प्राइम टाइम इंट्रो : भारत बंद की अपील किसने की थी?

प्राइम टाइम इंट्रो : भारत बंद की अपील किसने की थी?

भारत बंद की अपील किस दल ने की थी, इसका पता लगाना जरूरी है, क्योंकि तमाम विपक्षी दलों को भी इसका जवाब नहीं मालूम है. रविवार से सोमवार तक वो यही सफाई देते रहे हैं कि उन्होंने भारत बंद की अपील नहीं की है. रविवार को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार के सारे रास्ते बंद करने में लगी हैं, काले धन के सारे रास्ते बंद करने में लगी है, तो दूसरी तरफ लोग भारत बंद करना चाहते हैं. आप मुझे बताइये भ्रष्टाचार का रास्ता बंद होना चाहिए कि भारत बंद होना चाहिए.

प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद विपक्ष सबूत मांगने लगा कि किसने भारत बंद की अपील की है. क्या मीडिया और सोशल मीडिया ने अपनी तरफ से 28 नवंबर के अलग-अलग विरोध कार्यक्रमों को भारत बंद कहा. बीजेपी के लिए भी साबित करना कोई मुश्किल नहीं है. बीजेपी 24 नवंबर के तमाम प्रेस कॉन्फ्रेंस और प्रेस रिलीज का बारीक अध्ययन कर सकती है जब 28 नवंबर के कार्यक्रम का एलान हुआ था. हमने कई दलों का देखा है, दावा तो नहीं कर सकते लेकिन जितना देखा उसमें किसी में भारत बंद का ज़िक्र नहीं है.

24 नवंबर को कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि कांग्रेस देश भर में जन आक्रोश दिवस मनाएगी. 24 को ही सीताराम येचुरी का बयान है कि 28 नवंबर को कई दल देश भर में आक्रोश दिवस मनायेंगे. 24 नवंबर को ही सीपीआई नेता डी राजा ने कहा था कि लेफ्ट दल 24 नवंबर से 30 नवंबर के बीच हफ्ता भर प्रदर्शन करेंगे. सीपीएम की वेबसाइट पर एक प्रेस रिलीज़ है जो 23 नवंबर को जारी हुई है. इसमें साफ कहा गया है कि 6 लेफ्ट दलों ने तय किया है कि एक सप्ताह का विरोध प्रदर्शन होगा. प्रेस रिलीज़ में भारत बंद शब्द ही नहीं है. 27 नवंबर को प्रधानमंत्री के बयान के बाद उसी दिन दिल्ली में जयराम रमेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ कर दिया कि कांग्रेस ने भारत बंद का आह्वान नहीं किया है. रविवार को ही आम आदमी पार्टी ने भी साफ कर दिया कि उनकी तरफ से भारत बंद की अपील नहीं हुई है.

वैसे त्रिपुरा और केरल में सीपीएम ने बंद किया. कोलकाता में सीपीएम नेता और पोलित ब्यूरो सदस्य विमान बोस ने इस बंद की आलोचना कर दी है और कहा है कि बंद का आह्वान कर लेफ्ट ने गलती की है. बंद और भारत बंद में अंतर होता है. सवाल है भारत बंद की अपील किसने की. बसपा नेता मायावती ने भी सोमवार को बयान दिया कि बसपा ने भारत बंद की अपील नहीं की. समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा कि मेरे ख़्याल से ये अब तक का सफल बंद है, क्योंकि भारत तो नोटबंदी के दिन से ही बंद है. हम कोई नया बंद नहीं बुला रहे हैं. राज्य सभा में गुलाम नबी आज़ाद ने भी कहा कि प्रधानमंत्री ने गलत बयानी की है. लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री से ग़लतबयानी के लिए माफी की मांग की है.

बसपा, सपा, आप, तृणमूल, कांग्रेस और छह वाम दल यानी 11 विपक्षी दल यही कहते रहे कि हमने भारत बंद की अपील ही नहीं की थी तो फिर प्रधानमंत्री ने भारत बंद की बात कहां से कर दी. विपक्ष को पीएम से जवाब तो नहीं मिला लेकिन पीएम के भारत बंद कहने से विपक्ष दिन भर सफाई देने में लगा रहा. बीजेपी भी समझ गई कि विपक्ष को बंद करने का सबसे अच्छा शब्द भारत बंद है.

बहरहाल सोमवार को कई जगहों पर धरना प्रदर्शन हुआ. नोटबंदी को लेकर दलों के कार्यकर्ता ही सड़कों पर नज़र आए. आम लोग समर्थन में नहीं उतरे. कई जगहों पर व्यापार मंडलों ने अपना पोस्टर भी लगा दिया के वे भारत बंद का समर्थन नहीं करते हैं. व्हाट्सएप पर शनिवार से ही अभियान सा चल रहा था कि हम भारत बंद का समर्थन नहीं करते हैं. तो क्या भारत बंद का नारा व्हाट्सएप के ज़रिये फैलाया गया और जिसके समर्थन और विरोध की बातें होने लगीं. समाचार पढ़ने का या पता करने का वक्त नहीं है तो कोई बात नहीं, व्हाट्सएप की सामग्री को ही खबर मानने की ग़लती न करें. हर दल के लोग इसके ज़रिये कुप्रचार कर रहे हैं.

बहरहाल इस बीच नोटबंदी के दौरान इतने नियमों की घोषणा हुई है कि सबका हिसाब रखना मुश्किल है. पहले चर्चा हुई कि जो लोग अपने खाते में ढाई लाख से ज्यादा पैसा जमा करेंगे तो 200 परसेंट जुर्माना लगेगा. 10 नवंबर को केंद्रीय राजस्व सचिव डॉक्टर हसमुख अधिया से सवाल पूछा गया कि मान लीजिए विभाग को ये पता चलता है कि किसी खाते में दस लाख से ज़्यादा की रकम जमा की गई है और रकम जमाकर्ता की घोषित आय से मेल नहीं खा रही है. ऐसे में जमाकर्ता पर कितना कर और जुर्माना लगाया जाएगा. तो अधिया साहब का जवाब है कि इस तरह के मामलों को कर चोरी माना जाएगा.आयकर अधिनियम की धारा 270(ए) के हिसाब से कर की राशि वसूली जाएगी और भुगतेय कर के अलावा 200 प्रतिशत की राशि जुर्माना के रूप में वसूली जाएगी.

पत्र सूचना कार्यालय की वेबसाइट पर ये प्रेस रिलीज़ मौजूद है. गाज़ीपुर की रैली में प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया था कि गंगा में नोट बहाने से पाप नहीं धुल जाते हैं. इन बयानों से यही लग रहा था कि जो लोग 30 दिसंबर के बाद अपनी आमदनी का हिसाब नहीं दे पायेंगे उनकी ख़ैर नहीं है. उनके खिलाफ कार्रवाई होगी. 28 नवंबर को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में आयकर संशोधन बिल पेश किया. इसके अनुसार ख़ुद आगे आकर अपना काला धन बताने वालों को सफेद करने का एक और मौका मिला है. एक करोड़ ब्लैक मनी पर 30 फीसदी यानी तीस लाख रुपये टैक्स देने होंगे. दस फीसदी यानी दस लाख जुर्माना लगेगा. 33 फीसदी सरचार्ज जो टैक्स पर लगता है,यानी 9.90 लाख रुपये. यानी एक करोड़ में से 49.90 लाख रुपये टैक्स के कट जायेंगे. अब बचा 50 लाख तो उसका 25 लाख तुरंत मिल जाएगा. 25 लाख रुपये प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण डिपोज़िट स्कीम में जमा होगा. चार साल तक बिना ब्याज के पैसा सरकार के पास रहेगा. उसके बाद 25 लाख काले धन वाले को मिल जाएगा.

यानी एक करोड़ काला धन है तो उसमें से पचास लाख अभी भी बच सकता है. यही नहीं जिन लोगों ने अपनी आय घोषित नहीं की और छापे में पकड़े गए, हिसाब नहीं दे पाए तो उन पर 60 फीसदी टैक्स लगेगा. 25 फीसदी सरचार्ज और 10 फीसदी जुर्माना लगेगा. 100 रुपये में 85 रुपया टैक्स में चला जाएगा.

खुद बता देंगे तो 100 में 50 रुपया आपका रहेगा. नहीं बतायेंगे तो 100 में 15 रुपया ही आपको मिलेगा. यानी दोनों ही सूरत में आप ब्लैक मनी का पचास फीसदी व्हाइट हो सकता है. जब सरकार ने 1 जून से 30 सितंबर के बीच अघोषित आय घोषित करने की एक योजना चलाई ही थी और उसे अंतिम योजना कहा था तो ऐसी स्थिति में इस नए संशोधन को क्या समझा जाए. क्या सरकार काले धन वाले को एक और मौका दे रही है?

जून से सितंबर की योजना को लेकर सरकार ने साफ कर दिया था कि आयकर विभाग इस बात की कोई पड़ताल नहीं करेगा कि पैसा कहां से आया है. लेकिन उन्हें 45 परसेंट टैक्स और पेनल्टी देने होंगे. जून 2016 के 'मन की बात' में प्रधानमंत्री ने यह बात कही थी, "जिन लोगों के पास अघोषित आय है, उनके लिए भारत सरकार ने एक मौका दिया है. जुर्माना देकर हम अनेक प्रकार के बोझ से मुक्त हो सकते हैं. मैंने यह वादा किया है कि स्वेच्छा से जो अघोषित आय के संबंध में सरकार को जानकारी देगा तो सरकार किसी प्रकार की जांच नहीं करेगी. साथ ही मैं देशवासियों से यह भी कहना चाहता हूं कि 30 सितंबर तक की ये योजना है. इसको एक आखिरी मौका मान लीजिए. 30 सितंबर के पहले आप इस व्यवस्था का लाभ उठाएं और 30 सितंबर के बाद संभावित तकलीफों से अपने आप को बचा लें."

नए संशोधन पर हम बात करेंगे. कुछ प्रावधान तो पुराने भी हैं, कुछ जोड़े गए हैं. सरकार को यह संशोधन क्यों करना पड़ा, जब उसने 1 जून से 30 सितंबर की कार्रवाई को आखिरी मौका कहा. क्या नोटबंदी के दौरान या बाद में मिलने वाले अघोषित आय को पूरा ज़ब्त नहीं कर लेना चाहिए. कहीं ये एक और मौका तो नहीं है. जब नोटबंदी चल ही रही है तो इस संशोधन का क्या मतलब है हमें यह भी समझना होगा कि इस संशोधन में क्या सोना, प्रॉपर्टी और शेयर भी आते हैं या इसे हम सिर्फ नगदी नोट के संदर्भ में ही समझ रहे हैं.


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