क्या है स्मार्ट सिटी और स्मार्ट शहर बनाने की क्या ज़रूरत?

नई दिल्ली:

तेल का दाम बढ़ गया, इसका मतलब यह नहीं कि पंजाब के मुख्यमंत्री अपनी कंपनी की बस को पुलिस की सुरक्षा नहीं देंगे। उनकी कंपनी की बस से जब एक महिला और बच्ची को फेंका गया तो प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। ज़ाहिर है राजनीतिक प्रतिक्रिया भी होगी।

लेकिन जब आप उनकी कंपनी की बस को आगे-पीछे पुलिस सुरक्षा में चलते हुए देख रहे हैं तो क्या वाकई आप इस बात की चिन्ता कर रहे हैं कि पेट्रोल और डीज़ल के दाम फिर से तीन रुपये और चार रुपये प्रति लीटर बढ़ने लगे हैं। क्या पंजाब सरकार के लिए पेट्रोल महंगा नहीं हुआ है कि एक प्राइवेट कंपनी की गाड़ी को पुलिस की दो-दो गाड़ियां एस्कोर्ट कर रही हैं।

क्या किसी भी प्राइवेट कंपनी की बस को राज्य सरकार ऐसी सुरक्षा देती है या बादल परिवार की कंपनी की बस को ऐसी सुरक्षा दी जाएगी? क्या इतनी सुरक्षा उस मां को दी जाएगी जो अस्पताल में संघर्ष कर रही है और उसकी एक बेटी की जान जा चुकी है? मर्सिडिज की बसें हैं तो क्या एक बस पर दो दो पुलिस की गाड़ी? ये आप तय कीजिए कि ये स्मार्टनेस है या नहीं।

आगरा के फतेहपुर सिकरी की इस घटना से आपको खुद के स्मार्ट होने पर शर्म आएगी। कसूर किसी का नहीं मगर उस हालात का है जिसे हम स्मार्ट नीतियों से बदलने का दावा करते हैं। 6 से 12 साल के चार बच्चे थाने पहुंचे और कहा कि हमारा कोई नहीं है। इनके मां बाप ने खेती के कर्जे से तंग आकर खुदकुशी कर ली थी। मौसी अपने साथ ले गई लेकिन वो परिवार भी मौसम की मार से बर्बाद हो गया और इन बच्चों को चले जाने के लिए कह दिया। ये बच्चे चार दिनों से भूखे थे। ऐसे भारत में सौ स्मार्ट सिटी का सपना क्या इन बच्चों जैसों की हालत बदल देगा?

केंद्रीय शहरी मंत्रालय की वेबसाइट moud.gov.in पर स्मार्ट सिटी के बारे में कंसेप्ट नोट मिला। वैसे हिन्दी और संस्कृत में मंत्री पद या सांसद की सदस्यता की शपथ लेना आसान है लेकिन जब आप स्मार्ट सिटी पर कंसेप्ट नोट लिखने चलेंगे तो पहले अंग्रेज़ी में ही मिलेगा। अंग्रेजी में ही मिला। नंवबर 2014 में अपलोड किए गए कंस्पेट नोट में कुछ बातों को कई बार घुमाफिराकर कहा गया है, जिसे हम कॉलेज में पन्ना भरना कहते हैं। जैसे 2050 तक शहरी आबादी दुगनी हो जाएगी। अभी भारत में शहरी आबादी 31 प्रतिशत ही है लेकिन जीडीपी में उसका योगदान 60 प्रतिशत है।

मगर इसे 'एतना एतना' साल के बाद बढ़ाकर 75 प्रतिशत होना है। इसलिए शहरों को स्मार्ट बनाने की ज़रूरत है। शहर आर्थिक विकास के ईंजन हैं। इसमें बताया गया है कि स्मार्ट सिटी में बढ़िया इंफ्रास्ट्रक्चर होगा, पानी सफाई की बेहतर सेवाएं होंगी, पारदर्शी प्रक्रिया होगी, निवेश आएगा और वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए मंज़ूरी की प्रकिया आसान की जाएगी ताकि आसान हो सके। सूचना टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से स्मार्ट सिटी की कुशलता को बढ़ाया जाएगा। रोज़गार और आर्थिक गतिविधियों के लिए अनुकूल माहौल बनेगा।

गूगल करेंगे तो ठीक इसी भाषा में कई एजेंसियों के लेख स्मार्ट सिटी की वकालत करते मिल जाएंगे। कांसेप्ट पेपर में एक प्रश्न है स्मार्ट सिटी क्या है। इसका जवाब सुनिये, शहर में अलग-अलग लोगों के लिए स्मार्टनेस का मतलब अलग होता है। यह स्मार्ट डिज़ाइन हो सकता है, स्मार्ट हाउसिंग हो सकती है, स्मार्ट मोबिलिटी हो सकती है, स्मार्ट टेक्नोलॉजी इत्यादि हो सकती है। स्मार्ट सिटी की परिभाषा देना मुश्किल है।

अगर परिभाषा मुश्किल है तो क्या यह बताया जा सकता है कि डिज़ाइन और स्मार्ट डिज़ाइन में क्या अंतर है। स्मार्ट सिटी की खूबियों को टेक्नोलॉजी से बताया जा सकता है। सरकार इसे रोज़गार, आर्थिक विकास और बेहतर जीवन के मॉडल के रूप में पेश कर रही है। 44 पेज के कंसेप्ट नोट में एक पैरा ये मिला कि यह भी ज़रूरी है कि शहर समावेशी हों और ऐसे ढांचे बनें जिसमें अनुसूचित जाति/जनजाति, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े, अल्पसंख्यक, औरतों को विकास की मुख्यधारा में लाया जा सके।

स्मार्ट सिटी के कंसेप्ट नोट के अनुसार राज्यों की राजधानी को भी स्मार्ट बनाया जाएगा। दस से चालीस लाख के 35 शहर भी स्मार्ट बनेंगे। एक से दो लाख के 25 शहर बसाए जाएंगे। एक से दो लाख के शहर तो प्राइवेट बिल्डर बसाते ही रहते हैं तो क्या वे आर्थिक गतिविधि नहीं बढ़ा रहे हैं। अब मेरा एक सवाल है। मैंने जितने भी लेख पढ़े उनमें भारत के मौजूदा शहरों को औसत बताया गया है। लेकिन उन्हीं लेखों में जब बार-बार ये पढ़ा कि भारत की 31 फीसदी आबादी शहरी है और जीडीपी में शहरों का योगदान 60 प्रतिशत है तो सवाल उठा कि इस औसत हालत में अगर शहरों का योगदान इतना है तो क्या वे स्मार्ट नहीं हैं। अगर हमारे शहर आर्थिक रूप से इतने बेकार हैं तो 60 प्रतिशत तक कैसे पहुंच सके हैं। स्मार्ट सिटी की जिज्ञासा को सवाल और संभावना दोनों से शांत किया जाना चाहिए।

इसमें कोई शक नहीं कि नए शहरों की ज़रूरत है लेकिन क्या स्मार्ट सिटी के दावे पर भरोसा किया जा सकता है कि इससे बिजनेस बढ़ेगा। शहर बनाने से बिजनेस बढ़ेगा या उद्योग बढ़ाने से। क्या स्मार्ट सिटी के बहाने कंस्ट्रक्शन उद्योग को बढ़ावा देना जो बनते वक्त तो जीडीपी में गिना जाएगा मगर बनने के बाद चीन के कई शहरों की तरह भुतहा हो जाएगा।

गिफ्ट जैसे फाइनेंस सिटी की बात तो समझ आती है लेकिन एक देश में आप ऐसे कितने शहर बना सकते हैं। जिस कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का इस्‍तेमाल स्मार्ट सिटी को बेहतर और कम खर्चे वाला बनाने में किया जा सकता है तो वही टेक्नोलॉजी पुराने शहरों में क्यों नहीं लाई जा सकती जिससे वहां का जीवन स्तर बेहतर हो सके। क्या स्मार्ट सिटी नया सेज़(SEZ) है। दावा किया गया है कि बिजनेस के लिए मंज़ूरी की प्रक्रिया आसान की जाएगी तो यही छूट दिल्ली के सदर बाज़ार, मुंबई के झावेरी बाज़ार और कोलकाता के बड़ा बाज़ार के कारोबारियों को क्यों न मिले। मौजूदा मझोले शहरों को स्मार्ट सिटी में बदलने की बात है लेकिन क्या वाकई हमें 100 स्मार्ट सिटी की ज़रूरत है। गुड़गांव, नोएडा, नवी मुंबई जैसे सेटैलाइट शहर भी चुनौतियों से गुज़र रहे हैं। कई प्रोजेक्ट लॉन्‍च होते रहते हैं मगर उनका हाल सब जानते हैं। सेज़ के लिए ली गईं ज़मीनों का बड़ा हिस्सा बेकार पड़ा हुआ है।

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दुनिया भर में स्मार्ट सिटी को एक बिजनेस आइडिया के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। एक http://smartcitiescouncil.com/ है जो इसकी वकालत करती है। हमारे यहां भी उद्योगों की जमात सीआईआई ने नेशनल मिशन फॉर स्मार्ट सिटी बनाया है जिसमें इंफ्रास्ट्रक्टर और आईटी की बड़ी कंपनियों को शामिल किया जाएगा। दिल्ली के प्रगति मैदान में 20-22 मई को स्मार्ट सिटी पर सम्मेलन हो रहा है। इसकी जानकारी आपको http://smartcitiescouncil.com/ से मिलेगी। ये सब मैं इसलिए बता रहा हूं ताकि आप समझ सकें कि ये अब एक नया कारोबार है और हकीकत है। अभी तक राजाओं ने बसाया, सरकारों ने बसाया, लोगों ने अतिक्रमण कर शहर बसाये, अब कंपनियां शहर बसायेंगी।