राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के अनुसार एक मध्यम दर्जे के किसान की सालाना आमदनी 20,000 रुपये है। यानी 17 राज्यों के किसान महीने का सिर्फ 1666 रुपये ही कमा पाते हैं। अगर सरकार अपने प्रयासों और वादों में सफल रही तो 1666 रुपये से वो दुगना कमाने लगेगा। अब किसान बताएं कि पांच साल बाद वे 3332 रुपये महीना कमा कर खुश रहेंगे? क्या इस कमाई से खेती और किसान का भला हो पाएगा? इस दौरान खेती की लागत और महंगाई दुगनी तिगुनी हो गई तो उसकी तथाकथित दुगनी आमदनी का मोल कितना रह जाएगा।
बजट में इसका कोई रोडमैप तो नहीं दिखा लेकिन दिख भी जाता तो क्या पांच साल बाद 3332 रुपये महीने की कमाई का सपना इतना बड़ा सपना है कि उसके लिए रोडमैप का इंतज़ार किया जाए। अगर ये सही है और आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर हमारा मूल्यांकन सही है तो इसका मतलब यही है कि हम सभी खेती में लागत और मूल्य की समस्या का रास्ता नहीं खोज पा रहे हैं। वित्त मंत्री ने अपने बजट में किसानों को दिये जाने वाले कर्ज़ की राशि साढ़े आठ लाख करोड़ से नौ लाख करोड़ कर दी है लेकिन यह एक घोषित तथ्य है कि किसानों के लिए कर्ज़ के इस बजट का बड़ा हिस्सा कृषि उद्योग से जुड़े सेगमेंट में चला जाता है। फिर भी कई लोगों ने इस बात का स्वागत किया है कि सरकार का ध्यान गांवों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए गया है, इसे एक शुभ संकेत के रूप में लिया जा सकता है। लेकिन हमें बुनियादी ढांचे के रूप में सड़क या अत्याधुनिक पंचायत भवन और कृषि उत्पादों के मूल्य के संकट को एक नहीं समझना चाहिए। देखना चाहिए कि कृषि उत्पादों के मूल्य के लिए सरकार ने बजट में क्या कहा है।
कृषि और कृषक कल्याण का बजट बढ़ाकर 35,984 करोड़ कर दिया गया है। अटकी पड़ी सिंचाई की 89 परियोजनाओं को 31 मार्च 2017 तक पूरा कर दिया जाएगा। इसके लिए सरकार अगले साल 17000 करोड़ खर्च करेगी। नाबार्ड को सिंचाई के लिए 20,000 करोड़ फंड दिया गया है। मनरेगा के तहत पांच लाख कुएं और तालाब बनाए जाएंगे। मनरेगा का बजट भी बढ़ा है, 38,500 करोड़ हो गया है। पिछले वित्तीय वर्ष से मनरेगा के बजट में 3,801 करोड़ की वृद्धि हुई है। सरकार एकीकृत कृषि बाज़ार योजना लाने जा रही है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में केंद्र का हिस्सा 19000 करोड़ कर दिया गया है।
बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वो किसानों को लागत में पचास फीसदी जोड़ कर मूल्य देगी। वो कब मिलेगा। कुछ लोगों का कहना है कि गांवों में खर्चे से लोगों के पास पैसा आएगा, मांग बढ़ेगी जिसका लाभ कई उद्योगों को होगा। अगर आप नौकरीपेशा मध्यमवर्ग से आते हैं तो राष्ट्रवाद के साथ-साथ पेंशन फंड के बारे में सोच लेने में कोई बुराई नहीं है। पेंशन फंड का पैसा सिर्फ रिटायर होने पर ही नहीं, आपात स्थिति में भी निकालते हैं। लेकिन अब आपको टैक्स देना होगा। अब वो टैक्स फ्री नहीं रहा। वित्त मंत्री ने कहा कि हम एक पेंशनधारी समाज की ओर बढ़ रहे हैं। इसी के तहत बजट में पीपीएफ़ और एनपीएस का भी ज़िक्र है।
आम बजट का प्रस्ताव 137 कहता है, 'पेंशन स्कीम वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय सुरक्षा देते हैं। मेरा मानना है कि अपने ही योगदान से बने पेंशन प्लान में टैक्स ट्रीटमेंट एक समान होना चाहिए। मैं प्रस्ताव रखता हूं कि रिटायरमेंट के समय नेशनल पेंशन स्कीम से 40% तक की निकासी को टैक्स छूट दी जाएगी। प्रस्ताव 138 में कहा गया है, 'सुपर एन्युएशन फंड और मान्यता प्राप्त प्रोविडेंट फंड जिनमें EPF भी शामिल है उनमें भी निकासी के समय 40% तक का कोष ही टैक्स फ्री होगा। ये 1 अप्रैल, 2016 के बाद के योगदान पर लागू होगा। प्रस्ताव 139 के मुताबिक, 'मान्यता प्राप्त प्रोविडेंट फंड और सुपर एन्युएशन फंड में एम्प्लॉयर डेढ़ लाख रुपए तक ही योगदान कर सकेगा।
अब सवाल ये है कि एनपीएस के चलते ईपीएफ और पीपीएफ पर नज़र क्यों डाली गई। हम जानते हैं कि सामाजिक सुरक्षा की क्या स्थिति है इस देश में। क्या पीपीएफ और ईपीएफ की तरह नेशनल पेंशन स्कीम को भी कर मुक्त नहीं कर देना चाहिए था। समानता के नाम पर सब धान बाईस पसेरी का नतीजा यह हुआ कि आप अपनी गाढ़ी कमाई का जो पैसा EPF और PPF के तौर पर जमा करते हैं उसकी 40% से ज़्यादा निकासी पर आपको टैक्स देना होगा। मध्यम वर्ग जो टीवी और ट्वीटर वर्ग है उसे इस टैक्स को लेकर थोड़ी नहीं बहुत चिन्ता हो रही है। सर्विस टैक्स बढ़ने से उसकी तमाम सुविधाओं की चीज़ें महंगी हो गई हैं। 60 प्रतिशत जो निकालेंगे उसका बंटवारा भी ठीक से समझ लेते हैं।
अगर रिटायरमेंट के वक़्त आपके EPF में एक करोड़ रुपया जमा हुआ है तो आप 40% हिस्सा तो बिना टैक्स दिए निकाल सकते हैं। लेकिन बाकी का 60% हिस्सा निकालने पर टैक्स लगेगा। ऐसे में आपको ये 60% हिस्सा एन्युइटी प्रोडक्ट में लगाने पर राहत मिल सकती है जिससे आपको पेंशन मिलेगी। लेकिन इस पेंशन पर भी अगर टैक्स बनेगा तो आपको देना होगा। एक और स्थिति ये है कि अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो क़ानूनी उत्तराधिकारी को बाकी 60% पैसा दे दिया जाएगा और तब इस पर टैक्स नहीं लगेगा।
पीपीएफ और ईपीएफ के पैसे का इस्तेमाल सिर्फ पेंशन के लिए नहीं होता, आपात स्थिति में भी लोग निकालते हैं। इस फैसले से वित्त मंत्री को राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन जिनके पास अघोषित आय है जिसे आम भाषा में काला धन कहते हैं, उनके लिए खुशखबरी है। उनसे कोई पूछताछ नहीं होगी। वो सिर्फ बताने की कृपा करेंगे और करीब 45 फीसदी कर देकर सफेद धन बनाकर चले जाएंगे। लेकिन विदेशों में जमा काला धन का पता लगाने या हतोत्साहित करने के लिए सरकार ने इतने कठोर कानून क्यों बनाए। क्या इस तरह की सख्ती घरेलू काला धन रखने वालों के लिए नहीं होनी चाहिए थी। सरकार का दावा है कि इस बजट में करों में व्यापक सुधार किये गए हैं। उद्योग जगत के लिहाज़ से भी। बजट में जीएसटी की बात नहीं है। एक पत्रकार के सवाल पर वित्त मंत्री ने कहा कि जो भी करों में परिवर्तन हो रहे हैं वो जीएसटी की दिशा में ही जा रहे हैं। इससे ज़्यादा जीएसटी पर उन्होंने नहीं बोला। टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
एक करोड़ से ज्यादा कमाने वालों पर 15 प्रतिशत का सरचार्ज लगेगा। पांच लाख तक के आय वालों को 5000 रुपये की कर छूट दी गई है। किराये पर कर छूट की राशि को 20,000 से 60,000 कर दिया गया है। टैक्स विवाद की स्थिति में जुर्माना लगाने और देने की प्रक्रिया को सरल किया जाएगा
एक लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा का एलान हुआ है और हर ज़िले में डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पीपीपी मॉडल पर एक रुपरेखा तैयार की गई है। वित्त मंत्री के साथ प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद एक बड़े अधिकारी ने कहा कि सरकार अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए बाज़ार से पैसा उठाएगी मगर इस बात का ख़्याल रखेगी कि बाज़ार में संसाधनों की कमी न हो और निजी क्षेत्र के लिए समस्या न पैदा हो जाए।
क्या यह बजट प्रस्ताव वाकई गांवों को बदल देगा। किसानों की हालत बदल देगा। क्या ये वो बजट है जिसके लिए उद्योग जगत बड़ी बड़ी उम्मीदें रखता था। क्या ये वो बजट है जो किसानों को आमदनी बढ़ाने की दिशा में ले जाएगा।
अब आते हैं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपन दो बजटों में अशआर का जो चयन किया है उनमें कोई अंतर आया है। अशआर मतलब शेर का बहुवचन। 2015 के बजट के दौरान वो शुरू में पढ़ते हैं...
कुछ तो फूल खिलाये हमने और कुछ फूल खिलाने हैं।
मुश्किल ये है बाग़ में अब तक, कांटे कई पुराने हैं।।
जाहिर है उन्हें बताना चाहिए कि उन्होंने एक साल में क्या गुल खिलाये और कितने पुराने कांटे हटा सके। लेकिन इस बार के बजट की शायरी भी उनके मनोभाव की निरंतरता बताती है...
कश्ती चलाने वालों ने जब हार के दी पतवार हमें
लहर-लहर तूफ़ान मिले और मौज-मौज मझधार हमें
फिर भी दिखाया है हमने और फिर ये दिखा देंगे सबको
इन हालात में आता है दरिया करना पार हमें
बेहतर होता वित्त मंत्री इस मनोभाव से निकलते और साहिर का शेर पढ़ते...
हज़ार बर्क़ गिरे, लाख आंधियां आएं,
वो फूल खिलके रहेंगे, जो खिलने वाले हैं
मगर उनके दोनों अशआर से ऐसा लगता है कि वित्त मंत्री अपने बजट के बारे में यही समझ रहे हैं कि ये उनका पहला बजट है कि उन्हें फूल खिलाने हैं और दरिया पार करना है। लेकिन मिडिल क्लास वित्त मंत्री के शेर को कैसे पढ़े। बीच मंझधार में पीपीएफ और ईपीएफ के साठ फीसदी पर टैक्स लगाकर उन्हें वित्त मंत्री ने ख़ुद दरिया पार करने के लिए पतवार थमा दी या वित्त मंत्री खुद तो दरिया पार कर गए, जो क्लासों में मिडिल है वो दरिया के मझधार में फंस गया।