प्राइम टाइम इंट्रो : ईवीएम पर किसे कितना भरोसा?

प्राइम टाइम इंट्रो : ईवीएम पर किसे कितना भरोसा?

सरकार बदलने से किसी दल के समर्थकों में हार की हताशा तो होती ही होगी, उनके भीतर एक भय भी होता है. कई बार हारने वाली पार्टी के कार्यकर्ता डर के कारणों को समझ नहीं पाते हैं. इसका कारण सिम्पल है. जब किसी समर्थक की पार्टी सत्ता में आती है तो थानों में भी आती है. झूठे मुकदमों और ज़मीन के कब्ज़ों के लिए भी आती है. भर्ती में सिफारिश और तबादले के लिए भी आती है. ठेकों के बंटवारे के लिए भी सरकार में आती है. सरकारी विभागों में ख़रीद फरोख़्त के लिए भी आती है. इन तमाम प्रक्रियाओं में सरकार के समर्थकों की मौज हो जाती है. वे रातों रात अमीर होने लगते हैं. जैसे ही सरकार जाती है यह तबका असुरक्षित महसूस करने लगता है. नई सरकार के समर्थक और पार्टी कार्यकर्ता खुश हो जाते हैं. अब पुरानी सरकार के समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने सबके लिए काम करने वाले पारदर्शी सिस्टम की मांग की होती, भेदभाव का विरोध किया होता तो सरकार के जाने पर डर क्यों लगता है. सरकार हमेशा मेरी होती है, हमारी नहीं होती. जब सरकारें हमारी होने लगेंगी तब हार से डर नहीं लगेगा. हमारी सरकार के लिए ज़रूरी है कि सब सवालों से, आलोचनाओं से सरकार पर नज़र रखें और देखते रहें कि सरकार का लाभ कोई न उठा सके. अगर आप किसी पार्टी के कार्यकर्ता हैं तो एक सवाल ख़ुद से पूछें क्या आप अपनी सरकार पर सवाल करते हैं.

अगर हारने वाली पार्टी का कार्यकर्ता ये मूल बात समझ लेगा तो वो डर से आज़ाद होकर अगले चुनाव की तैयारी में लग जाएगा. भारत में बैलेट बॉक्स से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर आरोप लगते हैं. अगर ईवीएम मशीन की राजनीति को समझना है तो इसके बेस्ट उदाहरण हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह. पिछले साल सितंबर महीने में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक बयान दिया कि 2012 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखा था कि ईवीएम के बारे में विस्तार से जांच की जाए. इसे कैसे फूलप्रूफ बनाया जा सकता है क्योंकि कुछ देशों ने दोबारा बैलेट पेपर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. कांग्रेस ने पंजाब में लगातार कहा है कि ईवीएम फूलप्रूफ नहीं है. 2016 के सितंबर महीने में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फिर से ईवीएम पर सवाल उठाया और कहा कि सरकारी अधिकारी ईवीएम से छेड़छाड़ कर सकते हैं. इसलिए दूसरे राज्यों से ईवीएम मशीनें लाईं जाएं. 2017 में चुनाव जीतने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जो कहा वो मज़ेदार है. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी हार से बौखला कर ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगा रही है. अमरिंदर के तीनों बयानों से लगता है कि वे हारने के बाद, हार के डर से तो ईवीएम पर सवाल उठा रहे थे मगर जीतने के बाद उन्हें ईवीएम पर भरोसा हो गया.

उदाहरण कैप्टन साहब का दिया है मगर सवाल कई बड़े नेताओं ने उठाये हैं. यू ट्यूब पर आपको बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के ईवीएम मशीनों में छेड़छाड़ के वीडियो मिल जाएंगे जिनमें वे विस्तार से बता रहे हैं कि किस तरह ईवीएम का मुख्य अंग जापान से बन कर आता है, मगर वही जापान ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करता. ईवीएम मशीनों में छेड़छाड़ की संभावना को लेकर सुब्रह्मण्यम स्वामी मुख्य चेहरा हैं और वे अदालत तक इस लड़ाई को लेकर गए हैं.

जयललिता अब दुनिया में नहीं हैं लेकिन 2001 में वे मद्रास हाईकोर्ट चली गईं. आरोप था कि ईवीएम में वोटर बटन दबाता है लेकिन जब तक पीठासीन अधिकारी बटन नहीं दबाता, उसका वोट रजिस्टर नहीं होता है. अगर किसी भी वजह से पीठासीन अधिकारी से बटन नहीं दबा तो वोटर का वोट गिना नहीं जाएगा. जयललिता ने कहा था कि रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और एम करुणानिधि ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे मगर जीतने के बाद चुप हो गए. 2010 में तेलुगु देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि ईवीएम को टेम्पर किया जा सकता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की अगस्त 2010 की एक ख़बर के अनुसार राज्यसभा में बीजेपी और लेफ्ट के नेताओं ने ईवीएम का मसला उठाया था. अरुण जेटली ने मांग की थी कि सरकार इस पर सर्वदलीय बैठक बुलाये, कुछ तकनीकी विशेषज्ञों को भी बुलाये ताकि जो संदेह हैं उन्हें दूर किया जा सके. लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि पूरे विश्व के अनुभव के अनुसार ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे टेम्पर प्रूफ ईवीएम कहा जा सके. मतलब ऐसी कोई मशीन नहीं है जिसके बारे में दावा किया जा सकता है कि छेड़छाड़ नहीं हो सकती है. बीजेपी प्रवक्ता जी वी एल नरसिम्हा राव ने ईवीएम मशीनों में छेड़छाड़ की संभावना को लेकर एक किताब भी लिखी है जिसका ज़िक्र ताज़ा विवाद के बाद ख़ूब हो रहा है. अगर इस किताब की बिक्री बढ़ गई तो जीवीएल की रॉयल्टी बढ़ सकती है वैसे उनका मानना है कि एक चुनावी विशेषज्ञ के तौर पर उन्होंने लिखा था, पार्टी के सदस्य के नाते नहीं. उनके कुछ सवालों को आगे चल कर चुनाव आयोग ने सुधार भी किया है. अब उनकी वैसी राय नहीं है. दिल्ली में 8 फरवरी 2015 को मतदान होने थे, 3 फरवरी को अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया था कि दिल्ली कैंट में चार ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी पाई गई है, उनमें किसी भी बटन को दबाने पर बीजेपी को वोट चला जाता था.

मार्च 2012 के इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की शुरुआत इस लाइन से होती है कि ईवीएम मशीनों में छेड़छाड़ को लेकर विभिन्न अदालतों में अस्सी अपील फाइल की गई हैं. इन 80 मुकदमों का क्या स्टेटस है, हमें नहीं मालूम. एक्सप्रेस के उसी रिपोर्ट में बीजेपी नेता किरीट सोमैया का बयान छपा था कि राज्यों के चुनाव आयोग को ईवीएम में सुधार करना चाहिए ताकि इसे फूलप्रूफ बनाया जा सके.

बॉम्‍बे हाई कोर्ट में कांग्रेस के तीन नेताओं ने अपील दायर की कि अपनी हार तो स्वीकार करते हैं मगर चाहते हैं कि ईवीएम को फूलप्रूफ बनाया जाए. चुनाव से पहले उन्हें सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने संपर्क किया था कि हम ईवीएम में छेड़छाड़ कर सकते हैं. 2010 में गुजरात में कांग्रेस ने तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया था. तब कांग्रेस निकाय चुनावों में हार गई थी. 2012 में अमृतसर के डीसी ने राज्य चुनाव अधिकारी के पास यह मसला उठाया है कि कुछ वार्ड में दोबारा से मतदान हों, जहां पर कुछ युवा लोगों ने वाईफाई और ब्लूटूथ का इस्तेमाल किया ताकि ईवीएम को टेम्पर किया जा सके. इसका ज़िक्र कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2012 में किया था. इसी साल महाराष्ट्र के एक निर्दलीय उम्मीदवार ने राज्य चुनाव आयोग से पूछा कि इसकी जांच हो कि कम से कम उनका और उनके परिवार का वोट कहां गया, उन्हें ज़ीरो वोट कैसे मिले हैं.

इन उदाहरणों से साफ है कि ईवीएम मशीनों को लेकर आरोप लगाने वाले कांग्रेस के भी रहे हैं, बीजेपी के भी रहे हैं. क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने भी लगाए हैं. तो ईवीएम को लेकर शक करने का काम पहली बार न मायावती कर रही हैं न अरविंद केजरीवाल. मायावती ने कहा कि वो मोदी से नहीं मशीन से हारी हैं.
मायावती ने कहा है कि वो अदालत भी जाने वाली हैं. हर महीने की 11 तारीख को उनकी पार्टी काला दिवस मनाएगी. मायावती के मुताबिक ये वो तारीख है जिस दिन लोकतंत्र की हत्या हुई है. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि कई बूथों में उनकी पार्टी को एक या दो वोट मिलें हैं जबकि उनके वोलेटिंयर की संख्या इससे अधिक है. केजरीवाल ने कहा कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि सभी विधानसभा चुनावों में ईवीएम मशीनों के साथ ऐसी व्यवस्था हो कि बटन दबाने पर एक स्लिप निकले जिस पर पार्टी का चुनाव चिन्ह हो. उसे एक बक्से में जमा किया जाए। ताकि बाद में विवाद होने पर गिनती की जा सके. केजरीवाल ने कहा कि इस बार पंजाब में 32 जगहों पर यह सिस्टम लागू किया गया था. यूपी में भी कुछ जगहों पर हुआ है। केजरीवाल की मांग है कि ऐसे बूथों की गिनती होनी चाहिए ताकि पता चले कि ईवीएम मशीन और स्लिप के गिनती मैच करती है या नहीं.

एक बात का ध्यान रखिये. ईवीएम मशीनें ख़राब निकल जाती हैं. ख़राब होना और उनसे छेड़छाड़ किया जाना दोनों अलग अलग हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में सूरत में 161 ईवीएम मशीनें ख़राब पाई गईं थी. ये 20 अप्रैल के टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा है. ईवीएम मशीन को लेकर भारत में ही सवाल नहीं उठे हैं. दुनिया के कई देशों में ईवीएम मशीनों के खिलाफ आंदोलन चले हैं. ज़बरदस्त विरोध हुआ है. उन्हीं आंदोलन की छाया में भारत में यूपी चुनाव के पहले सवाल करते रहे हैं.

अमेरिका में 50 में से सिर्फ 5 राज्य में ही ईवीएम का इस्तमाल होता है, बाकी हर राज्य में बैलेट से मतदान होता है. यूरोप के कई देशों में मतदान बैलेट से ही होता है. नीदरलैंड को ईवीएम मशीनों का अगुआ माना जाता है, मगर उसने इसका इस्तेमाल बंद कर दिया है. जर्मनी में अदालत ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल को पारदर्शी नहीं माना था.

ज़रूरी नहीं कि चुनाव कहीं बैलेट से हो रहा है तो यहां बैलेट से ही हो. अमेरिका की मशीन की तुलना भारत के मशीन से करना कहां तक ठीक होगा. क्या दोनों की टेक्नोलॉजी एक ही होगी. हम नहीं जानते हैं. चुनाव आयोग ने तमाम आशंकाओं को ग़लत बताया है और कहा है कि इन मशीनों में धांधली नहीं हो सकती है. पहले भी सवाल उठे हैं मगर इस बार सवालों के साथ साथ जिस तरह से अफवाहें फैल रही हैं उसे लेकर कुछ किया जाना चाहिए. क्योंकि अब ईवीएम को लेकर अफवाह यूपी से आगे जा चुकी है. महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में ही इस आंशकाओं को हवा मिली थी जिसे पंजाब और यूपी के नतीजों ने तेज़ कर दिया है. इसलिए आयोग को दो चार पंक्ति के बयान से आगे जाकर कुछ करना चाहिए ताकि व्यापक जनता के बीच ऐसे सवालों के लिए जगह नहीं बचे.


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