आम आदमी पार्टी में ये कलह क्यों?

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार> गांव की पंचायती में कभी आपको रहने का अवसर मिला हो तो आप बेहतर तरीके से आम आदमी पार्टी के भीतर और बाहर चल रहे मसले को समझ सकते हैं। मंज़ूरे ख़ुदा से पहले पंचों के ख़ुदाई फ़रमान आने लगे हैं। मुद्दई यानी गवाह कुछ और कह रहे हैं और मुद्दा कहीं और खो गया है। वैसे फैसला अभी नहीं हुआ है।

4 मार्च की कार्यकारिणी में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बैठक में शामिल होने की संभावना कम नज़र आ रही है। ख़राब तबीयत के कारण अरविंद दस दिनों के लिए दिल्ली से बाहर जा रहे हैं। अरविंद ने ट्वीट किया है कि पार्टी में जो कुछ भी चल रहा है उससे मैं बहुत आहत हूं। मैं इस गंदी लड़ाई में पड़ने वाला नहीं हूं। जनता के भरोसे को किसी भी हालत में नहीं टूटने दूंगा। उनके इस ट्वीट से अटकलें लगने लगीं कि अरविंद ने अपना फैसला सुना दिया है। अगली बैटल यानी गंदी लड़ाई कहने के बाद लोग पूछने लगे हैं कि तब अरविंद क्यों नहीं कुछ कर रहे हैं। उनके ट्वीट से यह भी साफ नहीं हुआ कि वे किससे आहत हैं।

योगेंद्र-प्रशांत के बयानों से या आशुतोष आशीष और दिलीप के बयानों से। जनता के भरोसे में सरकार चलाने के साथ यह भी शामिल होता है कि नेता अपने राजनैतिक नेतृत्व की ज़िम्मेदारी किस तरह निभाता है। यह विवाद अरविंद की जान और इम्तहान दोनों ले रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि अरविंद के सामने कोई नया पर्चा नहीं आया है।

अन्ना, किरण बेदी, शाज़िया इल्मी के साथ मेधा पाटकर का अलग होना भले ही आई आई टी लेवल का पर्चा नहीं था लेकिन बोर्ड के लेवल का तो था ही।

प्रशांत और योगेंद्र ने चिट्ठी लीक की है तो लोकपाल को लिखी दिलीप की चिट्ठी किसने लीक की है। खुद लोकपाल एडमिरल रामदौस ने इकोनोमिक टाइम्स में अपनी चिट्ठी के लीक होने की बात लिखी है। लीक के बढ़ते आरोपों को देखते हुए आम आदमी पार्टी में लोकपाल के साथ लीकपाल भी होना चाहिए।

लीकपाल ही आधिकारिक रूप से चिट्ठियों को लीक करे और सबसे पहले मुझे लीक करे। हो सके तो मेरा फोन भी रिकॉर्ड कर ले ताकि मैं कह सकूं कि लोकपाल ने नहीं लीकपाल ने दी है। वैसे पत्रकार का स्टिंग और पत्रकार का सोर्स बताना दोनों सीरियस मामला है।

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जो मीडिया में कह रहे हैं और जो पार्टी में कह रहे हैं क्या दोनों में कुछ अंतर है। क्या इस वजह से भी प्रवक्ताओं के बयानों में कटुता आई है। अगर ऐसा है तो प्रवक्ताओं दायें बायें बोलने की जगह उन्हीं बातों को क्यों नहीं सार्वजनिक कर दिया। आम आदमी पार्टी लोकतांत्रिक तरीके से राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और असहमतियों को जगह नहीं देगी तो यह दूसरों से अलग कैसे।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा का होना एक सामान्य और स्वाभाविक राजनीतिक हरकत है। राजनीतिक दल की ही महत्वकांक्षा सत्ता होती है। लोकपाल एडमिरल रामदास ने मंगलवार को इकोनोमिक टाइम्स में योगेंद्र और प्रशांत के सवालों का समर्थन किया है, बल्कि लिखा है कि राष्ट्रीय संयोजक के साथ सह संयोजक के पद पर भी विचार किया जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी लिखा है कि किसी भी जहाज़ को चलाने वाले नाविकों का दल बदलता रहता है। आम आदमी पार्टी जहाज़ के नाविक दल का बदलते रहना ज़रूरी है। लंबी दूरी की यात्रा के लिए यह एक सामान्य प्रक्रिया भी है। आखिर में यह सब कप्तान पर निर्भर करता है कि वो तमाम मुश्किलों से जहाज़ को निकाल कर मंज़िल पर सुरक्षित पहुंचाएगा। नौ सेना के अपने इस अनुभव को एडमिरल रामदास ने आम आदमी को ताबीज की तरह दिया है।

एडमिरल को उन आरोपों पर भी फैसला देना चाहिए जो प्रशांत भूषण और दिलीप पांडे ने उनके यहां जमा किए हैं। वे जिन मुद्दों से सहमति जता रहे हैं वो शायद लोकपाल के दायरे में आता ही न हो। ये और बात है कि किसी ने लोकपाल रामदास के खुलेआम लेख लिखने को लेकर हमला नहीं बोला है। लेकिन, कप्तान से रामदास की उम्मीद बता रही है कि यह झगड़ा शायद अपने अंजाम पर नहीं पहुंचा है। जैसे ही आप आशुतोष और आशीष खेतान के ट्वीट पढ़ते हैं, आपको लगता है कि योगेंद्र और प्रशांत को जाना ही होगा। किसी ने इनके ट्वीट को लेकर सवाल नहीं किया है कि व्यक्तिगत हमले क्यों हो रहे हैं।

आशीष खेतान ने ट्वीट किया है कि शांति, शालिनी और प्रशांत पार्टी को पिता, पुत्र और पुत्री की पार्टी बना देना चाहते हैं। सोमवार को आशुतोष ने कहा था कि वैचारिक लड़ाई है। व्यक्ति की नहीं। मंगलवार को ट्वीट कर कहा कि पार्टी में कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग करने वाले अल्ट्रा लेफ्ट और लोगों की भलाई के लिए व्यावहारिक राजनीति करने वालों के बीच का टकराव है। प्रधानमंत्री ने जब नक्सल कहा था तब आप के नेता और समर्थकों ने सोशल मीडिया पर खूब हमला बोला था। क्या अब वे खुद बता रहे हैं कि उनकी पार्टी में अल्ट्रा लेफ्ट है, जो कश्मीर में जनमत संग्रह की बात कर रहा है। जब इसी बात को लेकर आप की आलोचना हुई थी तो आप के नेताओं ने प्रशांत से किनारा कर यहां तक साथ तो निभाया ही। अब यह साफ नहीं कि अल्ट्रा लेफ्ट की बात करने वाले सिर्फ प्रशांत हैं या प्रशांत के साथ योगेंद्र भी या प्रशांत और योगेंद्र के अलावा कुछ और लोग भी हैं।

क्या ये गुस्सा इसलिए भी है कि जो कहा जा रहा है उसके अलावा कुछ और सच है। इस बीच इस विवाद को निपटाने के लिए आप ने तीन सदस्यों की एक कमेटी भी बनाई है, जिसके अध्यक्ष प्रोफेसर आनंद कुमार ने आज हमारे सहयोगी हिमांशु शेखर मिश्रा को बताया कि उन्होंने योगेंद्र, प्रशांत और अरविंद से लंबी बात की है। खासकर शांति भूषण के यह कहने के बाद कि प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को केजरीवाल का समर्थन करना चाहिए कि वही संयोजक रहें। ये तीनों पार्टी की रीढ़ हैं। प्रोफेसर आनंद कुमार ने हिमांशु से कहा कि कांटा निकल गया है। आनंद कुमार को ऐसा नहीं लगता कि मामला इतना बिगड़ गया है कि सुलझ नहीं सकता।

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योगेंद्र यादव ने सोमवार को प्राइम टाइम में कहा था कि वे अपने सवालों को लेकर किसी डेडलाइन की बात नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कभी अरविंद को हटाने की बात नहीं की है, बल्कि कार्यकारिणी में उनके इस्तीफे का विरोध किया था। योगेंद्र ने अरविंद के विलक्षण नेतृत्व की तारीफ की थी। कई लोगों ने कहा कि योगेंद्र और प्रशांत पीछे हट रहे हैं। पर जब अंतिम फैसला होगा तब होगा। लेकिन फैसले से पहले की जो सार्वजनिक प्रक्रिया आपनाई गई वो किस तरह से उचित है इस पर बात तो हो ही सकती है। बहस के बाद दो फिल्में देख सकते हैं। आप तो ऐसे न थे या आप जैसा कोई नहीं।

(प्राइम टाइम इंट्रो)