यह ख़बर 28 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

अवैध कोल ब्लॉक आवंटन रद्द होगा?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। क्या होगा अगर सुप्रीम कोर्ट कोयला बलॉक्स के आवंटन को रद्द कर दे। जो कोयला बलॉक्स अवैध तरीके से आवंटित किए गए क्या उनके बरकरार रखने की कोई कानूनी या नैतिक संभावना बनती है। जिस दिन यह फैसला आया था, उस दिन सीमेंट, बिजली और स्टील कंपनियों के शेयर गिरने लगे थे। इस आशंका में कि कहीं लाखों करोड़ रुपये के निवेश अधर में न पड़ जाएं। पावर कंपनियों के शेयर तो सात प्रतिशत तक गिर गए। वैसे शेयर तो तब भी गिर जाते हैं जब कोई फैसला नहीं आता है।

25 अगस्त को जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1993 से 2010 अब तक जितने भी कोल ब्लॉक्स आवंटित हुए सभी अवैध हैं। इन दौरान 289 कंपनियों के बीच 218 कोल ब्लॉक्स बांटे गए थे।

अगर इनके लाइसेंस रद्द हो गए तो ज़ाहिर है, 289 कंपनियों पर असर पड़ सकता है। मगर इसका मतलब यह नहीं कि सभी कंपनियां कोयला खदान लेकर वहां खनन वगैरह करने लगी हैं।

केवल 40 कोल ब्लाक्स में ही उत्पादन शुरू हो सका है। हर कंपनी को कोयला खदान विकसित करने के लिए तीन से साढ़े चार साल का वक्त दिया गया था। मगर 188 खदानों में तो कोई उत्पादन ही नहीं हुआ। तो इनके लाइसेंस रद्द कर देने से असर ज़रूर कंपनियों पर पड़ेगा।
मगर कोयला उत्पादन या कोयले से बिजली उत्पादन पर क्या असर पड़ेगा। क्यों न जिन्होंने राजनेता नौकरशाही की सांठ-गांठ से अवैध तरीके से लाइसेंस हासिल किए और उत्पादन भी नहीं किया, उन्हें सज़ा दी जाए। जबकि सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में यही दलील दी है कि बिजली का उत्पादन करने के लिए नए खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना ज़रूरी था, ताकि जनता को बिजली मिल सके। लेकिन हुआ क्या। बिजली भी सस्ती नहीं हुई, न बिजली पैदा हुई।
दावा किया जाता है कि भारत में ढाई लाख मेगावाट के प्लांट्स लगे हुए हैं। कभी भी भारत में एक लाख 35 हज़ार मेगावाट से ज्यादा बिजली का उत्पादन नहीं हुआ। बिजली के उत्पादन में 90 फीसदी योगदान एनटीपीसी और एनएचपीसी जैसी सरकारी कंपनियों का है। प्राइवेट कंपनियों का योगदान वैसे भी कम है जिन्हें 1993 से प्रोत्साहित किया जा रहा है।

कड़वा सच यह भी है कि बिजली तो है, मगर हमारे बिजली बोर्ड खरीद नहीं पाते क्योंकि बिजली सस्ती नहीं मिलती। अगर आप यह सोच रहे हैं कि कोयले की कमी से उत्पादन नहीं हो रहा है, तो इसके जवाब में यह दावा किया जाता है कि कोयले की कोई कमी नहीं है। अगर आप महंगी बिजली खरीदने के लिए तैयार हो जाएं तो शायद यह कमी तुरंत पूरी हो सके।

कोयला उत्पादन में प्राइवेट कंपनियों की हिस्सेदारी क्या है, 2013−14 में 54 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ। निजी कंपनियों ने सिर्फ चार करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया। बाकी पचास करोड़ कोल इंडिया जैसी सावर्जनिक कंपनियों ने किया।

यह आंकड़ा इशारा करता है कि लाइसेंस रद्द होंगे तो कोयले के उत्पादन पर खास असर नहीं पड़ेगा। मगर चार करोड़ टन कोयला भी कम नहीं होता है। खास तौर से जब हमने पिछले साल 117 करोड़ टन आयात किया। अब सवाल उठता है कि क्या सारे कोल ब्लॉक्स आवंटन रद्द कर दिए जाएं या जिनमें खनन शुरू नहीं हुआ उनके लाइसेंस रद्द हों या जो चल रहे हैं उन भर भारी जुर्माना लगे। कोयला ब्लॉक्स सीआईएल को दे दिया जाए।

यह बताया गया था कि सीआईएल तो कोयले के उत्पादन में सक्षम नहीं है, लेकिन प्राइवेट कंपनियों ने ही कौन सी बाज़ी मार ली। एक तर्क यह दिया जाता है कि पहले आओ पहले पाओ की नीति के आधार पर जो कोल ब्लॉक्स दिए गए उससे भी सीआईएल की संभावना सीमित हो गई।  

कंपनियों का दावा है कि दो लाख 86 हज़ार करोड़ का निवेश हो चुका है। आवंटन रद्द हुआ तो निवेश के माहौल पर असर पड़ेगा और बिजली और महंगी हो जाएगी। लेकिन, क्या इससे पहले इसकी चिन्ता नहीं होनी चाहिए कि सीएजी ने 1.86 हज़ार करोड़ के अनुमानित नुकसान का जो दावा किया था, उसकी वसूली कैसे हो।

आखिर देश की जनता ने भी तो घाटा झेला है। कंपनियों के निवेश के तर्क के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में सरकार का जवाब ही खड़ा हो जाता है, जिसमें दावा किया गया है कि 2.86 लाख करोड़ में से 8800 करोड़ ही कोल ब्लॉक्स पर खर्च हुए। बाकी 2.77 लाख करोड़ सीमेंट, बिजली और स्टील प्लांट बनाने में लगे।

इसका मतलब सारा पैसा खदानों में नहीं लगा है। लेकिन, ये खदान सीमेंट, बिजली और स्टील के उत्पादन के लिए भी दिए गए थे। अगर हम सीमेंट और स्टील उत्पादन को शामिल करें तब क्या कोयला ब्लॉक्स रद्द करने से नुकसान बड़ा नहीं हो जाएगा। एक ब्लॉक रद्द होगा तो नया लेने के लिए कंपनियों को फिर निवेश करना पड़ेगा। फिर नीलामी की प्रक्रिया से गुज़रना होगा।

रही बात बिजली की तो उत्तर प्रदेश ही बिजली की कमी से तड़प रहा है। नेताओं के लिए भले ही लव जिहाद हो मगर जनता के लिए बिजली फसाद का कारण है। आगरा में बिजली की लगातार कटौती से लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं। वहां रोज़ 12 से 16 घंटे की कटौती बताई जा रही है, जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि आगरा को 24 घंटे बिजली मिले। आगरा ही नहीं कई ज़िले बिजली कटौती से परेशान हैं। बिजली तो चाहिए, लेकिन जिस तरह कोयला उद्योग फिर अनिश्चितता की तरफ जा रहा है क्या वह अच्छा है। अगर हम विकास के लिए अवैध तरीकों को ज़रूरी मान लें तो क्या यह वही दलील नहीं होगी कि ग्रोथ है तो करप्शन भी है।

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एक आरोप यह भी था कि कोयला ब्लॉक्स जिन कंपनियों को मिला उनके भाव शेयर बाज़ार में खूब चढ़े जिसका लाभ कंपनियों ने खूब उठाया। पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख भी कहते हैं कि लाइसेंस रद्द हुए तो देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। क्या वाकई असर पड़ने वाला है। इनके उत्पादन न करने से देश की अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ है उसकी गिनती कैसे की जाए। अवैध तरीके से हुए आवंटन में जो अर्थव्यवस्था में अगर काला धन पैदा हुआ होगा उसकी गिनती कैसे होगी। सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला करेगा, हम सलाह नहीं दे सकते मगर यह अनुमान तो लगा ही सकते हैं कि जो भी फैसला होगा उसका क्या असर होगा।

(प्राइम टाइम इंट्रो)