रोहिंग्या शरणार्थी आख़िर कहां जाएं? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

म्यानमार से जान बचाकर आए रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भारत में चुप्पी क्यों है. क्या इसलिए रोहिंग्या के साथ मुसलमान लगा है? अगर यही आधार है तो क्या हम जानना चाहेंगे कि पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों के साथ हम क्या करते हैं?

रोहिंग्या शरणार्थी आख़िर कहां जाएं? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

म्यानमार से जान बचाकर आए रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भारत में चुप्पी क्यों है. क्या इसलिए रोहिंग्या के साथ मुसलमान लगा है? अगर यही आधार है तो क्या हम जानना चाहेंगे कि पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों के साथ हम क्या करते हैं? फिर यह जानने के बाद क्या आप नए सिरे से सोचना चाहेंगे कि शरणार्थियों को लेकर हमारा नज़रिया हिन्दू बनाम मुस्लिम को होना चाहिए या इंसानियत बनाम हैवानियत का होना चाहिए. हमने जोधपुर के अपने सहयोगी अरुण हर्ष से गुज़ारिश की कि वे वहां रह रहे उन हिन्दुओं का हाल चाल लें जो पाकिस्तान से आए हैं.

जोधपुर से 15 किमी दूर है आंगणवा गांव
अरुण हर्ष ने पहले आंगणवा गांव को चुना जो जोधपुर शहर से 15 किमी दूर है. पहाड़ी पर स्थित इस गांव में जाने के लिए एक ढंग का रास्ता तक नहीं है. गांव के एक छोर पर हिंगलाज माता का मंदिर है. अस्थायी तौर पर पत्थरों के कोने में देवी की तस्वीर लगाकर पूजा कर रहे हैं. धर्म पताका लहरा रहा है. मंदिर की हालत देखकर ही आप समझ सकते हैं कि किसी को इनकी आस्था का भी ख़्याल नहीं आया. भव्य न सही, कम से कम एक छोटा मंदिर ही बनवा देते. पास के प्रभावशाली समुदाय के मंदिरों में बिजली है मगर हिंगलाज माता के इस अस्थायी मंदिर में बिजली भी नहीं हैं.

सिंध प्रांत से भारत आएं ये लोग
2005 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत से ये लोग भारत आए और यहां नागरिकता मिलने की आस में दस्तावेज़ लेकर दर दर भटकते रहते हैं. इनके घर कच्चे हैं. यहां वहां से पत्थर लाकर जोड़कर बनाए गए हैं. घरों में बिजली नहीं है. किसी भी सरकारी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिलता है. गैस का कनेक्शन भी नहीं है. हिन्दू राष्ट्र की दुकानदारी सिर्फ टीवी की बहसों के लिए है. जब किसान मरता है, मज़दूर को मज़दूरी नहीं मिलती है तो वह हिन्दू नहीं रह जाता न ही मुसलमान रह जाता है. 

महंगा सामान देते हैं दुकानदार
हमारे सहयोगी अरुण हर्ष को हिन्दू शरणार्थियों ने बताया कि दुकानदार 500 का सामान 700 में देता है, लेना पड़ता है क्योंकि वही पैसे न रहने पर उधार भी देता है. जिस तरह रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने पर व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी के ज़रिये ज़हरीला तर्क फैलाया जा रहा है कि ये यहां बसेंगे नौकरी मांगेंगे तो हमारा हक जाएगा, उसी तरह से इन हिन्दू शरणार्थियों को भी कहा जाता है कि भारत में पहले से ही बेरोज़गारी है तुम वहीं चले जाओ. 

दो नंबर की सब्जी बेचते हैं
अरुण हर्ष जब आंगणवा में थे तो सब्ज़ी की एक गाड़ी आई. अरुण हर्ष ने सब्ज़ी वाले से पूछा कि सब्ज़ी की हालत ऐसी क्यों है. तो बताया कि ये दो नंबर की सब्ज़ी है. दो नंबर की सब्ज़ी का मतलब क्या चोरी की सब्जी है तो गाड़ीवान ने अरुण को बताया कि जो सब्ज़ी बाज़ार में छंट जाती है, सड़ जाती है, आम इंसान नहीं खा पाता है, उसे यहां लाकर सस्ते भाव में बेच देते हैं. क्योंकि इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. हर्ष ने देखा कि गरीबी का असर खान पान पर भी. प्याज़ लहसन के साथ रोटी खाते हैं. एक और गांव में कपड़े का व्यापारी मिला तो उसने बताया कि ज़्यादा दाम पर बेचते हैं. कपड़े भी ये लोग उधार पर खरीदते हैं. मूल से ज़्यादा सूद देने में निकल जाता है. इन्हें हिन्दू बनाम मुस्लिम टापिक दे दिया जाए तो हो सकता है बवाल मचा दें, मगर कमज़ोर हालात में इन हिन्दुओं से मुनाफा खींचना नहीं छोड़ेंगे. 

VIDEO:  प्राइम टाइम: भारत में रोहिंग्याओं की कितनी चिंता?
कालीबेड़ी में भी हिन्दू शरणार्थी रहते हैं
इसलिए मामला सिर्फ हिन्दू मुस्लिम का नहीं होता है. कालीबेड़ी में भी हिन्दू शरणार्थी रहते हैं. यहां आसपास की खदानों में काम तो मिल जाता है मगर कई बार पूरा पैसा नहीं मिलता. यहां एक स्कूल है पांचवी तक मगर मास्टर एक ही है, उसी पर ज़िम्मेदारी है कि पांच क्लास के सत्तर अस्सी बच्चों को पढ़ा दे. अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता, क्योंकि इन्हें पाकिस्तानी माना जाता है. अरुण हर्ष ने देखा कि एक नौजवान सांप कांटने पर ओझा से झाड़फूंक करा रहा है. उनके पास फिलहाल यही डॉक्टर है. मर गए तो अपना कोई श्मशान भी नहीं है. खुले में शव जलाते हैं तो विरोध का सामना भी करना पड़ता है. दो-दो किलोमीटर दूर से ये लोग पानी लाते हैं. कालीबेड़ी के इस गांव में एक भी शौचालय नहीं हैं. इस गांव में एक अस्थायी शौचालय दिखा जिसमें ताला बंद था, अदालत के आदेश में बाद इसे यहां लाकर रखा गया है. राजस्थान हाईकोर्ट की सक्रियता से इन्हें कुछ सुविधाएं मिल जाती हैं

जमीन पर लागू नहीं हुआ अध्यादेश
नागरिकता मिलने की जटिल प्रक्रिया होती है, सुरक्षा के कारण भी होते होंगे फिर भी जब तक कोई शरणार्थी है उसके साथ क्या बर्ताव होना चाहिए. पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों के लिए लड़ने वाले सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष का नाम हिन्दू सिंह सोढ़ा का कहना है कि नागरिकता मिलने का सपना साकार होने के करीब है 19 अगस्त 2016 के अध्यादेश के बाद, मगर अध्यादेश की बातों को ज़मीन पर लागू नहीं किया गया है.

जिंदगी दाव पर लगाकार नाव से आते हैं ये लोग
म्यानमार से रोहिंग्या मुसलमान बरसात के बाग़ी समंदर में नाव से भाग कर बांग्लादेश आ रहे हैं. क्या आपको लगता है कि ये आतंकवादी हैं? ये तो ख़ुद ही आतंकवाद के शिकार हैं. क्या आप वकाई यकीन कर ले रहे हैं कि ये भारत की सुरक्षा का खतरा बनने के लिए अपने परिवार की ज़िंदगी दांव पर लगाकर म्यानमार से भाग कर आ रहे हैं. म्यानमार सरकार कहती है कि रोहिंग्या मुसलमानों का संगठन Arakan Rohingya Salvation Army आतंकवादी संगठन है. अगर वो है भी तो वहां की सरकार को इनकी ज़िंदगी बचानी चाहिए या किसी संगठन की सज़ा आम नागरिकों को देनी चाहिए. म्यानमार की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानो को नागरिकता क्यों नहीं दी, क्या इस सवाल को भारत उठा सकता है, उठा सकता था. कई दिनों से भूखे प्यासे ये लोग किस आंख से आतंकवादी लगते हैं.

अब आपके स्क्रीन पर चैनल न्यूज़ एशिया की तस्वीर है. 6-7 सितंबर को रखाइन के इलाके में कुछ विदेशी पत्रकारों को जाने दिया गया, जहां से रोहिंग्या मुसलमान भागे हैं. चैनल न्यूज एशिया की महिला पत्रकार वॉन्ग ने देखा कि कई किलोमीटर की दूरी तक आसमान में धुआं फैला हुआ है. घरों को जला दिया गया है. कई जगहों से धमाकों की आवाज़ आ रही है. हमला करने वाला कौन है पता नहीं चल रहा है. वॉन्ग को यह शख्स मिला जो कई दिन पैदल चलकर यहां पहुंचा है, बांग्लादेश जाने के लिए. उनका परिवार दो हफ्ते पहले ही बांग्लादेश पहुंच चुका है. वॉन्ग से आंग ल्विन नाम के एक बौद्ध ने कहा कि सभी बंगाली आतंकवादी है. आपने गौर किया होगा कि इन्हें मुसलमान नहीं कहा, बंगाली कहा. वे कह रहे हैं कि हम इनके साथ नहीं रह सकते हैं. 

वापस भेजने से संबंधित है सरकार का बयान
सरकार की ओर से अभी तक जितने भी बयान आए हैं उनका संबंध रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने से ही संबंधित हैं. इन्हें सुरक्षा का खतरा माना जा रहा है. इन्हें कानून व्यवस्था के लिए समस्या के रूप में पेश किया जा रहा है. किरेण रिजीजू कहते हैं कि रोहिंग्या शरणार्थियों का मसला इसलिए उठाया जा रहा है ताकि भारत को बदनाम किया जा सके. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख ने भारत की आलोचना की है. सुप्रीम कोर्ट में दो रजिस्टर्ड रोहिंगया शरणार्थियों मोहम्मद सलिमुल्लाह और मोहम्मद शाकिर की तरफ से प्रशांत भूषण ने अपील दायर कर कहा है कि इन्हें वापस भेजना भारतीय संविधान की धारा आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार) आर्टिकल 21 (जीने का और स्वतंत्रता का अधिकार)  और आर्टिकल 51c का उल्लंघन होगा जो सभी व्यक्तियों को समान अधिकार और स्वतंत्रता देती है.


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