यूपी-बिहार की ट्रेनें सबसे ज़्यादा देरी से क्यों?

जननायक एक्सप्रेस अमृतसर से दरभंगा के बीच चलती है. इसमें सारी बोगी जनरल होती है, क्योंकि इससे बिहार के मज़दूर पंजाब मजदूरी करने जाते हैं.

यूपी-बिहार की ट्रेनें सबसे ज़्यादा देरी से क्यों?

आज जब सुबह एक यात्री दर्शक ने रेलवे टाइम टेबल का स्क्रीन शॉट भेजा कि अमृतसर से दरभंगा के बीच चलने वाली 15212 जननायक एक्सप्रेस 57 घंटे लेट है तो यकीन नहीं हुआ. 44 घंटे तक लेट चलने वाली ट्रेन से सामाना हो चुका था मगर 57 घंटे ट्रेन चलती होगी, इस सूचना को ग्रहण करने की मानसिक तैयारी नहीं थी. जननायक एक्सप्रेस अमृतसर से दरभंगा के बीच चलती है. इसमें सारी बोगी जनरल होती है, क्योंकि इससे बिहार के मज़दूर पंजाब मज़दूरी करने जाते हैं.

भारत के मज़दूरों के समय की कीमत नहीं है. दरभंगा से खुलने वाली जननायक एक्सप्रेस सोमवार को रद्द कर दी गई. मंगलवार को जब चली तब भी 3 घंटे लेट हो गई है. जनरल बोगी में जिसमें कोई सुविधा नहीं होती है. अगर कोई 57 घंटे लेट यात्रा करे तो उस मज़दूर की आधी छुट्टी तो इसी में चली जाएगी. वो घर जाकर अपने परिवार के साथ रहेगा क्या, मिलेगा क्या. हमने 15212 जननायक एक्सप्रेस जो अमृतसर से दरभंगा के बीच चलती है उसका हाल देखा है. हमारे काम में मदद कर रहे शिवांक ने बताया कि 15212 नंबर की ट्रेन 13 अक्तूबर 2017 को 71 घंटे लेट थी. हम कहां 44 घंटे लेट पर गश खा रहे थे यहां तो ट्रेन 71 घंटे की देरी से भी चलने का रिकॉर्ड कायम कर चुकी हैं. इस हफ्ते का रिकॉर्ड देखिए. 

-3 तारीख को जिस ट्रेन को सुबह 3 बजे दरभंगा पहुंचना था वह 4 तारीख को सुबह 5 बजे पहुंची. 26 घंटे लेट. 
-4 तारीख की ट्रेन 5 मई को 33 घंटा की देरी से दरभंगा पहुंची.
-5 तारीख की ट्रेन 6 मई को 27 घंटा की देरी से दरभंगा पहुंची.
-6 तारीख की ट्रेन 8 मई को 58 घंटा 35 मिनट की  देरी से दरभंगा पहुंची.
-7 तारीख की ट्रेन 8 मई 26 घंटा 40 मिनट की देरी से दरभंगा पहुंची.
-एक दिन में दो-दो ट्रेन अमृतसर से दरभंगा पहुंची है. 

नाम से तो लगता है कि जननायक ट्रेन में जनता ही नायक है, मगर इस ट्रेन में चलने वाली जनता का हाल बुरा है. इस ट्रेन की खासियत यह कि इसमें एसी नहीं है. स्लीपर नहीं है. जनरल बोगी ही है. दरभंगा स्टेशन पर हमारे सहयोगी ने अमृतसर के लिए तैयार हो रही जननायक का हाल लिया. वाशिंग पिट पर ही लोग बोगी में सवार होने के लिए जा रहे हैं. यात्रियों का धीरज जवाब देता है. सीट रिज़र्व नहीं होने के कारण यात्री वाशिंग पिट से ही सीट छेंकने के लिए सवार होने लगते हैं. जहां सफाई होगी वहां अगर यात्री चढ़ेंगे तो ज़ाहिर है गाड़ी की सफाई नहीं हो पाएगी. 

यात्रियों की संख्या इतनी है कि किसी को भरोसा नहीं है कि पहले सीट नहीं ली तो मिलेगी भी. हमारे सहयोगी प्रमोद गुप्ता ने जब यह रिकॉर्डिंग की तब उस वक्त बिजली ऑन नहीं हुई थी, मगर यात्रियों के हाथ में पंखा बता रहा है कि उन्हें बिजली का कितना भरोसा है. एक और चीज़ हमने नोटिस की है. रेलवे वेबसाइट की जानकारी और रेलवे स्टेशन की जानकारी में भी कई बार अंतर होता है. प्रधानमंत्री खुद को कामदार कहते हैं तो कम से कम कामगारों को लेकर चलने वाली ट्रेन अगर समय पर चले 57 घंटे लेट न चले तो अच्छा रहेगा.

मालदारों वाली ट्रेन ही क्यों समय पर चले. हवाई चप्पल वाले अगर हवाई यात्रा कर रहे हैं तो भारतीय रेल में कौन लोग सफर कर रहे हैं. आज-कल बुलेट ट्रेन का विज्ञापन आने लगा है. लेकिन बाकी ट्रेनों की बुलेट ट्रेन से क्या दुश्मनी है. पटना कोटा एक्सप्रेस का हाल बता रहे हैं. 29 अक्तूबर 2017 के दिन यह ट्रेन 68 घंटे लेट थी. इस ट्रेन के कारण एक छात्र का भविष्य बर्बाद हो गया. वह कई दिनों से मुझे सूचना भेज रहा था कि भारतीय रेल की देरी के कारण वह उस परीक्षा में शामिल नहीं हो सका जिसकी तैयारी वह तीन साल से कर रहा था.

इस छात्र की तीन साल की तैयारी बर्बाद हो गई. न जाने ऐसे कितने छात्रों और लोगों का नुकसान हुआ होगा. मगर एक मिनट के लिए ठहर कर सोचिए, तीन साल तैयारी की होगी और पटना कोटा के समय पर न पहुंचने के कारण परीक्षा नहीं दे पाया. कायदे से रेलवे को इस छात्र को बुलाकर अपने यहां नौकरी दे देनी चाहिए. पटना-कोटा एक्सप्रेस दो नंबर से चलती है. आज 12237 नंबर की पटना कोटा एक्सप्रेस राइट टाइम खुली है. रेल मंत्रालय को देखना चाहिए. कर्नाटक में चुनाव हो रहे हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से ही हैं. जब हमने 7 बजकर 26 मिनट पर गोरखपुर स्टेशन पर आने वाली गाड़ियों का हाल देखा, आठ घंटे की रेंज में पहुंचने वाली ट्रेनों की सूची देखी तो 27 ट्रेनें लेट थीं, जिनमें न्यूनतम 23 मिनट लेट थी, 11055 गोदान एक्सप्रेस और अधिकतम 29 घंटा 3 मिनट लेट शहीद एक्सप्रेस.

मुख्यमंत्री को अगर चुनावी सभाओं में रेल मंत्री मिल जाएं तो उनसे कह सकते हैं कि गोरखपुर आने जाने वाली गाड़ियों की हालत खराब क्यों हैं. यही नहीं चुनावी मौसम में गोरखपुर से बेंगलुरु के यशवंतपुर स्टेशन जाने वाली ट्रेन 42 42 घंटे देरी से चल रही है. 12591 गोरखपुर यशवंतपुर एक्सप्रेस को 5 मई को सुबह 6 बजकर 35 मिनट पर रवाना होना था, लेकिन यह 31 घंटा 35 मिनट लेट होकर 6 मई को गोरखपुर से दोपहर दो बजकर दस मिनट पर यशवंतपुर के लिए रवाना हुई. अभी यह ट्रेन यशवंतपुर नहीं पहुंची है और लगभग 42 घंटा लेट चल रही है.

15024 यशवंतपुर-गोरखपुर एक्सप्रेस 5 तारीख को 7 बजकर 45 मिनट पर पहुंचने की बजाए 6 तारीख को 11 घंटा की देरी से पहुंची. यह ट्रेन यशवंतपुर से तीन मई को सही समय रात 11 बजकर 40 मिनट पर खुली थी. 12511 राप्तीसागर एक्सप्रेस जो गोरखपुर से तिरुअनन्तपुरम तक जाती है, 6 मई को सुबह 6 बजकर 35 मिनट पर रवाना होने वाली थी, लेकिन यह 7 मई को गोरखपुर से चली 6 बजकर पांच मिनट पर, यानी 23 घंटा 30 मिनट लेट.

12322 कोलकाता मेल जो छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल से कोलकाता के बीच चलती है, यह ट्रेन  6 तारीख को रात 9 बजे 30 मिनट पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से चलनी थी, लेकिन यह 9 घंटा 53 मिनट की देरी से रवाना हुई. इसे आठ तारीख को 11 बजकर 45 मिनट पर हावड़ा पहुंचना था, लेकिन अंतिम बार जब चेक किया था तब यह ट्रेन 15 घंटा 25 मिनट की देरी से चल रही थी.

हमने प्राइम टाइम की रेल सीरीज़ में सीमांचल एक्सप्रेस का काफी ज़िक्र किया जो बिहार के अररिया ज़िले के जोगबनी से चलकर आनंद विहार आती है. किसी दिन यह ट्रेन 30 घंटे देरी से चलती है किसी दिन 25 घंटे की देरी. प्राइम टाइम का असर यह हुआ कि स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस की तरह 8 मई को सुबह अपने समय पर दिल्ली से निकली. मगर यूपी के मिर्ज़ापुर पहुंचते-पहुंचते तीन घंटे चालीस मिनट देर हो ही गई. 11 मार्च 2016 यानी दो साल पहले रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा देरी को लेकर राज्य सभा में एक लिखित बयान दिया था. इस बयान में उन्होंने देरी के कई कारण बताये थे. और यह भी बताया था कि देरी को ठीक करने के लिए क्या क्या कदम उठाए गए थे.

उन्होंने कहा था कि ट्रेन ऑपरेशन से जुड़े स्टाफ को प्रोत्साहित किया जा रहा है. टाइम टेबल में सुधार किया जा रहा है. नए ढांचों के ज़रिए क्षमता में सुधार किया जा रहा है. रेलवे ने नया आईटी सिस्टम icmc लगाया है. इसके ज़रिए ट्रेनों के समय की ऑनलाइन मानिटरिंग की जा सकती है. ट्रेनों के समय को लेकर विश्लेषण भी किया जा सकता है.

दो साल पहले यह सब किया जा चुका था और किया जा रहा था. 2016 का यह बयान है. 2018 मई में भी वही स्थिति क्यों है. 3 मई की पीटीआई की खबर है कि रेलवे में लेट चलने वाली ट्रेनों के प्रतिशत में 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. सुशील महापात्रा ने जनसंपर्क अधिकारी राजेश वाजपेयी से बातचीत की है. उसका कुछ हिस्सा आपको दिखा रहे हैं.

क्या आपको पेंशन चाहिए, इस सवाल का जवाब खुद से पूछिए. रेल कर्मचारी इस सवाल को लेकर संघर्ष पर उतर आए हैं. 8 मई को देश के कई रेलवे स्टेशन पर रेल कर्मचारियों में प्रदर्शन किया है. निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर रेल यूनियन के सदस्य धरने पर बैठे हैं. टिकट काटने वाले, ड्राईवर जिसे हम लोको पायलट कहते हैं, असिसटेंट लोको पायलट कहते हैं, इलेक्ट्रिकल मेकेनिकल कर्मचारी, गार्ड, ट्रैकमैन दफ्तर में भी काम करने वाले कर्मचारी इस प्रदर्शन में शामिल हैं. इन सबको क्या चाहिए जो चाहिए उसकी बात कोई नहीं कर रहा है. इन्हें पेंशन की पुरानी व्यवस्था चाहिए. अब इन कर्मचारियों को 2004 में लागू न्यू पेंशन स्कीम समझ आने लगी है.

इन्हें पुरानी व्यवस्था के तहत पेंशन चाहिए. हाल ही में दिल्ली में भी हज़ारों की संख्या में कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था को लेकर जमा हुए थे. मीडिया और नेता भले पेंशन के सवाल पर बात न करें मगर सरकारी दफ्तरों के भीतर लाखों कर्मचारी पेंशन के सवाल को समझने लगे हैं. जो इनके सवाल पर वादा करेगा वो इनका नेता हो जाएगा. आप किसी सरकारी कर्मचारी से पूछिए कि उसे न्यूज़ चैनल पर क्या चाहिए. पेंशन पर चर्चा या नेताओं के झूठ और चालाकी से भरे चुनावी भाषण तो सब कहेंगे कि हमें पुरानी पेंशन चाहिए. 

यह तस्वीर दरंभगा रेलवे स्टेशन की है. यहां भी कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के लिए मांग कर रहे हैं. रेल यूनियन के नेता शिव गोपाल मिश्र का कहना है कि पेंशन के अलावा रेलवे में दो लाख खाली पदों को भरा जाना चाहिए. सरकार ने सिर्फ 90000 की वैकेंसी निकाली है मगर दो लाख वैकेंसी पूरी होनी चाहिए. रेल यूनियन ने 72 घंटे का यह क्रमिक प्रदर्शन शुरु किया है. शिवगोपाल मिश्र का दावा है कि साठ से सत्तर हज़ार कर्मचारी 8 मई को भूख हड़ताल पर बैठे हैं.

यह बहुत दुखद है कि न्यूज़ चैनलों पर नेताओं के बयानों का अतिक्रमण हो गया है, कब्ज़ा हो गया. जनता की मांग की चर्चा नहीं है, नेता जो तय कर रहे हैं उसी की जनता के बीच चर्चा फैलाई जा रही है. आप इसे समझिए वरना पेंशन की मांग को लेकर मीडिया में चर्चा के लिए तरस रहे सरकारी कर्मचारियों से पूछ कर देखिए. बैंक के कर्मचारियों को 2 प्रतिशत सैलरी बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है वे दिन रात छटपटा रहे हैं कि उनकी सैलरी बहुत कम है. कोई उनके सवाल पर चर्चा कर दे. जनता बेचैन घूम रही है, न्यूज़ चैनल नेताओं के पीछे घूम रहे हैं. एक नेशनल सिलेबस बन गया है देश में, समय-समय पर कोई न कोई ऐसा टॉपिक आ जाता है जिसका संबंध हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण से होता है. नफरत से होता है. बाकी आप खुद समझदार हैं.


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