होगा। वो केजरीवाल हैं या मेयर रवींद्र गुप्ता। जब हमने आर्टिकल 243 पढ़ा तो उसमें एक जगह साफ-साफ लिखा है कि राज्य की विधायिका निगम के खातों की जांच कर सकती है। हिसाब कर सकती है। ये बात शायद मेयर नहीं बता सके। केजरीवाल ने कहा कि नार्थ एमसीडी को विज्ञापन से 17 करोड़ आता है, जबकि 25 गुना ज़्यादा आना चाहिए। नार्थ एमसीडी के मेयर ने कहा कि केजरीवाल जी विज्ञापन विभाग से 25 गुना पैसा आप कमाकर दिखा दीजिए हमें कोई आपत्ति नहीं है। अगर केजरीवाल ने वाकई ये विभाग मांग लिया तो। मुझे नहीं पता कि रवींद्र गुप्ता इस चनौती को लेकर वाकई गंभीर हैं या भावुकता में कह गए।  

मेयर रवींद्र गुप्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार कहती है कि पहले डीडीए उसका पैसा दे। इस प्रकार की बात एक मानसिक रोगी कर सकता है। ईस्ट एमसीडी के मेयर ने कहा कि चौथे वित्त आयोग की रिपोर्ट जल्दी लागू हो। दिल्ली सरकार ने 2 दिसंबर को यह रिपोर्ट स्वीकार कर ली थी और कहा था कि रिपोर्ट के सुझावों के अनुवासर जब भी केंद्र इसे लागू मान लेगा, दिल्ली सरकार भी मान लेगी। बेंगलुरु में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने एमसीडी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए, जिसके जवाब में मेयर ने कहा कि आधे से ज़्यादा अधिकारी दिल्ली के माध्यम से दिल्ली नगर निगम के अंदर रिक्रूट किए जाते हैं केजरीवाल साहब। आपकी सरकार के माध्यम से। अगर कोई भ्रष्टाचार कर रहा है तो वो हम कर रहे हैं या दिल्ली सरकार? दिल्ली सरकार के अधिकारी कर रहे हैं भ्रष्टाचार।

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पहली बार पता चला है कि दिल्ली नगर निगम में भ्रष्टाचार इसलिए है कि उसके अफसरों-कर्मचारियों की नियुक्ति दिल्ली सरकार ने की है। मेरे ख्याल से इस फार्मूला का पेटेंट करा लेना चाहिए। राजनीति आम आदमी पार्टी भी कर रही है। केजरीवाल ने कहा कि एक साल बाद दिल्ली नगर निगम के चुनाव हो रहे हैं और उनकी पार्टी जीतने वाली है। एक साल पहले ही जीतने का एलान कर रहे हैं। अगर अभी वो 550 करोड़ कर्ज के तौर पर और 142 करोड़ स्टाम्प ड्यूटी के तौर पर दे सकते हैं तो पहले ही क्यों नहीं दे दिया।