देश में पानी और तेल को लेकर आग 

तेल में आग लगी है मगर किसी को अंदेशा भी नहीं था कि तमिलनाडु में लोग हवा और पानी को लेकर आग लगा देंगे.

देश में पानी और तेल को लेकर आग 

तेल में आग लगी है मगर किसी को अंदेशा भी नहीं था कि तमिलनाडु में लोग हवा और पानी को लेकर आग लगा देंगे. वेदांता ग्रुप की कंपनी स्टरलाइट कॉपर प्लांट के खिलाफ दक्षिण तमिलनाडु के तुतिकोरिन शहर में हजारों लोग निकल आए. किसी कंपनी के खिलाफ इतनी बड़ी संख्या में लोगों का सड़क पर उतरना और हिंसक हो जाना बता रहा है कि पानी और हवा में फैल रहे प्रदूषण का गुस्सा तेल के दाम के गुस्से से भी ज्यादा है.

जिस समय भारत में लोग पेट्रोल के बढ़ते दामों को लेकर अपना गुस्सा जाहिर कर रहे थे उस वक्त तुतिकोरिन की जनता हवा और पानी के प्रदूषण के सवाल पर हिंसक हो रही थी. अक्सर ऐसी समस्याओं के वक्त सरकारें और प्रशासन लोगों के सवालों को अनसुना कर देते हैं. क्या इस वजह से लोग हिंसक हो गए. 

20,000 लोगों की यह भीड़ बता रही है कि पानी की समस्या को एक हद से ज्यादा अनदेखा करना कितना खतरनाक हो सकता है. तीन महीने से यहां के लोग स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टिंग प्लांट को बंद करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे, मगर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. 22 मई को हजारों की संख्या में लोगों ने मार्च निकाला और कलेक्टर के दफ्तर की तरफ बढ़ने लगे. लोगों को पता चला कि 25 साल बाद स्टरलाइट कंपनी का लाइसेंस रद्द होने जा रहा था, मगर फिर से उसे मंजूरी दी जा रही है. इस कारण उनका गुस्सा बढ़ने लगा.

लोगों का आरोप है कि स्टरलाइट कंपनी यहां की नदी ताम्रवरणी में प्लांट का प्रदूषित पानी डाल रही है, जिसमें कॉपर के तत्व मिले हुए हैं. इस कारण नदी प्रदूषित हो गई है और भूजल का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. जैसे ही पता चला कि इस कंपनी का लाइसेंस नया होगा लोगों का धीरज टूट गया. जिसका नतीजा देख रहे हैं आप ये तस्वीरें. कई बार धरना प्रदर्शन करने के बाद भी प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया. इस घटना के बाद मंत्रियों के जो बयान आ रहे हैं वो शांति और व्यवस्था को लेकर हैं, मगर लोगों का गुस्सा कंपनी को लेकर है. इसके बारे में मंत्री से लेकर अधिकारी चुप हैं. हमारे सहयोगी सैम डैनियल के अनुसार 20,000 लोग तुतीकोरिन के ज़िलाधिकारी के दफ्तर के बाहर जमा हो गए और हमला कर दिया. 11 लोगों के मारे जाने की खबर है. 

तमिलनाडु में मंत्री हिंसा का विरोध कर रहे हैं. काबू पाने के तरीके पर बयान दे रहे हैं मगर लोगों के जो सवाल हैं उस पर कोई नहीं बोल रहा है. कमल हासन ने कहा है कि लोग अपराधी नहीं हैं. कमल हासन भी इस प्लांट के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा ले चुके हैं. उनका कहना है कि सरकार ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन को नजरअंदाज किया है. 18 अप्रैल के 'बिजनेस स्टैंडर्ड' में टीई नरसिम्हन की रिपोर्ट है कि इसी 23 मार्च को तुतिकोरिन के लोग जब सुबह-सुबह उठे तो उनकी आंखें जल रही थी. गला जल रहा था. सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. तेजी से बात फैल गई कि स्टरलाइट के कारण है. अस्पतालों और क्लीनिक के बाहर भीड़ लग गई. शहर मे अफरा-तफरी मच गई थी. तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह कहते हुए प्लांट बंद कर दिया कि फैक्ट्री से ही हानिकारक गैस निकली है. कंपनी ने इसे स्वीकार नहीं किया और कहा कि मामूली तकलीफ के कारण लोगों में अफरा-तफरी मच गई थी. मगर इसी बात को लेकर कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गया.

स्टरलाइट कॉपर कोई साधार कंपनी नहीं है. भारत के तांबा बाजार का 35 प्रतिशत है. मीडिया में कंपनी का बयान छपा है कि उसने पर्यावरण नियमों का कोई उल्लंघन नहीं किया है, बल्कि 25000 स्थानीय लोगों को रोजगार दिया है. मगर 'इकोनॉमिक टाइम्स' की खबर बताती है अप्रैल 2018 को तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्टरलाइट के स्मेल्टर का लाइसेंस रद्द करने का आदेश दिया था. लेकिन कंपनी ने इस आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि यह स्थानीय पर्यावरण नियमों से बंधी हुई नहीं है. हमने 1 अप्रैल का 'हिन्दू अखबार' में इस बारे में रिपोर्ट देखी. इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार ने कहा था कि वह स्थानीय लोगों की शिकायतों की जांच कर रही है तो फिर उस जांच का क्या हुआ.

2013 में इस कंपनी के एक प्लांट से गैस लीक होने के कारण सैंकड़ों लोग बीमार पड़ गए थे. उसके बाद इसका प्लांट बंद किया गया था, मगर कंपनी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून ने प्लांट चलाने की मंज़ूरी दे दी. राज्य सरकार ने एनजीटी के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है. प्रदूषण बोर्ड का भी आरोप है कि नदी में कॉपर का धातुमल गिर रहा है. इससे काफी नुकसान हो रहा है. 18 अप्रैल को 'न्यू इंडियन एक्सप्रेस' में इससे संबंधित ख़बर छपी है. पिछले पांच साल से स्टरलाइट का स्मेल्टर प्लांट हजारों टन घातक तत्वों को नदी में प्रवाहित कर रहा है. बिना मंज़ूरी के. इसी आधार पर तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बंद कर दिया था. लोगों ने स्टरलाइट कॉपर प्लांट के खिलाफ मार्च निकाला. गाड़ियों में आग लगा दी और पथराव किया. पुलिस ने भीड़ पर काबू पाने के लिए गोली भी चलाई. लाठी चार्ज किया.

कलेक्टर के दफ्तर की तरह बढ़ रहे मार्च ने पुलिस की गाड़ियों को भी पलट दिया. कई सरकारी गाड़ियों में आग लगा दी. दफ्तर के शीशे तोड़ डाले. कलेक्टर ने यहां धारा 144 लगा दी है. रैली निकालने या जमा होने पर रोक लग गई है. देश में कई जगहों पर लोग कंपनियों के कारण हवा पानी के प्रदूषित होने को लेकर परेशान हैं. खबरें छपती हैं मगर कुछ नहीं होता है. पिछले दो दिनों से पंजाब और राजस्थान के लोग हमें लगातार संदेश भेज रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि पंजाब की ब्यास नदी में बहा लाखों टन शीरा अब राजस्थान की नहरों में आ गया है. पंजाब की एक शुगर मिल का शीरा बुधवार की रात ब्यास नदी में बह गया और इस नदी का रंग काला हो गया. यहां भी लोग तरह तरह की आशंका से गुजर रहे हैं कि राजनेताओं का कंपनी से सांठगांठ है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.

ब्यास नदी का यह पानी राजस्थान फीडर के जरिए राजस्थान की नहर में जाने लगा है. इसे इंदिरा गांधी नहर कहते हैं. ये नहर राजस्थान के लिए जीवनदायिनी मानी जाती है. 21 मई को 'ट्रिब्यून' में खबर छपी है कि राजस्थान ने पंजाब से आ रहे पानी को रोक दिया है, क्योंकि वहां से पानी गंदा तो आ ही रहा था, मरी हुई मछलियां और सांप भी आ रहे थे. पानी का रंग काला और लाल हो गया है. इतनी बड़ी मात्रा में पानी प्रदूषित हो जाए और उससे किसी को फर्क नहीं पड़े यह सिर्फ भारत में हो सकता है. कायदे से इस पर हंगामा मच जाना चाहिए था. राजस्थान के हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिले के लोग इस प्रदूषित पानी से ज्यादा प्रभावित हो गए हैं. ऐसा लग रहा है कि नहर नहीं नाला है. इसमें सीवेज का पानी बह रहा है. आप इन तस्वीरों में देख सकते हैं कि कैसे मरी हुई मछलियां बह रही हैं.

स्थानीय लोगों ने प्रधानमंत्री को भी त्राहिमाम संदेश भेजा है. इन्हें भरोसा नहीं है कि स्थानीय सरकारें कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करेगी. इसलिए ये चाहते हैं कि एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट तुरंत संज्ञान ले और राजस्थान और पंजाब सरकार से जवाब मांगे. इतनी बड़ी मात्रा में पानी को जहरीला बना दिया गया है और शुगर फैक्ट्री पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इस पानी में मछलियां ही नहीं, सांप गीदड़, नील गाय, हिरन, पशुओं के शव भी बहते हुए देखे गए हैं. मरे हुए जीवों के कारण हवा में दुर्गंध फैल गई है. प्रशासन ने आस-पास के गांवों को मना किया है कि नहर का पानी न पीयें. लोग इसका इस्तमाल पेयजल के लिए भी करते है. पानी का हाल देख लीजिए. एक फैक्टरी से इतनी बड़ी मात्रा में रसायन नहर के पानी में चला जाए इस पर आपात बैठक हो जानी चाहिए थी. मगर पता चलता है कि हम पानी के सवाल को कितने हल्के में लेते हैं मगर लोगों को देखिए. वे इस सवाल को उठाने के लिए कितने बेचैन हैं. 

अब आते हैं पेट्रोल पर. पेट्रोल की कीमतों को लेकर बहस इस बात पर हो रही है कि क्या पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर हो जाएगा, उससे पहले इसे 90 रुपये प्रति लीटर होना होगा. पिछले 9 दिनों से दाम इस तरह से बढ़ रहा है जैसे देश में कोई चुनाव ही न हो. कर्नाटक चुनाव के दौरान 19 दिन पेट्रोल डीजल के दाम नहीं बढ़े थे, क्योंकि उस वक्त सरकार थी. सरकार आज भी है मगर चुनाव नहीं है. अंतर्राष्ट्रीय कारणों से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में उछाल आया है. इनमें से कई कारण पिछले साल नहीं थे तब भी याद कीजिए पेट्रोल का भाव 80 रुपये लीटर तक पहुंच गया था. 

17 सितंबर 2017 को महाराष्ट्र के 21 जिलों में पेट्रोल का दाम 80 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो गया था. परभणी, नांदेड़, यवतमाल, गढ़चिरौली, भंडारा, औरंगाबाद में 80 रुपये लीटर से अधिक था. परभणी में 17 सितंबर को 81.31 रुपये प्रति लीटर था. 22 मई को 86.35 रुपये प्रति लीटर हो गया है. अब देखते हैं कि सितंबर 2017 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव क्या था. मई 2018 में कच्चे तेल का भाव क्या है. उस हिसाब से पेट्रोल का भाव क्या है. हम परभणी को ही अपना सैंपल मानते हैं. सितंबर 2017 में कच्चे तेल की कीमत थी 54.52 डॉलर प्रति बैरल तब परभणी में एक लीटर पेट्रोल का दाम था 81.31 रुपये. मई 2018 में कच्चे तेल की कीमत है 79 डॉलर प्रति बैरल. 22 मई को परभणी में एक लीटर पेट्रोल का दाम है 86.35 रुपये.

कहने का मतलब है कि सितंबर 2017 में आज की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमत 24.48 डॉलर प्रति बैरल कम थी. इसके बाद भी दाम तब भी 80 पार था, अब भी 80 पार है. फर्क यह है कि इस बार यह 90 को छूता नजर आ रहा है. 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 78 डॉलर प्रति बैरल था. भारत में कभी तेल इतना महंगा नहीं हुआ था. आज भी पेट्रोल 30 पैसे, जबकि डीजल की कीमतों में 26 पैसे की बढ़ोतरी हुई है. इसी के साथ दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल की कीमत 76.87 हो गई है, जबकि डीजल 68.08 हो गया है.पटना में पेट्रोल 82.35 पैसे प्रति लीटर और डीजल 72.76 रुपये प्रति लीटर है. मुंबई में 84.70 रुपये प्रति लीटर और डीजल 72.48 प्रति लीटर महंगा हो गया है.

डीजल का दाम बढ़ता है तो किसान के लिए मुश्किल होने लगती है. उसकी कमाई तो घटती ही जा रही है, ऐसे में लागत बढ़ेगी तो किसान पर बोझ और बढ़ेगा. इस वक्त खेतों में जुताई का सीजन है ताकि बीज के लिए तैयार किया जा सके. बारिश आए तो धान लहलहा उठे. भारत सऊदी अरब, इराक, ईरान से तेल आयात करता है, लेकिन श्रीलंका भारत से तेल आयात करता है फिर वहां भारत से सस्ता तेल कैसे हैं. 25 रुपया सस्ता है. पाकिस्तान भी इसी सऊदी और इराक से तेल का आयात करता है, वहां सस्ता कैसे है. एक सरकारी वेबसाइट है पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल की, शिवांक ने इस साइट का अध्ययन कर हमें बताया कि पिछले चार साल में तेल और गैस से सरकार के खाते में कितने पैसे पहुंचे.

-2014-15 में 3,32,620 करोड़
-2015-16 में 4,18,652 करोड़
-2016-17 में 5,24,304 करोड़


आपने देखा कि तेल और गैस से सरकार के खाते में जमा होने वाला पैसा बढ़ता ही जा रहा है. इसका एक हिस्सा राज्यों को जाता है. लेकिन इस वेबसाइट से पता चलता है कि राज्यों के हिस्से में जो पैसा जा रहा है उसमें कमी आ रही है. 2014-15 में 48.27%, 2015-16 में 38.27%, 2016-17  में 36.19% और 2017-18 में 39.55%.

2014-15 में तेल और गैस की कमाई से राज्यों को जितना मिला, उसके बाद उसमें 8 से 10 फीसदी की कमी आ गई. 2013-14 के साल में जब विपक्ष यूपीए सरकार को घेर रहा था तब कोई तर्क से बात नहीं कर रहा था. सामने पेट्रोल डीजल के रेट थे और सड़कों पर धरना-प्रदर्शन. वही स्थिति आज भी है. तरह-तरह के प्रदर्शनों की बाढ़ आ गई है. यह दिखाना जरूरी है क्योंकि कई बार आप ही पूछते हैं कि विपक्ष इस मुद्दे को उठा क्यों नहीं रहा है.

यहां पर बाइक का पिंडदान किया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों के अनुसार पेट्रोल इतना महंगा हो गया है कि अब बाइक चल नहीं पाएगी. बनारस में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पिंडदान किया है. आगरा में सपा की महिला कार्यकर्ताओं रिक्शा चलाकर पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का विरोध किया. जयपुर में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया है. कार्यकर्ता ने अपना खून निकलवाया और प्रतिरोध पत्र पर दस्तखत किया. कानपुर में कांग्रेस कार्यकर्ता बैनर पर कार, ट्रैक्टर, बाइक की तस्वीरें बना कर ले आए थे, जिस पर लिखा है कि हाय-हाय ये मजबूरी, इसे बेचना और जलाना हो गया है मजबूरी. और भी कई जगहों पर प्रदर्शन हुए हैं. 

पिछले छह महीने से कहा जा रहा था कि कच्चा तेल महंगा होने वाला है. इस बीच दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई है. मंदी के आसार छंटे हैं. लिहाजा तेल की मांग काफी बढ़ी है और उस अनुपात में उत्पादन नहीं हो रहा है. आप जानते हैं कि तेल उत्पादक देशों का समूह ओपेक ने भी उत्पादन में कमी की है. आर्गेनाइज़ेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज़ को संक्षेप में ओपेक कहते हैं. इसमें सऊदी अरब, कतर, अंगोला, कुवैत, लीबिया, इक्वाडर सहित 14 तेल उत्पादक देश हैं. वेनेजुएला ने भी कमी की है. ईरान और अमेरिका के झगड़े का असर है. इन सबका असर है. भारत में शहरी मध्यम वर्ग और निम्न मध्यवर्ग पर बढ़ते दामों का असर तेल के अलावा अन्य कारणों से भी है. कमाई में वृद्धि नहीं हुई है और दाम बढ़ते जा रहा है. 

क्या सरकार के पास वाकई ठोस विकल्प है कि वह उत्पाद शुल्क में कमी करके राहत दे दे. आज की दर से राहत दे सकती है, लेकिन अगले कुछ हफ्तों तक कच्चे तेल का भाव बढ़ता रहा तब क्या होगा. इंडियन ऑयल के चेयरमैन का कहना है कि तेल के दाम बढ़ाना मजबूरी है. आपने इंडियन ऑयल के चेयरमैन संजीव को सुना कि वे कह रहे हैं कि टैक्स देने के बाद का मुनाफा 2016-17 के मुकाबले 2017-18 में 2000 करोड़ बढ़ा है. वे पेट्रोल डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने की बात कर रहे हैं.


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